मानक संदर्भित परीक्षण से आप क्या समझते हैं? मानको के प्रकारों को लिखिए।
मानकों का अर्थ (Meaning of Norms)
निःसन्देह परीक्षण पर व्यक्तियों या छात्रों द्वारा प्राप्त अंक उन व्यक्तियों या छात्रों की उस योग्यता या गुण की मात्रा को इंगित करते हैं, जिसे परीक्षण के द्वारा मापा जा रहा है। परन्तु शिक्षा, मनोविज्ञान तथा समाजशास्त्र के अधिकांश चरों का मापन आन्तरित स्तर (Interval Scale) पर होने के कारण परीक्षण प्राप्तांकों के लिए वास्तविक शून्य (Real Zero) या परम शून्य (Absolute Zero) या सत्य शून्य (True Zero) बिन्दु को संकल्पना नहीं की जा सकती है। वास्तविक शून्य की संकल्पना के अभाव में प्राप्तांक स्वयं में अर्थहीन हो जाते हैं। इसके साथ ही इन चरों के मापन की किसी मानक इकाई का न होना, इस समस्या को और भी जटिल बना देता है। लम्बाई, भार आदि भौतिक चरों में वास्तविक शून्य के होने तथा मापन की मानक इकाई के होने से किसी भार या लम्बाई को अंकों में व्यक्त करने के बाद उसके अर्थ या व्याख्या का कोई प्रश्न नहीं उठता है। जैसे यदि 5 किलोग्राम भार कहा जाये तो यह स्वयं में अर्थयुक्त है। सभी व्यक्तियों को एक किलोग्राम भार का स्पष्ट ज्ञान होता है तथा 5 किलोग्राम भार निःसन्देह एक किलोग्राम भार का ठीक 5 गुना होता है। परन्तु इसके विपरीत यदि किसी छात्र के इतिहास में 40 अंक कहा जाये तो यह कहना स्वयं में अर्थविहीन होगा, क्योंकि 40 अंक कहने से 40 अंक प्राप्त करने वाले छात्र की इतिहास योग्यता का कुछ भी पता नहीं चल रहा है। चालीस अंक पाने वाला यह छात्र इतिहास योग्यता में कक्षा का सर्वश्रेष्ठ छात्र ‘ हो सकता है या मध्यम स्तर का या सबसे कम योग्य छात्र भी हो सकता है। यदि कक्षा के शेष छात्र 40 से कम अंक पाते हैं तो वह सर्वश्रेष्ठ छात्र कहलायेगा.. यदि कक्षा के कुछ छात्र 40 से अधिक तथा कुछ छात्र 40 से कम अंक पाते हैं तो यह छात्र औसत छात्र कहलायेगा तथा यदि कक्षा के शेष सभी छात्र 40 से अधिक अंक प्राप्त करते हैं तो 40 अंक पाने वाला यह छात्र कक्षा का सबसे कमजोर छात्र कहलायेगा। स्पष्ट है कि किसी छात्र के अंक स्वयं में उस छात्र की कक्षा में क्या स्थिति ( Position) है, इसका संकेत देने में पूर्णतया असमर्थ रहते हैं। इसके अतिरिक्त प्राप्तांकों के द्वारा विभिन्न परीक्षणों पर प्राप्त अंकों की तुलना भी करना संभव नहीं हो पाता है। जैसे अंग्रेजी में 50 अंक पाने वाला छात्र कक्षा में औसत छात्र हो सकता है, परन्तु इतिहास में 55 अंक पाकर भी वह कमजोर छात्र हो सकता है। शिक्षा, मनोविज्ञान व समाजशास्त्र के अधिकांश चरों की प्रकृति (Indirect) होती है, जिसके कारण उनके मापन की किसी एक सर्वस्वीकृत मानक ईकाई का होना संभव नहीं हो सकता है। ऐसी परिस्थिति में प्राप्तांकों को अर्थयुक्त बनाने या उनकी व्याख्या करने की समस्या उत्पन्न होती हैं इसके लिए परीक्षण निर्माता कुछ ऐसे संदर्भ बिन्दु (Reference Points) निर्धारित करता है, जिनके आधार पर प्राप्तांकों की व्याख्या की जा सके। इन संदर्भ बिन्दुओं को ही मानक (Norms) कहते हैं। अत: परीक्षण मानक वे संदर्भ बिन्दु हैं, जिनकी सहायता से या जिनसे तुलना करके परीक्षण पर प्राप्त अंको की व्याख्या की जा सकती है। क्योंकि मानकों के अभाव में परीक्षण पर प्राप्त परिणामों की व्याख्या नहीं की जा सकती है, इसलिए परीक्षण प्रमापीकरण (Test Standardization) की प्रक्रिया में मानक निर्धारण का कार्य अत्यधिक महत्वपूर्ण स्वीकार किया जाता है।
स्टेनली तथा होपकिन्स के अनुसार, ” मानक छात्रों के बड़े समूहों की निष्पादनता के आधार पर प्राप्तांकों का किसी अधिक सार्थक पैमाने पर प्रत्यावर्तनों को प्रतिपादित करना मात्र है। “
ईबिल (Ebel) के शब्दों में, “किसी परीक्षण के मानक बताते हैं कि किसी विशेष संदर्भ समूह के सदस्य परीक्षण पर किस प्रकार से अंक प्राप्त करते हैं। “
रैमर्स, गेज तथा रूमेल (Remmers, Gage and Rummel) के अनुसार “ मानक छात्रों के किसी पारिभाषित समूह के द्वारा परीक्षण पर प्राप्त निष्पादन स्तर है। “
मानकों (Norms) का प्रमापीकृत परीक्षणों (Standardized Tests) से सम्बन्ध होने के कारण मानक व प्रतिमान या मानदंड (Standard) शब्दों में भ्रम हो जाता है। मानक (Norms) तथा प्रतिमार अंथवा मानदंड (Standard) शब्दों में अन्तर को समझना आवश्यक प्रतीत होता है। यद्यपि कुछ व्यक्ति इन दोनों शब्दों को समान अर्थ में प्रयुक्त करते हैं, परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। प्रतिमान या मानदंड (Standard) शब्द बताता है कि क्या होना चाहिए या क्या उपादेय है। स्पष्ट है कि ‘प्रतिमान’ में लक्ष्य का भाव निहित है तथा ये छात्रों की पूर्व निर्धारित अपेक्षाओं को व्यक्त करते हैं। इसके विपरीत मानक (Norms) शब्द बताता है कि वास्तव में क्या है? स्पष्ट है कि ‘मानक’ में वर्तमान स्थिति का भाव निहित है तथा ये छात्रों की परीक्षण पर वास्तविक उपलब्धि को व्यक्त करते हैं। मानक समूह के सापेक्ष परिवर्तित होते रहते हैं, परन्तु प्रतिमान अपेक्षाकृत स्थायी प्रकृति के होते हैं। .
मानकों के प्रकार (Types of Norms)
मानक अनेक प्रकार के हो सकते हैं। परीक्षण निर्माता परीक्षण के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के मानक तैयार कर सकता है। प्रमापीकृत परीक्षणों के लिए प्रायः चार प्रकार के मानकों का प्रयोग किया जाता है। मानकों के ये चार प्रकार निम्नवत हैं-
- आयु मानक (Age Norms)
- कक्षा मानक (Grade Norms)
- शतांशीय मानक (Percentile Norms)
- प्रमापीकृत प्राप्तांक मानक (Standardized Score Norms)
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