कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

भारत में जनसंख्या की समस्या (Population Problem in India)

भारत में जनसंख्या की समस्या (Population Problem in India)
भारत में जनसंख्या की समस्या (Population Problem in India)

भारत में जनसंख्या की समस्या (Population Problem in India)

वास्तव में जनसंख्या वृद्धि का राष्ट्रीय उत्पादन तथा प्रति व्यक्ति आय पर अन्तिम प्रभाव धनात्मक ऋणात्मक या तटस्थ होगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि जनसंख्या वृद्धि का प्रतिरूप क्या है और यह किन दशाओं में हो रहा है।”

-आर०टी० गिल

प्रारम्भिक- जनसंख्या तथा आर्थिक विकास का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है। जनसंख्या आर्थिक विकास को प्रभावित करती है तथा आर्थिक विकास जनसंख्या को प्रभावित करता है। अतः भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रकृति को भली-भाँति समझने के लिए भारत में जनसंख्या सम्बन्धी विशेषताओं को जानना आवश्यक है।

भारत में जनसंख्या वृद्धि की विशेषताएँ

भारत में सन् 1872 में पहली बार जनगणना हुई थी, किन्तु जनसंख्या का क्रमवार आकलन सन् 1881 से प्रत्येक 10 वर्ष के बाद किया जा रहा है। भारत में अन्तिम जनगणना सन् 2001 में की गई थी। समय-समय पर की गई जनगणना के आधार पर भारत की जनसंख्या सम्बन्धी प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित है-

(1) भारत में जनसंख्या का आकार- जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में चीन के बाद दूसरा तथा क्षेत्रफल की दृष्टि से सातवाँ स्थान है। भारत विश्व के 2.4 प्रतिशत क्षेत्र पर संसार की 1.5% आप के द्वारा 17.5% प्रतिशत जनसंख्या का भरण-पोषण कर रहा है। इससे स्पष्ट होता है कि भारत में जनसंख्या का भार बहुत अधिक है। भारत की जनसंख्या 1981 में 68.63 करोड़ थी जो बढ़कर 1991 में 84.63 करोड़, 2001 में 102.7 करोड़ तथा 2011 में 121 करोड़ हो गई थी। अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2050 तक भारत विश्व का सर्वाधिक जनसंख्या वाला राष्ट्र हो जायेगा।

देश में सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य उत्तर प्रदेश ही रहा है। जनगणना 2011 के अनुसार उत्तर प्रदेश की जनसंख्या 19,95,81,477 (19.95 करोड़) रही जो देश की कुल जनसंख्या का लगभग 1649 प्रतिशत है। भारत के अतिरिक्त विश्व के केवल चार राष्ट्र (चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, इण्डोनेशिया व ब्राजील) ही ऐसे हैं जिनकी जनसंख्या उत्तर प्रदेश की जनसंख्या से अधिक है। जनसंख्या के मामले में उत्तर प्रदेश के बाद दूसरा व तीसरा स्थान क्रमशः महाराष्ट्र तथा बिहार का है।

भारत तथा चीन की जनसंख्या की तुलना- चीन तथा भारत विश्व के दो सबसे अधिक जनसंख्या वाले राष्ट्र हैं। विश्व की एक-तिहाई जनसंख्या इन दोनों देशों में निवास करती है। दोनों ही राष्ट्रों में 10-10 वर्ष के अन्तराल के बाद जनगणनाएँ सम्पन्न हुई हैं। वर्ष 2010 में चीन की जनसंख्या लगभग 133 करोड़ थी जबकि भारत में सम्पन्न जनगणना 2011 के अनुसार भारत की जनसंख्या 121 करोड़ थी।

उपर्युक्त आँकड़ों के अनुसार भारत की मौजूदा जनसंख्या चीन की जनसंख्या से केवल लगभग 12 करोड़ ही कम है। दोनों देशों की वार्षिक वृद्धि दर को देखते हुए वर्ष 2025-50 के बीच कभी भी भारत की जनसंख्या चीन की जनसंख्या से अधिक हो सकती है।

जनगणना 2011- जनगणना 2011 के ऑकड़ों के अनुसार देश की जनसंख्या बढ़कर 121 करोड़ हो गयी है। उत्तर प्रदेश 20 करोड़ की आबादी के साथ अब भी पहले स्थान पर बना हुआ है।

(2) जन्म-दर तथा मृत्यु दर (Birth Rate and Death Rate) एक वर्ष में प्रति हजार व्यक्तियों के पीछे जितने बच्चे जन्म लेते हैं वह ‘जन्म दर’ कहलाती है तथा एक हजार व्यक्तियों के पीछे जितने व्यक्तियों की मृत्यु होती है वह ‘मृत्यु दर’ कहलाती है। भारत में जनसंख्या की जन्मन्दर तथा मृत्यु दर दोनों ही संसार के अनेक राष्ट्रों से अधिक है।

स्वास्थ्य तथा चिकित्सा सम्बन्धी सुविधाओं में सुधार के कारण गत वर्षों में मृत्यु दर में तीव्रता से कमी हुई है किन्तु जन्म-दर में उतनी तीव्रता से कमी नहीं हुई है, जिस कारण वृद्धि दर बढ़ती गई है।

(3) जनसंख्या का घनत्व (Denisity of Population)— ‘जनसंख्या का घनत्व’ लोगों की उस संख्या को कहते हैं, जो एक वर्ग किलोमीटर में रहती है। किसी देश के समस्त क्षेत्रफल को वहाँ की कुल जनसंख्या से भाग देने पर जो भजनफल आता है उसे ही जनसंख्या का घनत्व’ कहा जाता है। इस प्रकार जनसंख्या के घनत्व से आशय ‘मानव-भूमि अनुपात’ से है।

(4) साक्षरता (Literacy)-भारत में शिक्षित व्यक्ति’ (Literate Person) 7 वर्ष से अधिक आयु वाले उस व्यक्ति को कहते हैं जो किसी भी भाषा को पढ़ तथा लिख सकता है। 2001 की जनगणना के अनुसार देश में साक्षरता की दर 65.38 प्रतिशत थी जो पुरुषों में 75.85 प्रतिशत तथा महिलाओं में 54.16 प्रतिशत थी। 2011 की जनगणना के अनुसार साक्षरता की दर 74.04 प्रतिशत थी। सर्वाधिक साक्षरता वाला राज्य केरल रहा जहाँ 93.91% लोग साक्षर पाए गए। महिलाओं की साक्षरता दर भी सबसे अधिक केरल में है जहाँ यह 91.98% है। राज्यों में सबसे कम साक्षरता (63.82%) बिहार राज्य में पाई गई है। उत्तर प्रदेश में साक्षरता दर 69.72 पाई गई जिसमें 79.24% पुरुष साक्षर तथा 59.26% महिला साक्षर थे।

जनगणना 2011- जनगणना 2011 के अस्थायी आँकड़ों के अनुसार भारत का साक्षरता प्रतिशत बढ़कर 74.04 हो गया है, पुरुष साक्षरता का प्रतिशत 82.14 है जबकि महिला साक्षरता का प्रतिशत अब 65.46 हो गया है।

(5) स्त्री-पुरुष अनुपात (Sex Ratio) समूचे विश्व में स्त्रियाँ पुरुषों से कम हैं संसार में स्त्रियों का अनुपात 992 प्रति हजार पुरुष है। 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में प्रति हजार पुरुषों के पीछे 933 स्त्रियाँ है जबकि 1991 में 927 स्त्रियी थीं। भारत में केवल केरल में स्त्रियों की संख्या पुरुषों से अधिक है; केरल में स्त्रियों का अनुपात 1058 है।

सन् 2001 में 18 राज्य ऐसे थे जहाँ स्त्री-पुरुष अनुपात भारत के औसत स्त्री-पुरुष अनुपात 933 से कम था।

जनगणना 2011- स्त्री-पुरुष अनुपात 933 से बढ़कर 940 हो गया है। इस सम्बन्ध में हरियाणा और पंजाब 877 और 893 के औसत के साथ सबसे निचले पायदान पर हैं।

स्त्री-पुरुष अनुपात का किसी देश की जनसंख्या में विशेष स्थान होता है। यह अनुपात देश में विवाह-दर तथा बच्चों की संख्या को भी प्रभावित करता है। स्त्रियों का अनुपात कम होने से कई प्रकार की सामाजिक तथा नैतिक बुराइयों बढ़ती है।

(6) जीवन की अवधि (Expectation of Life) जीवन की अवधि से अभिप्राय किसी देश के निवासियों की औसत आयु से होता है। भारत में जीवन की अवधि बहुत कम थी जिसमें विकास योजनाओं के फलस्वरूप वृद्धि हुई है। सन् 1921 में औसत आयु केवल 19.4 वर्ष थी जो 1951, 1971 तथा 1991 में बढ़कर क्रमशः 33 वर्ष, 52 वर्ष तथा 59 वर्ष हो गई थी। सन् 2001 की जनगणना के अनुसार जीसत आयु बढ़कर 64 वर्ष हो गई थी।

(7) जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना (Occupational Structure of Population)—सभी व्यवसायों को तीन वर्गों में विभक्त किया जाता है- (1) प्राथमिक क्षेत्र (Primary Sector)–इसमें कृषि, पशुपालन, वन, मछली पकड़ना, खनन आदि को शामिल किया जाता है। (2) माध्यमिक क्षेत्र (Secondary Sector)- इसमें कारखाना उद्योग, कुटीर तथा लघु उद्योग, खनिज उद्योग, विनिर्माण, बिजली आदि शामिल किए जाते हैं। (3) तृतीयक क्षेत्र (Teritary Sector)- इस क्षेत्र को ‘सेवा उद्योग’ भी कहा जाता है। इस क्षेत्र का विकास तथा विस्तार आर्थिक विकास का सूचक होता है।

भारत में सन् 1901 में प्राथमिक क्षेत्र में 72 प्रतिशत जनसंख्या लगी हुई थी जो 1991 में घटकर 67 प्रतिशत रह गई यी माध्यमिक क्षेत्र में 1901 में 12.69% जनसंख्या संलग्न थी जो 1991 में बढ़कर 12.13% हो गई थी। तृतीयक क्षेत्र में 1901 में 15.7 प्रतिशत जनसंख्या लगी हुई थी जो 1991 में बढ़कर 20.50 प्रतिशत हो गई थी।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि गत 90 वर्षों में भारत का व्यावसायिक ढाँचा लगभग स्थिर रहा है। देश की अधिकतर जनसंख्या अब भी कृषि पर निर्भर करती है। इसका मुख्य कारण भारत की विकास दर का धीमा होना है। इसके अतिरिक्त, देश में आधारभूत तथा भारी उद्योगों का अधिक महत्त्व है जो पूँजी प्रधान उद्योग हैं। ऐसे उद्योगों में रोजगार के अवसर कम बढ़ पाते हैं।

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Anjali Yadav

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