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स्मृति का अर्थ, परिभाषा एंव प्रकार बताइये। स्मरण एंव विस्मरण का शैक्षिणिक महत्व बताइये।
स्मृति का अर्थ एवं परिभाषा
स्मृति का अर्थ है- किसी पूर्व अनुभव या ज्ञान को याद रखना या याद करना। स्मृति में धारणा, प्रत्यास्मरण और पहचान आदि क्रियायें सम्मिलित हैं। स्मृति एक जटिल प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में व्यक्ति अपने पूर्व अनुभवों एवं ज्ञान को अपने अचेतन मन में संचित कर लेता है और आवश्यकता पड़ने पर उसे चेतन में आने का प्रयास करता है। एक जटिल प्रक्रिया होते हुए भी विद्वानों ने स्मृति को परिभाषित करने का प्रयास किया है। कुछ प्रमुख परिभाषाओं का उल्लेख हम यहां कर रहे हैं।
स्मृति की परिभाषा- रास के अनुसार, “स्मृति एक नवीन अनुभव है, जो मन – व्यवस्थाओं द्वारा निर्धारित होता है जिनका आधार कोई पूर्व अनुभव है।”
वुडवर्थ के अनुसार, “स्मृति से तात्पर्य है, भूतकालीन घटनाओं के अनुभव की कल्पना करना और इस तथ्य को पहचान लेना कि यह भूतकालीन अनुभव है।”
स्टाउट के अनुसार, “स्मृति एक आदर्श पुनरावृत्ति है जिससे अनुभव की वस्तुएं यथासम्भव मूल घटना के क्रम और ढंग पुनर्स्थापित होती है।
एस.ए. अलेक्जेन्डर के अनुसार, “स्मृति अधिगम की भांति ही समायोजन की आधारभूत प्रक्रिया है।”
रायबर्न के अनुसार, “जिस शक्ति द्वारा हम अपने अनुभवों को वंचित करते हैं कुछ समय बाद उनके पुनः चेतना क्षेत्र में जाने की स्मृति कहे हैं। “
आइजेक के अनुसार, “स्मृति व्यक्ति की वह योग्यता है जिसके द्वारा वह पहले अधिगम की हुई प्रक्रियाओं (अनुभव धारण) में सूचना एकत्र करता है और फिर इस सूचना की विशिष्ट उत्तेजनाओं के प्रत्युत्तर में पुनरोत्पादित करता है।”
स्मृति के तत्व
उपरोक्त परिभाषाओं के विश्लेषण से स्मृति के निम्न प्रमुख अंग स्पष्ट होते हैं।
1. सीखना – सीखना स्मृति का सबसे प्रमुख अंग है। किसी भी तथ्य को याद रखने के लिए आवश्यक है कि उसे भली प्रकार से सीख लिया जाए। इस संदर्भ में गिलफोर्ड का मानना है कि “कुशल स्मृति का प्रभावपूर्ण सीखना आधे से अधिक लड़ाई जीतना है।” यदि कोई व्यक्ति अच्छी स्मृति चाहता है तो उसे सीखने के सिद्धांतों का अधिक से अधिक पालन करना होगा। प्रत्येक अनुभव से व्यक्ति सीखता है। जो भी मनुष्य सीखते हैं उसे याद करना ही स्मृति के अंतर्गत आता है। इस प्रकार स्मृति की प्रक्रिया में सीखने की प्रक्रिया का विशेष महत्व है। स्पष्ट है कि सीखना या याद करना स्मृति का महत्वपूर्ण तत्व हैं।
2. संचय- मन की उस शक्ति को हम संचय या धारणा कहते हैं जिसके कारण कोई भी संस्कार मन में स्थायी रूप से ठहर जाते हैं। यह एक जन्मजात शक्ति है जिसमें परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। बालक की संचय शक्ति का विकास उसकी अवस्था के साथ-साथ होता रहता है। 12 वर्ष की अवस्था तक इस शक्ति की गति धीमी होती है और 12 से 16 वर्ष की अवस्था में इसकी गति बढ़ जाती है। 16 से 25 साल की अवस्था में यह गति पुनः धीमी पड़ जाती है। 25 वर्ष के बाद संचय शक्ति में कोई वृद्धि नहीं होती। किसी भी तथ्य को मस्तिष्क में स्थित रखने के लिए चार बातें महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। वे है – अनुभवों की सीमाकाल होना, अनुभवों का बार-बार होना, अनुभवों का रोचक होना, आपसी सम्बन्ध होना। जिस चीज को भी हम सीखते हैं उस विषय से संबंधित संस्कार हमारे मस्तिष्क में बन जाते हैं। इन्हें मनोवैज्ञानिक भाषा में स्मृति चिन्ह कहा जाता है। इस सीखे हुए स्मृति चिन्हों का मस्तिष्क से संचित हो जाना ही धारणा या संचल कहलाता है।
3. पुनः स्मरण – स्मृति की प्रक्रिया में तीसरा महत्वपूर्ण तत्व पुनः स्मरण है। इस प्रक्रिया में पूर्व अनुभवों को जो हमारे अचेतन मन में जा चुके होते हैं पुनः चेतन में लाने का प्रयास किया जाता है। यहां यह उल्लेखनीय है कि पुनः स्मरण कभी भी पूर्ण नहीं होता। स्मरण करते समय कुछ तत्व छूट जाते हैं। पुनः स्मृति को प्रसंग व परिवेश, संकेत, सहचर्य, मानसिक, तत्परता, संवेग आदि प्रभावित करते हैं। अतः बालकों को पुनः स्मरण करते समय इन सभी का सहारा लेना चाहिए। इससे उनकी पुनः स्मरण शक्ति विकसित होगी। पुनः स्मरण स्मृति का एक महत्वपूर्ण अंग है।
4. पहचान – पहचान स्मृति को पूर्णता प्रदान करने वाला अंतिम तत्व या अंग है। पहचान का अभिप्राय परिचय की चेतना से है। ऐसे अवसरों पर जहां स्मृति असफल होती है वहां पहचान को सफलता मिलती है। पहचान व सम्बन्ध आपसी सम्बन्धों से होता है और इसी सम्बन्धों के कारण पूर्व अनुभवों के सम्पूर्ण चित्र चेतन मन पर प्रकट होने लगते हैं और व्यक्ति को अपने पूर्व अनुभवों की स्मृति होने लगती है। इन चारों अंगों को बिना पूर्ण नहीं हो पाती। स्मृति का स्वरूप बहुत जटिल है जिसमें सीखना, संचय, पुनः स्मरण और पहचान सम्मिलित है।
स्मृति के प्रकार
भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में किसी अनुभव या तथ्य को स्मरण रखने की योग्यता भी भिन्न-भिन्न होती है। किसी योग्यता को आधार मानकर विद्वानों ने स्मृति को वर्गीकृत करने का प्रयास किया है। वर्गसन ने दो प्रकार की स्मृतियों का उल्लेख किया है वास्तविक स्मृति और यांत्रिक स्मृति । सत्यता तो यह है कि स्मृति को वर्गीकृत नहीं किया जा सकता भले ही इसको भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जा सकता है। मनोवैज्ञानिकों ने स्मृति के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख किया है।
1. स्थायी स्मृति – जब किसी तथ्य तथा अनुभव सीखे हुए बहुत समय बीत चुका होता है लेकिन फिर भी हम इस अनुभव का तथ्य की पहचान सरलता से कर लेते हैं, तब हम इस प्रकार के पुनः स्मरण को स्थायी स्मृति कहते हैं। स्थायी स्मृति में अनुभव तथा विचार बहुत लम्बे समय तक याद रहते हैं, यही कारण है कि इस प्रकार की स्मृति को स्थायी स्मृति के नाम से पुकारा गया है।
2. तत्कालिक स्मृति – किसी बात या तथ्य को सुनकर तुरन्त ही याद कर लेना और उसे पुनः सुना देना कालिक स्मृति कहलाता है। बच्चों की अपेक्षा वयस्कों एवं प्रौढ़ों की तत्कालिक स्मृति अधिक तीव्र होती है। सभी व्यक्तियों की कालिक स्मृति एक समान नहीं होती कालिक स्मृति बालक की आयु के साथ-साथ विकसित होती हैं और 25 वर्ष की अवस्था में यह अपनी उच्चतम सीमा तक पहुंच जाती है।
3. अल्पकालिक स्मृति – अल्पकालिक स्मृति से तात्पर्य ऐसी स्मृति से है जिसमें याद की हुई सामग्री को कुछ मिनटों या सेकण्डों में ही पुनः सुनाया जा सकता है लेकिन कुछ समय बाद इसे पुनः स्मरण नहीं किया जा सकता। कुछ समय बाद स्मृति मस्तिष्क से ओझल हो जाती है। इस प्रकार थोड़े समय के लिए याद रख सकने की क्षमता अल्पकालिक स्मृति कहलाती है।
4. यान्त्रिक स्मृति – इस स्मृति में दोहराने की प्रक्रिया का महत्वपूर्ण हाथ है। इसी कारण इसको शारीरिक स्मृति के नाम से भी जाना जाता है। एक कार्य को बार-बार करने से शरीर को उस कार्य को करने की आदत सी पड़ जाती है और व्यक्ति को उस कार्य का स्मरण करने के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं करने पड़ते। मोटर ड्राइविंग इस प्रकार की स्मृति का एक अच्छा उदाहरण है।
5. तार्किक स्मृति – जब हम किसी विचार अथवा विषय को बहुत सोच समझकर तर्क के आधार पर सीखते हैं तो सीखते-सीखते हम इस योग्य हो जाते हैं कि वह तथ्य हमें आसानी से पुनः स्मरण हो सके तब इस प्रकार के स्मरण को तार्किक स्मरण कहते हैं। इस प्रकार की स्मृति में बुद्धि का विशेष स्थान रहता है इस कारण इसे बौद्धिक स्मृति के नाम से भी जाना जाता है।
6. रटन्त स्मृति- रटन्त स्मृति बच्चों में अधिक होती है। बिना सोचे समझे बार-बार दोहरा कर जब बच्चे किसी तथ्य या अनुभव को याद करते हैं तब यह रटन्त स्मृति कहलाती है। बच्चों द्वारा पहाड़ों, कविताओं आदि को याद करना इस प्रकार की स्मृति का अच्छा उदाहरण है।
7. सक्रिय स्मृति – जब अतीत काल के अनुभवों को बहुत प्रयास करने के बाद ही स्मरण किया जाता है तो यह सक्रिय स्मृति कहलाती है। परीक्षा भवन के छात्रों द्वारा अपने प्रश्नों का उत्तर स्मरण करना इस प्रकार की स्मृति का एक अच्छा उदाहरण है।
8. निष्क्रिय स्मृति – इस प्रकार की स्मृति वह होती है जिसमें तथ्यों या अनुभवों को – स्मरण करने के लिए किसी प्रकार का प्रयास नहीं करना पड़ता। बिना प्रयास किये ही तथ्यों का स्वतः ही याद आ जाना निष्क्रिय स्मृति का अच्छा उदाहरण है।
9. व्यक्तिगत स्मृति – जब हम पूर्व अनुभवों को याद करते-करते उनसे सम्बन्धित अपने व्यक्तिगत अनुभवों को भी याद करने लगते हैं तब इसे व्यक्तिगत स्मृति कहा जाता है। उदाहरण के लिए जब हम उस दिन का अनुभव करते हैं जिस दिन हमने बी.ए. पास कर कालेज छोड़ा था या उस दिन का अनुभव करते हैं जिस दिन हमारे साथ कालेज में कोई विशिष्ट घटना हुई थी तो इस प्रकार की स्मृति को व्यक्तिगत स्मृति के नाम से जाना जायेगा।
10. अव्यक्तिगत स्मृति- पुस्तकों, नाटकों या अन्य से जो बातें सीखी जाती हैं। और स्मरण की जाती है उन्हें अव्यक्तिगत स्मृति की श्रेणी में रखा जाता है।
11. शारीरिक स्मृति- शारीरिक स्मृति यान्त्रिक स्मृति की ही भांति होती है। इसमें – अभ्यास करते करते शरीर के अंग किसी कार्य को करना सीख जाते है और समय आने पर उस कार्य को पुनः सुचारू रूप से करना सीख जाते हैं। टाइप करना, साइकिल चलाना आदि इसके अच्छे उदाहरण है।
12. वास्तविक स्मृति – वास्तविक स्मृति से प्राप्त किया गया ज्ञान क्रमबद्ध होता है। स्मृति का यह प्रकार स्मृति के अन्य प्रकारों में श्रेष्ठ माना गया है इसी कारण इसे शुद्ध स्मृति के नाम से भी जाना जाता है। इस स्मृति में ज्ञान को व्यवस्थित ढंग से सीखा जाता है। इस प्रकार का ज्ञान एक बार अर्जित कर लिये जाने पर भूलता नहीं। बहुत से शिक्षाविद् इस स्मृति को मनोवैज्ञानिक स्मृति के नाम से भी पुकारते हैं।
13. इन्द्रिय स्मृति जब हम अपनी ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से पुनः स्मरण करते तो इस प्रकार के स्मरण को ज्ञानेन्द्रिय स्मरण के नाम से जाना जाता है। सूंघने द्वारा, सुनन द्वारा, आंखों पर पट्टी बांधकर स्पर्श स्मरण करने की प्रक्रिया इन्द्रिय स्मृति कहलाती है। अच्छी स्मृति से तात्पर्य पूर्व में सीखने हुए अनुभवों एवं विषयों को ज्यों के त्यों अचेतन मन से चेतन मन में ले आना अच्छी स्मृति है। अच्छी स्मृति की प्रमुख विशेषताएं निम्न हैं।
स्मरण का शैक्षिक महत्व – वस्तुतः स्मृति मनुष्य का जन्मजात गुण है। वैयक्तिक विभिन्नताओं के कारण वह अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग पाया जाता है। धारणा या पुनः स्मरण द्वारा शिक्षा में इसकी उपादेयता का उपयोग किया जा सकता है। स्मरण करने की विभिन्न विधियों के प्रयोग द्वारा छात्रों को अध्ययन के प्रति लगनशील बनाया जा सकता है। यदि किसी भी व्यक्ति की स्मृति क्षमता अधिक होगी तब वह अध्ययन के क्षेत्र में भी आगे रहेगा।
विस्मरण का शैक्षिक महत्व – विस्मरण से तात्पर्य उस मानसिक प्रक्रिया से है – जिसमें व्यक्ति अपने भूतकाल के अनुभवों या अनुभूतियों का पुनःस्मरण करने में स्वयं को असमर्थ पाता है। किन्तु फिर भी विस्मरण का अपना शैक्षिक महत्व है, क्योंकि मानसिक रूप से अस्वस्थ बालकों को उनके इलाज में दुखद घटनाओं को भुलाने में ही वे स्वस्थ हो सकते हैं। शिक्षा में विस्मरण उतना ही लाभप्रद है जितना स्मरण व्यक्ति का स्मृति क्षेत्र सीमित हैं। अतः पुरानी दुःखद बातों को भूलकर अच्छा सुखद व नया ग्रहण करने के लिए विस्मरण का होना स्मरण के समान ही आवश्यक है।
मन के अनुसार- “उचित प्रतिक्रियाओं का अर्जन करने हेतु हमें अनुचित प्रतिक्रियाओं को प्रायः भूल जाना आवश्यक व उपयोगी है।”
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