सामाजिक पत्र किसे कहते हैं? उदाहरण सहित समझाइये।
गैर-सरकारी पत्र व्यवहार को सामाजिक पत्राचार कहते हैं। इसके अंतर्गत वे पत्रादि आते हैं, जिन्हें लोग अपने दैनिक जीवन के व्यवहार में लाते हैं। इस प्रकार के पत्रों के अनेक रूप प्रचलित हैं। कुछ सामाजिक पत्र इस प्रकार हैं-
1. सम्बन्धियों के पत्र, 2. बधाई पत्र, 3. शोक पत्र, 4 परिचय पत्र, 5. निमन्त्रण पत्र, 6. विविध पत्र ।
पत्र-लेखन सभ्य समाज की एक कलात्मक देन है। मनुष्य चूंकि सामाजिक प्राणी है इसलिए वह दूसरों के साथ अपना सम्बन्ध किसी-न-किसी माध्यम से बनाये रखना चाहता है। मिलते-जुलते रहने पर पत्र लेखन की तो आवश्यकता नहीं होती, पर एक-दूसरे से दूर रहने पर एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के पास पत्र लिखता है। सरकारी पत्रों की अपेक्षा सामाजिक पत्रों में कलात्मकता अधिक रहती है, क्योंकि इनमें मनुष्य के हृदय के सहज उद्गार व्यक्त होते हैं। इन पत्रों को पढ़कर हम किसी भी व्यक्ति के अच्छे या बुरे स्वभाव या मनोवृत्ति का परिचय आसानी से पा सकते हैं। खासकर व्यक्तिगत पत्रों में यह विशेषता पायी जाती है। एक अच्छे सामाजिक पत्र में सौजन्य, सहृदयता आर शिष्टता का होना आवश्यक है। तभी इस प्रकार के पत्रों का अभीष्ट प्रभाव हृदय पर पड़ता है। इसके कुछ औपचारिक नियमों का निर्वाह करना चाहिए।
पहली बात यह कि पत्र के अपर दाहिनी ओर पत्र प्रेषक का पता और दिनांक होना चाहिए। दूसरी बात यह कि पत्र जिस व्यक्ति को लिखा जा रहा हो-जिसे ‘प्रेषिती’ कहते हैं, उसके प्रति सम्बन्ध के अनुसार ही समुचित अभिवादन या सम्बोधन के शब्द लिखने चाहिए। यह पत्र प्रेषक और प्रेषिती के सम्बन्ध पर निर्भर है कि अभिवादन का प्रयोग कहाँ, किसके लिए, किस तरह किया जाय। अंग्रेजी में प्रायः छोटे-बड़े सबके लिए ‘My dear’ का प्रयोग होता है, किन्तु हिन्दी में ऐसा नहीं होता। पिता को पत्र लिखते समय हम प्रायः ‘पूज्य पिताजी’ लिखते हैं। शिक्षक अथवा गुरुजन को पत्र लिखते समय उनके प्रति आदरभाव सूचित करने के लिए ‘आदरणीय’ या ‘श्रद्धेय’ जैसे शब्दों का व्यवहार करते हैं। यह अपने अपने देश के शिष्टाचार और संस्कृति के अनुसार चलता है। अपने से छोटे के लिए हम प्रायः ‘प्रियवर’ ‘चिरंजीव’ जैसे शब्दों का उपयोग करते हैं। समान स्तर के व्यक्तियों के लिए सामान्यतः ‘प्रिय’ शब्द व्यवहृत होता है। इस प्रकार पत्र में वक्तव्य के पूर्व–(1) सम्बोधन, (2) अभिवादन और वक्तव्य के अन्त में (3) अभिनिवेदन का, सम्बन्ध के आधार पर अलग-अलग ढंग होता है। विभिन्न सामाजिक पत्रों के उदाहरण इस प्रकार है-
Contents
1. सम्बन्धियों के पत्र (पिता के नाम पुत्र का पत्र)
एंगलों बंगाली कॉलेज, इलाहाबाद।
17.9.2019
पूज्य पिताजी,
सादर प्रणाम ।
आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि मैं यहाँ आनन्द से हूँ। मैं यहाँ कई अच्छे सहपाठियों को मित्र बना चुका हूँ, जो अच्छे स्वभाव के परिश्रमी और अध्ययनशील हैं। मैं कॉलेज में अभी नया हूँ फिर भी सबका स्नेह प्राप्त है। इस कालेज के प्राचार्य और अध्यापक सभी अच्छे हैं और हम पर पूरा ध्यान रखते हैं। मैं हिन्दी परिषद का सहायक मंत्री बन गया हूँ। कालेज की अन्य परिषदों में भी काम करना चाहता हूँ, पर समय का इतना अभाव है कि कोलेज जीवन के सभी कार्यक्रमों में भाग लेना सम्भव नहीं है। पढ़ना अधिक है, पढ़ाई भी काफी हो चुकी है। इसलिए मैं कहीं बाहर जा नहीं पाता। यहाँ का जीवन बड़ा व्यस्त है, हर मिनट कीमती मालूम होता है। फिर कालेज के छात्रों में अध्ययन की प्रतियोगिता भी रहती है। हर छात्र दूसरे से आगे बढ़ जाना चाहता है। ऐसी हालत में जी-तोड़ परिश्रम आवश्यक है। तभी मैं अच्छी श्रेणी में उत्तीर्ण हो सकता हूं। आपको विश्वास दिलाता हूँ कि वार्षिक परीक्षा में मेरा परीक्षाफल सन्तोषजनक रहेगा। शेष कुशल है। कृपया पत्रोतर देने का कष्ट करें। पूजनीया माता जी को मेरा सादर प्रणाम कहें।
पाने वाले का नाम और पता
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आपका स्नेहाकांक्षी
संजय गोस्वामी
बधाई पत्र
दिनांक : 2-3-2004
प्रिय रेणुका,
यह जानकर प्रसन्नता हुई कि तुम बी. ए. परीक्षा अच्छे अंकों से पास कर गयी हो । तुम्हारी इस शानदार सफलता पर मैं तुम्हें बधाई देती हूँ और आशा करती हूँ कि अगली परीक्षाओं में भी तुम्हें इसी प्रकार सफलता मिलती रहेगी। चूंकि तुम परीक्षा में प्रथम आयी इसलिए विश्वविद्यालय की ओर से छात्रवृत्ति और स्वर्णपदक दोनों तुम्हें मिलेंगे। मेरा पूर्ण विश्वास है कि तुम अपनी पढ़ाई जारी रखोगी और एम.ए. में नाम लिखाने का प्रबंध करोगी। मेरा तो विचार कि तुम्हें आई.ए.एस. की प्रतियोगी परीक्षा में भी शामिल होना चाहिए। भगवान तुम्हारा पथ प्रशस्त करें।
मैं कुशल से हूँ, तुम्हारा कुशल चाहती हूँ।
पाने वाले का नाम और पता
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तुम्हारी
राजकुमारी
शोक पत्र
आर्यानगर, इलाहाबाद।
दिनांक : 5.1.2004
प्रिय श्रीमती नमिता जी,
आपके आदरणीय पति की असामयिक मृत्यु का समाचार सुनकर इतना दुःख हुआ कि उसे शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकती। आप पर तो मुसीबतों का पहाड़ ही टूट पड़ा हैं, किन्तु क्या किया जाय, मृत्यु पर हमारा वश भी तो नहीं। इस दुःखद् घड़ी में मैं ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ कि वह दिवंगत आत्मा को शान्ति दे और आपको इतना, साहस और शक्ति दे कि आप इसे वियोग को सहन कर सकें। आप और आपके बच्चों के प्रति हार्दिक सहानुभूति है। यदि मैं ऐसे अवसर पर आपकी सेवा कर सकूँ तो मुझे खुशी होगी। आदेश दें।
पाने वाले का नाम और पता
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भवदीया
रंजीता पाण्डये
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