पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि (Agriculture Under Five Year Plans)
“भारत में कृषि का विकास सामान्य आर्थिक विकास की एक पूर्व शर्त है।
-प्रो० भट्टाचार्य
परिचय (Introduction)-आधुनिक युग में कोई भी उद्योग, चाहे वह कृषि हो या कोई चिनिर्माण उद्योग, राज्य के पूर्ण सहयोग व संरक्षण के बिना पनप नहीं सकता फिर भारत जैसे कृषि प्रधान देश में जहाँ की उन्नति तथा सभ्यता कृषि पर आधारित है, कृषि व्यवसाय का समुचित विकास करने का उत्तरदायित्व राज्य पर विशेष रूप से आ जाता है।
प्राचीन काल में भारतीय कृषि की दशा बड़ी अच्छी थी क्योंकि सम्राटों ने उसे हर प्रकार का संरक्षण प्रदान किया था। किन्तु मुगल सम्राटों के बाद कृषि का विनाश प्रारम्भ हो गया। 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश सरकार ने कृषि-सुधार योजना के सम्बन्ध में उदासीनता की नीति अपनाई जिसके परिणामस्वरूप भारतीय कृषि का पतन होता गया।
पंचवर्षीय योजनाएँ तथा कृषि– सन् 1947 में स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से राष्ट्रीय सरकार ने भारतीय कृषि के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए निरन्तर प्रयास किए हैं। सर्वप्रथम भारत सरकार ने जमींदारी प्रथा का उन्मूलन किया तथा खेतों की चकबन्दी करायी। अब देश के किसान सामन्तवादी शोषण से मुक्त हो गए हैं। सरकार ने उचित लगान का निर्धारण किया है, भूमिहीन किसानों को भूमि प्रदान की है, किसानों को ऋण सुविधाएँ प्रदान की है, विभिन्न छोटी तथा बड़ी सिंचाई योजनाएँ पूर्ण की हैं तथा पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि के विकास हेतु अपार धनराशि खर्च की है।
देश के तीव्र विकास हेतु भारत सरकार ने 1 अप्रैल, 1951 को आर्थिक नियोजन का मार्ग अपनाया। देश की विकास योजनाएँ तैयार करने तथा उनके क्रियान्वयन की समय-समय पर समीक्षा करने हेतु 15 मार्च, 1950 को भारत सरकार द्वारा योजना आयोग (Planning Commission) का गठन किया गया। योजना कार्य को पाँच वर्ष की अवधियों में बांटा गया तथा 1 अप्रैल, 1951 को देश की प्रथम पंचवर्षीय योजना प्रारम्भ की गई आर्थिक नियोजन हेतु योजना आयोग तथा राज्यों के बीच सहयोग का वातावरण बनाने के लिए भारत सरकार ने 6 अगस्त, 1952 को राष्ट्रीय विकास परिषद (National Development Council) का गठन किया। योजना आयोग द्वारा अब तक दस पंचवर्षीय योजनाएँ तथा सात वार्षिक योजनाएँ कार्यान्वित की जा चुकी हैं। देश की सभी पंचवर्षीय योजनाओं में केवल दूसरी योजना को छोड़कर) कृषि विकास को उच्च प्राथमिकता दी गई है। योजनाओं में कृषि को स्वावलम्बी तथा आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार ने यथासम्भव प्रयास किए हैं।
(1) प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56)- देश की प्रथम पंचवर्षीय योजना कृषि प्रधान योजना थी। उसमें कृषि के विकास पर सर्वाधिक ध्यान दिया गया। इस योजनावधि में कृषि विकास पर 341 करोड़ ₹, सिंचाई कार्यों पर 170 करोड़ ₹. पशु सुधार पर 53 करोड़ ₹ तथा बाढ़ नियन्त्रण पर 105 करोड़ ₹ व्यय किए गए। सन् 1952 में अधिक अन्न उपजाओ आन्दोलन प्रारम्भ किया गया।
प्रथम योजना में कृषि के विकास को सर्वाधिक महत्त्व मुख्यतः दो कारणों से दिया गया (1) देश के विभाजन का खाद्यान्न, कपास, जूट आदि फसलों के उत्पादन पर कुप्रभाव पड़ा तथा (2) यह अनुभव किया गया कि देश के समुचित औद्योगिक विकास हेतु कृषि का विकास परमावश्यक है। इस योजनावधि में कृषि उत्पादन में 18% की वृद्धि हुई इस योजना में खाद्यान्नों का उत्पादन लक्ष्य 616 लाख टन था जबकि वास्तविक उत्पादन 695 लाख टन हुआ। इस प्रकार योजनावधि में खायात्र का उत्पादन लक्ष्य से अधिक हुआ। कृषि उत्पादन की वृद्धि दर 4.2 प्रतिशत प्रतिवर्ष तथा अनाज के उत्पादन की वृद्धि दर 5.2 प्रतिशत प्रतिवर्ष रही। कृषि वस्तुओं का मूल्य सूचकांक 100 (1952-53) से घटकर 92.8 रह गया। व्यापारिक फसलों में कपास तथा तिलहन के उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि हुई।
(2) द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-61)- इस योजनायचि में वैसे तो उद्योगों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई किन्तु कृषि-उत्पादन में वृद्धि करने पर भी पर्याप्त ध्यान दिया गया। द्वितीय योजना में कृषि विकास पर 549 करोड़ ₹ और सिंचाई व बाढ़ नियन्त्रण पर 430 करोड़ ₹ व्यय किए गए। दूसरी योजना में कृषि पर सार्वजनिक क्षेत्र के कुल व्यय का 21% भाग खर्च किया गया जबकि प्रथम योजना में यह प्रतिशत 37 था।
योजनाकाल में 159 लाख एकड़ भूमि सिंचाई क्षेत्र में लाई जा सकी। इस योजना काल में कृषि उत्पादन में वृद्धि तो अवश्य हुई किन्तु यह वृद्धि निर्धारित लक्ष्य से कम रही। इस योजनावधि में खाद्यान्नों का उत्पादन 18.8% कपास का 32.5%, गधे का 73.7% तथा तिलहन का 20% बढ़ा। पटसन के उत्पादन में 9% की कमी हुई। कुल मिलाकर उत्पादन 21.8% बढ़ा तथा भूमि की उत्पादकता में 15.8% की वृद्धि हुई। कृषि क्षेत्र में 5% की वृद्धि हुई। कृषि उत्पादन में वृद्धि दर कम होने के कारण अनाज की कीमतें 16.3% बढ़ गई।
(3) तृतीय पंचवर्षीय योजना (1961-66)- दूसरी योजनावधि में कृषि के क्षेत्र में वांछित सफलता प्राप्त नहीं हो सकीं, इसलिए तीसरी योजना में कृषि के विकास पर पुनः विशेष ध्यान दिया गया। कृषि विकास पर इस योजनावधि में 1,954 करोड़ रुपये खर्च किए गए। सन् 1962 में चीन से संघर्ष, सन् 1965 में पाकिस्तान से संघर्ष, मौसम की प्रतिकूलता आदि बातों के कारण इस योजना के कृषि-लक्ष्य प्राप्त नहीं किए जा सके। अनाज का उत्पादन लक्ष्य 1.016 लाख टन या किन्तु वास्तव में उत्पादन 723 लाख टन ही हुआ जो दूसरी योजना के उत्पादन से भी कम था योजनावधि में कृषि उत्पादन की वृद्धि दर 1% तथा खाद्यान्न उत्पादन की वृद्धि दर 2% रही।
(4) तीन एकवर्षीय योजनाएँ (1966-69)– सन् 1966 से चौथी योजना प्रारम्भ की जानी थी। किन्तु कई कारणों से चौथी योजना को स्थगित करना पड़ा और 1966-67 1967-68 तथा 1968-69 में तीन एकवर्षीय योजनाएँ पूर्ण की गई।
(i) पहली एकवर्षीय योजना (1966-67) इस योजना में कृषि के विकास पर 334 करोड़ ₹ व्यय किए गए। योजना कृषि सम्बन्धी लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकी खायान्त्र का उत्पादन लक्ष्य 970 लाख टन था जबकि वास्तव में उत्पादन 742 लाख टन हुआ।
(ii) दूसरी एकवर्षीय योजना (1967-68)- इस योजना में कृषि के विकास पर 454 करोड़ ₹ खर्च किए गए। कृषि उत्पादन की दृष्टि से यह योजना अत्यधिक सफल रही। अनाज का उत्पादन 742 लाख टन से बढ़कर एकदम 950 लाख टन हुआ। इस वर्ष से ही देश में कृषि के क्षेत्र में ‘हरित क्रान्ति’ प्रारम्भ हुई। योजनावधि में नई कृषि नीति अपनाई गई।
(iii) तीसरी एकवर्षीय योजना (1968-69)- इस योजनावधि में कृषि के विकास पर 319 करोड़ ₹ व्यय किए गए। इस वर्ष भी नई कृषि नीति को जारी रखा गया। खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य 1,020 लाख टन था जबकि वास्तविक उत्पादन 980 लाख टन हुआ। कपास, पटसन आदि व्यापारिक फसलों के लक्ष्य भी प्राप्त नहीं किए जा सके।
(5) चतुर्थ पंचवर्षीय योजना (1969-74)- इस योजना में प्राथमिकता की दृष्टि से कृषि को तीसरा स्थान दिया गया तथा कृषि व उससे सम्बन्धित मदों पर 3,674 करोड़ ₹ व्यय करने की व्यवस्था की गई। इस योजना के प्रमुख कृषि-लक्ष्य इस प्रकार थे- (1) खायात्र के उत्पादन में जात्मनिर्भरता प्राप्त करना, (2) खाद्यान्न तथा जन्य आयातों में कमी करना (3) अगले दस वर्षों में 5% की दर से वृद्धि करना, तथा (4) किसानों तथा अन्य ग्रामवासियों को विकास कार्यों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना चतुर्थ योजना में खाद्यात्रों के उत्पादन के लक्ष्य 1,200 लाख टन, पटसन का 74 लाख टन, कपास का 80 लाख टन तथा तिलहन का 150 लाख टन रखा गया। किन्तु 1971 में भारत-पाक युद्ध, व्यापक सूखा, तेल संकट आदि विपरीत परिस्थितियों के कारण योजना के अधिकांश उत्पादन लक्ष्य अपूर्ण रहे।
योजना के अन्तिम वर्ष में खाद्यात्र का वास्तविक उत्पादन 1,040 लाख टन ही रहा। चौथी योजना में कृषि उत्पादन की वृद्धि दर 3.2% प्रतिवर्ष तथा खाद्यान्न उत्पादन की वृद्धि दर 2.8% रही।
(6) पाँचवीं पंचवर्षीय योजना (1974-78)- इस योजना का कार्यकाल पहले पाँच वर्ष का था किन्तु बाद में इसका कार्यकाल घटाकर चार वर्ष कर दिया गया। इस योजना में कृषि विकास तथा सिंचाई पर 8,742 करोड़ ₹ व्यय किए गए जो सार्वजनिक क्षेत्र के कुल व्यय का 22% था। पाँचवीं योजना के कृषि सम्बन्धी अधिकांश लक्ष्य प्राप्त कर लिए गए थे। लायात्र उत्पादन का लक्ष्य 1,250 लाख टन था वास्तविक उत्पादन 1,320 लाख टन हुआ कपास की उत्पादन 80 लाख गाँठे तथा जूट का उत्पादन 83 लाख गाँठें हुआ। योजनावधि में कृषि उत्पादन की वृद्धि दर 4.6% प्रतिवर्ष तथा खाद्यात्र उत्पादन की वृद्धि दर 5.4% प्रतिवर्ष थी।
(7) छठी पंचवर्षीय योजना (1980-85)- पांचवीं योजना को समय से एक वर्ष पूर्व 31 मार्च, 1978 को समाप्त कर दिया गया। उसके बाद छठी योजना को तुरन्त भली-भांति लागू नहीं किया जा सका। बाद में संशोधित छठी योजना को 1 अप्रैल, 1980 से लागू किया गया।
छठी योजना में कृषि तथा ग्रामीण विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई। इस योजना में कृषि विकास पर 6,623 करोड़ ₹, ग्रामीण विकास पर 6,997 करोड़ ₹ तथा सिंचाई पर 10,930 करोड़ ₹ व्यय किए गए। छठी योजना में खायात्र का उत्पादन लक्ष्य 1,540 लाख टन था जबकि योजना के अन्तिम वर्ष में खायात्र का वास्तविक उत्पादन 460 लाख टन हुआ। कपात का उत्पादन 85 लाख गाँठ तथा जूट का 80 लाख गाँठे हुआ। योजना के अन्त में 629 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई सुविध आएँ उपलब्ध कराई जा सकी जबकि लक्ष्य 879 लाख हेक्टेयर भूमि का था। इस योजनावधि में कृषि उत्पादन की वृद्धि दर 4.3% रही। कृषि क्षेत्र के लिए विकास दर 4% वार्षिक तय की गई। इस योजना में छोटे तथा सीमान्त किसानों तथा भूमिहीन श्रमिकों के उत्थान पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया।
(8) सातवीं पंचवर्षीय योजना (1885-90)– सातवीं योजना में कृषि के विकास पर 12,793 करोड़ ₹, ग्रामीण विकास पर 15,246 करोड़ ₹ तथा सिंचाई व बाढ़ नियन्त्रण पर 16,590 करोड़ ₹ व्यय किए गए सातवीं योजना के कुल व्यय का लगभग 21 प्रतिशत भाग कृषि विकास पर खर्च किया गया। इस योजनावधि में कृषि क्षेत्र की वार्षिक विकास दर 4 प्रतिशत रही। योजना में कृषि सम्बन्धी क्षेत्रीय असन्तुलन दूर करने पर विशेष बल दिया गया।
सातवीं योजना में खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य 1,800 लाख टन था किन्तु योजना के अन्त में खाद्यान्न उत्पादन वास्तव में, 1,727 लाख टन ही हो पाया। कपास का उत्पादन लक्ष्य 95 लाख गाँठे था जबकि वास्तविक उत्पादन 114 गाँठे टन हुआ। जूट के उत्पादन का लक्ष्य 95 लाख गाँठे तथा गन्ने के उत्पादन का लक्ष्य 2,170 लाख टन निर्धारित किया गया किन्तु वास्तविक उत्पादन क्रमशः 84 लाख गाँठें तथा 2,104 लाख टन हुआ।
सातवीं योजना में सिंचाई क्षमता को बढ़ाकर 810 लाख हेक्टेयर करना था। किन्तु वास्तव में 791 लाख हेक्टेयर भूमि पर ही सिंचाई की व्यवस्था की जा सकी। योजनाबवि में सिंचाई की छोटी योजनाओं के विकास को अधिक महत्त्व दिया गया। इसके अतिरिक्त, योजनावधि में भूमि सुधारों को लागू करने के लिए विशेष प्रयत्न किए गए। साथ ही कृषि क्षेत्र में रोजगार के अधिक अवसर प्रदान करने की व्यवस्था की गई।
(9) आठवीं योजना (1992-97) में कृषि विकास – आठवीं योजना 1 अप्रैल, 1992 से लागू की जा सकी। इस योजनावधि में कृषि विकास पर 22,467 करोड़ ₹, ग्रामीण विकास पर 34,425 करोड़ ₹, विशेष क्षेत्रीय प्रोग्राम पर 6,750 करोड़ र तथा सिंचाई व बाढ़ नियन्त्रण पर 32,525 करोड़ ₹ व्यय करने का प्रस्ताव था। इस प्रकार कृषि क्षेत्र पर कुल व्यय का 22% भाग व्यय किया जाना था। इस योजना का मुख्य उद्देश्य खाद्य पदार्थों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने तथा कृषि-पदार्थों का निर्यात करने के उद्देश्य से अधिक उत्पादन करने के लिए कृषि का विकास तथा विविधीकरण करना था।
प्रमुख लक्ष्य- आठवी योजना के अन्त तक खायात्र का उत्पादन 2,100 लाख टन, गन्ने का उत्पादन 2,750 लाख टन, कपास का उत्पादन 140 लाख गाँठे तथा जूट का उत्पादन 95 लाख गाँठे करने का लक्ष्य रखा गया था।
कृषि नीति की मुख्य विशेषताएँ- आठवीं योजना में कृषि क्षेत्र में निम्न कार्य किए गए-
(1) कृषि उत्पादन के विविधीकरण पर ध्यान दिया गया (2) भूमि का वैज्ञानिक प्रबन्ध किया गया जिससे भूमि कटाव से बचा जा सके। (3) कृषि की विकसित तकनीकों का प्रयोग किया गया (4) उपलब्ध जल-संसाधनों के उचित प्रयोग पर बल दिया गया। (5) कृषि उत्पादन तथा उत्पादकता में वृद्धि करने के लिए भूमि सुधारों को उचित महत्त्व दिया गया (6) कृषि-पदार्थों की विपणन-प्रणाली को अधिक संगठित तथा सुदृढ़ किया गया। [7) कृषि की दृष्टि से पिछड़े पूर्वी क्षेत्र के विकास के लिए विशेष प्रयत्न किए गए। (8) पंचायतों तथा सहकारिताओं को मजबूत करने के प्रयास किए गए। (9) कृषि-पदार्थों पर आधारित उद्योगों, विशेष रूप से दुग्ध उद्योग, का विस्तार किया गया।
(10) नवीं योजना (1997-2002) में कृषि विकास- जनवरी 1999 में संशोधित नवीं योजना के अनुसार कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्र के विकास पर 37,546 करोड़ ₹, ग्रामीण विकास पर 73,439 करोड़ ₹ तथा सिंचाई एवं बाढ़ नियन्त्रण पर 55,598 करोड़ ₹ व्यय होने का अनुमान था। इस प्रकार इन कार्यक्रमों पर योजना के कुल व्यय का 19.8 व्यय किया जाना था। इस योजना में कृषि क्षेत्र में निम्न कार्य किए जाने थे—(1) योजना में कृषि क्षेत्र हेतु 4.5% वार्षिक वृद्धि दर का लक्ष्य रखा गया। (ii) कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए नीतियाँ निर्धारित की जानी थीं। (iii) नीची उत्पादकता वाले पूर्वी प्रदेशों में उत्पादकता बढ़ाने पर विशेष ध्यान देना (iv) फसलों के विविधीकरण, कृषिगत प्रोसेसिंग क्रियाओं, जलभराव वाले क्षेत्रों में जल संरक्षण, कृषिगत निर्यात में वृद्धि आदि बातों पर विशेष ध्यान देना। (v) छोटे व सीमान्त किसानों की सुरक्षा हेतु फसल बीमा को अधिक महत्त्व दिया जाना था। (vi) कृषकों को खेती की वैज्ञानिक विधि की शिक्षा देने के लिए विशेष प्रयत्न किए जाने थे। (vii) कृषि सम्बन्धी अन्य क्रियाओं (बागान, पशुपालन, फल व सब्जियों का उत्पादन आदि) को अधिक महत्त्व दिए जाने का लक्ष्य था।
(11) दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002-07)- दसवी योजना में कृषि विकास हेतु 58,933 करोड़ ₹ तथा सिंचाई व बाढ़ नियन्त्रण के लिए 1,03,375 करोड़ ₹ का प्रावधान किया गया। योजना में कृषि तथा सम्बन्धित कार्यों में 3.97% विकास दर प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया।
दसवीं योजना के कृषि सम्बन्धी प्रमुख लक्ष्य इस प्रकार थे—(1) व्यापक भूमि उपयोग नीति, (ii) कृषि विस्तार को सुदृढ़ करना, (III) सिंचाई और ग्रामीण सड़कों में अधिक सरकारी निवेश, (iv) चकबन्दी पर विशेष ध्यान, (v) सब्सीडियों को युक्तिसंगत बनाना, (vi) कृषि आधारित तथा ग्रामीण उद्योगों पर से लाइसेंसिंग नियन्त्रण हटाना आदि।
दृष्टिकोण-पत्र में कृषि विकास को योजना का मुख्य तत्व बनाने, उच्च रोजगार अवसर वाले क्षेत्रों में तीव्र विकास को बढ़ावा देने की व्यवस्था की गई। योजना में पंचायती राज संस्थाओं, गरीबी उन्मूलन योजनाओं की प्रक्रिया में सुधार और शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार सम्बन्धी जबाबदेही की व्यवस्था की गई।
(12) ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-12)- इस योजना के कृषि तथा ग्रामीण विकास सम्बन्धी प्रमुख लक्ष्य निम्नांकित हैं—(1) कृषि क्षेत्र के लिए विकास दर 4 प्रतिशत तय की गई है। (ii) सभी गाँवों एवं गरीबी रेखा से नीचे के सभी परिवारों के लिए सन् 2009 तक विद्युत सुनिश्चित करना। नवम्बर 2007 तक सभी गाँवों में टेलीफोन तथा वर्ष 2012 तक सभी गाँवों में ब्रॉडवैण्ड सुविधा उपलब्ध कराना। (iv) सन् 2016-17 तक सभी ग्रामीण निर्धनों को आवास उपलब्ध कराना। (v) सन् 2009 तक 1,000 जनसंख्या वाले गाँवों में सभी मौसमों के लिए पक्की सड़कें सुनिश्चित करना।
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