साझेदार की मृत्यु का क्या अर्थ है? मृतक साझेदार के उत्तराधिकारी को कुल देय रकम की गणना, भुगतान, लेखांकन तथा लेखांकन समस्याओं का विवेचना कीजिए।
साझेदारी फर्म में किसी साझेदार की कभी भी मृत्यु हो सकती है। उसकी मृत्यु के बाद साझेदारी अनुबन्ध के अनुसार साझेदारी फर्म अपना व्यवसाय संचालित करती रहती है। वस्तुतः किसी साझेदर की मृत्यु साझेदारी को भंग करता है पर इसका परिणाम साझेदारी फर्म का पुनर्गठन है।
किसी साझेदार की मृत्यु हो जाने पर साझेदारी फर्म के द्वारा मृतक को देय राशि प्राप्त करने के अधिकारी उसके उत्तराधिकारी होते हैं। साझेदारी अनुबन्ध से यह व्यवस्था कर दी जाती है कि किसी साझेदार की मृत्यु की स्थिति में उसकी राशि की गणना और उसका भुगतान किस ढंग से किया जाएगा। साझेदारी अनुबन्ध के अभाव में भारतीय साझेदारी अधिनियम 1932 की धारा 37 लागू होती है।
लेखांकन दृष्टिकोण से किसी साझेदार की मृत्यु का अर्थ है- स्थायी अवकाश ग्रहण। इस कारण किसी साझेदार के अवकाश ग्रहण के समय किए गए सभी लेखे, समयोजनाएं और लेखांकन के नियम साझेदार की मृत्यु के समय भी किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त अन्तिम आर्थिक चिट्ठा बनाने की तिथि से लेकर मृत्यु की तिथि तक साझेदारी फर्म के लाभ में हिस्सा और संयुक्त जीवन बीमा पत्र में हिस्सा सम्बन्धित विशिष्ट समस्या भी आती है।
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मृतक साझेदार के उत्तराधिकारी को कुल देय रकम की गणना
किसी साझेदार की मृत्यु की स्थिति में किसी साझेदार के अवकाश ग्रहण की तरह ही, उसके उत्तराधिकारी को कुल देय रकम की गणना की जाती है तथा रोजनामचा प्रविष्टियां और लेखा पुस्तकें बनाई जाती है।
साझेदारी फर्म में मृतक साझेदार के उत्तराधिकारी निम्नलिखित मदों के भुगतान पाने के अधिकारी होते हैं। (इन मदों को मृतक साझेदार की पूंजी खाता के क्रेडिट पक्ष में लिखा जाता है)।
1. मृतक साझेदार के पूंजी खाता और चालू खाता का जमा शेष।
2. मृत्यु की तिथि को कुल ख्याति में उसका हिस्सा (इसे मृत्यु की तिथि को निकाला जाता है)।
3. आर्थिक चिट्ठा के दायित्व पक्ष में प्रदर्शित अवितरित संचित लाभ, लाभ-हानि खाता, संचय, संचय कोष, सामान्य संचय में उसका हिस्सा।
4. मृत्यु की तिथि को सम्पत्तियों और दायित्वों के पुनर्मूल्यांकन करने पर निर्मित पुनर्मूल्यांकन खाता के अनुसार हुए लाभ में उसका हिस्सा।
5. उसकी पूंजी पर ब्याज, वेतन, कमीशन, पारिश्रमिक आदि, यदि अदत्त या देय हो।
6. अन्तिम आर्थिक चिट्ठा की तिथि से मृत्यु की तिथि तक के बीच की अवधि का फर्म के अनुमानित शुद्ध लाभ में उसका हिस्सा।
7. संयुक्त जीवन बीमा पत्र में उसका हिस्सा ।
8. मृतक साझेदार के द्वारा साझेदारी फर्म को दिया गया ऋण और इस पर देय ब्याज मृतक साझेदार के उत्तराधिकारी को उपर्युक्त कुल देय राशि में से निम्नलिखित मदों की रिक्तियों को काट लिया जाता है। (इन मदों को मृतक साझेदार के पूंजी खाता के डेबिट पक्ष में लिखा जाता है)।
- मृतक साझेदार के पूंजी खाता और चालू खाता का नाम शेष।
- आर्थिक चिट्ठा के सम्पत्ति पक्ष में प्रदर्शित लाभ-हानि खाता और अवितरित संचित हानि में उसका हिस्सा।
- मृत्यु की तिथि को सम्पत्तियों और दायित्वों के पुनर्मूल्यांकन करने पर निर्मित पुनर्मूल्यांकन खाता के अनुसार हुए लाभ में उसका हिस्सा।
- मृतक साझेदार का आहरण और आहरण पर ब्याज।
- अन्तिम आर्थिक चिट्ठा की तिथि से मृत्यु की तिथि तक के बीच की अवधि का फर्म की अनुमानित शुद्ध हानि में उसका हिस्सा।
- साझेदारी फर्म के द्वारा मृतक साझेदार को दिए गए ऋण और उस पर ब्याज।
- आर्थिक चिट्ठा के सम्पत्ति पक्ष में प्रदर्शित ख्याति को अपलिखित करने के लिए इस ख्याति में उसका हिस्सा।
मृतक साझेदार के पूंजी खाता में उपर्युक्त मदों को डेबिट और क्रेडिट पक्ष में लिख देने के बाद इस खाता का शेष निकाला जाता है। प्रायः यह जमा शेष होता है। इस जमा शेष को उसके उत्तरधिकारी के खाता में हस्तान्तरित कर दिया जाता है। जब साझेदारी अनुबन्ध के अनुसार इस खाता में लिखित राशि का पूर्ण भुगतान या आंशिक भुगतान या उत्तराधिकारी के ऋण खाता में हस्तान्तरित किया जाता है।
मृतक साझेदार के उत्तराधिकारी को कुल देय रकम का भुगतान और लेखांकन
मृतक साझेदार के पूंजी खाता का जमा शेष ही मृतक के उत्तराधिकारी को कुल देय रकम होती है। इसका भुगतान का दायित्व साझेदार फर्म का होता है। साझेदारी फर्म साझेदारी अनुबन्ध के अनुसार इस रकम का भुगतान करती है।
साझेदारी अनुबन्ध के अभाव में, मृतक साझेदार के उत्तराधिकारी को पूर्ण भुगतान न हो पाने की स्थिति में, भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 की धारा 37 के अनुसार, उत्तराधिकारी निम्नलिखित दो विकल्पों में से किसी भी एक विकल्प का चुनाव कर सकते हैं-
- मृत्यु की तिथि के अन्तिम भुगतान होने की तिथि तक देय राशि पर 6% ब्याज ।
- देय राशि से फर्म के द्वारा कमाए गए लाभ का भाग।
मृतक साझेदार के उत्तराधिकारी को भुगतान के सम्बन्ध में रोजनामचा प्रविष्टियों और भुगतान का ढंग अवकाश ग्रहण करने वाले साझेदार को कुल देय, देय के भुगतान की तरह ही होता है।
साझेदार की मृत्यु के बाद लेखांकन समस्याएं
साझेदारी फर्म में किसी साझेदार की मृत्यु होने पर निम्नलिखित लेखांकन की समस्याओं का समायोजन करना पड़ता है-
- शेष जीवित साझेदारों के नए लाभ-हानि अनुपात और लाभ प्राप्ति अनुपात की गणना।
- ख्याति का लेखांकन।
- फर्म की सम्पत्तियों और दायित्वों का पुनर्मूल्यांकन |
- संचय, अवितरित लाभ और लाभ-हानि खाते का हस्तान्तरण|
- कृत्रिम सम्पत्तियों का अपलेखन ।
उपर्युक्त समस्याओं का समायोजन और लेखांकन प्रविष्टियां अवकाश ग्रहण करने वाले साझेदार का अन्तिम लेखा बनाने की तरह ही होता है।
साझेदार की मृत्यु पर विशिष्ट लेखांकन समस्याएं
मानव जीवन की एक निश्चित घटना मृत्यु है पर इस निश्चित घटना की तिथि अनिश्चित है। इस कारण फर्म में किसी साझेदार की मृत्यु होने पर अग्रलिखित लेखांकन समस्याएं उत्पन्न होती हैं-
(1) ख्याति का लेखांकन- वर्तमान समय में ख्याति का लेखा लेखांकन प्रमाप 13 के अनुसार किया जाता है। इस प्रमाप के अनुसार आर्थिक चिट्ठा में दिए गए ख्याति को सभी साझेदारों के द्वारा अपलिखित कर दिया जाता है। इसके बाद साझेदारी अनुबन्ध के अनुसार या प्रश्नानुसार ख्याति का मूल्यांकन किया जाता है। इस ख्याति में से मृतक साझेदार का ख्याति का हिस्सा पुराने लाभ-हानि अनुपात में निकाला जाता है। शेष जीवित साझेदार अपने लाभ प्राप्ति अनुपात में इस ख्याति की राशि का अंशदान (भुगतान) मृतक साझेदार को करते हैं। नए आर्थिक चिट्ठा में पुरानी ख्याति और वर्तमान ख्याति को नहीं लिखा जाता है।
(2) मृतक साझेदार के हिस्से के लाभ की गणना- साझेदारी अनुबन्ध के फर्म के साझेदार सामान्तयता यह प्रावधान कर लेते हैं कि किसी भी साझेदार का अवकाश ग्रहण अन्तिम खाता बनाने की तिथि को होगा। ऐसा करने पर अवकाश ग्रहण करने वाले साझेदार की देय राशि निकालने में सुविधा और भुगतान करने में सरलता रहती है। मृत्यु की तिथि अनिश्चित रहने से किसी भी वित्तीय वर्ष के अन्दर कभी भी किसी भी साझेदार की मृत्यु हो जाती है। इस स्थिति में अन्तिम वार्षिक चिट्ठा की तिथि से लेकर मृत्यु की तिथि तक फर्म का अनुमानित लाभ निकाला जाता है। इस अनुमानित लाभ में से मृतक साझेदार के हिस्से का लाभ पुराने लाभ-हानि अनुपात से निकाल लिया जाता है। मृतक साझेदार के इस अनुमानित लाभ को नए आर्थिक चिट्ठा के सम्पत्ति पक्ष में दिखाया जाता है।
(3) संयुक्त जीवन बीमा-पत्र में हिस्सा- साझेदारी फर्म अपने सभी साझेदारों के जीवन पर अलग-अलग जीवन बीमा-पत्र या सभी साझेदारों के जीवन पर संयुक्त जीवन बीमा पत्र लेती हैं। इन बीमा-पत्रों के प्रीमियम का भुगतान साझेदारी फर्म करती है। किसी साझेदार की मृत्यु होने पर अलग-अलग जीवन बीमा-पत्र रहने पर मृतक साझेदार जीवन बीमा-पत्र के बीमित धन का भुगतान या संयुक्त जीवन बीमा पत्र रहने पर इसके बीमित धन का भुगतान जीवन बीमा निगम करता है। इन दोनों ही स्थितियों में मृतक साझेदार को इन जीवन बीमा-पत्रों की राशि में से नियमानुसार हिस्सा दिया जाता है।
अनुपात किसी साझेदार की मृत्यु होने पर शेष साझेदारों का नया लाभ हानि और लाभ-प्राप्ति अनुपात की गणना विधि- किसी साझेदार के अवकाश ग्रहण करने पर फर्म के शेष साझेदारों का नया लाभ-हानि अनुपात और लाभ प्राप्ति अनुपात की गणना की तरह जही किसी साझेदार की मृत्यु हो जाने पर फर्म के शेष जीवित साझेदारों का नया लाभ-हानि अनुपात और लाभ प्राप्ति अनुपात निकाला जाता है।
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