निबन्धात्मक परीक्षा से आप क्या समझते हैं? निबन्धात्मक परीक्षा सुधार के लिए क्या किया जा सकता है? स्पष्ट कीजिए।
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निबन्धात्मक परीक्षा प्रणाली में सुधार
निबन्धात्मक परीक्षा परीक्षा प्रणाली में अनेक विशेषताओं के साथ-साथ कई दोष भी हैं। इस प्रणाली में सुधार हेतु प्रमुख सुझाव प्रस्तुत है। निबन्धात्मक परीक्षणों में सुधार को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
(अ) प्रश्नों के निर्माण में सुधार (ब) अंकों के वितरण में सुधार
(अ) प्रश्नों के निर्माण में सुधार
प्रश्नों के निर्माण करने की प्रणाली में निम्न सुधार किये जा सकते हैं-
(1) अनुदेशात्मक उद्देश्यों को स्पष्ट एवं व्यावहारिक पदों में लिखने के बाद ही इन्हीं उद्देश्यों को ध्यान में रखकर उपयुक्त प्रश्नों का निर्माण करना चाहिए।
(2) प्रश्नों का निर्माण करते समय प्रश्न निर्माता को परीक्षार्थियों की मानसिक योग्यता एवं परिपक्वता का पूर्ण बोध होना अनिवार्य है।
(3) प्रश्न ऐसे होने चाहिए जिनका उत्तर निश्चित एवं स्पष्ट हो ।
(4) प्रश्न-पत्र में कुछ ऐसे प्रश्न भी शामिल होने चाहिए, जो विद्यार्थियों की इस क्षमता का मापन कर सकें कि वे अपने अर्जित ज्ञान का प्रयोग नवीन परिस्थितियों में कर सकते हैं अथवा नहीं।
(5) प्रश्नों की संख्या अधिक होनी चाहिए। पाठ्यक्रम के प्रत्येक भाग से प्रश्नों का चयन करना चाहिए। इससे सम्पूर्ण पाठ्यक्रम का का प्रतिनिधित्व हो जाता है।
(6) प्रश्नों की भाषा इतनी सरल एवं स्पष्ट होनी चाहिए कि परीक्षार्थी यह समझ लें कि उन्हें क्या उत्तर देना है या उन्हें क्या कार्य करना है।
(ब) अंकों के वितरण में सुधार:-
(1) अंकन प्रारम्भ करने के पूर्व ही प्रत्येक प्रश्न का आदर्श उत्तर निश्चित कर लिया जाये। आदर्श उत्तर को दृष्टि में रखकर प्रत्येक उत्तर पर अंक प्रदान किए जायें।
(2) परीक्षार्थी के सुलेख, उसकी अलंकारिक भाषा से प्रभावित होकर अंक प्रदान नहीं करना चाहिए।
(3) जहाँ तक सम्भव हो, एक ही परीक्षक द्वारा उस प्रश्न पत्र की सभी उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन कराया जाये ।
(4) भाषा की परीक्षा के अतिरिक्त अन्य विषयों की उत्तर- पुस्तिकाओं का मूल्यांकन करते समय भाषा की अशुद्धि, वर्तनी की त्रुटि आदि पर अंक न काटे जायें।
(5) अंक प्रदान करते समय परीक्षक को अपनी मनोवृत्ति, पूर्व धारणा से प्रभावित नहीं होना चाहिए। परीक्षक को अंकन करते समय विषय-वस्तु की गुणवत्ता को महत्व देना चाहिए।
अन्य सुधारः – उपरोक्त सुधारों के अतिरिक्त निम्नलिखित प्रयासों द्वारा निबन्धात्मक परीक्षा प्रणाली में अन्य महत्वपूर्ण सुधार किये जा सकते हैं-
(1) सेमेस्टर प्रणाली: निबन्धात्मक परीक्षाओं में सेमेस्टर प्रणाली लागू की जानी चाहिए। निर्दिष्ट पाठ्यक्रम या विषय-वस्तु को कई इकाइयों में विभाजित कर लिया जाता है। इन इकाइयों के सुनियोजित अध्ययन, अध्यापन एवं परीक्षा के लिए उपयुक्त काल-खण्ड का विभाजन किया जाता है। प्रत्येक सेमेस्टर के अन्त में शैक्षिक उपलब्धि का मूल्यांकन करने के लिए सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक परीक्षाओं का आयोजन किया जाना चाहिए।
(2) ग्रेड सिस्टम: – अंक में सुधार करे के लिए ग्रेड सिस्टम को अपनाना उचित है। प्राप्तांकों को उपयुक्त वर्ग- अन्तरालों या स्तर (Grade) में विभाजित किया जाता है। प्रत्येक वर्ग अन्तराल में कुंछ क्रमिक प्राप्तांक होते हैं। ग्रेड सिस्टम में कई स्तर निर्धारित किए जाते हैं, जैसे – A, A, B, B, C, C, D, D, F आदि ।
(3) एक से अधिक परीक्षकों में मूल्यांकन कराना:- अंकन को विश्वसनीय बनाने के लिए कभी-कभी एक ही उत्तर पुस्तिका का मूल्यांकन एक से अधिक परीक्षकों द्वारा कराया जाता है। दो या तीन परीक्षकों द्वारा प्रदत्त अंकों का औसत लिया जाता है जो परीक्षार्थी का वास्तविक प्राप्तांक कहलाता है। इसी संकल्पना को व्यावहारिक रूप प्रदान करने के लिए आजकल पुनर्मूल्यांकन पद्धति को विशेष महत्व दिया जा रहा है।
(4) प्रश्न बैंक: – शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु तथा छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि का मूल्यांकन करने के लिए प्रश्न बैंक बनाये जाते हैं। इसमें विभिन्न विषयों के पाठ्यक्रम के आधार पर छात्र उपलब्धि के मूल्यांकन हेतु अधिक से अधिक उपयुक्त निबन्धात्मक एवं वस्तुनिष्ठ प्रश्नों का निर्माण, चयन एवं संग्रह किया जाता है। आवश्यकता पड़ने पर इन प्रश्न बैंकों से प्रश्नों को लेकर प्रश्न-पत्रों का निर्माण किया जाता है ।
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