भारतेन्दु युग से आप क्या आशय ग्रहण करते हैं ?
भारतेन्दु युग (1875 से 1900) – आधुनिक काव्यधारा का प्रथम उत्थान भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के नाम पर भारतेन्दु युग कहलाता है। भारतेन्दु युग का उदय राष्ट्रीय जागरण की नव सांस्कृतिक और राजनीतिक चेतना के उन्मेषकाल में हुआ। इस युग के साहित्यकार का दायित्व निश्चित रूप में अनेक मुखी था। एक ओर सामाजिक सुधार तो दूसरी ओर सांस्कृतिक चेतना का समुचित विकास करना था, एक ओर शिक्षा का प्रसार तो दूसरी ओर साहित्य के विविध अंगों की पुष्टि वांछनीय थी। इस प्रकार भारतेन्दु युग तत्कालीन, सामाजिक एवं राजनयिक ऊहापोह की स्थितियों से प्रसित भारतीय जनमानस की आशाओं और आकांक्षाओं की प्रकार के रूप में उदित हुआ।
भारतेन्दु युग का परिवेश- भारतेन्दु युग के अभ्युदय का अवलोकन राजनयिक, धार्मिक, सामाजिक एवं साहित्यिक परिस्थितियों के आधार पर किया जा सकता है-
1. राजनयिक परिवेश- जिस समय भारतेन्दु युग का प्रादुर्भाव हुआ उस समय अंग्रेजों का शासन भारत पर था। भारतीय गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए थे। 1857 की क्रान्ति में भारतीयों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की अग्नि प्रज्वलित कर दी थी। स्वतन्त्रता की यही तरंग एक वर्ष तक चलती रही। अंग्रेजी सेना के दमन तथा भारतीय महाराजों के विश्वासघात के स्वाधीनता का प्रथम संग्राम असफल हुआ। किन्तु आजादी प्राप्त करने की भावना जन-जन में जागृति का बिगुल बजाती हुई अंग्रेजों की सत्ता हिलाने में सक्षम बनी। भारतेन्दु युग का अभ्युदय ऐसे ही राजनयिक परिवेश में हुआ।
2. धार्मिक एवं सामाजिक परिवेश- भारतेन्दु युग के उदय से पूर्व सामाजिक तथा धार्मिक परिवेश में भी क्रान्तिकारी परिवर्तन हो रहे थे। समस्त आन्दोलनों का प्रमुख लक्ष्य समाज सुधार भारतीय स्वाधीनता था। ब्रह्म समाज, आर्य समाज, स्वामी रामकृष्ण परमहंस, सनातन धर्म, विवेकानन्द, अरविन्द के वेदान्त दर्शन, अंग्रेजों को भारत स्वतन्त्र करने हेतु विवश कर रहे थे। भारत में धार्मिक एवं सामाजिक सुधारों से एक नवचेतना आई। इस राष्ट्रीयता का भाव तथा समाज सुधार एवं उदार धार्मिकता से युक्त भारतेन्दु युग का आगमन पुनर्जागरण के रूप में हुआ।
3. आर्थिक परिवेश- अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीति के कारण भारत में कुटीर उद्योग-धन्धों का प्रायः विनाश हो गया था। श्रमिक और कृषक वर्ग शोषण की चक्की के दो पाटों में बुरी तरह पिस रहे थे। महँगाई, अकाल, टैक्स और दरिद्रता भारतेन्दु युग की प्रमुख समस्याएँ थीं। जिनकी विशेष रूप से भारतेन्दु युगीन साहित्य में उभरकर आई। ऐसे विषम परिवेश में चेतना का नव सन्देश देता हुआ भारतेन्दु युग का उदय हुआ। यह था आर्थिक परिवेश ।
4. साहित्यिक परिवेश- भारतेन्दु युग से पूर्व का साहित्य अधिकतर राजमहलों में पल रहा था। किन्तु भारत में दृढ़ता से हुए अंग्रेजों के शासन को उखाड़ फेंकने के लिए ऐसे साहित्य की अपेक्षा थी जो जनता के सुख-दुःखों को समझे और जमे -समझाये। रीतिकालीन साहित्य का शृंगारिकता, भाषा, भाव, शैली अत्यन्त सीमित एवं सामन्ती वातावरण से प्रभावित थी। भारतीय, पाश्चात्य, सभ्यता एवं अंग्रेजी शिक्षा के प्रति आकर्षित थे। ऐसे समय में भारतेन्दु युग साहित्य का प्रवेश द्वार बन कर आया, जिसने स्वतन्त्रता तथा देशप्रेम की भावना से युक्त होकर साहित्य सृजन किया। पुरानी परम्पराओं और मर्यादाओं की रक्षा करते हुए हिन्दी साहित्य के विकास क्रम को आगे बढ़ाया।
इस प्रकार भारतेन्दु युग प्राचीन का आग्रह करता हुआ, नवीन का मोह जगाता हुआ राजभक्ति के साथ देश भक्ति के गीत गाता हुआ आधुनिक साहित्य का प्रथम चरण बनकर आया, प्राचीन नवीन के उस सन्धि काल में जैसी शीतल छाया का संचार अपेक्षित था। वैसी ही शीतल कला के साथ भारतेन्दु का उदय हुआ, इसमें सन्देह नहीं।
भारतेन्दु युग का नामकरण- भारतेन्दु युग आधुनिक काल हिन्दी कविता का प्रथम उत्थान है। इस काल का सम्पूर्ण काव्य अधिकांशतः भारतेन्दुजी या उनके मण्डल सहयोगियों की रचना है । सम्पूर्ण भारतेन्दुजी के व्यकतित्व का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है । भारतेन्दुजी इस युग की प्रेरणा के केन्द्र थे और इसलिए इस युग का काव्य उनके चारों आर रहने वाले सहयोगियों द्वारा ही निर्मित हुआ ।
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