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विदेशी शाखा खाता क्या है? विदेशी शाखा की मुद्रा को देश मुद्रा में बदलने के नियम

विदेशी शाखा खाता क्या है? विदेशी शाखा की मुद्रा को देश मुद्रा में बदलने के नियम
विदेशी शाखा खाता क्या है? विदेशी शाखा की मुद्रा को देश मुद्रा में बदलने के नियम
विदेशी शाखा खाता क्या है? विदेशी शाखा की मुद्रा को देश मुद्रा में बदलने के नियमों का वर्णन कीजिए।

विदेशी शाखा- वर्तमान काल में व्यापार इतना बढ़ गया है कि किसी देश का माल उस देश के विभिन्न भागों में तो बिकता ही है, विदेशों में भी उसकी बिक्री होती है। विदेशों में व्यापार करने के लिए शाखाओं के द्वारा कार्य करने की भी प्रथा है। जब कोई व्यापारी विदेश में व्यापार करने के लिए अपनी शाखा खोलता है तो इस शाखा को विदेशी शाखा कहा जाता है। इन शाखाओं के सम्बन्ध में विशेष बात यह है कि ये शाखाएं अपने लेखे विदेशी मुद्रा में रखती हैं और मुख्य कार्यालय जब शाखाओं के तलपट को प्राप्त करता है तो उसके सामने विदेशी मुद्रा में बदलने की समस्या होती है क्योंकि जब तक विदेशी शाखा के तलपट को देशी मुद्रा में न बदल दिया जाय तब तक उस शाखा का सही लाभ व हानि नहीं ज्ञात होता और न उस शाखा का मुख्य कार्यालय का सम्मिलित चिट्ठा ही बनाया जा सकता है।

शाखा के तलपट की बाकियों का रूपान्तर

शाखा के तलपट की बाकियों को, जो विदेशी मुद्रा में होता है, देशी मुद्रा में बदलने के पहले यह देख लेना अत्यन्त आवश्यक है कि मुख्य कार्यालय वाले देश और शाखा वाले देश की मुद्राओं की विनिमय दर में कितनी स्थिरता है।

(अ) विनिमय दरों में स्थिरता होना-

(1) यदि दोनों देशों की विनिमय दरों में काफी स्थिरता होती है तो तलपट की बाकियों का रूपान्तर करने के लिए स्थायी दर का प्रयोग किया जा सकता है।

(2) मुख्य कार्यालय के खाते की बाकी शाखा की बाकी के बराबर होती है इसलिए शाखा खाते की बाकी को किसी भी दर पर परिवर्तित नहीं करना चाहिए वरन् मुख्य कार्यालय की बाकी को ही इसकी परिवर्तित राशि मान लेना चाहिए।

(3) यदि कोई रकम शाखा द्वारा मुख्य कार्यालय को भेजी गयी है तो उस रकम को उसी दर पर परिवर्तित करना चाहिए जिस दर का वास्तव में उन पर प्रभाव पड़ा हो, परन्तु यदि इनके बदले में प्राप्त राशि मुख्य कार्यालय में दी हुई है तो इनकी परिवर्तन राशि वही माननी चाहिए जो मुख्य कार्यालय की पुस्तकों में दी हुई हो। जैसे यदि शाखा ने मुख्य कार्यालय के पास 5 हजार पौण्ड भेजे हैं जिसे मुख्य कार्यालय की पुस्तकों में रु0 125 रुपये प्राप्त हुए दिखाये गये हैं तो शाखा द्वारा भेजी हुई 5 हजार पौण्ड की राशि का रूपान्तर 125 रु0 होगा। सूक्ष्म में इस प्रकार समझा जा सकता है कि शाखा की बाकी तथा शाखा द्वारा भेजी हुई राशियों का रूपान्तर किसी भी दूर पर नहीं किया जाता है वरन इसकी रूपान्तर राशि मुख्य कार्यालय में इनसे सम्बन्धित राशियों द्वारा प्राप्त की जाती है, ऐसा तभी होता है जब भिन्न सूचनाएं इस सम्बन्ध में दी हुई न हों।

(ब) विनिमय दरों में परिवर्तन होना-

यदि मुख्य कार्यालय वाले देश और शाखा वाले देश की मुद्राओं की विनिमय दर में होने वाले परिवर्तनों में स्थिरता न हो तो शाखा के तलपट की बाकियों का रूपान्तर करने के लिए निम्न नियम महत्वपूर्ण हैं

( 1 ) स्थायी सम्पत्तियां- स्थायी सम्पत्तियों के मूल्यों का रूपान्तर उस दर पर किया जाना चाहिए- (अ) जो उस समय थी जबकि सम्पत्ति प्राप्त की गयी थी, या (ब) इसके लिए प्रसंविदा हुआ था, (स) इसके मूल्य भुगतान की तिथि पर थी। यदि इन दरों में से किसी भी दर का पता न चल सके तो स्थायी सम्पत्तियों की राशि को प्रारम्भिक दर पर परिवर्तित किया जाता है।

( 2 ) स्थायी दायित्व- स्थायी दायित्वों जैसे, ऋणपत्र, आदि की राशियों का रूपान्तर उस दर पर किया जाता है जो उस समय थी जबकि दायित्व किये गये थे। यदि यह दर ज्ञात न हो सके तो इनकी राशियों का परिवर्तन प्रारम्भिक दर पर किया जाता है। (अ) इन दायित्वों का भुगतान बहुत बड़ी अवधि के बाद किया जाता है अतः यदि विनिमय दर में स्थायी गिरावट आ रही हो और भविष्य में भी इस गिरावट के कारण इस आधिक्य राशि के लिए एक संचय बनाया जाना चाहिए। (ब) यदि इन दायित्वों के भुगतान की तिथि पास आ गयी है और विनिमय दर में विपरीत दिशा में परिवर्तन हो रहे हैं तो इन दायित्वों की राशियों का परिवर्तन चालू दायित्वों की तरह किया जा सकता है।

उपयुक्त विवरण का आशय यह है कि स्थायी सम्पत्तियों और स्थायी दायित्वों का रूपान्तर प्रारम्भिक दर पर होता है। व्यावहारिक रूप में वर्ष के प्रारम्भ की तिथि पर दर प्रारम्भिक दर मानी जाती है।

( 3 ) अस्थायी सम्पत्तियां- अस्थायी सम्पत्तियों की राशियों का रूपान्तर उस दर पर किया जाता है जो वर्ष समाप्त होने के दिन प्रचलित होती है। इस दर को अन्तिम दर कहा जाता है।

(4) अस्थायी दायित्व- अस्थायी दायित्वों की राशियों का भी रूपान्तर उस दर पर किया जाता है जो वर्ष समाप्त होने के दिन प्रचलित होती हैं अर्थात् अन्तिम दर पर।

उपर्युक्त विवरण का आशय यह है कि अस्थायी सम्पत्तियों और अस्थायी और स्थायी दायित्वों का रूपान्तर अन्तिम दर पर होता है। व्यापारिक रूप में वर्ष की अन्तिम तिथि की दर अन्तिम दर मानी जाती है।

(5) शाखा खाते की बाकी तथा भेजी हुई राशियां- शाखा खाते की बाकी को किसी दर पर नहीं बदला जाता है। मुख्य कार्यालय के खाते की बाकी ही इस खाते की राशि का रूपान्तर मानी जाती है, इसी प्रकार शाखा द्वारा भेजी हुई शियों का रूपान्तर भी किसी दर पर नहीं किया जाता है वरन् मुख्य कार्यालय में इससे सम्बन्धित राशिया ही इसकी रूपान्तर राशियां मानी जाती हैं। यह नियम तब लागू होता है जब इस सम्बन्ध में कोई भिन्न सूचना न दी हुई हो।

( 6 ) सम्पत्तियां एवं दायित्व- यदि शाखा की किसी सम्पत्ति एवं दायित्व के रूपान्तर की राशि मुख्य कार्यालय की पुस्तकों में दी हुई हो और इसकी सूचना प्रश्न में हो तो शाखा के इस प्रकार की सम्पत्ति एवं दायित्व की राशि का रूपान्तर सम्पत्तियों एवं दायित्वों के रूपान्तर से सम्बन्धित नियमों के आधार पर नहीं करना चाहिए वरन् मुख्य कार्यालय में इसके सम्बन्ध में लिखी हुई राशि ही रूपान्तर राशि मानी जानी चाहिए रूपान्तर से सम्बन्धित नियमों के आधार पर आयी हुई राशि इससे भिन्न क्यों न हों।

(7) अप्राप्य व संदिग्ध ऋण का संचय- अप्राप्य व संदिग्ध ऋण के संचय की राशि का उस दर पर रूपान्तर किया जाता है जिस पर कि देनदारों का रूपान्तर होता है अर्थात् अन्तिम दर प्रयोग की जाती है।

( 8 ) ह्रास- ह्रास का रूपान्तर उस दर पर किया जाता है जिस पर कि उसमें सम्बन्धित सम्पत्ति की राशि का रूपान्तर किया जाता है।

( 9 ) आयगत मदें- आयगत मदों का रूपान्तर औसत दर पर किया जाता है। आयगत मदों में शाखा द्वारा किये हुए विभिन्न प्रकार के आयगत आय व व्यय दोनों आते हैं। जैसे व्यापारिक खाते और लाभ-हानि खाते में जाने वाले सभी मद (प्रारम्भिक रहतिया और अन्तिम रहतिया को छोड़कर) औसत दर पर परिवर्तित किये जाते हैं।

(10) प्रारम्भिक तथा अन्तिम रहतिया- प्रारम्भिक रहतिया का रूपान्तर प्रारम्भिक दर पर तथा अन्तिम रहतिया का रूपान्तर अन्तिम दर पर किया जाता है।

रूपान्तर के बाद तलपट निकालाना

शाखा खाते के तलपट की समस्त बाकियों के रूपान्तर के बाद इन रूपान्तर राशियों से एक नया तलपट बनाया जाता है। इस तलपट की डेबिट व क्रेडिट बाकियों के योग का अन्तर बराबर नहीं होता है। इन दोनों के योग के अन्तर को विनिमय की बाकी या विनिमय सन्देह कहा जाता है। यह अन्तर डेबिट भी हो सकता है और क्रेडिट भी। यदि इस अन्तर की राशि थोड़ी हो, तो इसे शाखा के लाभ-हानि खाते में हस्तान्तरित किया जाता है, परन्तु यदि इस अन्तर की राशि बड़ी हो तो इस अन्तर की राशि को विमिन उतार-चढ़ाव खाता में हस्तान्तरित कर चिट्ठे में ले जाया जाता है।

शाखा तलपट के रूपान्तर की सारणी

  किस दर पर
स्थायी सम्पत्ति प्रारम्भिक दर पर
स्थायी दायित्व प्रारम्भिक दर पर
अस्थायी सम्पत्ति अन्तिम दर पर
अस्थायी दायित्व अन्तिम दर पर
आयगत मदें सामान्य दर पर
राशियों का परिवर्तन और विदेशी शाखा के अन्तिम खाते बनाना

विदेशी शाखाओं की राशियों का परिवर्तन उपयुक्त वर्णित नियमों के आधार पर करने के पश्चात् एक नया तलपट बनाया जाता है और इसके अन्तर को विनिमय की बाकी शीर्षक में रखा जाता है, फिर इसके बाद सामान्य नियमों के आधार पर व्यापारिक एवं लाभ-हानि खाता तथा चिट्ठा बनाया जाता है।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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