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ई-अधिगम की प्रमुख अवस्थाएँ एवं शैलियाँ | Various Modes and Styles of E-Learning in Hindi

ई-अधिगम की प्रमुख अवस्थाएँ एवं शैलियाँ | Various Modes and Styles of E-Learning in Hindi
ई-अधिगम की प्रमुख अवस्थाएँ एवं शैलियाँ | Various Modes and Styles of E-Learning in Hindi

ई-लर्निंग/ई-अधिगम की प्रमुख अवस्थाओं एवं शैलियों की विवेचना कीजिए।

ई-अधिगम की प्रमुख अवस्थाएँ एवं शैलियाँ (Various Modes and Styles of E-Learning)

ई-अधिगम की प्रक्रिया एडवॉन्स इलेक्ट्रॉनिक साधनों द्वारा प्रदान की जाती है ये इलेक्ट्रॉनिक साधन कम्प्यूटर, मल्टीमीडिया, मोबाइल एवं सूचना संचार तकनीकी के साधन आदि हो सकते हैं। इस अधिगम की दशाओं की पूर्ति प्रमुख ई-अधिगम की अवस्थाओं द्वारा देखी जा सकती हैं एवं निम्न में से किसी भी अवस्थाओं एवं शैलियों का प्रयोग किया जा सकता है- ये ई-अधिगम की अवस्थाएँ एवं शैलियाँ निम्न प्रकार स्पष्ट की जा सकती है-

ई-अधिगम की अवस्थाएँ एवं शैलियाँ

  1. आलम्ब अधिगम या सर्पोट लर्निंग
  2. मिश्रित अधिगम या ब्लैंडेड लर्निंग
  3. पूर्ण अधिगम या कम्पलीट लर्निंग

इनको निम्न प्रकार वर्णित किया जा सकता है-

1. आलम्ब अथवा सहायतित अधिगम (Support Learning)

शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में ई-अधिगम कक्षा में विभिन्न प्रकार से सहयोग एवं आलम्ब प्रदान कर सकता है। परिणामस्वरूप एक शिक्षक अपने शिक्षण प्रक्रिया को एक शिक्षार्थी की आवश्यकताओं के अनुरूप बेहतर बना सकता है। वह मल्टीमीडिया, इण्टरनेट, वेब सेवाओं का प्रयोग करके अपने शिक्षण एवं अधिगम प्रक्रिया को कक्षा-कक्ष गतिविधियों द्वारा उन्नत बना सकता है। यह निम्न प्रकार से हो सकता है-

(i) आनॅलाइन, ऑफलाइन लर्निंग (Online and Offline Learning)

ऑनलाइन एवं ऑफलाइन कम्प्यूटर तकनीकी एवं दूरसंचार के क्षेत्र में प्रयोग होने वाला एक महत्त्वपूर्ण प्रत्यय है। यहाँ ऑनलाइन, नेटवर्क से जुड़े होने की अवस्था को प्रदर्शित करता है तथा ऑफलाइन नेटवर्क से बाहर होने की अवस्था को ।

हमें यह ज्ञात है कि इंटरनेट का उपयोग करने के लिए हमें किसी भी नेटवर्क कम्पनी के माध्यम से किसी उपकरण (मॉडेम या डाटा केबल या डाटा कार्ड) के द्वारा इंटरनेट सेवाओं को प्राप्त करते हैं। जब हम इन सेवाओं को प्राप्त कर रहे होते हैं तब हम ऑनलाइन होते हैं। यदि हम इन उपकरणों का प्रयोग हटा दें, अथवा इसे बन्द कर दें तब हम नेटवर्क क्षेत्र से बाहर हो जाएँगे तथा हमारा सबसे सम्पर्क टूट जाएगा, इसे हम ऑफलाइन होना कहेंगे। उदाहरण के लिए जब हम अपने मोबाइल में नेट पैक डालते हैं तथा उसका उपयोग करते हैं तब हम ऑनलाइन रहते हैं। डेटापैक समाप्त होने पर अथवा उसका उपयोग न करने पर हम ऑफलाइन हो जाते हैं।

(ii) मोबाइल लर्निंग (Mobile Learning)

मोबाइल लर्निंग वर्तमान समय की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। मोबाइल लर्निंग से तात्पर्य किसी भी ऐसे उपक्रम से है जिसके द्वारा हम किसी भी प्रकार की शैक्षिक विषयवस्तु को अपने व्यक्तिगत मोबाइल सेट पर प्राप्त कर सकते हैं। यहाँ शैक्षिक विषयवस्तु से अर्थ वेब सेवाओं से प्राप्त अधिगम सामग्री से है जिसका प्रयोग हम इण्टरनेट द्वारा ई-लर्निंग में करते हैं।

मोबाइल लर्निंग को ई-लर्निंग का तात्कालिक वंशज या ई-लर्निंग से उत्पन्न मानते हैं। मोबाइल लर्निंग को परिभाषित करते हुए पिंकवार्ट लिखते हैं, “मोबाइल लर्निंग ई-लर्निंग का वह रूप है जिसमें सूचनाओं का आदान-प्रदान मोबाइल अथवा ताररहित उपकरण से होता है।”

मोबाइल लर्निंग द्वारा हमें सम-सामयिक घटनाओं की जानकारी निरन्तर प्राप्त होती रहती है। आज इसकी उपयोगिता प्रत्येक क्षेत्र में गाँवों, कस्बों एवं शहरों, नगरों में उच्च स्थान पर बनी हुई है।

2. ब्लेण्डेड लर्निंग या मिश्रित अधिगम (Blended Learning )

यदि ई-लर्निंग के उपागमों Synchronous या Asynchronous तथा परम्परागत शिक्षण पद्धति का प्रयोग एक साथ शिक्षण-अधिगम में किया जाता है तो इसे मिश्रित अधिगम या blended learning की संज्ञा दी जाती है।

सामान्यतः परम्परागत शिक्षण में इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों या जैसे कम्प्यूटर, सी. डी. डी. वी. डी. तथा इंटरनेट सुविधाओं या वेब ज्ञान का प्रयोग न्यूनतम होता है, और पूर्णरूपेण ई-लर्निंग में वास्तविक कक्षा-कक्ष की प्रभावशाली अन्तःक्रिया का अभाव रहता है। मिश्रित अधिगम में इन दोनों प्रणालियों की विशेषताओं को इस प्रकार नियोजित या संयोजित किया जाता है जिससे दोनों की विशेषताओं या गुणों का समावेश हो सके तथा शिक्षण अधिगम को और अधिक प्रभावी बनाया जा सके।

उदाहरण के लिए परम्परागत शिक्षण के कुछ पाठ्यक्रम को ई-लर्निंग या कम्प्यूटर और वेब ज्ञान पर आधारित करके पढ़ाये जायें।

3. पूर्ण ई-अधिगम (Complete E-Learning )

इस प्रकार के अधिगम की अवस्था में परम्परागत कक्षा शिक्षण को पूर्ण रूप से आभाषी कक्षा शिक्षण-अधिगम में स्थानान्तरित कर दिया जाता है। यहाँ पर कक्षा का स्कूलों का एवं शिक्षण अधिगम वातावरण का कोई अस्तित्व नही रहता है। जो परम्परागत यप से स्कूल शिक्षण में वातावरण प्रदान किया जाता रहा है उस वातावरण से दूर हटकर शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को सफल बनाया जाता है। शिक्षार्थी स्वतंत्रतापूर्वक अपना ज्ञान प्राप्त करने के लिए पूर्णतः ई-अधिगम के पाठ्यक्रमों की सहायता से अधिगम के लिए स्वतंत्र होत है। अधिकतम अधिगम प्रक्रियाएँ ऑन लाइन ही प्राप्त की जाती है। लेकिन कभी-कभी ऐसा भी होता है कि उन्हें पूर्ण रूप से भण्डारित सूचनाओं एवं संग्रहित अधिगम पैकेजों द्वारा शिक्षण अधिगम प्रदान किया जाता है। ये पैकेज अधिगम रिकडिंग किये गये CD-ROM, DVD इत्यादि के रूप में होते हैं।

इस प्रकार के ई-अधिगम के क्रिया-कलाप संचार की दो निम्नलिखित शैलियों में स्वीकार किये जा सकते हैं-

(i) समकालिक ई-अधिगम (Synchronous E-Learning)

समकालिक अधिगम से तात्पर्य शिक्षक तथा शिक्षार्थी का एक ही समय में अधिगम के लिए उपस्थित होना है। जैसा कि हम जानते हैं कि ई-लर्निंग में इंटरनेट और वेब सुविधाओं के मध्य किसी भी स्थान से शिक्षक एवं शिक्षार्थी में अन्तःक्रिया द्वारा शिक्षण एवं अधिगम की क्रिया संपादित होती है

समकालिक अधिगम में शिक्षक एवं शिक्षार्थी एक ही समय पर इण्टरनेट पर उपस्थित होकर एक-दूसरे से दूर होते हुए भी विचारों आदान-प्रदान करते हुए अधिगम में सहायक होते हैं। जैसे शिक्षार्थी किसी भी शंका का समाधान उसी समय प्राप्त कर सकता है। जैसा कि परम्परागत शिक्षण में होता है क्योंकि शिक्षक भी उसी समय में उपस्थित रहता है। इस प्रकार वास्तविक रूप से सामने न होते हुए भी इण्टरनेट के माध्यम से किया जाने वाला सेंक्रोनस सम्प्रेषण काफी सीमा तक शिक्षक और शिक्षार्थी को आभासी रूप से आमने-सामने लाकर शिक्षण एवं अधिगम में प्रभावी भूमिका निभाता है।

(ii) असमकालिक ई-अधिगम (Asychronous E-Learning)

जैसा कि नाम से स्पष्ट है यह समकालिक अधिगम के विपरीत है, इसमें शिक्षक एवं शिक्षार्थी इण्टरनेट व कम्प्यूटर के माध्यम से अन्तः क्रिया करते हैं किन्तु वे एक ही समय में एक साथ उपलब्ध नहीं रहते हैं। अध्ययन सामग्री वेब पर पहले से ही उपलब्ध रहती है, शिक्षार्थी अपनी सुविधानुसार या इच्छानुसार शिक्षण सामग्री का प्रयोग कर सकता है व अपनी शंका समाधान हेतु वह शिक्षक से प्रश्न भी पूछ सकता है। शिक्षक भी अपनी सुविधानुसार उसे प्रतिपुष्टि या उत्तर देकर आगे की अध्ययन सामग्री पढ़ने का निर्देश दे सकता है। इस प्रकार का अधिगम सुविधाजनक तो होता है किन्तु इसमें वास्तविक कक्षाकक्ष जिसमें आमने-सामने (face to face) अन्तःक्रिया होती है, का नितान्त अभाव होता है।

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Anjali Yadav

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