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विकास केन्द्रित परिभाषाएँ (Growth-oriented Definitions)
अर्थशास्त्र की विकास केन्द्रित परिभाषाएँ एडम स्मिथ, मार्शल तथा रॉबिन्स की परिभाषाओं के गुणों का मिश्रण है। आधुनिक अर्थशास्त्री सैम्युअलसन, चेनहन, फर्ग्युसन, पीटरसन आदि के अनुसार दुर्लभ साधनों के वर्तमान प्रयोग की समस्या मुख्यतया चुनाव की समस्या है जबकि भविष्य में उनमें वृद्धि की समस्या आर्थिक विकास की समस्या है। इस प्रकार अर्थशास्त्र का सम्बन्ध चुनाव की समस्या तथा आर्थिक विकास दोनों से है। विकास केन्द्रित परिभाषाओं के अनुसार, अर्थशास्त्र का सम्बन्ध दुर्लभ साधनों के कुशलतम बँटवारे तथा उपयोग द्वारा आर्थिक विकास की गति को तीव्र करने तथा सामाजिक कल्याण में वृद्धि करने से है।
पीटरसन (Peterson) के शब्दों में, “अर्थशास्त्र उन क्रियाओं का अध्ययन है जिनके द्वारा सीमित साधनों का वैकल्पिक तथा प्रतिस्पर्धा वाली आवश्यकताओं में इस प्रकार आवंटन किया जाता है जिससे अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त हो।”
पॉल सेम्युअलसन (Paul Samuelson) के अनुसार, “अर्थशास्त्र इस बात का अध्ययन है कि व्यक्ति प्रकार, मुद्रा के माध्यम से अथवा इसके बिना, विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन के लिए वैकल्पिक प्रयोगों वाले दुर्लभ साधनों का तथा समाज किस प्रयोग करते हैं और इन वस्तुओं को वर्तमान तथा भविष्य के उपभोग के लिए समाज के विभिन्न व्यक्तियों तथा वर्गों के मध्य बाँटते हैं। यह साधनों के बंटवारे में किए जाने वाले सुधारों के लाभों व लागतों का विश्लेषण करता है।”
विशेषताएँ (Characteristics)-
अर्थशास्त्र की विकास केन्द्रित परिभाषाओं की मुख्य विशेषताएँ निम्नांकित है-
(1) दुर्लभ साधन-इन परिभाषाओं के अनुसार, अर्थशास्त्र का सम्बन्ध दुर्लभ (सीमित) साधनों से है। इनके अन्तर्गत वे सभी मानवीय, प्राकृतिक तथा भौतिक साधन आते हैं जो मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं, जो सीमित होते हैं तथा जिनके वैकल्पिक प्रयोग होते हैं।
(2) साधनों का कुशललम बँटवारा- अर्थशास्त्र की मुख्य समस्या चुनाव की समस्या है। चुनावों का उद्देश्य साधनों का कुशलतम पेंटवारा तथा उपयोग करना है।
(3) साधनों का पूर्ण उपयोग- अर्थशास्त्र का सम्बन्ध साधनों के बँटवारे के साथ-साथ साधनों के पूर्ण उपयोग तथा पूर्ण रोजगार से भी है।
(4) साधनों में वृद्धि अर्थशास्त्र का सम्बन्ध साधनों की मात्रा तथा उत्पादकता में की जाने वाली वृद्धि से भी है। इसके फलस्वरूप आर्थिक विकास की दर में वृद्धि होती है, रोजगार बढ़ता है तथा जीवन स्तर उन्नत होता है।
स्टिगलर (Stigler) के अनुसार, “अर्थशास्त्र उन सिद्धान्तों का अध्ययन है जो दुर्लभ साधनों का प्रतिस्पर्धात्मक उद्देश्यों में आवंटन का प्रबन्ध करते हैं, आवंटन का उद्देश्य अधिकतम लक्ष्यों को प्राप्त करना है।
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