राजनीति विज्ञान / Political Science

प्रत्यर्पण से आप क्या समझते हैं? प्रत्यर्पण के आवश्यक तत्व, कठिनाइयाँ एंव शर्तें 

प्रत्यर्पण से आप क्या समझते हैं? प्रत्यर्पण के आवश्यक तत्व, कठिनाइयाँ एंव शर्तें 
प्रत्यर्पण से आप क्या समझते हैं? प्रत्यर्पण के आवश्यक तत्व, कठिनाइयाँ एंव शर्तें 

प्रत्यर्पण से आप क्या समझते हैं? प्रत्यर्पण की आवश्यक दशायें कौन-कौन सी हैं? निर्णीत वादों का उदाहरण दीजिए। 

प्रत्यर्पण (Extradition) 

सामान्यतः ऐसा होता है कि व्यक्ति भीषण अपराध करने के पश्चात दण्ड से बचने हेतु दूसरे देश में भाग जाता है। जब कोई व्यक्ति आपराधिक कार्य करने के पश्चात दण्ड से बचने के लिए दूसरे देश में शरण लेता है तब पूर्व देश की प्रार्थना पर दूसरे देश के द्वारा उस अपराधी को उसे सौंपना प्रत्यर्पण का सामान्य अर्थ होता है “सौंप देना”।

प्रत्यर्पण का अर्थ ‘ सौंप देना’ है। प्रत्यर्पण को विद्वानों ने निम्नत: परिभाषित किया है प्रो. स्टॉर्क के अनुसार, “यह एक ऐसी प्रकृति है, जिससे एक राज्य दूसरे राज्य की प्रार्थना पर उस व्यक्ति को सौंपता है, जो इसकी प्रार्थना करने वाले राज्य के प्रदेश में किसी अपराध में अभियुक्त (accused) है या उसके द्वारा दण्डित अथवा अपराधी ठहराया जा चुका है अथवा | उसे तथाकथित अपराधी पर विचार करने का अधिकार है।”

प्रो. लारेंस के मतानुसार, “प्रत्यर्पण एक राज्य द्वारा दूसरे राज्य के लिये ऐसे मनुष्य को अर्पण करना है, जो प्रथम राज्य-क्षेत्र में विद्यमान है और उस पर यह आरोप है कि उसने दूसरे राज्य के प्रदेश में अपराध किया है या दूसरे राज्य-क्षेत्र से बाहर अपराध करने पर भी वह इसका नागरिक होने के नाते इस प्रदेश के कानून के अनुसार इसके क्षेत्राधिकार में आता है। ” प्रो. ओपेनहाइम के अनुसार, “अपराधी (व्यक्ति) को जिस देश में उसने अपराध किया है अथवा अभियुक्त है, उस देश द्वारा जहाँ वह अपराध करने के पश्चात शरण लिये है लौटा देना ‘प्रत्यर्पण’ है।”

प्रसिद्ध न्यायाधीश फुलर ने Terlinden Vs. Anres के मामले में अवधारित किया कि, “प्रत्यर्पण एक ऐसे व्यक्ति का एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र को सौंपना है, जो इसकी सीमा के बाहर, किन्तु दूसरे राष्ट्र के प्रादेशिक क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत कोई अपराध करता है या किसी भी अपराध में अभियुक्त हो चुका है और उस दूसरे राष्ट्र को इसकी जाँच करने तथा दण्ड देने की सामर्थ्य प्राप्त है।”

प्रत्येक राज्य का सामान्य उद्देश्य अपराधी को यथेष्ट दण्ड देना है। जिस देश में अपराधी अपराध करता है, उस देश में ही वाद संस्थित करना अधिक उपयुक्त समझा गया है, क्योंकि वहाँ अपराधी के विरुद्ध साक्ष्य आसानी से प्राप्त हो जाता है। इसके विपरीत साक्ष्य सरलता से प्राप्त नहीं हो पाता है।

प्रत्यर्पण के आवश्यक तत्व

उपर्युक्त सभी परिभाषाओं के विश्लेषण (analysis) से प्रत्यर्पण में निम्नलिखित तत्व पाये जाते हैं-

  1. दोषी व्यक्ति के समर्पण की माँग की जाए।
  2. राजनीतिक, सैनिक एवं धार्मिक अपराध के लिए प्रत्यर्पण लागू नहीं होता।
  3. जिस राज्य क्षेत्र में अपराधी द्वारा अपराध किया जाता है, उसे उसी राज्य को समर्पित किया जाता है।
  4. समर्पित करने वाले व समर्पण किये जाने वाले दोनों राज्यों में इसे अपराध माना जाना चाहिए।
  5. यह अपराध साधारण साक्ष्य से ही अपराध माना जाना चाहिए।
  6. प्रत्यर्पण की कार्यवाही पुलिस द्वारा होती है।

प्रत्यर्पण की कठिनाइयाँ

साधारण रूप से प्रत्यर्पण हेतु दो प्रमुख कठिनाइयाँ हैं-

  1. यह कि प्रत्येक राज्य ने सुविधा के अनुसार प्रत्यर्पण की विभिन्न परिभाषाएँ दी हैं।
  2. यह कि राजनीतिक अपराध प्रत्यर्पण के क्षेत्र से बाहर माना जाता है।

प्रत्यर्पण की प्रमुख शर्तें 

निम्नलिखित आवश्यक शर्तों के आधार पर भागे हुये अपराधी को प्राप्त करने के लिए उस राज्य से प्रार्थना करने का अधिकार है, जिसने कि उस व्यक्ति को शरण दे रखी है-

(1) राजनीतिक अपराधी (Political Offenders) – व्यक्ति द्वारा किया गया अपराध राजनीतिक स्वरूप का नहीं होना चाहिए, ऐसा अपराध प्रत्यर्पित नहीं किया जायेगा। कैस्टिओनी वाद, (1891) में कैस्टिओनी ने, जो स्विट्जरलैण्ड का निवासी था, वहाँ एक राजनीतिक विप्लव में भाग लिया और एक नगरपालिका के सदस्य की हत्या कर दी। प्रत्यर्पण सम्बन्धी प्रक्रिया स्विट्जरलैण्ड की ओर से प्रचालित हुई। मजिस्ट्रेट ने कैस्टिओनी को कारागृह में डाल दिया और यह मत प्रकट किया कि स्विट्जरलैण्ड में उसके द्वारा किया गया अपराध राजनीतिक स्वरूप का नहीं था। उसने बन्दी प्रत्यक्षीकरण लेख (Habeas corpus writ) हेतु आवेदन किया, जो खण्ड न्यायालय द्वारा जारी किया गया था। क्वीन्स बैंच डिवीजन ने कैस्टिओनी को इस आधार पर मुक्त कर दिया कि उसका अपराध राजनीतिक स्वरूप का था और उसने उसका स्विट्जरलैण्ड को प्रत्यर्पण आदेश देने से मना कर दिया।

Ke Meunier, (1984) के वाद में Justice Cave ने कहा कि, “राजनीतिक अपराध हुतु मुझे यह आवश्यक प्रतीत होता है कि राष्ट्र में दो या दो से अधिक राजनीतिक दल हों जो में अपनी सरकार वहाँ बनाना चाहते हों और यदि इस उद्देश्य को प्राप्त करने हेतु अपराध किसी एक दल द्वारा किया जाता है तो यह एक राजनैतिक अपराध होगा, अन्यथा नहीं।” अत: यह अराजकों तथा विप्लवकारियों को पृथक करती है। उनके अनुसार, अराजकों द्वारा किये गये हिंसात्मक कार्य राजनीतिक अपराध नहीं माने जाते।

(2) सेना सम्बन्धी अपराध (Marital Crime) – सेना सम्बन्धी अपराध प्रत्यर्पण हेतु स्वीकार नहीं किये जाते। यदि कोई सैनिक अपराध करके किसी दूसरे देश में भाग जाता है, तो उसका समर्पण करना शरण देने वाले राज्य के लिए आवश्यक नहीं होता है।

(3) धार्मिक अपराध (Religious Crime ) – धार्मिक अपराध को प्रत्यर्पण हेतु स्वीकार नहीं किया जाता है। जो अपराधी धार्मिक अपराध करके उस देश से भाग जाता है और दूसरे राज्य ने उसे शरण दे रखी है, तो उसे प्रत्यर्पण हेतु बाध्य नहीं किया जा सकता है, यदि उसके माँगे हुये व्यक्ति द्वारा किया गया अपराध धार्मिक हो।

(4) अपराधी पर उसी मामले का वाद चलाया जायेगा, जिसे करने के कारण वह देश से भाग गया था।

(5) दोहरी अपराध वृत्ति – प्रत्यर्पण हेतु प्रक्रिया दोनों राज्यों में अपनायी जानी चाहिए। यह जरूरी नहीं है कि अपराध दोनों देशों में एक ही श्रेणी में रखा जाये अथवा दायित्व का क्षेत्र समान हो। यह उपयुक्त है कि वह अपराध विशेष जो आरोपित किया गया है, दोनों देशों के दाण्डिक क्षेत्राधिकार में आता हो।

(6) प्रत्यर्पण सन्धि में सभी निर्दिष्ट प्रावधानों एवं नियमों का पालन अपराधी के प्रत्यर्पण से पूर्ण किया जाता है, हालांकि यह कभी-कभी परेशानियाँ उत्पन्न कर देता है, जैसा कि सावरकर के वाद में पैदा हुआ था।

(7) पर्याप्त साक्ष्य – अपराध के लिए पर्याप्त साक्ष्य होना अत्यन्त आवश्यक होता है। Harvard Research Draft Covention ने प्रयास किया कि प्रारम्भिक साक्ष्य की प्रथा समाप्त कर दी जाये; परन्तु ब्रिटेन, ग्रीस, संयुक्त राज्य अमेरिका आदि देशों ने इसे स्वीकार नहीं किया। Samuel Insull के वाद में ग्रीस के न्यायालय ने कहा कि प्रत्यर्पित अपराध के लिए पर्याप्त प्रारम्भिक साक्ष्य होना अति आवश्यक है।

(8) जिस अपराध के सम्बन्ध में अभियोग चलाया जाना हो, उसे प्रथम दृष्टि (Prima facie) में ही अपराध दिखायी देना चाहिए। सन् 1933 को Montevideo Conference के देशों को इस सम्बन्ध में पर्याप्त स्वाधीनता प्राप्त हो गयी कि वे स्वयं तय करें कि प्रत्यर्पण हेतु अपने देशवासियों को समर्पित करना चाहते हैं या नहीं।

विधिशास्त्री ओपेनहाइम के अनुसार “किसी अपराधी के प्रत्यर्पण की कार्यवाही तभी सम्भव है जबकि उसके लिये सम्बन्धित देश से प्रार्थना की गयी हो और प्रत्यर्पण की अन्य शर्ते पूर्ण कर ली गयी हो। क्योंकि ये औपचारिकतायें प्रत्यर्पण सन्धियों का भाग होती हैं।”

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Anjali Yadav

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