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श्रम विभाजन के लाभ व हानि (Advantages and Disadvantages of Division of Labour)
श्रम-विभाजन से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं जिन्हें मुख्यतः तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है–(I) उत्पादकों की दृष्टि से लाभ, (II) समाज की दृष्टि से लाभ, तथा (III) श्रमिकों की दृष्टि से लाभ।
(J) उत्पादकों को लाभ (Advantages to Producers)- इस दृष्टि से श्रम विभाजन से मुख्यतः निम्न लाभ प्राप्त होते हैं-
(1) उत्पादन में वृद्धि –श्रम-विभाजन के कारण उत्पादन में वृद्धि हो जाती है, क्योंकि निरन्तर एक ही कार्य को करते रहने से श्रमिक अपने कार्य में दक्षता प्राप्त कर लेता है। एडम स्मिथ ने बताया है कि यदि कोई श्रमिक अकेले ही आलपिन बनाता है। तो वह पूरे दिन में 48 से अधिक आलपिन नहीं बना सकता, लेकिन यदि आलपिन बनाने के कार्य को 18 भागों में बाँट दिया जाए तो एक दिन में 48 हजार आलपिन तैयार किए जा सकते हैं।
(2) उत्पादन लागत में कमी-श्रम विभाजन के अन्तर्गत प्रत्येक उत्पादन कार्य कुशल श्रमिकों द्वारा किया जाता है। इसके अतिरिक्त, वस्तुओं का उत्पादन भी बड़े पैमाने पर किया जाता है जिससे अनेक प्रकार की किफायतें (economles) प्राप्त होती हैं। परिणामतः वस्तुओं की उत्पादन लागत घट जाती है।
(3) श्रेष्ठ उत्पादन – चूंकि उत्पादन की प्रत्येक क्रिया कुशल श्रमिकों द्वारा सम्पन्न की जाती है, इसलिए उत्पादन की किस्म में सुधार हो जाता है।
(4) समय की बचत-श्रम विभाजन के अन्तर्गत समय की बचत होती है, क्योंकि श्रमिक एक ही स्थान पर अपने औजार से कार्य करता रहता है। उसका एक स्थान से दूसरे स्थान को आने-जाने में तथा औजारों को उठाने, रखने व बदलने में समय नष्ट नहीं होता।
(5) मशीनों का अधिकाधिक प्रयोग- श्रम विभाजन में उत्पादन कार्य अनेक उप कियाओं में विभक्त कर दिया जाता है तथा प्रत्येक कार्य को आसानी से मशीनों की सहायता से कर लिया जाता है। इससे मशीनों का अधिकाधिक प्रयोग सम्भव हो जाता है।
(6) पूँजी की बचत – श्रम-विभाजन में उत्पादन कार्य को विभिन्न सूक्ष्म उप-क्रियाओं में विभक्त करके प्रत्येक उप-क्रिया को भिन्न-भिन्न श्रमिकों से कराया जाता है। इससे प्रत्येक श्रमिक की आजारों के पूरे सैट की आवश्यकता नहीं पड़ती चरन उसके लिए एक-दो औजार ही पर्याप्त होते हैं। परिणामतः इससे पूंजी की बचत होती है।
(7) कम से कम अपव्यय-चूंकि उत्पादन कार्य कुशल श्रमिकों द्वारा किया जाता है, इसलिए कच्ची सामग्री आदि की कम बर्बादी होती है।
(II) समाज को लाभ (Advantages to the Society)-समाज की दृष्टि से श्रम-विभाजन से निम्न लाभ प्राप्त होते हैं-
(8) आविष्कार तथा सुधार की सम्भावना- किसी उत्पादन कार्य की एक ही क्रिया को करते रहने से व्यक्ति उसका विशेषज्ञ बन जाता है जिस कारण वह उत्पादन प्रक्रिया में सुधार ला सकता है तथा नवीन यन्त्रों एवं मशीनों का आविष्कार कर सकता है। इससे समूचा समाज लाभान्वित हो सकता है।
(9) संसाधनों का उचित प्रयोग- श्रम विभाजन के अन्तर्गत समाज के संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग सम्भव हो जाता है।
(10) रोजगार के अवसरों में वृद्धि-श्रम-विभाजन के कारण उद्योग-धन्धों का विकास तथा विस्तार होता है जिस कारण रोजगार के नए-नए अवसर उत्पन्न हो जाते हैं।
(11) रहन-सहन के स्तर में सुधार- श्रम विभाजन के कारण लोगों को अच्छी आय तथा सस्ती वस्तुएँ उपलब्ध हो जाती है जिससे लोगों के रहन-सहन के स्तर में सुधार होता है।
(12) कुशल संगठनकर्त्ताओं में वृद्धि-श्रम-विभाजन के कारण उत्पादन कार्य जटिल हो जाता है जिस कारण उत्पादन कार्य सम्पन्न करवाने के लिए कुशल प्रबन्धकों की आवश्यकता पड़ती है। इससे देश में कुशल संगठनकर्त्ताओं की संख्या में वृद्धि हो जाती है।
(13) सहयोग-भावना का विकास- श्रम विभाजन पर आधारित उत्पादन प्रणाली में कोई भी व्यक्ति आत्म-निर्भर नहीं रह पाता बल्कि अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए व्यक्ति एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। इससे उनमें परस्पर सहयोग की भावना बढ़ती है।
(14) देशी तथा विदेशी व्यापार में वृद्धि- प्रादेशिक श्रम-विभाजन की स्थिति में एक ही राष्ट्र के विभिन्न प्रदेश तथा विभिन्न राष्ट्र भिन्न-भिन्न प्रकार की वस्तुओं के उत्पादन में विशिष्टीकरण प्राप्त कर लेते हैं। इससे वस्तुओं की लागतों तथा कीमतों में कमी होने से उनकी मांग बढ़ जाती है। इसके फलस्वरूप राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का विकास तथा विस्तार होता है।
(III) श्रमिकों को लाभ (Advantages to Labourers)– श्रम विभाजन से श्रमिकों को प्राप्त होने वाले लाभ निम्नलिखित हैं-
(15) श्रमिकों की कार्यक्षमता में वृद्धि–श्रम-विभाजन के अन्तर्गत श्रमिक लगातार एक ही प्रकार का कार्य करता रहता है जिससे वह उस कार्य में अत्यन्त कुशल हो जाता है।
(16) मजदूरी में वृद्धि – श्रमिकों की कार्यकुशलता में वृद्धि होने पर उत्पादन की मात्रा बढ़ जाती है तथा किस्म में सुधार हो जाता है जिस कारण श्रमिकों की मजदूरी बढ़ जाती है।
(17) गतिशीलता में वृद्धि-श्रम-विभाजन के अन्तर्गत उत्पादन कार्य विभिन्न सूक्ष्म क्रियाओं में बाँट दिया जाता है तथा प्रत्येक उप किया इतनी सरल हो जाती है कि आवश्यकता पड़ने पर उसे आसानी से सीखा जा सकता है। इससे श्रमिक आसानी से एक व्यवसाय को छोड़कर दूसरे व्यवसाय में प्रवेश कर सकते हैं। अतः श्रमिकों की व्यावसायिक गतिशीलता (occupational mobility) बढ़ जाती है।
(18) कार्य-सीखने में कम समय तथा कम व्यय- श्रम विभाजन के अन्तर्गत श्रमिक को कार्य का केवल एक छोटा भाग ही सीखना पड़ता है जिसे वह कम समय में थोड़े खर्चे से ही सीख सकता है।
(19) रुचि तथा योग्यता के अनुसार कार्य- श्रमिकों से कार्य उनकी रुचि, योग्यता, शिक्षा तथा अनुभव के अनुसार ही कराया जाता है। फलतः उनकी कार्यक्षमता के बढ़ने से उत्पादन अधिक तथा अच्छी किस्म का होता है।
(20) रोजगार अवसरों में वृद्धि- श्रम विभाजन के विस्तार से नए-नए उत्पादन कार्यों का सूत्रपात होता है। कुछ उत्पादन-क्रियाओं के सरत होने के कारण स्त्रियों तथा बच्चों को भी रोजगार मिल जाता है।
(21) विकलांगों को भी कार्य मिलना- उत्पादन प्रक्रिया की सरल उप-क्रियाओं में विकलांगों (handicapped) को भी काम मिल जाता है जिससे ये आत्म-निर्भर हो जाते हैं।
(22) अधिक विश्राम तथा अवकाश मिलना- श्रम-विभाजन में श्रमिक कम समय में अधिक कार्य कर सकता है। इससे उसकी कार्य अवधि में कमी होने से उसे अधिक विश्राम तथा अवकाश के अवसर मिल जाते हैं।
(23) श्रम संघों का गठन–श्रम विभाजन के अन्तर्गत बहुत से श्रमिक एक ही स्थान पर मिलजुलकर कार्य करते हैं। साथ-साथ रहने से उनमें वर्ग-चेतना उत्पन्न होती है तथा वे अपनी समस्याओं के समाधान के लिए अपने श्रम-संघ (trade unions) बना लेते हैं।
(24) सांस्कृतिक विकास तथा सहयोग भावना- जब किसी कारखाने में हजारों श्रमिक विभिन्न क्षेत्रों में आकर परस्पर कार्य करते हैं तो उनमें रीति-रिवाज तथा संस्कृति का आदान-प्रदान होता है तथा उनमें सहयोग की भावना बढ़ती है।
श्रम-विभाजन की हानयाँ (Disadvantages)
चेपमेन (Chapman) के अनुसार, “श्रम-विभाजन का श्रमिकों तथा समाज पर बुरा प्रभाव पड़ता है।” श्रम-विभाजन की हानियों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है—-(I) श्रमिकों को हानियों, तथा (II) समाज को हानियाँ।
(I) श्रमिकों को हानियाँ (Disadvantages to Labourers) –श्रम-विभाजन से श्रमिकों को निम्न हानियाँ होती है
(1) काम सम्बन्धी नीरसता- जब कोई श्रमिक प्रतिदिन तथा निरन्तर एक ही कार्य करता है तो वह कार्य उसके लिए नीरम हो जाता है तथा उस कार्य से उसका मन ऊब जाता है।
(2) कार्यकुशलता में कमी- श्रम विभाजन के कारण एक तो श्रमिक एक ही कार्य को बार-बार करते-करते ऊब जाता है जिससे उसकी कार्य करने की इच्छा पटती जाती है। दूसरे, वह उत्पादन कार्य का एक अन्य-भाग ही सीख पाता है तथा अन्य कार्यों का उसे ज्ञान नहीं हो पाता। परिणामतः वह अपने कार्य में पूर्णतया कार्यकुशल नहीं हो पाता तथा उसकी बहुमुखी प्रतिभा का विकास नहीं हो पाता।
(3) श्रमिकों की गतिशीलता में कमी-श्रम-विभाजन के अन्तर्गत श्रमिक को उत्पादन कार्य की सभी क्रियाओं नहीं हो पाता जिस कारण उसे अपना स्थान या व्यवसाय बदलने में कठिनाई होती है।
(4) उत्तरदायित्व में कमी–श्रम-विभाजन में एक वस्तु अनेक श्रमिकों द्वारा तैयार की जाती है। यदि वस्तु का ज्ञान घटिया किस्म की होती है तो इसके लिए किसी एक श्रमिक को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। परिणामतः अमिक अपने काम में लापरवाह हो जाते हैं।
(5) आनन्द का लोप- जब कोई धार्मिक किसी वस्तु को आरम्भ से अन्त तक बनाता है तो वह अपना कार्य लगन से करता है तथा वह अच्छी से अच्छी वस्तु तैयार करने की चेष्टा करता है। किन्तु श्रम-विभाजन-प्रणाली के अन्तर्गत एक ही वस्तु अनेक श्रमिकों द्वारा तैयार की जाती है जिस कारण कार्य का आनन्द तथा उत्साह समाप्त हो जाता है।
(6) व्यक्तित्व का विकास नहीं- उत्पादन की किसी एक उप-क्रिया को करते रहने से श्रमिक यन्त्र समान हो जाता है। इससे उसकी कार्य में रुचि घट जाती है जिससे उसकी सृजनात्मक योग्यता कुंठित हो जाती है और उसके व्यक्तित्व का विकास नहीं हो पाता।
(7) श्रमिकों के महत्व में कमी- श्रम विभाजन प्रणाली में मशीनों का अधिकाधिक प्रयोग किए जाने से श्रमिकों का महत्त्व घट जाता है। अनेक श्रमिक तो मशीनों तथा यन्त्रों की देखभाल में ही लगे रहते हैं।
(8) श्रमिकों का शोषण- श्रम विभाजन के अन्तर्गत श्रमिकों में छँटनी का भय रहता है। श्रमिकों की इस कमजोरी का लाभ उठाकर सेवायोजक श्रमिकों को कम मजदूरी देते हैं।
(9) पारिवारिक जीवन पर बुरा प्रभाव – श्रम विभाजन के कारण श्रमिकों की स्त्रियों तथा बच्चों को भी रोजगार मिल जाता है। किन्तु पुरुष, स्त्री तथा बच्चे विभिन्न समय तथा भिन्न-भिन्न स्थानों पर कार्य करते हैं। परिणामतः श्रमिकों का पारिवारिक जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।
(10) श्रमिकों का नैतिक पतन- श्रम-विभाजन से विशालस्तरीय उत्पादन तथा स्थानीयकरण को बढ़ावा मिलता है। इससे देश में औद्योगिक नगरों की जनसंख्या बढ़ने के साथ-साथ नए-नए औद्यो नगरों की स्थापना भी अनेक श्रमिकों को अपने परिवारों से दूर रहना पड़ता है जिससे उनका नैतिक पतन होता है।
(II) समाज को हानियाँ (Disadvantages to the Society)-श्रम-विभाजन से समाज को निम्न हानिया होती है-
(11) स्त्रियों तथा बच्चों का शोषण- श्रम विभाजन के कारण उत्पादन कार्य छोटे-छोटे तथा सरल भागों में बँट जाता है जिसे स्त्रियों तथा बच्चों से कम मजदूरी देकर करवा लिया जाता है। इससे पुरुष श्रमिकों के बीच बेकारी बढ़ती है।
(12) कारखाना-प्रणाली के दोष-श्रम-विभाजन ने कारखाना प्रणाली (Factory System) को जन्म दिया है जिससे समाज में अनेक बुराइयों फैल गई हैं, जैसे गन्दी बस्तियाँ, घनी आबादी, मकानों की कमी, मशीनों का शोरगुल, बुआ आदि के कारण दूषित वातावरण, महेंगाई इत्यादि।
(13) अति-उत्पादन तथा बेकारी का भय-श्रम-विभाजन के कारण उत्पादन की मात्रा काफी बढ़ जाती है जिस कारण उत्पादन के मॉग से अधिक हो जाने की आशंका उत्पन्न हो जाती है। उत्पादन के आवश्यकता से अधिक होने पर कीमतें घट जाती है जिस कारण मन्दी (depression) आ जाती है। मन्दी से घबराकर उत्पादक उत्पादन घटाने लगते हैं जिससे श्रमिकों की छँटनी की जाने लगती है।
(14) श्रमिकों तथा मालिकों के झगड़े-श्रम विभाजन के कारण श्रम-संयों को प्रोत्साहन मिलता है। कभी-कभी श्रम-संघ मालिकों के सम्मुख अनुचित माँगें रख देते हैं जिससे श्रमिकों तथा मालिकों में झगड़े प्रारम्भ हो जाते हैं। इस वर्ग-संघर्ष के कारण तालाबन्दी, हड़ताल, घेराव आदि की घटनाएं हो जाती है। औद्योगिक झगड़ों का राष्ट्रीय उत्पादन तथा आय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
(15) हानिकारक निर्भरता- श्रम विभाजन के अन्तर्गत किसी एक श्रमिक या श्रमिक समूह द्वारा उत्पादित माल, दूसरे श्रमिक या श्रमिक समूह द्वारा कच्ची सामग्री के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। जब तक विभिन्न श्रमिक अपनी-अपनी उप-क्रियाओं को सम्पन्न करते रहते हैं तब तक तो कोई कठिनाई नहीं आती। किन्तु यदि कोई श्रमिक (या श्रमिक समूह) अपनी उप-क्रिया को पूर्ण नहीं करता तो अगली उप-क्रियाओं को करने वाले श्रमिकों को खाली बैठना पड़ जाता है।
(16) बेरोजगारी का भय- श्रम विभाजन के अन्तर्गत उत्पादन कार्य को विभिन्न छोटी-छोटी आसान उप-क्रियाओं में बाँट लिया जाता है जिन्हें मशीनों-यन्त्रों तथा अकुशल श्रमिकों की सहायता से करवा लिया जाता है। इससे कुशल श्रमिकों में बेरोजगारी फैलने का भय उत्पन्न हो जाता है।
(17) कलात्मक वस्तुओं का कम उत्पादन–श्रम विभाजन के अन्तर्गत मशीनों का अधिकाधिक प्रयोग किया जाता है जिससे कलात्मक वस्तुओं के उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
(18) आय का असमान वितरण- श्रम विभाजन ने विशालस्तरीय उत्पादन को संभव बनाया है। इससे एक ओर तो मिल मालिक अधिकाधिक धन कमाकर निरन्तर धनी होते जाते हैं, जबकि निर्धन श्रमिकों की संख्या बढ़ती जाती है। इससे देश में आय की विषमताएँ बढ़ती हैं।
(19) वर्ग-संघर्ष-आय की विषमताओं के कारण उद्योगपतियों के हाथों में पूंजी का केन्द्रीयकरण हो जाता है। समाज के पूँजीपति (धनी तथा निर्धन वर्ग में बैठ जाने के कारण वर्ग संघर्ष को बढ़ावा मिलता है।
सन्तुलित मत (Balanced View) — देखा जाए तो श्रम विभाजन की हानियों की अपेक्षा इसके लाभ अधिक है। इसके अतिरिक्त, वर्तमान युग में इसे समाप्त करना सम्भव नहीं है। वास्तविकता तो यह है कि श्रम विभाजन प्रणाली ने मानव के आर्थिक कल्याण में अत्यधिक वृद्धि कर दी है, क्योंकि श्रम विभाजन ने विभिन्न प्रकार की अच्छी तथा सस्ती वस्तुओं के उत्पादन को सम्भव बना दिया है जिससे मनुष्य अपनी अधिकाधिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि करने में लगे हुए हैं। श्रम विभाजन के अधिकांश दोष ऐसे हैं जिन्हें उपयुक्त श्रम कानूनों द्वारा कम या समाप्त किया जा सकता है।
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