Contents
मानवीय आवश्यकताएँ: अर्थ, लक्षण तथा वर्गीकरण (Human Wants: Meaning, Characteristics and Classfication)
अनिवार्यताएँ और विलासिताएँ सापेक्ष अवधारणाएं हैं। कोई एक वस्तु जो आज से सौ वर्ष पूर्व विलासिता समझी जाती थी, जीवन स्तर के उन्नत के कारण अब अनिवार्य स्वीकार की जा सकती है।
-डॉ० रिचार्ड्स
आवश्यकता तथा इच्छा (Want and Desire)
साधारण बोलचाल की भाषा में लोग ‘इच्छा’ तथा ‘आवश्यकता’ इन शब्दों का एक ही अर्थ में प्रयोग करते हैं। किन्तु अर्थशास्त्र में इच्छा तथा आवश्यकता में अन्तर किया जाता है।
इच्छा का अर्थ (Meaning of Desire)
इच्छा किसी कार्य को करने या किसी वस्तु को पाने की कामना होती है जो किसी व्यक्ति के मस्तिष्क में उठती है। इच्छा कैसी भी हो सकती है। यह आवश्यक नहीं कि सब इच्छाएं पूरी की जा सकें। कुछ इच्छाएँ ऐसी होती हैं जिन्हें पूरा करना किसी व्यक्ति के लिए सम्भव नहीं होता। उदाहरणार्थ, किसी भिखारी की राजा बनने की इच्छा, आदि ऐसी इच्छाएं हैं जिन्हें पूर्ण नहीं किया जा सकता। परिणामतः ऐसी इच्छाएं आवश्यकताओं का रूप धारण नहीं कर पाती।
आवश्यकता का अर्थ (Meaning of Want)
मनुष्य की अनेक इच्छाएँ ऐसी भी होती हैं जिन्हें पूरा करना किसी व्यक्ति के लिए सम्भव होता है। ऐसी इच्छाएँ ही आवश्यकता के अन्तर्गत आती हैं। अर्थशास्त्र में ऐसी मानवीय इच्छा को ही ‘आवश्यकता’ कहते हैं जिसकी सन्तुष्टि के लिए मनुष्य के पास साधन (धन) होते हैं तथा अपनी इच्छा को पूर्ण करने के लिए। यह अपने साधनों का प्रयोग करने को तत्पर रहता है। इस प्रकार-
आवश्यकता = इच्छा + साधन + तत्परता
आवश्यकता की परिभाषाएँ (Definitions of Want) –(1) थॉमस (Thomas) के शब्दों में, “आवश्यकता उस प्रभावपूर्ण इच्छा को कहते हैं जिसे पूर्ण करने के लिए मनुष्य के पास पर्याप्त साधन हो तथा वह उन साधनों को उस इच्छा की पूर्ति के लिए व्यय करने को तैयार हो।
(2) पेन्सन (Penson) के शब्दों में, आवश्यकता वस्तु विशेष की प्राप्ति के लिए एक प्रभावपूर्ण इच्छा है जो उसे प्राप्त करने के लिए आवश्यक प्रयत्न या त्याग के रूप में व्यक्त होती है।
(3) डॉ० वसु के विचार में, “वह इच्छा जिसे पूर्ण करने की योग्यता तथा उस योग्यता का प्रयोग करने की तत्परता होती है, आवश्यकता कहलाती है।”
आवश्यकता के मूल तत्व (Basic Elements of Want)
किसी आवश्यकता में निम्नलिखित तीन बातें पायी जाती-
(1) किसी वस्तु की प्राप्ति की इच्छा- कोई मानवीय इच्छा ही मानवीय आवश्यकता को जन्म देती है। प्रत्येक आवश्यकता प्रारम्भ में इच्छा होती है, किन्तु मानव की प्रत्येक इच्छा आवश्यकता नहीं बन पाती ।
(2) इच्छा की पूर्ति हेतु पर्याप्त साधन- किसी व्यक्ति के पास इच्छा की पूर्ति के लिए पर्याप्त साधन या धन होना चाहिए, अन्यथा उसकी इच्छा केवल इच्छा ही रह जायेगी।
(3) धन व्यय करने की तत्परता- यदि किसी व्यक्ति के पास अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए पर्याप्त धन तो है किन्तु कन्जूसी के कारण वह उसे खर्च करने को तैयार नहीं है, तो उसकी इच्छा आवश्यकता नहीं बन पाएगी।
आवश्यकताओं को निर्धारित करने वाले तत्त्व (मित्रता के कारण)
भिन्न-भिन्न देशों में रहने वाले व्यक्तियों की आवश्यकताओं में भिन्नता पाई जाती है। फिर एक ही देश के निवासियों की आवश्यकताएँ भी समान नहीं होतीं। आवश्यकताओं में इस मित्रता के प्रमुख कारण निम्न है-
(1) भौगोलिक कारण या प्राकृतिक कारण- किसी देश के लोगों का खान-पान, वेश-भूषा तथा रहन-सहन का ढंग वहाँ की जलवायु तथा भौगोलिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है। उदाहरणार्थ, ठण्डे प्रदेशों में ऊनी वस्त्रों तथा गर्म प्रदेशों में सूती यस्त्रों की आवश्यकता पड़ती है।
(2) शारीरिक कारण- सभी व्यक्तियों के शरीर की बनावट एक-सी नहीं होती जिस कारण उनकी आवश्यकताएँ भी समान नहीं होतीं। जैसे, बच्चों तथा रोगियों के लिए दूध आवश्यक होता है, किन्तु एक मोटे व्यक्ति के लिए दूध इतना आवश्यक नहीं होता।
(3) आर्थिक कारण- मनुष्य की आवश्यकताएँ उसकी आय पर भी निर्भर करती हैं। एक निर्धन व्यक्ति जैसे-तैसे अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं को ही सन्तुष्ट कर पाता है। मध्यम वर्ग का व्यक्ति प्रायः अनिवार्य आवश्यकताओं के साथ-साथ आरामदायक आवश्यकताओं को भी पूरा कर लेता है किन्तु धनी व्यक्ति अपनी सभी प्रकार की आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने में समर्थ होते हैं। इस प्रकार निर्धन व्यक्ति की अपेक्षा धनी व्यक्ति की आवश्यकताएँ अधिक होती हैं।
(4) सामाजिक कारण- भिन्न-भिन्न समाजों में भिन्न-भिन्न प्रकार की प्रथाओं तथा रीति-रिवाजों का प्रचलन होता है जिस कारण उनकी आवश्यकताएँ भी भिन्न-भिन्न होती है। जैसे, हिन्दू शब का दाह संस्कार करते हैं जबकि मुसलमानों तथा ईसाइयों द्वारा शव को दफनाया जाता है।
(5) राजनैतिक कारण- राजनैतिक दशाओं का भी आवश्यकताओं पर गहरा प्रभाव पड़ता है। राजनीतिक असुरक्षा, अशान्ति तथा आपातकालीन दशाओं में किसी देश के नागरिकों की आवश्यकताएँ कम हो जाती है। उदाहरणार्थ, स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय असंख्य देशवासियों द्वारा विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किए जाने तथा स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग को प्राथमिकता दिए जाने से उनकी आवश्यकताओं के स्वरूप तथा मात्रा में परिवर्तन हो गया था।
(6) धार्मिक कारण- संसार में विभिन्न धर्मों के मानने वाले रहते हैं। इन धर्मों की मान्यताओं में अन्तर पाया जाता है। जैसे, धार्मिक दृष्टि से हिन्दुओं में मांस खाना वर्जित है जबकि मुसलमान तथा ईसाई मांस का सेवन करते हैं।
(7) नैतिक कारण— जो व्यक्ति ‘सादा जीवन उच्च विचार के आदर्श में विश्वास करते हैं उनकी आवश्यकताएँ सीभित होती हैं। इसके विपरीत, जो व्यक्ति खाओ पीओ मौज उड़ाओ’ की विचारधारा में विश्वास करते हैं उनकी आवश्यकताएँ अधिक होती हैं।
(8) विज्ञापन तथा प्रचार- टी०वी०, समाचारपत्रों आदि में विज्ञापन तथा प्रचार से लोगों को नई-नई वस्तुओं का ज्ञान होता है जिस कारण उनकी आवश्यकताओं में वृद्धि हो जाती है।
(9) ज्ञान तथा शिक्षा- ज्ञान में वृद्धि के साथ-साथ मनुष्य की आवश्यकताएँ बढ़ती जाती हैं। इसके अतिरिक्त, शिक्षित तथा अशिक्षित व्यक्तियों की आवश्यकताओं में अन्तर होता है। शिक्षित व्यक्तियों को पैन, कागज, पुस्तक आदि की आवश्यकता पड़ती है जबकि अशिक्षित व्यक्तियों को इन वस्तुओं की आवश्यकता नहीं होती।
(10) आदतें, फैशन तथा रुचि- मनुष्यों की आदतों, रुचियों, फेशन तथा स्वभाव का भी आवश्यकताओं पर प्रभाव पड़ता है। कुछ वस्तुओं का उपयोग करने की मनुष्य को आदत पड़ जाती है जिनकी आवश्यकता वह बार-बार अनुभव करता है, जैसे चाय व सिगरेट पीने की आदत इसी प्रकार वस्त्र सम्बन्धी आवश्यकताएँ समाज में चल रहे फैशन से प्रभावित होती हैं। फिर मनुष्य को कुछ आवश्यकताओं का अनुभव दूसरे मनुष्यों द्वारा प्रयोग की जाने वाली वस्तुओं को देखकर होता है।
IMPORTANT LINK
- मार्शल की परिभाषा की आलोचना (Criticism of Marshall’s Definition)
- अर्थशास्त्र की परिभाषाएँ एवं उनके वर्ग
- रॉबिन्स की परिभाषा की विशेषताएँ (Characteristics of Robbins’ Definition)
- रॉबिन्स की परिभाषा की आलोचना (Criticism of Robbins’ Definition)
- धन सम्बन्धी परिभाषाएँ की आलोचना Criticism
- अर्थशास्त्र की परिभाषाएँ Definitions of Economics
- आर्थिक तथा अनार्थिक क्रियाओं में भेद
- अर्थशास्त्र क्या है What is Economics
Disclaimer