निर्णय के प्रमुख प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
निर्णयों को कई प्रकार से वगीकृत किया जा सकता है। कुछ प्रमुख वर्गीकरण निम्नलिखित हैं।
(1) नैत्यक तथा महत्त्वपूर्ण निर्णय (Routine and Strategic Decisions) – नैत्यक निर्णय वे होते हैं जो बार-बार लिये जाते हैं अर्थात् जो आवर्तक होते हैं, तथा जो दिन-प्रतिदिन के व्यावसायिक क्रिया-कलापों के पूर्व परिचित परिवेश में लिए जाते हैं। ऐसे निर्णयों में किसी विशेष प्रकार के अध्ययन, विश्लेषण या अधिकार की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि वे सामान्यतः निश्चित आधारों पर ही लिये जाते हैं। संस्था के लक्ष्य, नीतियाँ, नियम तथा कार्यविधियाँ पूर्व निर्धारित होती हैं तथा वे निर्णय इन्हीं निर्धारित नियमों के अनुसार लिये जाते हैं। प्रबन्धक उपलब्ध लब्ध सा साधनों से निर्धारित लक्ष्यों के प्राप्ति का सर्वोत्तम मार्ग चुनकर निर्णयन का कार्य सम्पन्न करते हैं। इसके विपरीत, महत्त्वपूर्ण निर्णय अनावर्ती एवं विशेष महत्त्व के होते हैं तथा इनका उद्देश्य संस्था के लक्ष्यों एवं साधनों में परिवर्तन करना या उन्हें निर्धारित करना होता है। इस प्रकार के निर्णयों के लिए प्रबन्धकों को गहन अध्ययन, विश्लेषण और चिन्तनशील विचार करने की आवश्यकता होती है। सामान्यतः नैत्यक निर्णय निम्न श्रेणी के प्रबन्धकों द्वारा लिये जाते हैं, जबकि महत्त्वपूर्ण निर्णय सर्वोच्च प्रबन्धकों के द्वारा लिये जाते हैं, जबकि महत्त्वपूर्ण निर्णय सर्वोच्च प्रबन्धकों के द्वारा लिये जाते हैं। नैत्यक निर्णयों को लघु (minor) या चालू (operative) निर्णय या कार्यक्रमिक (programmed) और महत्त्वपूर्ण निर्णयों को बड़े (Major), अत्यावश्यक (vital), नीति-निर्णय (Policy-decisions) और अकार्यक्रमिक (non programmed) निर्णयों के नामों से भी जाना जाता है।
(2) अल्पकालिक तथा दीर्घकालिक निर्णय (Short-term and Long-term Decisions) – अल्पकालिक निर्णय वे होते हैं जिनका प्रभाव थोड़े समय के लिए होता है तथा जिनमें कम अनिश्चिाता एवं जोखिम होती है। इसके विपरीत दीर्घकालिक निर्णय संस्था को एक लम्बे समय के लिए बाधित करते हैं और इनमें सांपेक्ष रूप से अधिक अनिश्चिता एवं जोखिम विद्यमान होती है। जैसे-जैसे निर्णयों के द्वारा प्रभावित होने वाली समयावधि बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे, उनमें जोखिम तथा अनिश्चितता भी बढ़ती जाती है और इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि निर्णय के पूर्व सभी सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण मामलों का सावधानी से विश्लेषण एवं अध्ययन किया जाय तथा समय-समय पर पुनर्विचार करके उनमें आवश्यकतानुसार संशोधन किये जाय। अधिक जोखिम एवं अनिश्चितता के कारण दीर्घकालिक निर्णय प्रायः उच्चाधिकारियों द्वारा लिये जाते हैं, जबकि अल्पकालिक निर्णयों के लेने का अधिकार प्रायः अधीनस्थ अधिकारियों को ही सौंप दिया जाता है।
(3) संस्थागत एवं व्यक्तिगत निर्णय (Organisational and personal Decisions)- जब एक प्रबन्धक अपनी आधिकारिक क्षमता में कोई निर्णय लेता है तो वह संस्थागत निर्णय होता है, और जब वह अपनी व्यक्तिगत क्षमता में कोई निर्णय लेता है, तो वह व्यक्तिगत निर्णय कहलाता है। संस्थागत निर्णयों को अन्तर्विभागीय (Interdepartmental) तथा विभागीय (Departmental) निर्णयों में उपविभाजित किया जा सकता है। विभागीय निर्णयों का सम्बन्ध, विशेषरूप से संस्था के किसी विशेष विभाग या खण्ड से होता है जबकि अन्तर्विभागीय निर्णय सारे प्रतिष्ठान को प्रभावित करते हैं। अतः अन्तर्विभागीय निर्णय उच्चाधिकारियों द्वारा लिए जाते हैं जबकि विभागीय निर्णय सामान्यतः विभागीय प्रबन्धकों के कार्यक्षेत्र में आते हैं।
(4) आर्थिक तथा अनार्थिक निर्णय (Economic and non-economic Decisions)- आर्थिक निर्णय वित्तीय घटकों पर निर्भर करते हैं, जबकि अनार्थिक निर्णय मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, राष्ट्रीय, धार्मिक, नैतिक यां सांस्कृतिक मूल्यों पर आधारित होते हैं, उदारहण के लिए, एक श्रमिक कारखाने में किसी मशीन पर कार्य करते हुए दुर्घटनाग्रस्त होकर स्थाई रूप से अपाहिज हो जाता है। अतः उसकी छँटनी कर देना आर्थिक दृष्टि से उचित हो सकता है, किन्तु नैतिक दृष्टि से उसे सेवा में बनाए रखना अधिक अपेक्षित और न्यायसंगत है। इसलिए उसे सेवा में बनाए रखने का निर्णय एक गैर आर्थिक निर्णय कहलाएगा।
(5) एकांकी एवं सामूहिक निर्णय (Individual and Group Decisions)- एकांकी निर्णय वे होते हैं जो प्रबन्धकों द्वारा अकेले लिए जाते हैं। इसके विपरीत सामूहिक निर्णय वे होते हैं जो कुछ व्यक्तियों के वर्ग, समूह या किसी समिति या प्रमण्डल के द्वारा सम्मिलित रूप से लिए जाते हैं। एकांकी निर्णय अधिकारियों द्वारा प्रबन्ध के हर स्तर पर लिये जाते हैं। ऐसे निर्णय प्रायः नैत्यक और कम महत्त्वपूर्ण होते हैं तथा विलम्ब, हिचकिचाहट या गतिरोध, जैसे दोष इनमें उत्पन्न नहीं होते, जो प्रायः सामूहिक निर्णयों के साथ जुड़े होते हैं। कभी-कभी एकांकी निर्णय उन प्रबन्धकों के द्वारा भी लिये जाते हैं जो अपने पद या प्रतिष्ठा में कमी होने के भय से, अथवा अधीनस्थों की योग्यता या ईमानदारी में अविश्वास के कारण, अपने निर्णयन अधिकार को बाँटना नहीं चाहते।
सामूहिक निर्णय प्रायः गम्भीर मामलों पर अधिक व्यापक सहयोग प्राप्त करने की दृष्टि से लिये जाते हैं। चूंकि निर्णय लेने वाले वर्ग के सभी सदस्य परिसंवाद में सामूहिक रूप से भाग लेते हैं और अपनी राय प्रकट करते हैं, अतः इससे व्यक्तिगत त्रुटियों में कमी आती हैं तथा किसी भी निर्णय लेने के पूर्व विभिन्न प्रकार के पहलुओं और दृष्टिकोणों पर पूर्ण विचार हो जाता है। इसके अतिरिक्त, सामूहिक निर्णय कार्यान्वयन में अधिक प्रभावकारी भी होते हैं क्योंकि वे सामूहिक विचार- विमर्श के परिणाम होते हैं। लेकिन ऐसे निर्णयों में अनावश्यक देरी, गतिरोध एवं दलबन्दी जैसे दोष प्रायः पाए जाते हैं।
(6) क्रियात्मक निर्णय (Functional Decisions)- निर्णयों को क्रियाओं के अनुसार भी वर्गीकृत किया जा सकता है। इस आधार पर वे उत्पादन, वित्त, विपणन, सेविवर्गीय, सामग्री से सम्बन्धित निर्णय हो सकते हैं।
Important Link…
- अधिकार से आप क्या समझते हैं? अधिकार के सिद्धान्त (स्रोत)
- अधिकार की सीमाएँ | Limitations of Authority in Hindi
- भारार्पण के तत्व अथवा प्रक्रिया | Elements or Process of Delegation in Hindi
- संगठन संरचना से आप क्या समझते है ? संगठन संरचना के तत्व एंव इसके सिद्धान्त
- संगठन प्रक्रिया के आवश्यक कदम | Essential steps of an organization process in Hindi
- रेखा और कर्मचारी तथा क्रियात्मक संगठन में अन्तर | Difference between Line & Staff and Working Organization in Hindi
- संगठन संरचना को प्रभावित करने वाले संयोगिक घटक | contingency factors affecting organization structure in Hindi
- रेखा व कर्मचारी संगठन से आपका क्या आशय है? इसके गुण-दोष
- क्रियात्मक संगठन से आप क्या समझते हैं? What do you mean by Functional Organization?