प्रत्यक्षीकरण से आप क्या समझते हैं ? प्रत्यक्षीकरण की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। बालक की शिक्षा में प्रत्यक्षीकरण का क्या महत्व है ?
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प्रत्यक्षीकरण का अर्थ व स्वरूप (Meaning & Nature of Perception)
प्रत्यक्षीकरण एक मानसिक प्रक्रिया है, संवेदना द्वारा प्राप्त ज्ञान में अर्थ नहीं होता, जबकि प्रत्यक्षीकरण में अर्थ निहित होता है। इसीलिए प्रत्यक्षीकरण द्वारा जो ज्ञान प्राप्त होता है, उसे सविकल्प प्रत्यक्ष भी कहते हैं।
जब बालक कोई आवाज पहली बार सुनता है, तब उसे उसका कोई पूर्व अनुभव नहीं होता है। वह यह नहीं जानता है कि आवाज किसकी है और कहाँ से आ रही है। आवाज के इस प्रकार के ज्ञान को ‘संवेदना‘ कहते हैं।
समय के साथ-साथ बालक का अनुभव बढ़ता जाता है। वह आवाज को दूसरी या तीसरी बार सुनता है। अब वह जानता है कि आवाज किसकी है और कहाँ से आ रही है। उसका अनुभव उसे बताता है कि आवाज सड़क पर भौंकने वाले कुत्ते की है। आवाज के इस प्रकार के ज्ञान को ‘प्रत्यक्षीकरण’ अथवा ‘प्रत्यक्ष ज्ञान’ कहते हैं। दूसरे शब्दों में, पूर्व- अनुभव के आधार पर संवेदना की व्याख्या करना या उसमें अर्थ जोड़ना “प्रत्यक्षीकरण” है।
‘प्रत्यक्षीकरण’ का पूर्व-ज्ञान या पूर्व अनुभव से स्पष्ट सम्बन्ध होता है। इसीलिए, इसको ज्ञान प्राप्ति की दूसरी सीढ़ी और पिछले अनुभव से सम्बन्धित माना जाता है।
हम ‘प्रत्यक्षीकरण’ के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाएँ दे रहे हैं; यथा-
1. जलोटा- “प्रत्यक्षीकरण वह मानसिक प्रक्रिया है, जिससे हमको बाह्य जगत की वस्तुओं या घटनाओं का ज्ञान प्राप्त होता है।”
“Perception is that mental process by which we get knowledge of objective facts.” – Jalota
2. वुडवर्थ- “प्रत्यक्षीकरण इन्द्रियों की सहायता से पदार्थ और बाह्य घटनाओं या तथ्यों को जानने की क्रिया है।”
“Perception is the process of getting to know objects and objective facts by use of the senses.” – R. S. Woodworth
3. रायबर्न – “अनुभव के अनुसार संवेदना की व्याख्या की प्रक्रिया को प्रत्यक्षीकरण कहते हैं।”
“The process of interpretation of sensation according to experience is known as perception.” – Ryburn
4. जेम्स- “प्रत्यक्षीकरण विशेष रूप से अभौतिक पदार्थों की चेतना है, जो ज्ञानेन्द्रियों के सामने रहते हैं।”
“Perception is the consciousness of particular material things present to senses.” -James
5. भाटिया- “प्रत्यक्षीकरण, संवेदना और अर्थ का योग है। प्रत्यक्षीकरण संवेदना और विचार का योग है।”
“Perception is sensation plus meaning. Perception is sensation plus thought.” (Perception = Sensation + Meaning. Perception = Sensation + Thought). – Bhatia
प्रत्यक्षीकरण का विश्लेषण (Analysis of Perception)
जलोटा Jalota का कथन है- “प्रत्यक्षीकरण एक पूर्ण मानसिक प्रक्रिया है।” (“Perception is a complete mental process.”) इस प्रक्रिया का विश्लेषण निम्न प्रकार से किया जा सकता है-
- वस्तु का ज्ञानेन्द्रियों को प्रभावित करना।
- ज्ञानवाहक तन्तुओं का वस्तु के ज्ञान या अनुभव को मस्तिष्क के ज्ञान केन्द्र में पहुँचाना।
- संवेदना में अर्थ जोड़ना
- वस्तु या उत्तेजक (Stimulus) का होना ।
- प्रत्यक्षीकरण का होना।
- ज्ञानेन्द्रियों का ज्ञानवाहक तन्तुओं को प्रभावित करना।
- संवेदना उत्पन्न होना।
संवेदना व प्रत्यक्षीकरण में अन्तर (Distinction between Sensation & Perception)
संवेदना तथा प्रत्यक्षीकरण एक-दूसरे के पूरक हैं, अतः इनके सम्बन्ध तथा अन्तर को जानना आवश्यक है। यह अन्तर इस प्रकार है-
1. संवेदना, ज्ञान प्राप्ति की पहली सीढ़ी है; प्रत्यक्षीकरण दूसरी सीढ़ी है।
2. संवेदना में मानसिक क्रिया का रूप सरल और प्रारम्भिक होता है; प्रत्यक्षीकरण में जटिल और विकसित होता है।
3. संवेदना हमको ज्ञान का कच्चा माल देती है; प्रत्यक्षीकरण उस ज्ञान को संगठित रूप प्रदान करता है।
4. स्टर्ट एवं ओकडन (Sturt and Oakden) के अनुसार-संवेदना किसी वस्तु का तात्कालिक अनुभव देती है; प्रत्यक्षीकरण पूर्व-ज्ञान के आधार पर इस अनुभव की व्याख्या करता है।
5. संवेदना में मस्तिष्क निष्क्रिय रहता है; प्रत्यक्षीकरण में सक्रिय रहता है।
6. जेम्स (James) के अनुसार संवेदना किसी वस्तु का केवल परिचय देती है, प्रत्यक्षीकरण उस वस्तु का ज्ञान प्रदान करता है।
7. संवेदना का पूर्व अनुभव से कोई सम्बन्ध नहीं होता है; प्रत्यक्षीकरण का होता है।
8. संवेदना की मानसिक प्रक्रिया में केवल एक तत्व होता है— अनुभव; प्रत्यक्षीकरण की मानसिक प्रक्रिया में दो तत्व होते हैं किसी वस्तु को देखना और उसका अर्थ लगाना
9. संवेदना द्वारा प्राप्त ज्ञान अस्पष्ट और अनिश्चित होता है; प्रत्यक्षीकरण द्वारा प्राप्त ज्ञान स्पष्ट और निश्चित होता है।
10. भाटिया (Bhatia) के अनुसार-संवेदना किसी वस्तु के रंग, स्वाद, गंध आदि के समान गुण को बताती है; प्रत्यक्षीकरण, वस्तु और गुण में सम्बन्ध स्थापित करता है।
प्रत्यक्षीकरण की विशेषताएँ (Characteristics of Perception)
प्रत्यक्षीकरण एक महत्वपूर्ण मानसिक क्रिया है। ज्ञानार्जन एवं अनुभव प्राप्ति में इसका अत्यधिक महत्व है। प्रत्यक्षीकरण की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
1. प्रत्यक्षीकरण में परिवर्तन ( Change in Perception) – बोरिंग, लैंगफील्ड एवं वील्ड (Boring, Langfeld & Weld) के अनुसार- “प्रत्यक्षीकरण का आधार परिवर्तन है।” दूसरे शब्दों में, परिवर्तन के कारण ही हमें प्रत्यक्षीकरण होता है। यदि हमारे वातावरण में परिवर्तन हो जाता है, तो हमें उसका अनुभव अवश्य होता है; उदाहरणार्थ, जून के माह में सड़क पर चलते समय हमें बहुत गर्मी लगती है। यदि उसके बाद हम ठण्डे कमरे में प्रवेश करते हैं, तो हमको सड़क की गर्मी का तनिक भी अनुभव नहीं होता है।
2. प्रत्यक्षीकरण में संगठन (Organisation in Perception) – प्रत्यक्षीकरण में संगठन की विशेषता होती है। कभी-कभी मस्तिष्क को एक ही समय में विभिन्न ज्ञानेन्द्रियों द्वारा अनेक वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त होता है। ऐसे अवसर पर वह उन वस्तुओं में से अधिक महत्वपूर्ण को एक समूह में संगठित कर लेता है। उदाहरणार्थ, यदि एक मनुष्य एक ही समय में बहुत-से वृक्ष और झाड़ियाँ देखता है, तो उसे वृक्षों का समूह के रूप में प्रत्यक्षीकरण होता है।
3. प्रत्यक्षीकरण में पूर्ण स्थिति का ज्ञान (Knowledge Complete Situation) – झा ने लिखा है-“प्रत्यक्षीकरण की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है- पूर्णता के नियम का कार्य करना।” इसका अभिप्राय यह है कि प्रत्यक्षीकरण में हमें पूर्व स्थिति या सब वस्तुओं का इकट्ठा ज्ञान होता है, उसके अलग-अलग अंगों का नहीं; उदाहरणार्थ, यदि किसी स्थान पर आठ बेल बँधे हुए हैं और हम किसी से पूछें कि कितने बैल हैं, तो उसका स्वाभाविक उत्तर होगा-चार जोड़ी बैल।
4. प्रत्यक्षीकरण में अर्थ (Meaning in Perception)- जलोटा (Jalota) के शब्दों में-“प्रत्यक्षीकरण में सदैव कुछ-न-कुछ अर्थ होता है।” हमें जिस वस्तु का प्रत्यक्षीकरण होता है, उसके बारे में हम कुछ अवश्य जानते हैं। उदाहरणार्थ, हम एक आवाज सुनते हैं। उसे सुनकर हम जान जाते हैं कि आवाज किस चीज की है-साइकिल की घण्टी की, हॉर्न की या और किसी चीज की।
5. प्रत्यक्षीकरण में चुनाव ( Selection in Perception)- बोरिंग, लैंगफील्ड एवं वील्ड (Boring, Langfeld & के अनुसार – “प्रत्यक्षीकरण की एक दूसरी सामान्य विशेषता यह है कि यह चुनाव करता है।” हमें एक ही समय Weld) में अनेक वस्तुओं का प्रत्यक्षीकरण होता है। पर हम उनमें से केवल एक का चुनाव करते हैं और उसी पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं। इस चुनाव में अनेक तत्व सहायता देते हैं; जैसे-हमारी इच्छा, प्रेरणा, वस्तु या घटना की नवीनता और आकर्षण ।
6. प्रत्यक्षीकरण में अन्तर (Difference in Perception) – एलिस को (Alice Crow) के अनुसार-“व्यक्तिगत विभिन्नताओं के कारण व्यक्तियों के प्रत्यक्षीकरण में अन्तर होता है।” यदि दो व्यक्ति एक ही समय में किसी वस्तु या घटना को देखते हैं, तो उनकी रुचियों, गत अनुभवों, शारीरिक दशा, ध्यान की मात्रा आदि में अन्तर होने के कारण उनके प्रत्यक्षीकरण में अन्तर होता है।
प्रत्यक्षीकरण का शिक्षा में महत्व (Importance of Perception in Education)
वर्तमान समय में सभी शिक्षा शास्त्री प्रत्यक्षीकरण या प्रत्यक्ष ज्ञान के महत्व और उपयोगिता को स्वीकार करते हैं। इसीलिए, बेसिक विद्यालयों, मॉन्टेसरी स्कूलों और इसी प्रकार की अन्य शिक्षा संस्थाओं की व्यवस्था दिखाई देती है। बालक की शिक्षा में प्रत्यक्ष ज्ञान का क्या महत्व है, इस पर हम निम्नलिखित पंक्तियों में प्रकाश डाल रहे हैं-
1. प्रत्यक्षीकरण, बालक के विचारों का विकास करता है।
2. रेबर्न (Reyburn) के अनुसार- “प्रत्यक्षीकरण, व्याख्या करने की प्रक्रिया है। अतः यह बालक को व्याख्या करने के योग्य बनाता है।”
3. प्रत्यक्षीकरण, बालक की स्मृति और कल्पना की प्रक्रियाओं को क्रियाशील बनाता है। फुटबाल का मैच देखने के बाद ही बालक उस पर कुशलतापूर्वक निबन्ध लिख सकता है।
4. भाटिया (Bhatia) के अनुसार- “प्रत्यक्षीकरण, ज्ञान का वास्तविक आरम्भ है। इस ज्ञान प्राप्ति में ज्ञानेन्द्रियों का मुख्य स्थान है। अतः बालक की ज्ञानेन्द्रियों का उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।”
5. बालक के प्रत्यक्षीकरण का विकास करने के लिए उसे अपने आस-पास के वातावरण, संग्रहालय, प्रसिद्ध इमारतों और अन्य उपयोगी स्थानों को देखने के अवसर दिए जाने चाहिएँ।
6. बालक के प्रत्यक्षीकरण का विकास करने के लिए शिक्षक को पढ़ाते समय विविध प्रकार की शिक्षण सामग्री का प्रयोग करना चाहिए।
7. प्रत्यक्षीकरण, बालक के ज्ञान को स्पष्टता प्रदान करता है।
8. बालक के प्रत्यक्षीकरण का विकास करने के लिए उसे “स्वयं-क्रिया” द्वारा ज्ञान प्राप्त करने वास्तविक वस्तुओं का प्रयोग करने और बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
9. रेबर्न ( Reyburn ) के अनुसार — “प्रत्यक्षीकरण, बालक को ध्यान केन्द्रित करने को प्रशिक्षण देता है।”
10. प्रत्यक्षीकरण, बालक को विभिन्न बातों का वास्तविक ज्ञान देता है। अतः उसका परोक्ष ज्ञान प्रभावपूर्ण बनता है।
11. प्रत्यक्षीकरण का आधार ज्ञानेन्द्रियाँ हैं। अतः बालक की ज्ञानेन्द्रियों को सबल रखने और स्वस्थ बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए ।
12. डम्ब्लि (Dumville) के अनुसार-“प्रत्यक्षीकरण और गति में बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध है। अतः बालक के प्रत्यक्षीकरण का विकास करने के लिए उसे शारीरिक गतियाँ करने के अवसर दिए जाने चाहिएँ। इस उद्देश्य से खेल-कूद, दौड़-भाग आदि की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए।”
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