हिन्दी साहित्य

कवि मलिक मुहम्मद जायसी के रहस्यवाद को समझाकर लिखिए।

कवि मलिक मुहम्मद जायसी के रहस्यवाद को समझाकर लिखिए।
कवि मलिक मुहम्मद जायसी के रहस्यवाद को समझाकर लिखिए।
कवि मलिक मुहम्मद जायसी के रहस्यवाद को समझाकर लिखिए। 

रहस्यवाद दो तरह का होता है- भावात्मक रहस्यवाद और साधनात्मक रहस्यवाद। भावात्मक रहस्यवाद में भावना के सूक्ष्म एवं स्थूल रूपों का चित्रण होता है जबकि साधनात्मक रहस्यवाद में योग, तंत्र तथा रसायन आदि तत्वों का समावेश होता है। हिन्दी के कवियों में यदि कहीं रमणीय और सुन्दर अद्वैत रहस्यवाद है तो जायसी में उनकी भावुकता बहुत उच्च कोटि की है। वे सफियों के भक्ति भावना के अनुसार कहीं तो परमात्मा के प्रियतम के रूप में देखकर संसार के नाना रूपों में उस प्रियतम के रूप माधुर्य की छाया देखते हैं और कहीं सारे प्राकृतिक रूपों और व्यापारों का ‘पुरुष’ के समागम हेतु प्रकृति के शृंगार उत्कण्ठा या विरह विफलता के रूपों में अनुभव करते हैं। इस दृष्टि से जायसी अद्वैतवाद के समर्थक थे। अतः उनके काव्य में रहस्यवाद की भावना स्वतः प्रसारित हो उठी है। जायसी ने सम्पूर्ण सृष्टि में प्रभुसत्ता का दर्शन किया है

“रवि ससि, नखत दियाहिं ओहि जोती।
रतन पदारथ मानिक मोती ॥
जहँ जहँ बिहँसि सुभावहि हँसी ।
तहँ तहँ छिटकि जोति परगसी ॥

जायसी ने अपनी रहस्यात्मक उक्तियों में उस परम सत्ता के साधक, साधना-पथ एवं साधना पथ के विघ्नों का भी बड़ा ही सजीव वर्णन किया है। उठा रोइ हो ग्यान सो खोआ “कहकर साधक को बालक की तरह रोते हुए दिखाया गया है।

साधना का यह पथ सरल एवं सुगम नहीं है। संसार से पूर्ण विरक्त योगी, तपस्वी, संन्यासी आदि को ही इस साधना पथ का पथिक बताया है।

“ओहि पथ जाइ जो होइ उदासी ।
जोगी, जती तपा संन्यासी ॥ “

इसके अतिरिक्त भी साधना पथ की अन्यन्य बाधाओं की ओर संकेत किया है-

“है आगे परबत कै बाटा ॥
विषम पहार अगम सुठि घाटा ॥
बिच-बिच नदी खोह और नारा।
ठावहिं ठाव बैठ बटपारा।”

जायसी का रहस्यवाद प्रकृतिमूलक है। इसमें सौन्दर्य के द्वारा अहम का इदम से सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास किया गया है। सम्पूर्ण दृश्य जगत उसी परम ब्रह्म की सृष्टि है। उसी परम सत्ता के द्वारा चन्द्रमा, सूर्य, पर्वत, तारों आदि का निर्माण किया गया है।

‘सरग साहज कै धरती साजी। बरन बरन सृष्टि उपराजी ॥
साजे चाँद सूरज और तारा साजे वन कहँ समुद पहारा॥”

जायसी के रहस्यवाद में ‘सर्वखल्विदं ब्रह्म’ की प्रतिष्ठा हुई है। उन्होंने सर्ववाद का आश्रय लेकर सम्पूर्ण सृष्टि में उसी का प्रकाश दिखाया है-

“रवि ससि नखत दिपहिं ओहि जोती।
रतन पदारथ मानिक मोती॥”

पद्मावती के सौन्दर्य में भी उसी सत्ता का परम प्रकाश है-

“जेहि दिन दसन जोति निरमई। बहुते जोति-जोति ओहि भई ॥

जायसी के रहस्यवाद की एक अन्य विशेषता उसकी प्रतीकात्मकता है। सूफी रहस्यवाद में प्रतीकों का प्रचुर प्रयोग हुआ है। पं. चन्द्रबली पाण्डेय सफियों के प्रतीकों पर विचार हुए लिखते हैं- “सफियों के रक्षक उनके प्रतीक ही रहे हैं। यों तो किसी भी भक्ति भावना में प्रतीकों की प्रतिष्ठा होती है, पर वास्तव में तसव्वुफ् में उसका पूरा प्रसार है। प्रतीक ही सूफी साहित्य के राजा हैं। सूफी प्रेम को सब प्रतीकों में श्रेष्ठ बताते हैं। “

जायसी के साहित्य में सबसे बड़ा प्रतीक ‘पद्मावती’ है। लौकिक दृष्टि से पद्मावती सिंहलद्वीप के राजा गन्धर्वसेन की कन्या है तथा राजा रतन सेन की पत्नी एवं प्रेमिका परन्तु अलौकिक दृष्टि से वह ब्रह्म की प्रतीक है। पद्मावती का रूप पारस है, वह अपने रूप से अन्य व्यक्तियों तथा वस्तुओं को भी रूप प्रदान करती है। वस्तुतः वह विश्व व्यापक ब्रह्म की महाज्योति का ही दूसरा रूप है-

“कहा मानसर चाह सो पाई।
पारस रूप इहाँ लाग आई।
भा निरमल तिन्ह पायन्ह परसे।
पावा रूप रूप के दरसे ॥”

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि जायसी के रहस्यवाद में संवेदनशीलता एवं सहानुभति के साथ-साथ रमणीयता एवं रसमयता के भी दर्शन होते हैं। उनके रहस्यवाद में भावुकता का प्राधान्य है। पद्मावत में रहस्यवाद की सभी स्थितियाँ विद्यमान हैं। जायसी ने साधक की जिज्ञासा, उसके दर्शन या मिलन का प्रयास, भौतिक विघ्नों की विवृत्ति, साध्य के दर्शन का अभ्यास एवं साधक के मिलने की आनन्दमयी स्थिति के बड़े ही सजीव एवं हृदयग्राही चित्र अंकित किए हैं।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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