तीसरी कसम कहानी के नायक हिरामन की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिये।
फणीश्वर नाथ रेणु द्वारा रचित कहानी ‘तीसरी कसम’ उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी का नायक हिरामन है जो एक अनपढ़ काला-कलूटा सा ग्रामवासी है और गाड़ीवानी का कार्य करता है। वह सीधा-साधा, निष्कपट व्यक्ति है और अपने अन्य गाड़ीवान साथियों से भिन्न हैं। हिरामन की चारित्रिक विशेषतायें निम्नलिखित हैं-
(1) सीधा-साधा व्यक्ति:- हिरासन सीधा-साधा व्यक्ति हैं। सहज ग्रामीण परिवेश की कहानी में हिरासन को गवई भोलापन उसे अन्य गाड़ीवानों से विशिष्ट स्थान प्रदान करता है। इतने साल मेलों की लदनी करते हुए भी उसने कभी नौटंकी नहीं देखी, यथा- “मथुरामोहन कम्पनी में लैला बनने वाली हीराबाई का नाम किसने नहीं सुना होगा भला! लेकिन हिरामन की बात निराली है। उसने सात साल तक लगातार मेलों की लदनी लादी है, कभी नौटंकी, थियेटर या बायस्कोप सिनेमा नहीं देखा।” दूसरों के पूछने पर वह हीराबाई के विषय में कभी सच नहीं बताता, गाँव का नाम पूछने पर छत्तापुरपचीरा बताना, हीराबाई को बिदागरी (नैहर या ससुराल जाने वाली लड़की) बताना, रास्ते में हर जगह से जुड़ी कथाओं को बताते जाना उसके भोलेपन को उजागर करता है।
(2) लज्जावान:- गवई संस्कारों में पले-बड़े होने के कारण औरत के सामने उसे लाज अनुभव होती है जब हीराबाई उससे कहती है कि “अरे तुमसे किसने कह दिया कि कुआरें आदमी को चाय नहीं पीनी चाहिए?” यह सुनकर हिरामन लजा जाता है।
(3) अन्तर्मुखी:- हिरामन अपने हृदय की बात किसी से न बताने वाला अन्तर्मुखी व्यक्ति है जिसे गाड़ीवानों के समान पंचायत करने में कोई आनन्द नहीं मिलता है। वह हीराबाई के विषय में भी अपने से ही बात करते हुए चलता है। “हीराबाई ने परख लिया, हीरामन सचमुच हीरा है।” उसकी आत्मकेन्द्रित, अन्तर्मुखी विशेषता को रूपायित करती ये पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं “चालीस साल का हट्टा-कट्टा, काला कलूटा, देहाती नौजवान अपनी गाड़ी और अपने बैलों के सिवाय दुनियाँ की किसी और बात में विशेष दिलचस्पी नहीं लेता।”
( 4 ) संवेदनशील भावुकः- हिरामन मन का सच्चा, सरल, सहज होने के साथ ही साथ प्रेम, संवेदना, स्नेह के भावों से युक्त एक भावुक व्यक्ति है इसीलिये वह महुआ घटवारिन की कथा सुनाते हुए जैसे स्वयं को सौदागर का नौकर समझने लगता है जो पानी में बहती हुई महुआ के पीछे-पीछे तैर रहा है और महुआ पकड़ में नहीं आती। उसे लगता है हीराबाई के रूप में उसे महुआ मिल गई है। भावातिरेक के अद्भुत क्षण का उदाहरण दृष्टव्य है- ‘इस बार लगता है महुआ ने अपने को पकड़ा दिया। खुद ही पकड़ में आ गई हैं। उसने महुआ को छू लिया है, पा लिया है, उसकी थकान दूर हो गई है। पन्द्रह-बीस साल तक उमड़ी हुई नदी की उल्टी धारा में तैरते हुए उसके मन को किनारा मिल गया। आनन्द के आंसू कोई रोक नहीं मानते।…
( 5 ) गाड़ीवान:- हिरामन यद्यपि एक गाड़ीवान है तथापि वह अन्य गाड़ीवानों की विशेषताओं बिलकुल भिन्न है। जहाँ अन्य गाड़ीवान हीराबाई को देखकर अश्लील व फूहड़ भाव व्यक्त करते हैं, वहीं हिरामन इतने लम्बे रास्ते का एकान्त पाकर भी कही असभ्यता या फूहड़पन व्यक्त नहीं करता अपितु एक संयम व सुसभ्य सौन्दर्य बोध का परिचय देता है। यहाँ तक कि बीड़ी पीने से पहले भी पूछता है यथा-
“हिरामन ने बीड़ी सुलगाने से पहले पूछा, “
बीड़ी पीए? आपको गन्ध तो नहीं लगेगी….”
यही उसकी सभ्यता का प्रतीक है।
( 6 ) संगीत का शौकीन:- हिरामन गीतों का प्रेमी है जो अपनी ही धुन में गीत गुनगुनाया करता है। उसके गीतों के प्रति हीराबाई का लगाव, उन्हें सुनकर उसका द्रवित होना सर्वत्र दिखाई देता है। रेणु की कहानी के ग्राम्य परिवेश को ये गीत और प्रभावपूर्ण रूप से व्यक्त करते हैं। हिरामन का संगीत प्रेम निम्नांकित उदाहरण से स्पष्ट होता है—
“हिरामन का मन आज हल्के सुर में बंधा है उसको तरह-तरह के गीतों की याद आती है।”
(7) मेहनती:- हिरामन एक मेहनती व्यक्ति है। हिरामन अपने काम में पूरी तरह रम जाता है और पूरे मनोयोग के साथ काम करता है। यह उसकी मेहनत का ही फल है कि “फारबिसगंज का हर चोर-व्यापारी उसको पक्का गाड़ीवान मानता है। उसके बैलों की बढ़ाई गद्दी से बड़े सेठजी खुद करते अपनी भाषा में….।” बाघगाड़ी की गाड़ीवानी भी हिरामन में अपनी पूरी सामर्थ्य के साथ की थी। एक उदाहरण दृष्टव्य है-
“..हिरामन की देह से अतर-गुलाब की खुशबू निकलती है। हिरामन करमसाँड है। उस बार महीनों तक उसकी देह से बघाईन गन्ध नहीं गई। “
( 8 ) निश्छल प्रेमी:- हिरामन का हीराबाई के प्रति निष्काम प्रेम का भाव पूरी कहानी में व्याप्त है। वह निःस्वार्थ भाव से हीराबाई के सौन्दर्य से प्रभावित है और उसे आदर के भाव से देखता है। उसकी इसी निश्छलता ने हीराबाई को भी प्रभावित किया, उदाहरणतः हीराबाई ने हिरामन के जैसा निश्छल आदमी बहुत कम देखा है। यह उसकी निष्काम, निःस्वार्थ प्रवृत्ति का ही प्रभाव था कि हीराबाई उसके साथ सामान्य रास्ते से हटकर सूनसान रास्ते पर भी चलने को तैयार हो जाती है।
(9) आस्थावन- हिरामन गवई परम्पराओं में आस्था रखता है। समय-समय पर यदि वह ईश्वर का स्मरण कर उन्हें शुक्रिया अदा करता है तो गाँव में पुराने समय से चले आ रहे मिथो व कथाओं पर भी विश्वास करता है। कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं “आज हिरासन पर मां सरस्वती सहाय है” या फिर “आज तेगछिया पर रहने वाले महावीर स्वामी भी सहाय हैं।”
गाँव की पौराणिक कथाओं में उसने सुन रखा था कि भूत, पिशाच के पाँव टेढ़े होते है। इसीलिए जब “हीराबाई गाड़ी से नीचे उतरी। हिरामन का कलेजा धड़क उठा….. नहीं नहीं! पांव सीधे हैं, टेढ़े नहीं।”
(10) पशुओं से प्रेम :- हिरामन अपने बैलों से बहुत प्रेम करता है। उनके चारा, पानी, आराम का पूरा ध्यान उसे रहता है और जैसे वह पशु न होकर उसके कोई दोस्त हों जिनमें वह अपने हृदय की बात कहता चलता है। इसका सशक्त उदाहरण इन पंक्तियों में मिलता है— “हिरामन को जेल का डर नहीं। लेकिन उसके बैल ? न जाने कितने दिनों तक बिना चारा पानी के सरकारी फाटक में पड़े रहेंगे – भूखे प्यासे।”
(11) संस्कारी व्यक्तिः- हिरामन एक संस्कारी व्यक्ति है। वह अपने वर्ग के तमाम लोगों से विपरीत गौने से पहले ही अपनी पत्नी के मर जाने पर भी शादी नहीं करता। भाभी बार-बार शादी के लिये जोर देती है तो वह कहता है कि कोई विधवा हो तो वह शादी कर सकता है।
इस प्रकार हिरामन एक सच्चा, सीधा- साधा मेहनती गाड़ीवान है जो सुसंस्कारी है। उसमें आत्मयिता के गुण विद्यमान है। ‘तीसरी कसम’ कहानी उसी के इर्द-गिर्दै धूमती है। निःसंदेह वह कहानी का नायक है।
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