संरचनात्मक एवं योगात्मक मूल्यांकन का वर्णन कीजिए।
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संरचनात्मक तथा योगात्मक मूल्यांकन (Formative and Summative Measurement)
शैक्षिक मूल्यांकन से तात्पर्य शिक्षा के क्षेत्र की विभिन्न वस्तुओं अथवा प्रक्रियाओं जैसे शिक्षण विधि, पाठ्यक्रम, पाठ्यवस्तु, कक्षा शिक्षण, शिक्षा उद्देश्य, शैक्षिक कार्यक्रम, शिक्षा सामग्री इत्यादि की वांछनीयता को ज्ञात करने की प्रक्रिया से है। निःसन्देह मूल्यांकन का प्रमुख उद्देश्य शैक्षिक निर्णय लेने में सहायता करना है। अतः शैक्षिक मूल्यांकन कर्ता का अन्तिम लक्ष्य शिक्षा में सुधार लाना है। मिचैल स्क्रीवेन (Michael Scriven) ने सन् 1967 में मूल्यांकन की भूमिका की चर्चा करते हुये मूल्यांकन को दो स्पष्ट भागों में विभाजित किया। उसने कहा कि शैक्षिक मूल्यांकन दो प्रकार की भूमिकायें अदा कर सकता है। ये दो भूमिकाएं हैं- संरचनात्मक भूमिका (Formative Role) तथा योगात्मक भूमिका (Summative Role) हैं। इसी आधार पर स्कीवेन ने संरचनात्मक मूल्यांकन (Formative Evaluation) तथा योगात्मक मूल्यांकन (Summative Evaluation) में विभेद स्पष्ट किया।
संरचनात्मक मूल्यांकन (Formative Evaluation) संरचनात्मक मूल्यांकन से तात्पर्य किसी ऐसे शैक्षिक कार्यक्रम योजना प्रक्रिया अथवा सामग्री आदि के मूल्यांकन से है, जिसमें मूल्यांकन के आधार पर सुधार करना सम्भव हो। दूसरे शब्दों में, संरचनात्मक मूल्यांकनकर्ता किसी शैक्षिक कार्यक्रम, योजना, प्रक्रिया की सामग्री की प्रभावशीलता, गुणवत्ता, वांछनीयता तथा उपयोगिता का आँकलन इसलिये करता है कि उस कार्यक्रम, योजना, प्रक्रिया या सामग्री को और अधिक प्रभावशाली, गुणवत्तापूर्ण, वांछनीय तथा उपयोगी बनाया जा सके। स्पष्ट है कि संरचनात्मक मूल्यांकन में किसी निर्माणाधीन कार्यक्रम, योजना, प्रक्रिया या सामग्री को अन्तिम रूप देने से पूर्व उसके प्रारम्भिक प्रारूप
(Preliminary Draft) का मूल्यांकन किया जाता है जिससे उसकी संरचना गत कमियों को दूर किया जा सके। उदाहरण के लिये यदि किसी पाठ्यपुस्तक के प्रारम्भिक (First Draft) का मूल्यांकन इस दृष्टि से किया जा रहा है कि इसके छपकर बाजार में आने से पूर्व इसमें आवश्यक सुधार करके इसे अधिक उपयोगी तथा प्रभावशाली बनाया जा सके तो इस प्रकार के मूल्यांकन को संरचनात्मक मूल्यांकन कहा जायेगा तथा मूल्यांकन प्रक्रिया की यह भूमिका संरचनात्मक भूमिका कही जायेगी। इसी प्रकार से यदि किसी नवीन शिक्षण विधि, दूरदर्शन पाठ, पाठ्यक्रम, सहायक सामग्री आदि में संशोधन व सुधार करने की दृष्टि से इनका मूल्यांकन किया जाता है तो इसे संरचनात्मक मूल्यांकन कहेंगे। स्पष्ट है कि संरचनात्मक मूल्यांकन का मुख्य उद्देश्य शैक्षिक कार्यक्रम या सामग्री को तैयार करने वाले व्यक्ति को उसके द्वारा तैयार किये जा रहे कार्यक्रम या सामग्री की कमियों को इंगित करना तथा उन्हें दूर करने के उपाय बताना है। अतः संरचनात्मक मूल्यांकनकर्ता के कार्य को तीन भागों में बाँटा जा सकता है। ये तीन कार्य-प्रथम, शैक्षिक कार्यक्रम या सामग्री के विभिन्न अंगों के गुण व दोषों के सम्बन्ध में स्पष्ट प्रमाण एकत्रित करना, द्वितीय इन प्रमाणों के आधार पर कार्यक्रम या सामग्री की कमियों को सम्मुख रखना तथा तृतीय, इन कमियों को दूर करके कार्यक्रम या सामग्री को अधिक प्रभावपूर्ण बनाने के लिये सुझाव प्रस्तुत करना हैं।
योगात्मक मूल्यांकन (Summative Evaluation) योगात्मक मूल्यांकन (Summative Evaluation) से तात्पर्य किसी पूर्वनिर्मित (already developed) शैक्षिक कार्यक्रम, योजना या सामग्री की समग्र वांछनीयता (total desirability) को ज्ञात करने की प्रक्रिया से है। दूसरे शब्दों में, योगात्मक मूल्यांकनकर्ता किसी शैक्षिक कार्यक्रम, योजना सा सामग्री के गुण व दोषों की जानकारी इसलिए एकत्रित करता है जिससे उस कार्यक्रम, योजना, सामग्री को स्वीकार करने या भविष्य में जारी रखने के सम्बन्ध में निर्णय लिया जा सके। स्पष्टत: योगात्मक मूल्यांकन पहले से स्वीकृत कार्यक्रमों, योजनाओं या सामग्री को भविष्य में यथावत् जारी रखने अथवा उपलब्ध अनेक विकल्पात्मक कार्यक्रमों या सामग्री में से किसी एक सर्वाधिक उपयुक्त का चयन करने की दृष्टि से किया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि माध्यमिक शिक्षा परिषद् इन्टर कक्षा के लिए किसी गणित की एक पाठ्य पुस्तक का चयन करने हेतु, विभिन्न प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित तथा बाजार में उपलब्ध गणित की अनेक पाठ्यपुस्तकों का मूल्यांकन कराती है तो इस प्रकार के मूल्यांकन को योगात्मक मूल्यांकन कहा जायेगा तथा मूल्यांकन प्रक्रिया की इस भूमिका को योगात्मक भूमिका कहेंगे। इस परिस्थिति में उपलब्ध किसी एक या अधिक पाठ्यपुस्तकों में किसी भी प्रकार का कोई सुधार या संशोधन करना सम्भव नहीं है। ये सभी पुस्तकें पूर्णरूप से तैयार होकर प्रकाशक के यहाँ से आती है तथा पुस्तक को कुल उसकी गुणवत्ता के आधार पर ही संस्तुत किया जा सकता है। स्पष्ट है कि योगात्मक मूल्यांकन कर्ता किसी एक पाठ्यपुस्तक का चयन करने में माध्यमिक शिक्षा परिषद की सहायता करेगा। इसी प्रकार से विगत वर्षों में चल रही प्रवेश विधि, शिक्षण विधि, पाठ्यक्रम आदि को आगामी वर्षों में जारी रखने या न रखने की दृष्टि से योगात्मक मूल्यांकन किया जा सकता है। किसी प्रस्तावित कार्यक्रम, योजना, विधि, सामग्री आदि का भी योगात्मक मूल्यांकन किया जा सकता है। स्पष्ट है कि योगात्मक मूल्यांकन उपलब्ध विकल्पों के गुण-दोषों का आंकलन करके किसी एक सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प को ज्ञात करने की प्रक्रिया है।
संरचनात्मक तथा योगात्मक मूल्यांकन की तुलना / अन्तर (Comparison of Formative and Summative Evaluation)
कक्षा अध्यापक सामान्यतः छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि का मूल्यांकन करने में ही अधिक रूचि रखता है। छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि के सन्दर्भ में भी संरचनात्मक (Formative) तथा योगात्मक (Summative) मूल्यांकन को परिभाषित किया जा सकता है। जब कोई अध्यापक या अन्य कोई मूल्यांकनकर्ता पाठ्यक्रम की समाप्ति पर या शैक्षिक कार्यक्रम के अन्त में या शिक्षा सत्र के समापन पर छात्रों की उपलब्धि का मूल्यांकन करता है तो इस प्रकार के मूल्यांकन को योगात्मक मूल्यांकन (Summative Evaluation) कहा जायेगा क्योंकि इस मूल्यांकन का उद्देश्य छात्र की सम्प्राप्ति का आँकलन करके उसे आगामी कक्षा में प्रोन्नत करने या न करने का निर्णय लेना है। इसके विपरीत यदि शैक्षिक कार्यक्रम के दौरान या शिक्षा सत्र के बीच समय-समय पर छात्रों की उपलब्धि का मूल्यांकन किया जाता है तो इस प्रकार के मूल्यांकन को संरचनात्मक मूल्यांकन (Formative Evaluation) कहा जायेगा क्योंकि इस मूल्यांकन का उद्देश्य छात्र द्वारा अर्जित सम्पत्ति का आकलन करके उसमें आवश्यक सुधार करना है। संरचनात्मक मूल्यांकन का उद्देश्य छात्रों तथा अध्यापकों को पृष्ठ पोषण (Feed back) प्रदान करना है। इससे अध्यापक तथा छात्र अपने शैक्षिक प्रयासों को और भी अधिक व्यवस्थित करने के लिए प्रेरित हो सकते हैं। छात्र अधिक परिश्रम से अध्ययन करने का प्रयास कर सकेंगे जबकि अध्यापकगण अपनी शिक्षण विधियों में सुधार की संभावनायें खो सकेंगे। स्पष्ट है कि संरचनात्मक मूल्यांकन अल्पकालीन निर्णयों के लेने में अधिक सहायक होता है। जबकि योगात्मक मूल्यांकन दीर्घकालीन निर्णयों के लेने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
संरचनात्मक तथा योगात्मक मूल्यांकन की भूमिकाओं के विभेद को समझने से स्पष्ट हो जाता है कि योगात्मक मूल्यांकनकर्ता की अपेक्षा संरचनात्मक मूल्यांकन शिक्षा जगत की वास्तविकताओं के अधिक निकट रहता है तथा शैक्षिक कार्यक्रमों, योजनाओं, या सामग्री के निर्माण में अधिक सक्रिय भूमिका अदा करता है। वह शैक्षिक कार्यक्रम योजना या सामग्री को अधिकाधिक प्रभावशाली बनाने का भरसक प्रयास करता है। वह केवल निष्क्रिय निर्णायक मण्डल का सदस्य मात्र नहीं होता है वरन प्राय: कार्यक्रम बनाने वाली समिति का एक सक्रिय सदस्य होता है जो समिति के कार्य को अच्छा बनाने की दृष्टि से प्रयास करता है। इसके विपरीत योगात्मक मूल्यांकनकर्ता शैक्षिक कार्यक्रम के सम्बन्ध में निस्पृह भूमिका अदा करता हैं। वह कार्यक्रम निर्माण में सहयोग प्रदान नहीं करता है वरन निर्णायक का कार्य करता है। मूल्यांकन की दोनों प्रकार की भूमिकाओं के लिए बाह्य तथा आन्तरिक मूल्यांकनकर्ता लिए जा सकते हैं। बाह्य तथा आन्तरिक दोनों ही प्रकार के मूल्यांकनकर्ताओं की अपनी-अपनी सीमायें हैं। सामान्यतः बाह्य मूल्यांकनकर्ता योगात्मक भूमिका को तथा आन्तरिक मूल्यांकनकर्ता संरचनात्मक भूमिका को अदा करते हैं। परन्तु किन्हीं परिस्थितियों में आन्तरिक मूल्यांकनकर्ता योगात्मक भूमिका अथवा बाह्य मूल्यांकनकर्ता संरचनात्मक भूमिका अदा करते हुए अधिक लाभकारी सूचनायें प्रदान कर सकते हैं।
डेनियल स्टुफलबीम (Daniel Stufflebeam) ने अपने मूल्यांकन मॉडल CIPP (Context, Input, Process Product) की मूल्यांकन की संरचनात्मक तथा योगात्मक भूमिकाओं को जोड़ने का प्रयास भी किया है। उसने निर्णय लेने के लिए मूल्यांकन (Evaluation for Decision Making) तथा जवाबदेही के लिए मूल्यांकन (Evaluation for Accountability) में विभेद किया। स्टुफलबीम के अनुसार, जब मूल्यांकन संरचनात्मक भूमिका अदा करता है तब यह पूर्ण क्रियाशील (Pro-active) होता है तथा इसका उद्देश्य शैक्षिक निर्णय लेने वालों की सहायता करना होता है। इसके विपरीत, जब मूल्यांकन योगात्मक भूमिका अदा करता है तब यह पश्चो क्रियाशील (Retro-active) होता है तथा यह जवाबदेही (Accountability) के आधार का कार्य करता है।
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