पत्राचार से क्या आशय है? एक अच्छे पत्र की विशेषताएं बताईये।
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पत्राचार : विशेषताएं और प्रकार
मनुष्य की भावनाओं की स्वाभाविक अभिव्यक्ति पत्राचार से ही होती है। निश्छल भावों और विचारों का आदान-प्रदान पत्रों द्वारा ही सम्भव है। पत्र लेखन दो व्यक्तियों के बीच होता है। इसके द्वारा दो हृदयों का सम्बन्ध दृढ़ होता है। अतः पत्राचार ही एक ऐसा साधन है, जो दूरस्थ व्यक्तियों को भावना की एक संगमभूमि पर ला खड़ा करता है और दोनों में आत्मीय सम्बन्ध स्थापित करता है। पति-पत्नी, भाई-बहन, पिता-पुत्र-इस प्रकार के हजारों सम्बन्धों की नींव यह सुदृढ़ करता है। व्यावहारिक जीवन में यह सेतु है, जिसमें मानवीय सम्बन्धों की परस्परता सिद्ध होती है। अतएव पत्राचार का हमारे जीवन में बड़ा महत्व है।
मुख्यतः पत्राचार एक ऐसा साधन है जो दूरस्थ व्यक्तियों की भावनाओं को एक संगम भूमि पर लाकर खड़ा कर देता है और दोनों के आत्मीय सम्बन्ध को व्यक्त करता है। सामाजिक, व्यावसायिक और प्रशासकीय सभी क्षेत्रों में पत्राचार एक अनिवार्यता बन गई है।
पत्र की विशेषतायें
पत्राचार एक ऐसा साधन है जो दूरस्थ व्यक्तियों की भावना को एक संगम भूमि पर लाकर खड़ा कर देता है और दोनों के आत्मीय सम्बन्ध को व्यक्त करता है। एक उत्कृष्ट पत्र में निम्नांकित विशेषताएं होनी चाहिए –
(1) भाषा में सरलता- आदर्श पत्र लेखन की एक प्रमुख विशेषता यह होती है कि वह दुर्बोध नहीं होनी चाहिए, अर्थात् पत्र में सरलता का होना नितान्त आवश्यक होता है। पत्र लेखक के विचार तथा पत्र का उद्देश्य प्रेषिती की समझ में सहज भाव से आना चाहिए। दुर्बोध पत्र का कोई उपयोग नहीं माना जा सकता। पत्र द्वारा कही जाने वाली बातों एवं तथ्या को सीधे ढंग से और स्पष्ट रूप से कहा जाना चाहिए।
(2) विचारों में स्पष्टता- प्रभावशाली पत्र लेखन का दूसरा महत्वपूर्ण सिद्धान्त हैं, उसकी स्पष्टता। पत्र में स्पष्टता होने के लिए लेखन की विशेष शैली अपनायी जानी चाहिए। पत्र में लम्बे वाक्य-विन्यास और अत्यन्त कठिन शब्दों का कभी भी उपयोग नहीं किया जाना चाहिए, वरना पत्र पढ़ते समय पाठक को शब्दावली या शब्दकोष सामने रखना पड़ सकता है, जो हास्यास्पद होगा ध्यान रहे कि पत्र चाहे व्यक्तिगत हो, सरकारी हो या व्यापारिक विद्वता प्रकटीकरण का माध्यम नहीं है।
( 3 ) संक्षिप्तता- कोई भी कार्यालयीन पत्र संक्षिप्त होना बहुत जरूरी है। संक्षिप्तता प्रभावोत्पादकता कही जा सकती है। किसी भी पत्र को निबन्ध का स्वरूप नहीं दिया जाना चाहिए, वरना मूल अभीष्ट बातों का सम्प्रेषण छूटकर अन्य बातों का ही प्रक्षेपण अधिक मात्रा में हो जायेगा। संक्षिप्तता में प्रेषक तथा प्रेषिती दोनों को ही सुविधा होती है। सरकारी पत्र में अवांतर बातें न लिखकर सन्दर्भ एवं प्रसंगानुरूप केवल आवश्यक बातों को ही सीधे ढंग से लिखा जाना चाहिए।
( 4 ) शिष्टता– कार्यालयीन पत्र ही नहीं, अपित सभी प्रकार के पत्र लेखन की भाषा शिष्ट तथा विनम्र होनी चाहिए। पत्र अगर नकारसूचक भी हैं, अर्थात् पत्र द्वारा किसी बात को नकारात्मक भी कहना हो तो उसे विनम्रतापूर्वक ही कहा जाना चाहिए ताकि पत्र पाने वाले के मन को चोट न लगने पाये।
(5) प्रभावोत्पादकता- शासकीय पत्र में भाषा, पद-विन्यास, वाक्य-विन्यास, विचार तथा भावों की ऐसी सुगठित अन्विती होनी चाहिए जिससे पत्र का एक संकलित प्रभाव प्रेषिती के मन पर पड़ सके। सरकारी यन्त्रणा में प्रभावहीन पत्रों का कोई अर्थ नहीं होता। पत्र लेखन में प्रभावोत्पादकता लाने के लिए पत्र लेखक को शासकीय कार्यप्रणाली, सरकारी नीति तथा सम्बन्धित विषय की गहरी समझ होनी चाहिए। प्रभावपूर्ण हिन्दी पत्र लिखते समय सम्बन्धित विषयों की पारिभाषिक शब्दावली की ओर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।
(6) वैशिष्ट्यपूर्ण भाषा- शैली पत्राचार की भाषा और साहित्यिक भाषा में पर्याप्त अन्तर होता है। खासतौर पर सरकारी पत्राचार में भाषा पर अनेक बंधन अपने आप आ जाते हैं। सरकारी पत्रों में साहित्य से सम्बन्धित मुहावरों, कहावतों तथा शेरो-शायरी आदि का कदापि उपयोग नहीं किया जाता। पत्र की प्रकृति के अनुसार पत्र द्वारा विचारों, कथ्यों, भावों आदि को सहजता एवं सुगमता से प्रक्षेपित किया जाना चाहिए।
पत्रों के प्रकार
साधारण रूप में हम पत्राचार को तीन वर्गों में विभक्त कर सकते हैं-
- सामाजिक पत्र (Social Letters)
- व्यावसायिक पत्र (Commercial Letters)
- सरकारी पत्र (Official Letters)
(1) सामाजिक पत्र – सामान्य सामाजिक सम्बन्धियों के मध्य चलने वाला पत्राचार इस वर्ग के अन्तर्गत आता है, जिसके अनेक रूप हैं। जैसे सम्बन्धी जनों के पत्र, बधाई-पत्र, निमंत्रण पत्र, परिचय पत्र आदि। इस कोटि के पत्रों में कलात्मकता और भावात्मकता, व्यावसायिक या सरकारी पत्रों की अपेक्षा अधिक होती है। इन पत्रों से पत्र लेखक के व्यक्तित्व और मनोवृत्ति का परिचय सहजता से प्राप्त हो जाता है। सामाजिक पत्रों में शिष्टता, सौजन्य और सहृदयता होना आवश्यक है।
(2) व्यावहारिक पत्र – आज का युग अर्थ-प्रधान है। प्रत्येक युग में अर्थ की सत्ता और व्यवसाय की महत्ता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सर्वोपरि रही है, तद्नुरूप भाषा भी उसी के अनुकूल व्यावहारिक या व्यावसायिक रही है। व्यवसायी एक-दूसरे क्षेत्र या प्रदेश को यात्रा करते रहते हैं। फलस्वरूप एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक अपना सम्बन्ध बनाये रखने के लिए पत्र लेखन की आवश्यकता पड़ती है। व्यापार या व्यवसाय से सम्बन्धित जो पत्र लिखे जाते हैं, उसे व्यापारिक पत्र कहते हैं। व्यावसायिक पत्रों की भाषा शैली औपचारिक हो तथा बात को एकदम नपे-तुले ढंग से कहा जाना चाहिए। सभी प्रकार के पत्र में एक बात का ध्यान रखा जाना चाहिए पत्र में जो कुछ लिखा जाय अर्थात उसमें लिखी हुई बात पढ़ने वाले की समझ में एकदम आ जानी चाहिए।
आधुनिककाल में व्यवसाय की सफलता बहुत कुछ सफल पत्र लेखन पर निर्भर रहती है, क्योंकि समस्त व्यवसाय, व्यापार पत्रों के माध्यम से ही चलाया जाता है। विश्वव्यापी व्यापारिक क्षेत्र में व्यक्तिगत सम्पर्क सम्भावना बहुत कम होती है।
(3) सरकारी पत्र – शासकीय कर्मचारियों अथवा अधिकारियों द्वारा एक कार्यालय या विभाग से दूसरे कार्यालय अथवा विभाग को लिखे गये पत्र शासकीय अथवा सरकारी प कहलाते हैं। इन पत्रों का ज्ञान सरकारी कर्मचारियों से ही नहीं अपितु व्यावसायिक संस्थाओं . के कर्मचारियों के लिए भी आवश्यक होता है। प्रायः व्यावसायिक संस्थाएँ सरकारी कार्यालयों को परमिट, लाइसेन्स और ठेके आदि के लिए पत्र भेजी हैं। अतः किसी न किसी व्यक्ति को इसके प्रारूप तैयार करने ही पड़ते हैं। अतः प्रतिष्ठानों के लिए इस पत्र व्यवहार का ज्ञान भी उपयोगी है।
सरकारी पत्र एक विशिष्ट शैली में लिखे जाते हैं। इनमें न तो पारिवारिक पत्रों के समान आत्मीयतापूर्ण वाक्य होते हैं और न ही व्यावसायिक पत्रों की भांति औपचारिकता। ये पत्र पूर्णतः अनौपचारिक होते हैं। इन पत्रों की भाषा अपेक्षाकृत सुस्त महसूस होती है। संदेह, अनिश्चय और अतिशयोक्ति, इन पत्रों के दोष माने जाते हैं। ये पत्र यथासंभव संक्षिप्त स्पष्ट एवं निष्पक्ष होते हैं।
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