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गरीबी हटाओ की राजनीति पर विस्तृत टिप्पणी लिखिये। Comment on the politics behind the slogan remove poverty.
भारत एक अपार प्राकृतिक संसाधन रखते हुए भी गरीबों का देश कहलाता है। यहाँ जनसामान्य में गरीबों की संख्या बहुत अधिक है। गरीबी भारत को ब्रिटिश साम्राज्य से विरासत में प्राप्त हुई है। ब्रिटिश साम्राज्य के पूर्व भी भारत के शासकों ने जनसाधारण के कल्याण और उनके आर्थिक तथा सामाजिक विकास पर बहुत कम ध्यान दिया इसलिये भारत में गरीबी का विकास हुआ। स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर और अगले प्रभात में स्वतंत्र भारत की सरकार को जो समस्यायें विरासत में मिलीं उनमें गरीबी भी एक मुख्य समस्या थी ।
गरीबी वास्तव में एक सापेक्षिक धारणा है। यह अमीरी या धनाढ्यता और सम्पन्नता में का विलोम है। समाज में गरीब सामान्यतः उन लोगों को कहा जाता न्यूनतम स्तर से जीवन भी नीचा जीवन जीते हैं। जिन्हें दो समय की भरपेट रोटी और तन ढँकने के लिये पर्याप्त कपड़ा और सिर के ऊपर साये के रूप में छत बड़ी कठिनाई से नसीब हो पाती है। उन्हीं लोगों को गरीब माना जाता है, जो निर्धारित जीवन स्तर से भी नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। ये भूखे, नंगे, बीमारी से त्रस्त, भूमिहीन तथा आवासहीन लोग हैं, जिनकी जिन्दगी समाज में कीड़े-मकोड़ों से मिलती-जुलती है। जो मेहनत तो करते हैं परन्तु उस मेहनत का प्रतिफल उन्हें इतना नहीं मिल पाता, जो उनके रहन-सहन और जीवन स्तर को सुधार सके ।
प्रस्तुत परिभाषा गरीबी की मोटी परिभाषा है। वैसे संयुक्त राष्ट्र-संघ, आर्थिक, सामाजिक परिषद्, मानवाधिकार आयोग और भारत की सरकार ने इसके अलग-अलग मापदण्ड निश्चित किये हैं और इसके अनुसार एक गरीबी रेखा निर्धारित की गई है। इससे नीचे रहने वालों के कल्याण के लिये कल्याणकारी राज्य अपना कर्त्तव्य निभायेगा ऐसी आशा की जाती है। भारत में गरीबी रेखा का निर्धारण लोगों द्वारा उपयोग की जाने वाली कैलोरी के आधार पर होता है। भारत में गरीबी के सम्बन्ध में अब तक विभिन्न विद्वानों और संस्थाओं ने अनुमान लगाये हैं, इनमें सर्वाधिक मान्य लकड़वाला फॉर्मूला है।
लकड़वाला फॉर्मूला के अनुसार भारत में लगभग 30 करोड़ व्यक्ति गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण के अनुसार भारत में शहरी जनता 23.62 प्रतिशत तथा ग्रामीण जनता का 27-9 प्रतिशत गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहा है।
राज्यवाद इसका वितरण भी भिन्न है। भारत के लगभग 12 राज्यों में निर्धनता अनुपात औसत से अधिक है। ये राज्य हैं- अरुणाचल प्रदेश 33.47, असम 36.9, बिहार 42.0, झारखण्ड (बिहार से भी अधिक), मध्यप्रदेश 37-43, छत्तीसगढ़ (मध्यप्रदेश से भी अधिक), उड़ीसा 47.15, सिक्किम 36-55, त्रिपुरा (34.44) उत्तर प्रदेश 31.15, उत्तरांचल (उत्तर प्रदेश से भी अधिक) ।
भारत में गरीबी के कारण (Causes of Poverty in India)
गरीबी के कारणों को निम्न तीन भागों में बाँटा गया है-
(अ) आर्थिक कारण ( Economic Causes),
(ब) सामाजिक कारण (Social Causes),
(स) राजनैतिक कारण (Political Causes) |
(अ) आर्थिक कारण ( Economic Causes)
हमारा देश एक अल्प-विकसित देश है। इसका मुख्य कारण प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण दोहन न होना समझा जाता है। हमारी योजनाओं में प्राकृतिक संसाधन–जल, खनिज, शक्ति, जंगल का पूर्ण उपयोग सम्भव नहीं हो पाता है। अनेक उत्पादन क्षेत्र अब भी पुरानी उत्पादन विधियों का उपयोग कर रहे हैं, जिनमें मुख्यतः कृषि क्षेत्र है, जहाँ पर कीटनाशक दवाओं, खादों एवं नवीन तकनीकी का आवश्यकता से कम उपयोग होता है। दूसरे इनकी उपलब्धता भी आवश्यकता से कम है।
हमारे देश में दूसरा बड़ा उत्पादन क्षेत्र उद्योग का है। उद्योग क्षेत्र की विकास दर भी सन्तोषजनक नहीं है। जनंसख्या का आर्थिक स्तर भी कम है। पूँजी निर्माण की दर भी कम है। अतः प्रभावशाली आर्थिक साधन उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। जनसंख्या में वृद्धि दर भी अत्यधिक है जो कि गरीबी का एक मुख्य कारण है।
(ब) सामाजिक कारण (Social Causes)
सामाजिक विषमताओं के कारण भी हमारे देश में गरीबी है। ये विषमताएँ-जाति प्रथा, संयुक्त परिवार प्रणाली, शिक्षा, स्वास्थ्य, उत्तराधिकार नियम आदि हैं। ये समस्त विषमताएँ गरीबी बनाये रखने के लिए उत्तरदायी हैं। ये विषमता युवकों में निराशा व कमजोरी की जनक हैं, जो कि सामाजिक सम्पन्नता के अभाव को जन्म देती हैं।
(स) राजनैतिक कारण (Political Causes)
राजनैतिक अस्थिरता गरीबी की जनक है, क्योंकि राजनैतिक नीतियाँ देशहित में कम व पार्टी हित में अधिक होती हैं। प्रशासनिक भ्रष्टाचार व आर्थिक अकुशलता भी इस राजनैतिक माहौल की देन है।
राजनैतिक नीतियाँ गरीबों को अधिक गरीब व अमीरों को अधिक अमीर बना रही हैं जो कि आर्थिक संसाधनों के केन्द्रीयकरण को बढ़ावा दे रही हैं। इससे धन का वितरण असमान होता जा रहा
भारत में गरीबी उन्मूलन हेतु सुझाव (Suggestions to remove Poverty in India)
यद्यपि हमारे देश में अनेक आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक कारण गरीबी को बढ़ावा दे रहे हैं, फिर भी अनेक प्रयासों से गरीबी को एक सीमा तक कम किया जा सकता है। गरीबी को कम करने हेतु कुछ सुझाव निम्नवत् हैं-
(1) ग्रामीण औद्योगीकरण (Rura. Industrialisation) – ग्रामों से शहरी पलायन एवं उद्योगों के केन्द्रीयकरण को रोकने हेतु ग्रामीण औद्योगीकरण अत्यन्त आवश्यक होगा। इसके अलावा यह ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगार एवं अल्प- रोजगार जैसी भयंकर समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करेगा। ग्रामीण औद्योगीकरण से परिवहन एवं आवास की समस्याओं को कम किया जा सकता है।
(2) आर्थिक विकास में तेजी (Acceleration of Economic Growth)- हमारे देश में आर्थिक विकास की दर अत्यन्त धीमी है। जैसे-जैसे हम विकास की दर को तीव्र करते जायेंगे वैसे-वैसे बेरोजगारी की समस्या का समाधान होता जायेगा। रोजगार प्राप्त होने से गरीबी स्वतः ही कम होती जायेगी। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि आर्थिक विकास हेतु लघु उद्योगों एवं कुटीर उद्योगों का विकास आवश्यक है।
(3) ग्रामीण सार्वजनिक निर्माण (Rural Public Works)- ग्रामीण सार्वजनिक निर्माण को बढ़ावा देने से ग्रामीण जनसंख्या को अधिक रोजगार प्राप्त होगा। इसके अलावा नहरों, सड़कों, कुँओं, विद्युतीकरण के निर्माण से संसाधनों का उचित प्रयोग हो सकेगा।
(4) कृषि क्षेत्र का विकास (Development of Agriculture)- कृषि क्षेत्र का विकास ग्रामीण निर्धनता को दूर करने में सहायक होता है। इसके लिए कृषि के लिए साख का निर्माण करना, नये-नये उपकरणों को उपलब्ध कराना, खाद व उत्तम बीज की व्यवस्था करना तथा अभिनवीकरण हेतु प्रयास करना प्रमुख हैं। ग्रामीण निर्धनता को कम करने हेतु भूमि सुधार कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाना भी अत्यन्त आवश्यक है।
(5) जनसंख्या को नियन्त्रित करना (Population Control)- हमारे आर्थिक विकास हेतु किये गये प्रयास असफल रहते हैं क्योंकि जनसंख्या की वृद्धि दर अत्यन्त तीव्र है। अतः अगर हम किसी कार्यक्रम को प्रभावी बनाना चाहते हैं तो जनसंख्या पर नियन्त्रण अत्यन्त आवश्यक है। विद्वानों द्वारा किये गये अनेक अध्ययनो का परिणाम यह है कि अगर हम अपने ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का प्रसार करें तो जनंसख्या पर स्वतः ही नियन्त्रण हो जायेगा। नियन्त्रित जनसंख्या में प्रत्येक आर्थिक कार्यक्रम प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकेगा जिससे गरीबी हटाने में सहायता मिलेगी।
(6) सामाजिक सेवाओं और सुरक्षा (Social Service and Security)- गरीबी उन्मूलन हेतु अत्यन्त आवश्यक है कि सामाजिक सेवाओं; जैसे—शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन इत्यादि का विस्तार किया जाये। पिछड़े क्षेत्र के व्यक्तियों को अच्छे स्तर तक पहुँचने को प्रेरित किया जाना अत्यन्त आवश्यक है। यह प्रेरणा व्यक्तियों को परिश्रम करने को प्रेरित करेगी। इस प्रकार यह गरीबी उन्मूलन में सहायक होगा।
सामाजिक सेवाओं के विस्तार के साथ-साथ उनकी सुरक्षा सुविधाओं में वृद्धि भी आवश्यक है। इससे गरीब व्यक्ति भी अपने को राष्ट्र का अंग समझता है तथा आर्थिक विकास में सहायक होता है।
वास्तव में गरीबी की समस्या हमारे राजनीतिज्ञों, अर्थशास्त्रियों समाजशास्त्रियों एवं देश के कर्मचारियों के समक्ष एक बहुत बड़ी चुनौती है। इस चुनौती का सामना तभी सम्भव है जब हम सब एक होकर इसका मुकाबला करें।
गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम
स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना के गरीबी उन्मूलन के. क्षेत्र में निम्न उद्देश्य हैं-
(i) गरीबी उन्मूलन के लिए संकेन्द्रित प्रयास,
(ii) सामूहिक ऋण के लाभों का पूँजीकरण,
(iii) कार्यक्रमों की बहुलता से सम्बन्धित समस्याओं को दूर करना ।
स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना को लघु उद्यमों के एक सर्वांगीण कार्यक्रम के रूप में बनाया गया है जिसके अन्तर्गत स्वरोजगार के सभी पहलू आते हैं जिनमें ग्रामीण गरीबों को स्व-सहायता समूहों में संगठित करमा शामिल है।
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