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सम्पादक से आप क्या समझते हैं? अच्छे सम्पादन के गुण एंव स्वरूप

सम्पादक से आप क्या समझते हैं? अच्छे सम्पादन के गुण एंव स्वरूप
सम्पादक से आप क्या समझते हैं? अच्छे सम्पादन के गुण एंव स्वरूप
सम्पादक से आप क्या समझते हैं? अच्छे सम्पादन के गुण बताइये।

सम्पादक शब्द का अर्थ हूँ सम्यक् गति देना। सम्पादक किसी पत्र के संचालन, नियमन, प्रोत्साहन एवं प्रसारण में सचेष्ट रहने वाला एक जागरूक पत्रकार होता है, सन् 1967 ई. के प्रेस एण्ड रजिस्ट्रेशन ऑफ बुक्स ऐक्ट के अनुसार- “समाचार पत्र में जो कुछ छपता है, उसका निश्चय करने वाला व्यक्ति सम्पादक कहलाता है।’

सम्पादक एक विशिष्ट गुण युक्त बुद्धिजीवी होता है। वह अपने इर्द-गिर्द की घटनाओं पर पैनी दृष्टि रखते हुए अपने पत्र को ऐसी दिशा देता है, जो जनचेतना की वाहिका बनने के साथ ही जनसामान्य की अनुभूतियों और विचारों को वाणी भी दे सके। सम्पादक अपने पत्र के पाठकों का मित्र, पथप्रदर्शक एवं उपदेशक होता है। अपने पत्र के माध्यम से समाज में नैतिकता मूल्यों की स्थापना करना सम्पादक का पुनीत कर्तव्य होता है, अतः उसका स्वयं का चरित्र व आचरण नैतिकता सम्पन्न होना चाहिए। सम्पादक सभ्यता का प्रकाश स्तम्भ, देश की धड़कन एवं राष्ट्रीयता तथा लोकतंत्रीय भावधारा का प्रसारक होता है।

अच्छे सम्पादक के गुण

इसका नैतिक आदर्श हैं- उस्वनिईनिनैसशिष्टता अर्थात्– (1) उत्तरदायित्व, (2) निष्पक्षता, (3) स्वतंत्रता, (4) सत्यता, (5) नैतिकता, (6) निर्भीकता, (7) शिष्टता, (8) ईमानदारी। यही आठ नैतिक आदर्श सम्पादक को सफल बनाते हैं। इन आदर्शों का पालन करते हुए, वह अपने पत्र और पाठकों के बीच सेतु का कार्य करता है। इस महत्वपूर्ण दायित्व को पूरा करने हेतु उसमें अधोलिखित चार कौशलों का होना अनिवार्य है-

(1) प्रशासनिक कौशल- इसके द्वारा वह पूरे पत्र की टीम और उसके कार्य को इसके नियंत्रित करता है तथा अपने सभी सहयोगियों की क्षमता का भरपूर उपयोग करने के लिए, सभी के समुचित दायित्वों का बंटवारा करता है।

( 2 ) निदर्शनात्मक कौशल- पत्र सम्पादन एक टीमवर्क होता है। सम्पादक अपने सफल नेतृत्व द्वारा पत्र के सम्पादन कार्य को सुचारु और सुगम बनाता है।

(3) संकलनात्मक कौशल- समाचार संकलन की सभी क्रियाओं और इस कार्य में लगे क्रू (दल) को सफल नेतृत्व प्रदान करना। इसके लिए वह निरंतर अपने सहयोगियों के साथ बैठकर पूर्व में प्रकाशित समाचार पत्रों का पोस्टमार्टम (शव परीक्षा) अर्थात् इनका आलोचनात्मक विश्लेषण करते हुए आगे छपने वाले समाचार पत्र को सही दिशा देता है।

(4) प्रस्तुतीकरण कौशल- यह सम्पादन कला का सबसे बड़ा कौशल है। वर्तमान युग में समाचार पत्रों (Print media) को इलेक्ट्रानिक मीडिया की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। जनसाधारण की रुचि इलेक्ट्रानिक मीडिया में बढ़ रही है, क्योंकि यह मीडिया सूचना देने के साथ इन्हें दिखाता भी है। अतः इस्की विश्वसनीयता स्वतः प्रमाणित होती चलती है। सम्पादक अपने प्रस्तुतीकरण कौशल से इलेक्ट्रानिक मीडिया की चुनौती को स्वीकार करते हुए, अपने पत्र के प्रसार को बढ़ाता है। सम्पादक के इसी कौशल को देन है। कि आज भी समाचार पत्र रेडियो और टीवी से कहीं अधिक लोकप्रिय हैं।

सम्पादन कला का स्वरूप

इसे दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-

(1) बाह्य स्वरूप- इसके अन्तर्गत प्रकाशन व्यवस्था का आर्थिकतंत्र प्रकाशन स्थल मुद्रण व्यवस्था तथा भाषा कौशल आता है।

(2) आन्तरिक स्वरूप- यह पत्र की आन्तरिक व्यवस्था से संबंधित होता है। इस व्यवस्था के संचालन हेतु उपसम्पादक, संयुक्त सम्पादक, सहायक सम्पादक, समाचार सम्पादक, सहायक समाचार सम्पादक, मुख्य उपसम्पादक तथा सहायक मुख्य सम्पादक होते है।

बाह्य स्वरूप

आर्थिक तंत्र — पत्र के संचालन में अर्थ (धन) का बहुत बड़ा महत्त्व है। पत्र का अर्थ तंत्र जितना मजबूत होगा, पत्र उतना ही कलात्मक और विस्तार वाला होगा। कुछ पत्र पत्रिकाएँ सरकारी खर्चे पर प्रचार-प्रसार हेतु प्रकाशित होते हैं। इनका उद्देश्य लाभ कमाना न होकर विचार, सन्देश व नाम का प्रचार-प्रसार मात्र होता है। ऐसी पत्रिकाओं में बालभारती भारतीय रेल, योजना, आजकल, स्वागत, हरियाणा संदेश, उत्तर प्रदेश, समाज कल्याण, कुरुक्षेत्र आदि का नाम लिया जा सकता है। अधिकांश पत्र-पत्रिकाएँ लाभ की दृष्टि से छपती हैं। इनमें बड़े-बड़े व्यावसायिक घराने रुचि लेते हैं। ऐसे समाचार पत्र संस्थानों के लिए पत्र प्रकाशन की लागत निकालकर लाभ कमाने के लिए आय के स्रोतों पर ध्यान देना अनिवार्य हो जाता है। पत्र के स्तर, छपने वाली सामग्री और नीति पर अर्थतंत्र का सीधे प्रभाव पड़ता है। श्रेष्ठतम प्रकाशन के लिए नवीनतम मुद्रण तकनीक आवश्यक होती है और यह अर्थतंत्र के योगदान पर पूरी तरह निर्भर होती है।

प्रकाशन स्थल – सम्पादन कला के बाह्य स्वरूप पर पत्र के प्रकाशन स्थल का भी प्रभाव पड़ता है। यदि पर नगर से निकल रहा है, तो इसे प्रकाशन और वितरण की सुविधाएं सहज प्राप्य होंगी। अतः पत्र निरन्तर कलात्मक विकास करेगा। परन्तु पत्र यदि किसी कस्बे या ग्राम्यांचल से निकल रहा होगा, तो विविध असुविधाओं के कारण उसका विकास नगरीय पत्रों जैसा नहीं हो पायेगा। आज भी समाचार पत्रों के क्रेताओं की संख्या नगरों में अधिक है, गाँवों में कम।

मुद्रण व्यवस्था – मुद्रण की तकनीक में आये दिन नये-नये आविष्कार होते रहते हैं। ये आविष्कार बहुत महँगे भी होते हैं। समर्थ अर्थतंत्र ही इनकी व्यवस्था कर सकता है। प्रत्येक पत्र का अपना मुद्रणालय होता है। इसमें आवश्यकतानुसार सुनिश्चित मेक (Make) स्पीड (Speed) तथा बहुकार्य संपादित करने वाली मशीनें तथा अन्य मुद्रण संबंधी यंत्रों की व्यवस्था, पत्र के अर्थतंत्र को करनी पड़ती है। पुराने जमाने की लेटर कॅम्पोजिंग तथा सिलैंडर मुद्रण यंत्र पर छपाई कार्य अब नहीं होता। अब मुद्रणकार्य आटोमेशन (स्वतः चालित) प्रक्रिया से होते हैं। कम्पोजिंग भी कम्प्यूटर से की जाने लगी है। आजकल बहुरंगी छपाई व्यवस्था अधिक चलन में है। इससे समाचार पत्र का बाह्यकार नयनाभिराम बनता है। इस कार्य हेतु बहुरंगी मुद्रण यंत्रों की स्थापना करनी पड़ती है।

भाषा कौशल- प्रत्येक पत्र के सम्पादक द्वारा बनाया गया एक भाषाकोड होता है, इसे भाषानीति कह सकते हैं। यह कोड होता है—

(1) पत्र की भाषा व्यावहारिक हो। पारिभाषिक और कठिन शब्द प्रयोग में न आयें।

(2) पत्र का उद्देश्य जन-जन तक पहुँचना होता है, अतः इसकी भाषा सरल, सहज और सुबोध होनी चाहिए।

(3) पत्र में मानकभाषा का प्रयोग किया जाये।

(4) भाषा के स्तर पर ही नहीं वाक्य रचना के स्तर पर भी सम्पादक एक अपनाता है। वाक्य रचना में विशेषणों का सार्थक प्रयोग हो तथा दीर्घ एवं मिश्रित वाक्य रचना से बचा जाये।

(5) पत्र की भाषा प्रयोजन मूलक होने के साथ ही प्रवाहमान भी हो।

(6) पत्रों में छपने वाले अधिकांश समाचार अनूदित किये जाते हैं। भारत में मूल समाचार प्रायः अंगरेजी में आता है। विविध भाषाओं में यह अनूदित होता है। समाचारों का अनुवाद सरल, सार्थक एवं प्रचलित शब्दों का प्रयोग करते हुए किया जाये।

(7) समाचार के शीर्षकों की शब्दावली शक्ति सम्पन्न होनी चाहिए। शक्ति का तात्पर्य भाषा की शक्तियों अभिधा, लक्षणा, व्यंजना से है। शीर्षक निर्माण में लाक्षणिक अथवा व्यंजक शब्दावली का प्रयोग इसे विशिष्टता प्रदान करता है और पाठक का ध्यान तुरन्त अपनी ओर आकर्षित करता है।

(8) किसी भी पत्र का सम्पादक अपने एक सहयोगी मंडल के साथ काम करता है। इन सभी को वह अपने पत्र की भाषा-शैली में पटु बनाता है। वह इन सबको अपने भाषा कोड के सहारे पत्र के भाषा अनुप्रयोग के अनुरूप बनाता है।

(9) प्रत्येक पत्र की अपनी एक शैली होती है। सम्पादक मंडल इसे ही सतर्कता पूर्वक व्यवहार में लाते हुए अपने पत्र को एक नया और विशिष्ट चेहरा प्रदान करता है।

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About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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