लगान का आधुनिक सिद्धान्त ( Modern Theory of Rent)
रिकार्डो का विचार था कि लगान केवल भूमि पर ही मिलता है। प्रकृति की देन होने के कारण भूमि की मात्रा सीमित होती है। भूमि में सीमितता का यह गुण उसे उत्पत्ति के अन्य उपादानों से पृथक् कर देता है। किन्तु आधुनिक अर्थशास्त्रियों के विचार में भूमि की तरह उत्पादन के अन्य उपादानों में भी सीमितता का गुण पाया जाता है। इसलिए अन्य उपादान भी लगान प्राप्त कर सकते हैं।
लगान का अर्थ- आधुनिक अर्थशास्त्रियों के विचार में लगान किसी उपादान की वास्तविक आय तथा हस्तान्तरण आय का अन्तर होता है।
लगान = वास्तविक आय – हस्तान्तरण आय
Rent = Actual Earning – Transfer Barning (AE-TE)
वास्तविक आय (AE) किसी साधन की वह आय है जो उसे अपने वर्तमान प्रयोग में प्राप्त हो रही होती है। हस्तान्तरण आय (TE) किसी साधन की वह आय है जो उसे (साधन) अपने सर्वश्रेष्ठ वैकल्पिक प्रयोग (next best alternative use) में प्राप्त हो सकती है। हस्तान्तरण आय को ‘न्यूनतम पूर्ति कीमत’ (minimum supply price) भी कहते हैं।
उदाहरणार्थ, किसी क्लर्क को 16,000 रुपये माहवार मिलते हैं जोकि उसकी वास्तविक आय है। यदि वह कहीं और कार्य करने जाता है तो उसे केवल 14,000 रुपये माह (हस्तान्तरण आय) ही मिल सकते हैं। इस प्रकार उसे वर्तमान रोजगार में 2,000 रुपए का आर्थिक लगान प्राप्त हो रहा है।
लगान की परिभाषाएँ- लगान की कुछ आधुनिक परिभाषाएँ नीचे प्रस्तुत हैं-
(1) श्रीमती जॉन रॉबिन्सन के शब्दों में, “किसी उपादान का लगान उत्पादन का वह अतिरेक होता है जो उसे न्यूनतम राशि के अतिरिक्त प्राप्त होता है तथा जिसके कारण वह उस व्यवसाय में कार्य करने के लिए आकर्षित होता है। “
(2) बोल्डिंग के विचार में, “आर्थिक लगान यह भुगतान है जो सन्तुलन की स्थिति में किसी उद्योग में लगे उत्पत्ति के किसी उपादान की एक इकाई की दिया जाता है और यह उस न्यूनतम रकम से अधिक होता है जोकि उपादान-विशेष को उसके वर्तमान व्यवसाय में बनाए रखने के लिए आवश्यक होता है।”
(3) स्टोनियर तथा हेग के शब्दों में, “लगान वह भुगतान है जो हस्तान्तरण आय से अधिक होता है।
सिद्धान्त का आधार- वॉन वीजर (Van Wiser) ने उत्पत्ति के उपादानों को दो वर्गों में बाँटा है- (i) पूर्णतया विशिष्ट उपादान (Perfectly Specific Factors) तथा (ii) पूर्णतया अविशिष्ट उपादान (Perfectly Non-Specific Factors)। पूर्णतया विशिष्ट उपादान वे होते हैं जिन्हें एक ही कार्य में प्रयुक्त किया जा सकता है। ये उपादान पूर्णतया अगतिशील होते हैं। इसके विपरीत, पूर्णतया अविशिष्ट उपादान ये होते हैं जिन्हें कई कार्यों में प्रयुक्त किया जाता है। विशिष्टता के सम्बन्ध में दो यात महत्त्वपूर्ण है-(1) विशिष्टता एक ऐसा गुण है जिसे कोई भी उपादान प्राप्त कर सकता है। आज जो उपादान विशिष्ट है वह कल अविशिष्ट हो सकता है। (ii) वस्तुतः कोई भी उपादान न तो पूर्णतया विशिष्ट होता है तथा न ही पूर्णतया अविशिष्ट।
उपादानों के उक्त वर्गीकरण के आधार पर ही आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने लगान का आधुनिक सिद्धान्त प्रतिपादित किया है। उनके विचार में लगान विशिष्टता के कारण किया गया भुगतान है। दूसरे शब्दों में, लगान तब मिलता है जबकि किसी उपादान का सम्भरण कम मूल्य सापेक्ष (less elastic) होता है।
लगान का निर्धारण (Determination of Rent) आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार उत्पादन के साधनों को लगान तभी प्राप्त होगा जबकि उनकी पूर्ति पूर्णतया लोचदार से कम (less than perfectly elastic) होती है। इस प्रकार किसी साधन-विशेष को कितना लगान प्राप्त होगा यह उस साधन-विशेष की पूर्ति पर निर्भर करता है। साधन की पूर्ति की लोच तीन प्रकार की हो सकती है- (1) पूर्णतया लोबदार पूर्ति (2) पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति तथा (3) कम लोचदार पूर्ति ।
(1) पूर्णतया लोचदार पूर्ति (Perfectly Elastic Supply)- किसी साधन (उपादान) की पूर्ति पूर्णतया लोचदार उस समय होती है जब एक निश्चित कीमत पर उसकी कितनी हो इकाइयाँ प्राप्त की जा सकती है, अर्थात् वह साधन दुर्लभ नहीं होता। ऐसी स्थिति में साधन की वास्तविक आप तथा हस्तान्तरण आय बराबर होंगी तथा इनका अन्तर शून्य होगा।
(2) पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति (Perfectly Inelastic Supply)- जब किसी साधन की पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार होती है तो साधन की कीमत में परिवर्तन का उसकी पूर्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, अर्थात् शून्य कीमत पर भी उसकी पूर्ति समान रहती है। ऐसी स्थिति में साधन की हस्तान्तरण आय (TE) शून्य होती है तथा साधन की जो भी वास्तविक आय (AE) होती है वह सारी की सारी लगान होती है।
(3) पूर्णतया लोचदार से कम पूर्ति (Less than Perfectly Elastic Supply)-उत्पादन के किसी साधन की पूर्ति कम लोचदार उस स्थिति में होती है जब उस साधन की मांग में वृद्धि होने के फलस्वरूप उसकी पूर्ति में अपेक्षाकृत कम वृद्धि होती है। ऐसी स्थिति में यदि साधन की माँग बढ़ जाती है तो पूर्ति में मांग के बराबर वृद्धि न हो पाने के कारण साधन की वास्तविक आय उसकी हस्तान्तरण आय से अधिक हो जायेगी साधन को वास्तविक आय तथा हस्तान्तरण आय के बराबर लगान प्राप्त होगा।
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