कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

सीमान्त तुष्टिगुण (उपयोगिता) हास नियम (Law of Diminishing Marginal Utility)

सीमान्त तुष्टिगुण (उपयोगिता) हास नियम (Law of Diminishing Marginal Utility)
सीमान्त तुष्टिगुण (उपयोगिता) हास नियम (Law of Diminishing Marginal Utility)

सीमान्त तुष्टिगुण (उपयोगिता) हास नियम (Law of Diminishing Marginal Utility)

जैसे-जैसे किसी वस्तु के उपभोग की मात्रा बढ़ती है उस वस्तु का सीमान्त तुष्टिगुण कम होने की प्रवृत्ति प्रकट करता है।

-सैम्युलसन

नियम का आधार- सीमान्त तुष्टिगुण हास नियम उपभोग का एक महत्त्वपूर्ण नियम है। यह नियम आवश्यकता की इस विशेषता पर आधारित है कि किसी समय-विशेष पर किसी जावश्यकता-विशेष की सन्तुष्टि की जा सकती है। दैनिक जीवन में हम यह अनुभव करते हैं कि जब हम अपनी आवश्यकता की सन्तुष्टि के लिए किसी वस्तु का उपभोग करते हैं तो हमें आरम्भ में तो अधिक सन्तुष्टि प्राप्त होती है, क्योंकि हमारी आवश्यकता तीव्र होती है। किन्तु जैसे-जैसे उस वस्तु की अधिकाधिक इकाइयों का उपभोग किया जाता है, वैसे-वैसे हमारी आवश्यकता की तीव्रता कम होती जाती है जिस कारण उस वस्तु की उत्तरोत्तर इकाइयों का सीमान्त तुष्टिगुण क्रमशः घटता जाता है। कुछ समय पश्चात् ऐसी स्थिति मी आ जाती है जबकि हमारी आवश्यकता पूर्णतया सन्तुष्ट हो जाती है तथा वस्तु का सीमान्त तुष्टिगुण भी घटकर शून्य हो जाता है। यदि ऐसी स्थिति के बाद भी वस्तु का उपभोग जारी रखा जाता है तो फिर वस्तु से ऋणात्मक तुष्टिगुण (उपयोगिता) प्राप्त होता है। सीमान्त तुष्टिगुण में पाई जाने वाली इस कमी की प्रवृत्ति को ही अर्थशास्त्र में ‘सीमान्त तुष्टिगुण हास नियम कहते हैं। इस प्रकार यह नियम किसी वस्तु की इकाइयों तथा उनके उपभोग से मिलने वाले सीमान्त तुष्टिगुण के सम्बन्ध को स्पष्ट करता है।

सीमान्त तुष्टिगुण हास नियम का प्रतिपादन सर्वप्रथम एच० एच० गोसेन (H.H. Gossen) ने किया था। बाद में इसकी विस्तृत एवं वैज्ञानिक व्याख्या मार्शल ने की।

परिभाषाएँ (Definitions) विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने नियम की व्याख्या भिन्न-भिन्न शब्दों में की है।

(1) बोल्डिंग (Boulding) के शब्दों में, “जब कोई उपभोक्ता अन्य सभी वस्तुओं के उपभोग को पूर्ववत् रखते हुए किसी वस्तु के उपयोग को बढ़ाता है तो परिवर्तनशील वस्तु का सीमान्त तुष्टिगुण अन्ततः घटता है।”

(2) मार्शल (Marshall) के अनुसार, ‘अन्य गातें समान रहने पर किसी समय विशेष पर किसी व्यक्ति के पास वस्तु की मात्रा में वृद्धि होने पर जो अतिरिक्त लाभ प्राप्त होता है वह उस वस्तु की मात्रा में प्रत्येक वृद्धि के साथ घटता जाता है।

(3) एडवर्ड नेविन (Edward Nevin) के शब्दों में, “किसी वस्तु के उपभोग की मात्रा में प्रत्येक वृद्धि के साथ उस वस्तु की अतिरिक्त इकाइयों से प्राप्त होने वाला तुष्टिगुण घटता जाता है।”

संक्षेप में, सीमान्त तुष्टिगुण हास नियम बताता है कि यदि अन्य बातें समान रहें तो, जैसे-जैसे कोई उपभोक्ता किसी वस्तु की अधिकाधिक इकाइयों का उपभोग करता है वैसे-वैसे उस वस्तु की उत्तरोत्तर इकाइयों का सीमान्त तुष्टिगुण घटता जाता है।

नियम के लागू होने के कारण (Causes of Operation of the Law)

प्रो० बोल्डिंग ने घटते सीमान्त तुष्टिगुण के लागू होने के निम्न दो कारण बताए है-

(1) आवश्यकता विशेष की सन्तुष्टि सम्भव- प्रत्येक उपभोक्ता की किसी वस्तु के उपयोग करने की क्षमता सीमित होती है, अर्थात् कोई उपभोक्ता किसी वस्तु का असीमित मात्रा में उपभोग नहीं कर सकता। अतः किसी वस्तु का निरन्तर उपयोग करने पर एक ऐसी स्थिति आ जाती है जबकि उपभोक्ता की उस वस्तु सम्बन्धी आवश्यकता पूर्णतया सन्तुष्ट हो जाती है। पूर्ण सन्तुष्टि बिन्दु’ (saturation) के आने पर सम्बन्धित वस्तु के लिए उपभोक्ता का सीमान्त तुष्टिगुण शून्य हो जाता है।

(2) वस्तुएँ एक दूसरे की पूर्ण स्थानापन्न नहीं होती- किसी वस्तु के स्थान पर दूसरी वस्तु को पूर्णतया प्रतिस्थापित (substitute) नहीं किया जा सकता, क्योंकि व्यवहार में विभिन्न वस्तुओं का प्रयोग एक उचित अनुपात में ही किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, रोटी तथा सब्जी एक दूसरे के अपूर्ण स्थानापन्न हैं। अधिक सन्तुष्टि प्राप्त करने के लिए उपभोक्ता को इन दोनों वस्तुओं का एक निश्चित अनुपात में उपभोग करना होता है क्यों ? क्योंकि किसी वस्तु की अधिकाधिक इकाइयों का दूसरी वस्तु की निश्चित (स्थिर) मात्रा के साथ उपयोग करने पर परिवर्तनशील वस्तु की अतिरिक्त इकाइयों से प्राप्त सीमान्त तुष्टिगुण क्रमशः घटता जाता है। यदि रोटी तथा सब्जी पूर्ण स्थानापन्न होती तो यह नियम लागू नहीं हो पाता क्योंकि सब्जी की कमी को रोटी की मात्रा को चढ़ाकर पूरा किया जा सकता है।

(3) वस्तुओं के वैकल्पिक प्रयोग- अनेक वस्तुओं के वैकल्पिक प्रयोग (alternative uses) होते हैं जिनमें से कुछ प्रयोग अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं जबकि कुछ कम महत्त्वपूर्ण होते हैं। बामोल (Baumol) के अनुसार यह नियम इसलिए लागू होता है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अधिकतम महत्त्व वाले प्रयोग को प्रथम स्थान देता है तथा जैसे-जैसे वस्तु की मात्रा बढ़ती जाती है वैसे-वैसे उसका उपयोग कम महत्व वाले प्रयोगों में किया जाने लगता है। उदाहरणार्थ, यदि हमारे पास दूध की थोड़ी मात्रा है तो उसका प्रयोग हम सर्वप्रथम बच्चे को पिलाने में करेंगे। यदि दूध की मात्रा (पूर्ति) बढ़ जाती है तो दूध का प्रयोग चाय या दही बनाने या बुजुर्गों को पिलाने में भी करेंगे।

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Anjali Yadav

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