समाजशास्‍त्र / Sociology

उपकल्पनाओं के स्त्रोत एंव इसके महत्व

उपकल्पनाओं के स्त्रोत एंव इसके महत्व
उपकल्पनाओं के स्त्रोत एंव इसके महत्व

उपकल्पनाओं के स्त्रोत एंव इसके महत्व | Sources of Hypothesis and their importance

उपकल्पनाओं के स्त्रोत (Sources of Hypothesis)

उपकल्पना के अनेक स्रोत होते हैं। किसी घटना के बारे में हमारे अपने विचार, हमारे व्यक्तिगत अनुभव एवं प्रतिक्रियाएँ, सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण, सिद्धान्तों में पाए जाने वाले अपवाद, समरूपता तथा साहित्य इत्यादि उपकल्पनाओं के निर्माण में सहायक हो सकते हैं। गुड एवं हैट ने उपकल्पना के निम्नांकित चार स्रोत बताए हैं-

( 1 ) सामान्य संस्कृति (General culture) – सामान्य संस्कृति उपकल्पना के निर्माण का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। विभिन्न संस्कृतियों की विशेषताएँ, प्रथाएँ, रीति-रिवाज, रूढ़ियाँ, लोकरीतियाँ, विश्वास, कहावतें इत्यादि उपकल्पनाओं के निर्माण में सहायक स्रोत हैं। सामाजिक सांस्कृतिक इकाइयों, जैसे भारत में जाति प्रथा, संयुक्त परिवार, ग्रामीण संरचना, विवाह इत्यादि में होने वाले परिवर्तन भी उपकल्पनाओं के निर्माण में सहायता देते हैं। गुड तथा हैट का कहना है कि अमेरिकी संस्कृति में व्यक्तिगत सुख को बड़ा महत्व दिया जाता है तथा इससे सम्बन्धित अनेक कारण उपकल्पनाओं के स्रोत हो सकते हैं।

( 2 ) वैज्ञानिक सिद्धान्त (Scientific Theory)- अनेक उपकल्पनाओं का निर्माण स्वयं विज्ञान तथा वैज्ञानिक सिद्धान्तों द्वारा ही होता है। प्रत्येक विज्ञान में भिन्न विषयों के बारे में कुछ सामान्यीकरण प्रचलित होते हैं और यह सामान्यीकरण अन्य विज्ञानों में समस्याओं को भी प्रभावित करते हैं। यह सामान्यीकरण तथा इनमें पाए जाने वाले सार्वभौमिक तत्व उपकल्पनाओं के मुख्य स्रोत हैं। सिद्धान्तों में पाए जाने वाले अपवाद भी उपकल्पना का स्रोत हो सकते हैं।

( 3 ) उपमाएँ या समरूपताएँ (Analogies) – उपकल्पनाओं के निर्माण में दो विभिन्न क्षेत्रों में पाई जाने वाली उपमाओं का भी विशेष महत्व है। उपमाओं के आधार पर अनुसन्धानकर्ता एक क्षेत्र में पाए जाने वाले तथ्य या व्यवहार को दूसरे क्षेत्र में ढूंढने का प्रयास करता है। यदि दो भिन्न परिस्थितियों में हमें कुछ समानता दिखाई देती है तो स्वाभाविक रूप में अनुसंधानकर्ता के मन में यह प्रश्न पैदा होता है कि ऐसा क्यों है? अतः विभिन्न व्यवहार क्षेत्रों में पाई जाने वाली समानताएँ उपकल्पनाओं के उद्गम में महत्वपूर्ण स्रोत हैं।

( 4 ) व्यक्तिगत अनुभव (Personal experience) – व्यक्तिगत अनुभव भी उपकल्पनाओं के निर्माण का महत्वपूर्ण स्रोत है। एक कुशल अनुसन्धानकर्ता अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर, जिन सामाजिक समस्याओं को वह अपने दैनिक जीवन में देखता है, उनके प्रति अपने दृष्टिकोण के आधार पर अनेक घटनाओं के सम्बन्ध के बारे में उपकल्पनाओं का निर्माण कर सकता है। परम्परागत व्यवहार में जो परिवर्तन हम देखते हैं, उसके बारे में जो हम सोचते हैं या विभिन्न इकाइयों की जो परिवर्तित परिस्थितियाँ पाई जाती हैं उनसे भी उपकल्पनाओं के निर्माण में सहायता मिलती है।

अनुसन्धान में उपकल्पनाओं का महत्व (Importance of Hypothesis in Research)

उपकल्पना वैज्ञानिक अनुसंधान का एक महत्वपूर्ण चरण है जोकि समस्या के परिसीमन एवं उससे सम्बन्धित तथ्यों के संकलन में सहायता देता है। कोहन एवं नागल (Cohen and Nagel) का कहना है कि, “हम किसी भी अध्ययन में एक पग आगे नहीं बढ़ सकते जब तक कि हम उसका प्रारम्भ किसी सुझावपूर्ण विवेचन अथवा समस्या के समाधान से न करें।” अतः उपकल्पना अनुसंधान का केन्द्रीय बिन्दु है। वैज्ञानिक अनुसंधान में उपकल्पनाओं का महत्व निम्नांकित तथ्यों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

(1 ) अध्ययन-क्षेत्र को सीमित करना (Delimiting the scope of study) – अनुसन्धानकर्ता किसी घटना, इकाई या समस्या का अध्ययन सभी पहलुओं को सामने रखकर नहीं कर सकता, अतः गहन एवं वास्तविक अध्ययन के लिए अध्ययन-क्षेत्र को सीमित करना अनिवार्य है। उपकल्पना इस कार्य में हमारी सहायता करती है। इससे हमें यह पता चलता है कि किसी वस्तु का क्या, कितना और कैसे अध्ययन करना है। अनुसंधान क्षेत्र जितना सीमित होगा, त्रुटियों की सम्भावना उतनी ही कम होती जाएगी।

( 2 ) अध्ययन को उचित दिशा प्रदान करना (Providing suitable direction to the study)- उपकल्पना केवल अध्ययन क्षेत्र को सीमित करने में ही सहायक नहीं है अपितु यह अध्ययन को उचित दिशा प्रदान करती है। पी0 वी0 यंग का कहना है कि उपकल्पना दृष्टिहीन खोज (Blind search) से हमारी रक्षा करती है। यह हमें पहले से ही इस बात की ओर इशारा करने में सहायता देती है कि हमें किस दिशा में आगे बढ़ना है। इससे व्यर्थ का परिश्रम बच जाता है और व्यय भी कम होता है।

( 3 ) अध्ययन में निश्चितता लाना (Bringing definiteness in the study) -उपकल्पना अनुसंधान को सुनियोजित एवं सुनिश्चित बनाने में सहायता देती है। इससे हमें यह पता चल जाता है कि कौन सी सूचनाएँ, कहाँ से तथा कब प्राप्त करनी है, अतः इससे अनुसंधान में अस्पष्टता एवं अनिश्चितता की सम्भावना प्रायः समाप्त हो जाती है।

( 4 ) अध्ययन के उद्देश्य का निर्धारण (Stating the purpose of study)-  उपकल्पना से अध्ययन के उद्देश्य का स्पष्ट ज्ञान हो जाता है क्योंकि किसी अमुक घटना या समस्या के अध्ययन के पीछे अनेक उद्देश्य हो सकते हैं। उपकल्पना से हमें यह पता चलता है कि हम किसकी खोज करें।

( 5 ) सम्बद्ध तथ्यों के संकलन में सहायक (Helpful in collection of relevant data) – उपकल्पना अध्ययन को दिशा प्रदान करके इसमें केवल निश्चितता ही नहीं लाती अपितु समस्या से सम्बन्धित तथ्यों के संकलन में भी सहायता देती है। अनुसंधानकर्ता केवल उन्हीं तथ्यों को एकत्रित करता है जिनके आधार पर उपकल्पना की सत्यता की जाँच हो सकती है तथा इस प्रकार वह अनावश्यक तथ्यों के संकलन से बच जाता है।

(6) निष्कर्ष निकालने में सहायक (Helpful in drawing conclusions) – उपकल्पना के द्वारा दो चरों में जिस प्रकार के सम्बन्ध का अनुमान लगाया गया है वह अनुसन्धान द्वारा या तो सत्य प्रमाणित होता है या असत्य। अतः यह निष्कर्ष निकालने एवं यहाँ तक कि समस्याओं के समाधान निकालने में सहायक सिद्ध हो सकती है।

(7) सत्यता की खोज करने में सहायक (Helpful in searching the truth) – उपकल्पना अध्ययन को स्पष्ट एवं निश्चित बना कर तथा प्रमाणित आँकड़ों के कारण सत्यता की खोज में सहायता देती है क्योंकि उपकल्पना की जाँच वास्तविक तथ्यों के आधार पर ही की जाती है।

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Anjali Yadav

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