व्यापारिक पत्र के स्वरूप और विशेषताऐं बताइये।
व्यापारिक पत्र के स्वरूप और विशेषताऐं- वाणिज्य और व्यापार के विकास के लिए लिखे जाने वाले पत्र व्यवसाय या व्यापारिक पत्र कहलाते हैं। व्यावसायिक व्यावहारिक पत्र की स्वरूपगत विशेषताएं– किसी भी व्यावसायिक व्यावहारिक पत्र की सफलता उसके सुन्दर बाह्य स्वरूप तथा प्रयोजनीय सामग्री की सुव्यस्थित, आकर्षक तथा प्रभावी रचना-शैली पर निर्भर करती है। इस दृष्टि से सफल व्यावहारिक व्यावसायिक पत्र की निम्नलिखित विशेषताएं हो सकती हैं-
(क) आकर्षक बाह्य स्वरूप- पत्र के बाह्य स्वरूप की आकर्षिकता जहाँ एक ओर कागज की कोटि, रंग, आकार, लिफाफे की कोटि, रंग आकार एवं प्रतिलिपि हेतु प्रयोज्य कार्बन, रिबन आदि पर निर्भर होती है, वह दूसरी ओर वह लेखन अथवा टंकन की शैली, यथा-उचित सज्जा, हाशिया, अनुच्छेद रचना, तथा वर्णों की शुद्ध समान आकृति, उचित रेखांकन आदि पर भी निर्भर करती है। पत्र की बाहरी आकृति तभी आकर्षक होगी जब उसका कागज उच्च कोटि का हो, कागज की लम्बाई-चौड़ाई विषयवस्तु की मात्रा के अनुरूप हो, कागज सफेद या अन्य किसी हल्के रंग का हो, पत्र के अक्षर सुस्पष्ट हों। प्रेषक तथा प्रेषिती के पते, पत्र संख्या, तिथि, अभिवादन युक्त सम्बोधन, विषय-संदर्भ, विषय-वस्तु एवं निर्देश प्रेषक के हस्ताक्षर आदि उचित स्थान पर लिखित अथवा टंकित हो। अनुच्छेदों की सम्बद्धता के प्रति सचेत होना चाहिए। कार्बन या रिबन अच्छी कोटि के काले या लाल रंग के हों। दृष्टव्य अंश रेखांकित कर दिये जायें तो ज्यादा अच्छा है। बाह्य आकृति की सफलता इस बात में है कि प्रेषती पत्र को देखते ही उस ओर आकृष्ट हो और सहज ही उसे पढ़ डाले।
(ख) प्रभावशीलता आकर्षक बाह्य रूप के साथ ही प्रयोजनीय सामग्री की प्रभावशाली रचना एवं प्रस्तुति पत्र में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। शुद्ध, सरस एवं सरल भाषा शैली पाकर पत्र की विषय-वस्तु मनचाहे प्रभाव की सृष्टि करती है। अतः पत्र का अन्तर्बाहा स्वरूप इतना स्वच्छ हो कि वाचक पर उसका प्रभाव पड़े।
(ग) विनम्रता – विनम्रता व्यवहार-व्यवसाय के लिए एक आवश्यक गुण माना जाता है, जो पत्रों में भी दिखाई देना चाहिए। विनम्रता व्यावसायिक पत्रों का आभूषण नहीं स्वभाव भी है। सामान्य शिष्टिता के शब्द उदाहरण महाशय, कृपया, धन्यवाद, आभार आदि पत्र के पाठक पर अनुकूल प्रभाव डालते हैं। व्यावसायिक पत्रों में एक भी शब्द ऐसा नहीं होना चाहिए कि जिससे वह प्रेषक के ‘अहं’ भाव को ध्वनित करता है। अथवा प्रेषती की भावनाओं को किसी प्रकार की ठेस पहुँचने का आभास भी निर्माण करता हो ।
(घ) संक्षिप्तता – व्यावसायिक क्षेत्र में समय अमूल्य होता है, इसलिए प्रेषती लम्बे विस्तृत पत्र पढ़ने में समय व्यर्थ करना नहीं चाहेगा। साथ ही ‘वाचालता’ चाहे वार्तालाप में हो या पत्र में, प्रभाव की दृष्टि से हानिकारक ही होती है। इसलिए पत्र संक्षिप्त होना चाहिए। लेकिन इतना संक्षिप्त भी न हो कि ‘विषय-वस्तु’ का सहज और पूर्ण संप्रेषण ही न होता हो।
(ङ) पूर्णता – पत्र विषय का सम्पूर्ण संप्रेषण पत्र की उपयोगिता साबित करता है। इसलिए विषय से सम्बन्धित छोटी सी छोटी आवश्यक बात भी पत्र में नहीं छूटनी चाहिए। जैसे—माल मंगाते समय, माल की किस्म, मात्रा, मूल्य दूर, पैकिंग का ढंग, भेजने का तरीका, भुगतान की विधि आदि सारी सूचनाओं का पत्र में निर्देश होना चाहिए।
(च) स्पष्टता – पत्र की भाषा ऐसी होनी चाहिए कि सारी बातें सहज ही समझ मे आ सकें। व्यावसायिक पत्रों में कोई बात श्लेष या लक्षण-व्यंजना में नहीं कहनी चाहिए। जो कुछ भी कहा जाये, सुस्पष्ट रूप से अभिव्यक्त हों, इस तरह की भाषा का प्रयोग होना चाहिए।
(छ) शुद्धता – पत्र की भाषा शुद्ध होनी चाहिए। अशुद्ध भाषा प्रभावहीन होती है। साथ ही पत्र लेखक के भाषायी अज्ञान के साथ संस्कारहीन होने की परिचायक बन जाती है। इससे पत्र लेखक अपनी साख खो बैठता है। भाषा के साथ ही, उसमें जो तथ्य या आँकड़े दिये जायेंगे वे भी शुद्ध होने चाहिए।
(ज) सम्बद्धता – विषय-वस्तु में व्यक्त भावों तथा तथ्यों में सामंजस्य एवं क्रमबद्धत पत्र की सफलता बढ़ाती है। इसलिए विषय की प्रस्तुति आवश्यक अनुच्छेदों में तथा उचि क्रम में आबद्ध रूप में होनी चाहिए। आवश्यक हो तो ध्यानाकर्षण के लिए कुछ पंक्तियों का अधोरेखन भी किया जा सकता है।
(झ) सरलता – सरलता एवं सुबोधता व्यावसायिक पत्र की विशेष विशेषता होती है। इस प्रकार के पत्रों में भावात्मकता नहीं होती, इसलिए मुहावरे, हास्य व्यंग्य अलंकारों, चमत्कारों तथा कूटोक्तियाँ सामासिक शब्द आदि का प्रयोग व्यापक नहीं होता है। यह पत्र व्यावसायिक है, अतः कृत्रिमता आना स्वाभाविक है, परन्तु सरल, स्पष्ट भाषा द्वारा इसमें अतिकृत्रिमता के स्थान पर सहजता आ सकती है, जो व्यवसाय के लिए लाभप्रद ही होती
(ञ) मौलिकता- कुछ विहित, रूढ़िगत शब्दों में लिखे गये पत्र नीरस होते हैं। इसलिए सहज, स्वाभाविक बातचीत की शैली प्रभावशाली होती है। पत्र लेखक का व्यक्तित्व पत्र की शैली में प्रकट हो तो वह पत्र लेखक की मौलिकता मानी जाती है। मौलिक व्यक्तित्व का प्रभाव पत्र प्रेषती पर पड़ता है, इसलिए रूढ़शैली में पत्र लिखने का चयन लाभप्रद होता है।
(ट) स्वच्छता- पत्र की सारी सारी सामग्री स्वच्छ एवं सुरुचिपूर्ण होनी चाहिए। गन्दा कागज, गन्दा लिफाफा, भद्दी लिपि, पत्र में स्थान, स्थान पर कोट-कूट एवं संशोधन परिवर्तन, अत्यधिक पास-पास सटे हुए अक्षर, पंक्तियों के बीच असमान अंतर, अनुच्छेदों का न होना या अनुचित प्रयोग पत्र को प्रभावहीन बनाते हैं। इन सबसे बचकर पत्र को स्वच्छ और सुन्दर बनाया जा सकता है।
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