हिन्दी साहित्य

रामचरितमानस हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है | महाकाव्य की दृष्टि से रामचरितमानस की समीक्षा

रामचरितमानस हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है | महाकाव्य की दृष्टि से रामचरितमानस की समीक्षा
रामचरितमानस हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है | महाकाव्य की दृष्टि से रामचरितमानस की समीक्षा

रामचरितमानस हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है।” सिद्ध कीजिए। अथवा महाकाव्य की दृष्टि से रामचरितमानस की समीक्षा कीजिए ।

रामचरितमानस एक सफल महाकाव्य- तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ हिन्दी का एक सर्वोत्कृष्ट महाकाव्य हैं। इसमें कवि का मर्यादावाद आदर्श की भूमिका भी प्रस्तुत हुयी है। यह वह ग्रन्थ है, जिसमें भारतीय संस्कृति का उज्जवल रूप अनेक सन्दर्भों में उद्घाटित हुआ है। यह काव्य तुलसी की साहित्यिक मर्मज्ञता, भावुकता, काव्य-कुशलता एवं गम्भीरता का सर्वागपूर्ण निदर्शन है। इसमें तुलसीदास की उत्कृष्ट प्रबन्धपटुता एवं उद्भावना भक्ति के साथ-साथ उन्नत रचना- कौशल, मार्मिक स्थलों का सरस-निरूपण, प्रभावोत्पादक भाव-व्यंजना, मर्मस्पर्शी संवाद, उत्कृष्टशील निरूपण, प्रसंगानुकूल सरस एवं सुबोध भाषा, सुललित अलंकार योजना, भावानुकूल छन्द विधान आदि के दर्शन होते हैं। काव्य-कौशल एवं कला-सौन्दर्य की दृष्टि भी यह हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है।

मानस का महाकाव्य- शास्त्रीय दृष्टि से यदि मानस के महाकाव्यत्व पर विचार करना है तो हमें निम्न तत्वों की चर्चा करनी होगी-

(1) कथानक, (2) चरित्र-चित्रण, (3) प्रकृति चित्रण, (4) युग चित्रण, (5) भाव एवं रस निरूपण, (6) प्रकृति तथा (7) शिल्प कौशल।

कथानक – रामचरितमानस में आया कथानक पूरी तरह व्यवस्थित और संगठित है। वह राम कथा पर आधारित एक प्रसिद्ध कथानक है। इस कथानक की योजना नाना पुराण निगमागम के आधार पर हुई है। इसमें राम के जीवन-चरित्र को सम्पूर्णता के साथ ग्रहण नहीं किया गया है। यहाँ तो केवल राम जन्म से लेकर राम के राज्याभिषेक तक की कथा को ही प्राप्त हुआ है। समग्र कथा सात सोपानों में विभक्त है। इसमें राम जन्म से लेकर वनवास तक की घटनाएँ कथा के प्रारम्भिक भाग से सम्बन्धित हैं। वन यात्रा से लेकर सीता हरण तक की घटनाएँ कथा के मध्य भाग से सम्बन्धित हैं और सीता हरण से लेकर रावण वध तक कथा का अवसान है। तुलसीदासजी ने कार्य की दृष्टि से इस कथा की योजना की है।

रामचरितमानस का मुख्य कार्य रावण वध और साम्राज्य की स्थापना है। सम्पूर्ण कथा इसी कार्य की दृष्टि से अपसर होती हुई अन्त में अपने अभीष्ट लक्ष्य पर जाकर समाप्त हो गयी है। रामचरितमानस से राम की कथा अधिकारिक कथा है किन्तु बीच में ताड़िका बघ, अहिल्या उद्धार, शवरी- आतिथ्य, सुपीव मैत्री, शूर्पणखा मिलन, मारीच बभ और सेतु-बंध आदि जितनी भी प्रासंगिक कथाएँ हैं, वे सभी अधिकारिक कथा को विकसित और समृद्ध बनाती हैं। रामचरितमानस की कथा में नाटकोचित कार्यावस्थाएँ और सन्धियाँ आकर्षक ढंग से नियोजित हुई हैं। इस प्रकार कह सकते हैं कि रामचरितमानस का कथानक संगठित नाटकीय, प्रभावोत्पादक और घटना वैचित्रय से युक्त है। इसमें महाकाव्य के समस्त गुण विद्यमान हैं।

चरित्र-चित्रण – चरित्र चित्रण की दृष्टि से देखें तो रामचरितमानस का एक सफल महाकाव्य प्रतीत होता है। उसके नायक रघुवंश के सूर्य भगवान राम हैं। तुलसीदासजी ने राम के रूप में भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता की आदर्शमयी प्रतिमा प्रस्तुत की है। वस्तुतः तुलसी के राम न केवल आदर्श पुरुष हैं, अपितु एक महान व्यक्तित्व के धनी भी हैं। वे बुद्धिमान धर्मज्ञ, यशस्वी, प्रजापालक, धर्मरक्षक, गोपालक, सत्यसंघ, लोकप्रिय, बलशाली, त्यागी, धैर्यवान, प्रियदर्शी, धर्मात्मा, उच्च आदशों के एवं प्रतीक शक्तिशाली और सौन्दर्य के अगाध भण्डार हैं। तुलसीदासजी ने राम को मानव और वहा दोनों ही रूपों में प्रस्तुत किया है। उन्होंने अपनी उर्वर कल्पना से मानव में देवत्व की, नर में नारायण की, अथवा व्यक्ति में ब्रह्म की जो स्थापना की है, वह सर्वथा प्रशंसनीय है। राम धीरोदात्त मानव और मानव समाज के पोषक हैं। सही अर्थों में वे महाकाव्य के नायक होने के गुणों से युक्त हैं ।

राम के अतिरिक्त रामचरितमानस का प्रति नायक रावण अमत्य प्रवृत्तियों का भण्डार है, तथा अनाचार की साकार मूर्ति है। यूं तो उसमें वीरता, साहस की कमी नहीं है किन्तु कुप्रवृत्तियों की अधिकता के कारण वह एक असत पात्र है। इन दोनों पात्रों के अतिरिक्त भरत भक्ति की प्रतिमा हैं, त्याग के प्रतीक हैं, और आदर्श बन्धू हैं। लक्षमण, सुग्रीव, विभीषण, हनुमान और अंगद आदि सभी में सेवा, परोपकार, कर्तव्य परायणता के भाव विद्यमान हैं। सीता काव्य की नायिका है। वे आदर्श पत्नी, आदर्श नारी और आदर्श भारतीय कुलवधू हैं। इस प्रकार कह सकते हैं कि तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में सत और असत दोनों प्रकार के पात्रों का चित्रण बड़े ही कौशल के साथ किया है।

प्रकृति चित्रण – महाकाव्य में प्रकृति चित्रण की परम्परा मिलती है। तुलसी का रामचरितमानस प्रकृति सौन्दर्य का क्रीड़ा स्थल है। इसमें स्थान-स्थान पर वन, पर्वत, नदी, सरोवर और षटऋतुओं का मार्मिक वर्णन हुआ है। प्रकृति के विभिन्न वर्णन रामचरितमानस में प्रायः सभी कांडों में देखने को मिलते हैं। अयोध्या कांड का कामदगिरी वर्णन, अरण्य कांड का पंचवटी और पम्पा सरोवर वर्णन, किष्किंधा काण्ड का, वर्षा और शरद ऋतुओं का वर्णन तथा लंका कांड का चन्द्र वर्णन अत्यंत प्रभावशाली बन पड़ा है। पंचवटी और पम्पा सरोवर का वर्णन करते हुए कवि तुलसीदासजी ने कमलों, उन पर गूंजते हुये भ्रमरों, कलरव करते हुये जल कुक्कुटों और हंसों, विहार में लीन चक्रवाक, बक और खगों, किनारे पर स्थित मुनि गृहों, शोभा के आगाध लता विपटों, पल्लवित और कुसमित वृक्षों और फूलों, शीतल मंद सुगन्धित एवं कोयल की मधुर धुनि से पुरित- अंकित किया है। तुलसीदासजी ने वर्षा और शरद ऋतु का वर्णन उपदेशात्मक शैली में किया है। उन्होंने लिखा है कि-

दामिन दमक रही नभ माही, खल की प्रति यथा थिर नाहीं ।।

सरिता सर निर्मल जल सोहा, संत हृदय जल गत मद मोहा ॥

पंक न रेणु सोह अस धारणी, नीति निगुण नृप के जस करनी ॥

इतना ही नहीं लंका कांड में चन्द्रमा का वर्णन तुलसीदासजी ने आलंकारिक शैली में किया है। इस प्रकार स्पष्ट कि तुलसी का प्रकृति वर्णन रामचरितमानस की महाकाव्योचित शैली में किया गया है। इस वर्णन में व्यापकता है, और प्रकृति के विविध रूपों की मनोहर झांकी ही है।

युग चित्रण – महाकाव्य अपने समाकलीन युग और जीवन का प्रतिबिम्ब होता है। जिस महाकाव्य में युग का चित्रण नहीं होता, वह सही अर्थों में महाकाव्य नहीं कहा जा सकता है। रामचरितमानस एक ऐसा ही महाकाव्य है जिसमें तुलसीदासजी ने अपने युग का चित्रण पूरी ईमानदारी से किया है। रामचरितमानस में तुलसीदासजी ने अपने समय के सामाजिक, राजनैतिक, नैतिक, धार्मिक और पारिवारिक जीवन का चित्रण तो किया ही है, उस समय में फैले धार्मिक विद्वेष, विलासिता और सामाजिक विकृतियों आदि का वर्णन भी किया है। मानस में राजा एवं बादशाहों के ठाट-बाट, हास-विलास और मनोरंजन आदि का वर्णन किया गया है। मानस में वर्णित जन्म, विवाह, मृत्यु आदि के संस्कारों में तत्कालीन कथाओं का भली-भाँति ज्ञान हो सकता है।

तुलसीदासजी ने उत्तरकांड में कलयुग की दुर्व्यवस्था का चित्रण करते हुये तत्कालीन सामाजिक जीवन का यथार्थ प्रस्तुत किया है। डॉ. रामकुमार वर्मा ने ठीक ही लिखा है कि तुलसीदासजी ने मानस के उत्तरकांड में कलयुग का जो वर्णन किया है, वह उन्हीं के समय की तत्कालीन परिस्थिति थी। उस अंश को पढ़कर यह ज्ञात होता है कि कवि के मन में समाज की उच्छृंखलता के लिए कितना क्षोभ था। इसी क्षोभ की प्रतिक्रिया उनके लोक शिक्षक, समाज, चित्रण के आदर्श में है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि तुलसी के मानस में तत्कालीन युग की सम्पूर्ण झांकी दिखाई देती है। अतः इस दृष्टि से भी रामचरितमानस एक सफल महाकाव्य है।

युक्त भाव एवं रस निरूपण – तुलसीदासजी का रामचरितमानस भाव और रस निरूपण की दृष्टि से भी महाकाव्योचित विशेषताओं है। इसमें नव रसों का सजीवता के साथ चित्रण हुआ है। मानस का प्रत्येक सोपान विविध रसों से पूर्ण है। इस महाकाव्य में तुलसीदासजी की उर्वर कल्पना उत्कृष्ट भावुकता और प्रतिभा का समुचित योग दिखाई देता है। श्रृंगार वर्णन विशेषकर संयोग श्रृंगार राम और सीता के पुष्प वाटिका मिलन में मिलता है और अशोक वाटिका में समय बिताती हुई विरहणी सीता के वियोग वर्णन में विप्रलम्भ श्रृंगार की योजना हुई है। दशरथ-मरण के प्रसंग में रानियों का शोकातुर होकर रोना, करुण रस की व्यंजना करता है। धनुष यज्ञ के अवसर पर लक्षमण की वीरोचित वाक्यावली में वीर रस की आकर्षक व्यंजना हुई है तो नारद मोह के प्रसंग में हास्य रस का सुन्दर विधान हुआ है। शिवजी की बारात का चित्रण भयानक रस से युक्त है। ऐसे ही राम के विराट रूप-निरूपण में यदि अद्भुत रस की व्यंजना हुई है तो भक्ति निरूपण राम स्तुति, शिव-स्तुति, आदि में शांत रस को देखा जा सकता है। कहने का तात्पर्य यही है कि रामचरितमानस में विविध रसों की योजना हुई है। रसों के अतिरिक्त विविध संचारी भावों को भी तुलसी ने बड़ी ही कुशलता के साथ प्रस्तुत किया है। निर्वेद, शंका, ग्लानि, श्रम, आलस्य, असूया और घृति आदि संचारी भावों को रामचरितमानस में देखा जा सकता है। प्रश्न यह है कि मानस में प्रायः सभी रस तो मिलते हैं किन्तु उनका प्रमुख रस कौन-सा है ? इस सम्बन्ध में डॉ. शम्भूनाथ सिंह ने लिखा है कि “मानस में जो प्रधान रस है, वह अलौकिक श्रृंगार रस ही है और उसी की गौड़ीय अलंकारिकों ने भक्ति रस कहा है।” वस्तुतः अन्य सभी रसों की अपेक्षा मानस में भक्ति रस ही प्रचुरता से आया है। अतः इसे ही मानस का अंगी रस माना जा सकता है।

महान् उद्देश्य- कोई भी कृति निरुद्देश्य नहीं होती है। फिर महाकाव्य तो एक ऐसी कृति है जो बिना किसी उद्देश्य के लिखी ही नहीं जा सकती है। उद्देश्य की दृष्टि से मानस का अध्ययन करें तो तीन प्रमुख बातें सामने आती हैं-

(1) पहली बात तो यह है कि तुलसी ने आत्म प्रबोध अथवा अपने अन्तःकरण के सुख के मानव की रचना की है। (2) दूसरा तथ्य यह सामने आता है कि रामचरितमानस गंगा नदी के समान सभी का उपकार करने वाला प्रतीत होता है। ‘कीरति भनति भूति भलिसोई, सुरसरि सम सबकर हित होई’ कहकर तुलसीदासजी ने इसी भाव को व्यक्त किया है। इससे यह प्रकट होता है कि तुलसी ने रामचरित मानस की रचना लोक प्रमोद की आकांक्षा से की है। यह महत्वपूर्ण बात है। (3) “प्रभु सुजस संगति भनिति मन होइय सुजन मन भावति” कहकर यह भी संकेत किया है कि राम के यश का वर्णन करने से ही कोई काव्य सज्जनों के मन को अच्छा लगने वाला बन पाता है। इससे यह प्रकट होता है कि तुलसीदासजी ने रामचरित की रचना राम भक्ति का प्रचार करने के लिये की है।

उपर्युक्त तीनों उद्देश्यों को ध्यान से देखे तो हमें इनें कोई विरोध नहीं दिखलाई देता है। इन तीनों के मूल में एक ही लक्ष्य और एक ही भाव काम कर रहा है। वस्तुतः रामचरितमानस का उद्देश्य लोक मंगल है। इसी से प्रेरित होकर ऐसे लोकोपकारी काव्य की सृष्टि हो सकी है, जिस महाकाव्य का इतना महान उद्देश्य हो, उसे साधारण काव्य न मानकर महाकाव्य की संज्ञा देना उचित ही प्रतीत होता है। रामचरितमानस आज के युग में कल्याण का मार्ग दिखाने वाला महाकाव्य है।

शिल्प कौशल – रामचरितमानस तुलसी की अद्भुत प्रतिभा और कल्पना शक्ति का परिणाम है। यह कवि की उच्च कोटि की काव्य कला का उदाहरण प्रस्तुत करता है और इसकी सबसे बड़ी कलात्मकता उन मार्मिक स्थलों के चयन में दिखाई देती है। जिनको काव्य में स्थान देकर तुलसीदासजी ने अपने शिल्प कौशल का परिचय दिया है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने उन मार्मिक स्थलों में से जनक की वाटिका में राम-सीता का परस्पर दर्शन, राम वन-गमन, दशरथ-मरण, भरत की आत्मज्ञानी, वन मार्ग से मिलने वाली स्त्री-पुरुषों की सहानुभूति, युद्ध और लक्ष्मण शक्ति लगना आदि सर्वाधिक हृदय स्पर्शी प्रसंग माना है।

रामचरितमानस अवधी भाषा में लिखा गया है। इसमें उपयुक्त शब्द चयन व्यावहारिक पदावली लोकोक्तियों और मुहावरों का सार्थक प्रयोग, आकर्षण सूक्ति विधान, प्रेषणीयता और प्रसंगानुसार एवं भावानुसार भाषागत विशेषताएँ मिलती हैं। इनकी भाषा-शैली अत्यन्त सरल, सजीव और आकर्षक है। अपवाद स्वरूप जहाँ कहीं दार्शनक विवेचन है अथवा भक्ति निरूपण है, या राम और शिव से सम्बोधित स्त्रोत विधान है, वहाँ भाषा क्लिष्ट, समास बहुला और संस्कृत के निकट पहुँच गयी है।

रामचरितमानस की अलंकार योजना भी तुलसी की उत्कृष्ट काव्य कला की परिचायक है। उन्होंने जिन अलंकारों प्रयोग किया है- उनमें रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा उदाहरण, दृष्टान्त और अप्रस्तुत प्रशंसा आदि का महत्वपूर्ण स्थान है। तुलसी के अलंकारों में भावों के अनुसार सौन्दर्य वर्णन करने की अद्भुत शक्ति है। उनके प्रयोग में कहीं भी कोई वर्णन शिथिल नहीं हुआ है। मानस का छंद विधान भी तुलसी की श्रेष्ठ कलात्मकता का परिचय देता है। तुलसीदास ने रामचरितमानस के अन्तर्गत मात्रिक और वर्णिक दोनों प्रकार के छदों का सही और सफल प्रयोग किया है। मात्रिक छन्दों में चौपाई, सोरठा, दोहा, हरिगीतिका, तोमर, त्रिभंगी जैसे छंदों को अपनाया है। श्लोक वर्णित वृत्तों में अनुष्टुप्र, इन्द्रवज्रा, मालिनी, वसंततिलका, वंशस्थ और भुजंग प्रयात आदि छंदों का प्रयोग किया है।

निष्कर्ष-संक्षेप में कह सकते हैं कि तुलसी का रामचरितमानस एक श्रेष्ठ महाकाव्य है, उसमें कथानक, चरित्र, प्रकृति सौन्दर्य, युग-जीवन कलात्मकता और महान् उद्देश्य जैसी विशेषताएँ आसानी से मिल जाती हैं। वह परम्परागत शैली में लिखा गया है। सही अर्थों में रामचरितमानस तुलसी का काव्य प्रतिभा का निरुपण करने वाला सांस्कृतिक महाकाव्य है। डॉ. द्वारिकाप्रसाद सक्सेना ने ठीक ही लिखा है कि- “तुलसी का ‘रामचरितमानस’ अद्भुत काव्य-सोष्ठव, सरस रचना शैली एवं सर्वांगपूर्ण काव्य कुशलता से परिपूर्ण है। यह काव्य तुलसी की काव्य मर्मज्ञता, कलात्मकता, सरलता, भावुकता, गम्भीरता एवं रचना निपुणता का द्योतक है। इसमें तुलसी कवि और उपदेशक दोनों रूपों में विद्यमान है।”

IMPORTANT LINK

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment