शिक्षण विधियाँ / METHODS OF TEACHING TOPICS

प्रयोगशाला विधि क्या है ? प्रयोगशाला विधि के गुण एवं दोष अथवा सीमाए

प्रयोगशाला विधि क्या है ? प्रयोगशाला विधि के गुण एवं दोष अथवा सीमाए
प्रयोगशाला विधि क्या है ? प्रयोगशाला विधि के गुण एवं दोष अथवा सीमाए

प्रयोगशाला विधि

प्रयोगशाला अथवा प्रयोग विधि में ‘करके सीखने के सिद्धान्त को विशेष महत्त्व प्रदान किया जाता है। मात्र शिक्षण के द्वारा छात्रों के मस्तिष्क में ज्ञान को अव्यवस्थित रूप में ठूसने की अपेक्षा यह विधि उन्हें ज्ञान की सहज प्राप्ति में अधिक सक्षम बनाती है। इस विधि के अन्तर्गत छात्र स्वक्रियाओं अथवा स्वप्रयासों के आधार पर ज्ञान प्राप्त करते हैं। इस विधि के द्वारा प्राप्त अनुभव उनके मस्तिष्क का स्थाई अंग बन जाते हैं, तथा उनके मनोवैज्ञानिक विकास सहायक सिद्ध होते हैं। खोज के माध्यम से नवीन ज्ञान को प्राप्त करने हेतु, विभिन्न परम्परागत विधियों की अपेक्षा यह विधि अधिक उपयुक्त  है।

प्रयोगशाला विधि के अन्तर्गत शिक्षक अपनी ओर से न तो पाठ्यवस्तु का प्रस्तुतीकरण करता है और न ही जान को छात्रों पर लादने का जबरन प्रयास करता है। उसका कार्य केवल एक पथ-प्रदर्शक, मित्र व दार्शनिक के रूप में छात्रों की सहायता मात्र करना होता है। इस विधि के द्वारा छात्रों के विकास की प्रक्रिया, मनोवैज्ञानिक रूप से संचालित होती है, क्योंकि छात्रों को अपनी-अपनी योग्यता, क्षमता एवं अन्य वैयक्तिक विभिन्नताओं के अनुरूप प्रयास करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है। शिक्षक को मात्र कार्य का निर्धारण करना होता है, तथा कार्य से सम्बन्धित संक्षिप्त रूपरेखा छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करनी होती है, जिसके आधार पर छात्र स्वयं प्रयोगशाला में बैठकर निर्धारित कार्य को पूर्ण करते हैं। कार्य से सम्बन्धित विभिन्न सहायक साधनों, पुस्तकों आदि के सम्बन्ध में छात्रों को प्रारम्भ में ही जानकारी प्रदान कर दी जाती है, और वे इन सब साधनों के आधार पर निर्धारित समय में अपने कार्य को पूर्ण करने हेतु संलग्न हो जाते हैं। प्रयोगशाला में उन्हें पर्याप्त स्वतन्त्रता प्राप्त होती है, जहाँ वे लिखित कार्य कर सकते हैं, सम्बन्धित पुस्तकों का अध्ययन कर सकते हैं, शब्द-कोष एवं मानचित्र देख सकते हैं तथा सामूहिक रूप से पाठ्यवस्तु पर वाद-विवाद भी कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त यदि उनके मस्तिष्क में कोई विशेष जिज्ञासा उत्पन्न होती है तो वह अध्यापकों की सहायता से यथासमय पथ-प्रदर्शन प्राप्त कर सकते हैं। इस विधि के सम्बन्ध में एच० सी० हिल ने लिखा है कि-“प्रयोगशाला विधि में छात्रों का अधिकांश समय अपनी मेजों पर अध्ययन एवं लिखित कार्य करने में व्यतीत होता है। दो या तीन छात्र किसी संदिग्य विषय पर चर्चा कर सकते हैं दूसरे नोट्स की तुलना या किसी कार्य की रूपरेखा तैयार कर सकते हैं, एक छात्र शब्द-कोष को देखने में संलग्न हो सकता है दूसरा एटलस पर ध्यान देने में व्यस्त हो सकता है, तीसरा छात्र किसी कठिनाई के विषय में शिक्षक से राय ले सकता है, अथवा अपने नोट्स या रूपरेखाओं के विषय में आलोचना प्राप्त कर सकता है। सामान्यतः कक्षा-कक्ष एक शान्त स्थान है, जिसमें छात्र किसी न किसी लाभप्रद क्रिया में संलग्न रहता है।”

इस प्रकार प्रयोगशाला विधि के माध्यम से छात्रों को सहज एवं स्वाभाविक रूप में अनुभव प्राप्त करने का अवसर प्राप्त होता है। करके सीखने’ के मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त को इस विधि में व्यावहारिक रूप प्रदान करने के कारण, छात्रों के मस्तिष्क में अनुभवों को स्थायी रूप प्रदान करने में विशेष सफलता प्राप्त होती है। इस विधि में कार्य का समय प्रारम्भ में ही निर्धारित रहता है, तथा जो छात्र अपने निर्धारित कार्य को समय से पूर्व समाप्त कर लेता है, उसे दूसरा कार्य सौंप दिया जाता है। छात्रों की कक्षा में प्रगति अथवा पदोन्नति भी उनके कार्य के आधार पर की जाती है।

प्रयोगशाला विधि की सफलता प्रयोगशाला की साधन सम्पन्नता पर निर्भर करती है, जिसके लिये पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है। अध्यापक को प्रयोगशाला की साज-सज्जा एवं उसके व्यावहारिक प्रयोग का ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है। इसके अभाव में वह प्रयोगशाला के विभिन्न साधनों का स्वतन्त्रता अथवा समन्वित रूप में छात्रों से प्रयोग कराके वांछित उद्देश्यों की प्राप्ति नहीं कर सकता है। प्रयोगशाला विधि के अन्तर्गत एक प्रयोगशाला में विशेष रूप से जिन साधनों का होना आवश्यक है उनमें श्यामपट, शोकेस, प्रायोगिक कार्य हेतु मेजें, चित्र, चार्ट, मैजिक लेन्टर, प्रोजेक्ट, स्क्रीन, रेडियो आदि विशेष रूप से आवश्यक हैं।

प्रयोगशाला विधि की आवश्यकता

1. एक विशिष्ट वातावरण का सृजन करके, तथा छात्रों को अधिकाधिक क्रिया करने हेतु प्रेरित करके ही सीखने की दिशा में प्रेरित किया जा सकता है।

2. ज्ञान प्राप्ति की दशा में छात्रों को सक्रिय बनाकर ही अनुशासन स्थापना में सफलता प्राप्त की जा सकती है।

3. कक्षा में शिक्षण के समय आवश्यक साधनों को सहायक सामग्री कक्ष से बार-बार उठाकर ले जाने से उनके टूटने एवं खराब होने की सम्भावना रहती है, जबकि इस विधि के द्वारा इस टूट-फूट की सम्भावना कम हो जाती है तथा सौमित समय का भी अपेक्षाकृत अधिक उपयोग किया जाता है।

4. यह विषय एक वैज्ञानिक विषय है और वैज्ञानिक विषय का शिक्षण प्रयोगशाला के अभाव में अपूर्ण रहता है।

5. निर्धारित समय से पूर्व अपने कार्य को समाप्त करने वाले छात्रों को इस विधि के द्वारा यथासमय उन्नति का अवसर प्रदान किया जा सकता है।

6. प्रयोगशाला विधि के माध्यम से पाठ्यक्रम को सफलतापूर्वक यथासमय सम्पूर्ण किया जा सकता है।

7. वैयक्तिक विभिन्नताओं के आधार पर छात्रों को अवसर प्रदान करके ही उनका मनोवैज्ञानिक विकास किया जा सकता है।

प्रयोगशाला विधि के गुण

1. प्रयोगशाला विधि द्वारा प्राप्त ज्ञान को छात्र रुचिपूर्वक ग्रहण करते हैं।

2. स्वप्रयास के आधार पर अनुभव प्राप्त करने के कारण प्राप्त अनुभव मस्तिष्क का स्थायी अंग बन जाते हैं।

3. छात्रों में स्वअध्ययन एवं स्वक्रियाओं द्वारा सीखने की प्रवृत्ति का विकास होता है, जिसके कारण वे मानसिक दृष्टि से स्वावलम्बी बन जाते हैं।

4. प्रयोगशाला विधि के अन्तर्गत बालकों को शारीरिक, मानसिक रूप से क्रियाशील रहने का अवसर प्राप्त होता है।

5. वर्तमान परीक्षा प्रणाली के विभिन्न दोषों को भी इस विधि के आधार पर दूर किया जाना सम्भव है

6. छात्रों में नवीन ज्ञान को खोजने की क्षमता विकसित होती है।

7. सामूहिक शिक्षण के विभिन्न दोषों को इस विधि के माध्यम से दूर किया जा सकता है।

8. यह विधि छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का आविर्भाव करती है।

प्रयोगशाला विधि के दोष

1. इस विधि के द्वारा समय एवं शक्ति का अपव्यय अधिक होता है।

2. सामाजिक विषयों के शिक्षण में, इस विधि के प्रयोग हेतु विशेष प्रशिक्षण एवं दक्षता की आवश्यकता होती है। हमारे वर्तमान प्रशिक्षण महाविद्यालयों में इस प्रकार के समुचित प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है।

3. इस विधि के सम्बन्ध में अध्यापकों की पर्याप्त ज्ञेयता, कुशलता, आदि के अभाव के कारण प्रयोगशाला में पर्याप्त सजीव वातावरण को उत्पन्न करना सम्भव नहीं हो पाता।

4. यह विधि छोटी कक्षाओं के बालकों के लिये अनुपयुक्त है, क्योंकि इस स्तर पर वे स्वयं ज्ञान प्राप्त करने में सक्षम नहीं हो सकते।

5. मात्र प्रयोगशाला विधि के माध्यम से ही पाठ्यवस्तु से सम्बन्धित समस्त अनुभवों को प्राप्त कर पाना सम्भव नहीं है।

6. आर्थिक दृष्टि से भी प्रयोगशाला विधि अत्यन्त व्ययपूर्ण है, विशेषकर भारतवर्ष के समस्त विद्यालयों में प्रयोगशाला की स्थापना अत्यन्त दुर्लभ है।

7. इस विधि के द्वारा प्राप्त ज्ञान को छात्र प्रायः क्रमबद्ध अथवा सुव्यवस्थित रूप में प्राप्त नहीं कर पाते।

उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि प्रयोगशाला विधि को कार्यान्वित करने हेतु अत्यधिक धन की आवश्यकता है, जिसका हमारे देश में पर्याप्त अभाव है। फिर भी, रचनात्मक दृष्टि से अथवा छात्रों को स्वक्रिया द्वारा ज्ञानार्जन कराने की दृष्टि से इस विधि का अपना महत्त्व है। अतः जहाँ तक सम्भव हो, इसका यथेष्ट प्रयोग किया जाना चाहिये।

इसे भी पढ़े…

  1. वाद-विवाद पद्धति
  2. व्याख्यान पद्धति
  3. योजना विधि अथवा प्रोजेक्ट विधि
  4. समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि
  5. स्रोत विधि
  6. जीवन गाथा विधि
  7. समस्या समाधान विधि
  8. पाठ्यपुस्तक विधि
  9. कथात्मक विधि
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About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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