नैतिक शिक्षा शिक्षण की आवश्यकता, महत्व तथा उद्देश्यों पर प्रकाश डालिये।
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नैतिक शिक्षा शिक्षण की आवश्यकता
शिक्षा एक प्रक्रिया है। शिक्षा के द्वारा बालक का बौद्धिक विकास होता है। यह बालक के सामाजिक विकास में उसकी सहायता करती है, किन्तु नैतिक शिक्षा बालक के व्यवहार में परिवर्तन लाती है। बालक के व्यवहार में यह परिवर्तन देश तथा समाज के लिए अति आवश्यक है। यदि नैतिक शिक्षा की अवहेलना की जाती है तो बालक का चारित्रिक विकास रुक जाता है। शिक्षा एक सामाजिक विकास की प्रक्रिया है। व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है तथा उसे समाज में ही अपना जीवन व्यतीत करना होता है, अतः नैतिक शिक्षा के द्वारा बालक का सामाजिक विकास, संवेगात्मक, नैतिक एवं सर्वांगीण विकास सम्भव होता है तथा उसका दृष्टिकोण उदार होता है।
शिक्षा एक ऐसे अनुकूलन की प्रक्रिया है, जो शारीरिक एवं मानसिक विकास करती है। शिक्षा के द्वारा ही बालक अपना व्यवस्थापन करना सीखता है। प्रत्येक व्यक्ति के लिए वातावरण से समायोजन करना अति आवश्यक होता है। शिक्षा बालक की इस कार्य में सहायता करती है, किन्तु नैतिक शिक्षा बालकों को परिश्रमी एवं समाजसेवी, अनुशासनप्रिय तथा मानव समुदाय के प्रति संवेदनशील बनाती है। नैतिक शिक्षा बालकों के विचारों में मौलिकता लाती है। नैतिक शिक्षा बालक के व्यवहार का परिष्कार करती है, नैतिक दृष्टिकोण का विकास करती है, उसमें ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का विचार स्थापित करती है। यह परिष्कार बालक तथा समाज दोनों के लिए उपयोगी होता है।
उपर्युक्त सभी बातों पर ध्यान देने के पश्चात् सामान्य शिक्षा के अन्तर्गत प्रत्येक विषय में शिक्षण की आवश्यकता होती है। अध्यापक किस प्रकार का व्यवस्थापन करे कि शिक्षा शिक्षण प्रभावी बन सके, इस हेतु नैतिक शिक्षा के शिक्षण की आवश्यकता अनुभव की जाती है। अतः आज के भौतिकवादी एवं मशीनी युग में नैतिक मूल्यवान शिक्षा शिक्षण की महती परमावश्यकता है। नैतिक शिक्षा के शिक्षण में अध्यापक, अपनी भूमिका का व्यवहृत प्रयोग कर, छात्रों का मार्गदर्शन कर सकता है, छात्रों का दृष्टिकोण सन्तुलित जीवन के अनुकूल बना सकता है। यह सब नैतिक शिक्षा के शिक्षण के द्वारा ही सम्भव है।
नैतिक शिक्षा बालक के व्यक्तित्व का सन्तुलित विकास करती है। नैतिक शिक्षा ही वह व्यावहारिक साधन है, जिससे जीवन के आदर्शों को प्राप्त किया जा सकता है। अतः स्पष्ट है कि बालक के विकास के लिए नैतिक शिक्षा अनिवार्य है। इसके अभाव में बालक एक योग्य नागरिक नहीं बन सकता। वह अपने उत्तरदायित्व को नहीं समझ सकता। वह देश की सेवा भी नहीं कर सकता, इस प्रकार वह अपने नैतिक जीवन यापन के लिए भी कुछ नहीं कर सकता है।
नैतिक शिक्षा शिक्षण का महत्व
नैतिक शिक्षा बालक की जन्मजात शक्तियों का स्वाभाविक गति से विकास करती है तथा नैतिक शिक्षा शिक्षण द्वारा बालक के व्यवहार में परिवर्तन लाया जाता है, जिससे वह समाज, देश एवं संसार की सेवा कर सके। इससे स्पष्ट है कि बालक के जीवन में नैतिक शिक्षा शिक्षण का विशेष महत्व है।
बालक के जीवन में नैतिक शिक्षा शिक्षण का महत्व बालक के जीवन में नैतिक शिक्षा शिक्षण का महत्व निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
1. नैतिक शिक्षा शिक्षण द्वारा मूल प्रवृत्तियों पर नियन्त्रण- बालक अपनी मूल प्रवृत्तियों के अनुसार व्यवहार करता है, किन्तु समाज सभी प्रकार की मूल प्रवृत्तियों के प्रदर्शन की आज्ञा नहीं देता। मनुष्य समाज में रहता है। उसे समाज द्वारा स्वीकृत व्यवहार अपनाना पड़ता है। अतः बालक के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह केवल अच्छे कार्यों को करे। ऐसा तभी सम्भव हो सकता है, जब बालक की मूल प्रवृत्तियों पर नियन्त्रण रखा जाये। नैतिक शिक्षा शिक्षण बालक की मूल प्रवृत्तियों पर केवल नियन्त्रण ही नहीं रखता, अपितु उनका शोधन भी करता है।
2. नैतिक शिक्षा शिक्षण द्वारा बालक की जन्मजात शक्तियों का विकास-बालक के जीवन में नैतिक शिक्षा शिक्षण का महत्व इस कारण से है कि यह बालक की जन्मजात शक्तियों का विकास करता है।
3. नैतिक शिक्षा शिक्षण द्वारा बालक का चरित्र निर्माण नैतिक शिक्षा ही बालक के चारित्रिक विकास में उसकी सहायता करती है। इस प्रकार बालक के चरित्र का निर्माण होता है। हरबर्ट के अनुसार- “नैतिक शिक्षा ही अच्छे चरित्र का विकास करती है। “
4. नैतिक शिक्षा शिक्षण द्वारा बालक के सन्तुलित विकास में सहायता- नैतिक शिक्षा बालक के व्यक्तित्व का विकास करती है। इसके अभाव में सन्तुलित विकास नहीं हो सकता। अतः बालक के जीवन में नैतिक शिक्षा अति आवश्यक है। नैतिक शिक्षा से ही बालक उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होता है।
5. नैतिक शिक्षा शिक्षण द्वारा वयस्क जीवन की तैयारी- जो आज बालक है, वह कल नागरिक बनेगा। नैतिक शिक्षा उसे इस जीवन के लिए तैयार करती है। बालक को वयस्क हो जाने पर अनेक उत्तरदायित्व निभाने पड़ते हैं। नैतिक शिक्षा शिक्षण उसकी इस कार्य में सहायता करता है।
नैतिक शिक्षा शिक्षण के उद्देश्य
1. ज्ञानेन्द्रियों का प्रशिक्षण का उद्देश्य- नैतिक शिक्षा का द्वितीय उद्देश्य ज्ञानेन्द्रियों का प्रशिक्षण करना है। शिक्षक को इस ओर अधिक-से-अधिक ध्यान देना चाहिए। अरविन्द का कथन है, “शिक्षक का पहला कार्य छात्र में छः इन्द्रियों के उचित प्रयोग का विचार करना है।” जब ज्ञानेन्द्रियाँ सुसंगठित होंगी, तब ही नैतिक विकास ठीक प्रकार होगा।
2. तर्क-शक्ति के विकास का उद्देश्य- अरविन्द का विश्वास है कि बालक की मानसिक शक्तियों के विकास के पश्चात् उनकी तर्क शक्ति का विकास किया जाना चाहिए। तर्क-शक्ति के द्वारा ही बालक चारित्रिक एवं नैतिक विकास की ओर अग्रसर हो सकेंगे।
3. अन्तःकरण के विकास का उद्देश्य- अरविन्द नैतिक शिक्षा का प्रमुख माध्यम या साधन अन्तःकरण मानते हैं, शिक्षा का उद्देश्य अन्तःकरण के स्तरों का विकास करना है।
4. सर्वांगीण विकास का उद्देश्य- गाँधी जी ईश्वर में पूर्ण विश्वास करते थे। मानव-सेवा द्वारा आत्माभिव्यक्ति में विश्वास करते थे। वे हृदय की अन्तशिक्षा को महत्व देते थे। उन्होंने शारीरिक श्रम एवं अनुशासन को महत्व प्रदान किया। उन्होंने अनुशासन में स्वच्छन्दता का विरोध किया। वे व्यक्तिगत जीवन में पवित्रता में विश्वास रखते थे। उसके अनुसार शिक्षा का उद्देश्य चरित्र निर्माण करना सर्वोपरि था। उनके अनुसार बालक की शिक्षा में सर्वांगीण विकास का महत्वपूर्ण स्थान है।
5. शारीरिक विकास का उद्देश्य – नैतिक शिक्षा का उद्देश्य शरीर का विकास करना है। गाँधी जी का कथन है कि यदि हम व्यक्ति का पूर्ण विकास करना चाहते हैं तो उसके शारीरिक विकास की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। गाँधी जी के अनुसार, शरीर से धर्म की प्राप्ति की जा सकती है। अतः नैतिक दृष्टिकोण के परिमार्जन के लिए शारीरिक विकास आवश्यक है।
6. मानसिक शक्तियों के विकास का उद्देश्य- नैतिक शिक्षा का उद्देश्य स्मृति, निर्णय शक्ति, कल्पना तथा चिन्तन आदि शक्तियों का विकास करना है। अरविन्द के अनुसार, बालक की ज्ञानेन्द्रियों को प्रशिक्षण देने के पश्चात् बालक की मानसिक शक्तियों का विकास किया जाना चाहिए ताकि बालक नैतिक विकास हेतु अग्रसर हो सके।
7. नैतिकता के विकास का उद्देश्य- नैतिक शिक्षा का उद्देश्य नैतिकता का विकास करना है। अरविन्द के अनुसार नैतिकता से सम्बन्ध रखने वाली तीन बातें हैं-
(1) मनुष्य की प्रकृति, (2) मनुष्य की आदतें तथा (3) मनुष्य की भावनाएँ। अरविन्द के अनुसार नैतिक शिक्षा का उद्देश्य इन तीन बातों को शुद्ध और सुन्दर बनाकर मानव-हृदय का परिवर्तन करना है। अतः छात्रों के लिए विद्यालय द्वारा धार्मिक तथा नैतिक शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए।
8. आध्यात्मिक विकास का उद्देश्य-नैतिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास करना है। अरविन्द के अनुसार, “शिक्षा का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए-विकसित होने वाली आत्मा का विकास करना जो कुछ उसमें सर्वोत्तम है, उसे व्यक्त करना और उसे श्रेष्ठ कार्य के लिए पूर्ण बनाना।”
नैतिक शिक्षा शिक्षण के प्रमुख उद्देश्य
नैतिक शिक्षा शिक्षण के प्रमुख उद्देश्य निम्न प्रकार हैं-
(1) ज्ञान प्राप्ति का उद्देश्य, (2) चरित्र-निर्माण का उद्देश्य
1. ज्ञान प्राप्ति का उद्देश्य- नैतिक शिक्षा का महत्वपूर्ण उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति कराना है। सुकरात, प्लेटो, अरस्तू, दान्ते और कामेनियस ने इसी उद्देश्य का समर्थन किया। ऐसी शिक्षा से क्या लाभ जो बालक को ज्ञान प्रदान न करे ? सुकरात के अनुसार, “वह व्यक्ति जिसे वास्तविक ज्ञान है, सद्गुणी के अतिरिक्त दूसरा नहीं हो सकता।” किसी समस्या के आ जाने पर हम उसका समाधान किस प्रकार करते हैं? व्यक्ति पर्यावरण से अपना अनुकूलन किस प्रकार करता है ? उत्तर- ज्ञान के द्वारा। अतः बालक के जीवन में ज्ञान के आधार पर ही सभ्यता तथा संस्कृति की उन्नति की जा सकती है। बेकन कहता है, “ज्ञान शक्ति है।”
2. चरित्र निर्माण का उद्देश्य- कुछ शिक्षाविदों द्वारा नैतिक शिक्षा शिक्षण का उद्देश्य चरित्र निर्माण कराना बताया गया है। महात्मा गाँधी तथा हरबर्ट आदि विचारकों ने शिक्षा का उद्देश्य चरित्र निर्माण करना बताया है। स्पेन्सर के अनुसार, “बालक की सबसे महान् आवश्यकता और सबसे बड़ा रक्षक चरित्र है, शिक्षा नहीं।”
लोकतन्त्र प्रणाली में नैतिक शिक्षा शिक्षण के उद्देश्य
लोकतन्त्र में चरित्रवान व्यक्तियों की आवश्यकता होती है, अतः शिक्षण का उद्देश्य व्यक्ति का चरित्र-निर्माण अथवा नैतिक विकास कराना होना चाहिए। चरित्र का अर्थ आन्तरिक दृढ़ता तथा व्यक्तित्व की एकता । चरित्रवान व्यक्ति सिद्धान्तवादी, दृढ़ निश्चयी, साहसी एवं अभय होता है। काण्ट के अनुसार, “एक बुरे व्यक्ति का चरित्र अत्यन्त घातक होता है।” महात्मा गाँधी के अनुसार, “विद्यालय तथा कॉलेज, चरित्र-निर्माण करने वाली फैक्टरियाँ हैं। माता-पिता अपने बालकों को वहाँ इस कारण भेजते हैं, जिससे वे श्रेष्ठ पुरुष बन सकें।” अतः समस्त शिक्षा का साध्य चरित्र निर्माण करना ही होना चाहिए।
नैतिक शिक्षा शिक्षण के समाज सम्बन्धी उद्देश्य
समाज से सम्बन्धित नैतिक शिक्षा शिक्षण के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. सामाजिक बुराइयों का अन्त- नैतिक शिक्षा शिक्षण का दूसरा उद्देश्य सामाजिक बुराइयाँ समाप्त करना है। जाति प्रथा, – बाल-विवाह, दहेज प्रथा आदि बुराइयों का अन्त किया जाना चाहिए। नैतिक शिक्षा शिक्षण द्वारा इन कुरीतियों का अन्त किया जा सकता है।
2. नेतृत्व के गुणों का विकास- नैतिक शिक्षा शिक्षण का उद्देश्य बालकों में नेतृत्व के गुणों का विकास कराना होना चाहिए। लोकतन्त्र में यह उद्देश्य अत्यन्त महत्वपूर्ण है। आज के बालक कल के नागरिक हैं तथा उन्हीं पर देश की प्रगति का सम्पूर्ण भार होता है। माध्यमिक शिक्षा आयोग का मत है, “प्रजातन्त्रीय भारत में नैतिक शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य व्यक्तियों में नेतृत्व के गुणों का विकास करना है।”
3. भावात्मक एकता का विकास- नैतिक शिक्षा शिक्षण का उद्देश्य है कि वह राष्ट्र के विभिन्न भागों के व्यक्तियों में भावात्मक रूप से एकता बनाए रखे। देश की वर्तमान परिस्थितियों में भावात्मक एकता बनाए रखना अति आवश्यक है।
4. अन्तःसांस्कृतिक भावना का विकास- नैतिक शिक्षा शिक्षण का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य यह भी है कि वह देश में अन्तःसांस्कृतिक भावना का विकास करे। छात्रों को देश के विभिन्न भागों की संस्कृति तथा दूसरे देशों की संस्कृति का सम्मान करना चाहिए।
5. समाजवादी समाज की स्थापना-नैतिक शिक्षा शिक्षण का उद्देश्य समाजवादी समाज की स्थापना होना चाहिए। पं० नेहरू का कथन है, “मेरा विश्वास समाजवादी राज्य में है और मेरी इच्छा है कि शिक्षा का विकास नैतिकता को लेकर किया जाये।”
6. निस्वार्थ कार्य की भावना उत्पन्न करना- नैतिक शिक्षा शिक्षण का उद्देश्य भारतवासियों में निःस्वार्थ कार्य के प्रति भावना उत्पन्न कराना होना चाहिए। शिक्षा ऐसी हो, जो बालकों को निश्वार्थ प्रेम तथा सेवा करना सिखाये। देश की वर्तमान परिस्थितियों में नैतिक शिक्षा शिक्षण का यह उद्देश्य अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
7. प्रजातन्त्रीय नागरिकता का विकास- नैतिक शिक्षा शिक्षण का उद्देश्य योग्य नागरिकों का निर्माण कराना है। प्रजातन्त्र में नागरिक अत्यन्त महत्वपूर्ण होते हैं, उन्हें अपने कर्त्तव्यों तथा दायित्वों को निभाना है।
8. जन शिक्षा की व्यवस्था- नैतिक शिक्षा शिक्षण का उद्देश्य जन शिक्षा की उचित व्यवस्था कराना होना चाहिए। सफल सामाजिक जीवन के योग्य बनने के लिए प्रत्येक समाज को शिक्षा की उत्तम व्यवस्था करनी पड़ती है। नैतिक शिक्षा के माध्यम से मनुष्य का सर्वांगीण विकास होता है। सर्वांगीण विकास होने पर ही मनुष्य किसी राष्ट्र या समाज की प्रगति कर सकता है।
अतः अध्यापक का कर्तव्य है कि वह उपर्युक्त लोकतन्त्रीय शिक्षण उद्देश्यों को ध्यान में रखकर ही शिक्षण कार्य सम्पन्न करें तब ही नैतिक शिक्षा का पुनीत कर्त्तव्य पूरा हो सकता है।
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