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भारत में निर्वाचन आयोग (Election Commission of India)
भारत के संविधान के अन्तर्गत निर्वाचन आयोग की व्यवस्था अनुच्छेद 324 में की गयी है। इस अनुच्छेद में कहा गया है कि चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त (Chief Election Commissioner ) तथा अन्य चुनाव आयुक्त होंगे, जिन्हें राष्ट्रपति समय-समय पर नियुक्त करें। अनुच्छेद 324 से 329 तक आयोग व निर्वाचन सम्बन्धी उपबन्ध हैं।
मुख्य निर्वाचन आयुक्त के पद को सुरक्षित बनाया गया है। संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार, उसे पदमुक्त उसी प्रकार किया जा सकता है जिस प्रकार उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश को किन्तु जहाँ न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक पदासीन रह सकते हैं वहाँ मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति किसी भी असीमित अवधि तक के लिए की जा सकती है।
निर्वाचन के लिये प्रशासकीय तन्त्र में दूसरा स्थान राज्य स्तर पर निर्वाचन विभाग का है जिसके अध्यक्ष को मुख्य निर्वाचन अधिकारी कहा जाता है और जिसकी नियुक्ति भारतीय प्रशासनिक अथवा न्यायिक सेवाओं में से निर्वाचन आयोग द्वारा राज्य सरकार के परामर्श से की जाती है। उसके मुख्य कार्य हैं— आयोग के अधीक्षण, निर्देशन तथा नियन्त्रण में मतदाता सूचियाँ तैयार करवाना, उन्हें नवीनतम रखना और निर्वाचन करवाना, आम चुनावों के समय प्रत्येक राज्य में निर्वाचन तन्त्र का प्रायः अपना रूप होता है। किसी राज्य में पूर्णकालिक निर्वाचन अधिकारी होता है तो किसी में अंशकालिक। पूर्णकालिक अधिकारी के अधीन अन्य कर्मचारी होते हैं, जैसे- उप अधिकारी, सहायक निर्वाचन अधिकारी, अन्य अधीनस्थ कर्मचारी वर्ग आदि। ये सभी पद साधारणतया स्थायी होते हैं। निर्वाचन के समय अल्पकालिक आधार पर आवश्यक आर्थिक वर्ग भी रखा जाता है।
निर्वाचन क्षेत्रों से मतदाता सूची तैयार करने के लिए तीन स्थायी उपकरणों की व्यवस्था है-
(1) निर्वाचन आयोग,
(2) मुख्य निर्वाचन अधिकारी, और
(3) निर्वाचन सम्बन्धी पंजीयन अधिकारी।
राज्य का मुख्य निर्वाचन अधिकारी ही सरकार के निर्वाचन विभाग का निर्देशक होता है और स्थानीय संस्थाओं के निर्वाचन कार्य उसके अधीन होते हैं। स्थानीय संस्थाओं के लिये चुनाव अधिकारी तथा निर्वाचन पंजीयन अधिकारी स्वयं जिलाधीश होता है।
संविधान के अनुच्छेद 327 द्वारा संसद तथा राज्यों के विधान-मण्डलों के निर्वाचनों से सम्बद्ध सभी मामलों में विधि को इस सम्बन्ध में कछ सीमित-सी शक्ति अनुच्छेद 328 द्वारा दी गयी है किन्तु राज्य विधान-मण्डलों द्वारा पारित ऐसा कोई विधान संसद द्वारा पारित विधान के विरुद्ध हो सकता है।
संसद ने चुनावों के सम्बन्ध में दो मुख्य अधिनियम पास किये हैं। पहला, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 (Representation of the People’s Act, 1950) जो कि मतदाताओं की योग्यताओं तथा चुनाव सूची के निर्माण से सम्बन्धित है। इसमें चुनाव क्षेत्रों का निर्धारण, संसद में विभिन्न राज्यों का प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिये उनके स्थानों की संख्या तथा विभिन्न व्यवस्थापिकाओं के सदस्यों की संख्या का निर्धारण भी शामिल है। दूसरा, अधिनियम, जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1952 है जिसमें चुनाव से सम्बन्धित व्यावहारिक बातों का उल्लेख किया गया है।
निर्वाचन हेतु प्रत्येक क्षेत्र में एक निर्वाचन अधिकारी (Returning officer) होगा। चुनाव की व्यवस्था हेतु बड़ी संख्या में पीठासीन अधिकारी व मतदान अधिकारी भी तैनात किये जाते हैं। इन अधिकारियों की सहायतार्थ व व्यवस्था बनाने हेतु आवश्यकतानुसार पुलिस बल की भी व्यवस्था की जाती है।
निर्वाचन आयोग के कार्य (Functions of Election Commission)
चुनाव आयोग के प्रमुख कार्य निम्नांकित हैं—
(1) चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन करना ।
(2) मतदाताओं की सूचियाँ तैयार करना तथा उनका प्रकाशन।
(3) चुनाव चिन्हों की व्यवस्था करना ।
(4) निर्वाचन सामग्री का प्रबन्ध करना, जैसे- मतपत्र, मतदान पेटी, स्याही, मोहर आदि की व्यवस्था ।
(5) निर्वाचन कार्यक्रम तैयार करना।
(6) नामजदगियों की व्यवस्था करना।
(7) अभिकर्त्ता व्यवस्था ।
(8) मतदान व्यवस्था ।
(9) गणना और परिणाम की उद्घोषणा।
(10) जमा एवं उसका प्रबन्ध ।
(11) निर्वाचन व्यय पर सीमाओं का आरोप ।
(12) संसद, राज्य विधान-मण्डलों, राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के चुनावों का अधीक्षण, निर्देशन और नियन्त्रण करना।
(13) निर्वाचन सम्बन्धी विवादों के निर्णय करने की व्यवस्था करना।
(14) विभिन्न राजनैतिक दलों को मान्यता प्रदान करना ।
(15) राजनीतिक दलों को आकाशवाणी पर चुनाव भाषणों के प्रसारण की सुविधाओं की व्यवस्था कराना। राजनीतिक दलों के लिये आचार संहिता का निर्माण करना ।
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