भूगोल शिक्षण के विभिन्न उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
शिक्षा के भिन्न-भिन्न विषय किसी न किसी सीमा तक शिक्षा के साधारण उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक होते हैं। शिक्षा के उद्देश्य ही विभिन्न विषयों के शिक्षण के उद्देश्य हैं। किसी भी विषय को सफलतापूर्वक पढ़ाने के लिये यह आवश्यक है कि उसके पढ़ाने के उद्देश्य को समझ लिया जाये। किसी विषय के प्रमुख प्रमुख उद्देश्यों की पूर्ति करने में उस विषय का अध्यापक किस सीमा तक सफल होता है। इसी बात से उस अध्यापक की योग्यता, शिक्षण की क्षमता तथा है अध्यापन की सफलता का पता चलता है।
यह सच है कि शिक्षा के उद्देश्य ही विभिन्न विषयों के शिक्षण के उद्देश्य होते हैं, फिर भी प्रत्येक विषय के अपने कुछ ऐसे उद्देश्य हैं, जिनकी पूर्ति उस विषय के द्वारा ही अधिक सीमा तक सम्भव होती है। इन्हीं उद्देश्यों को लक्ष्य मानते हुए उस विषय का शिक्षण किया जाता है।
उद्देश्य ही शिक्षण-विधि को निर्धारित करते हैं तथा शिक्षक के दृष्टिकोण का परिचय देते हैं। अध्यापक की योग्यता, शिक्षण क्षमता एवं अध्यापक की सफलता का निर्णय उद्देश्य पूर्ति से ही नापा जा सकता है। यदि शिक्षक अपने उद्देश्यों की पूर्ति में सफल होता है तो हम समझ लेते हैं कि उसकी शिक्षण विधि उचित है। यदि वह अपने उद्देश्यों की पूर्ति में असफल रहता है तो इसे अध्यापक की असफलता माना जायेगा।
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उद्देश्यों का महत्त्व (Importance of Aims)
किसी विषय के उद्देश्य व लक्ष्यों का निर्धारण एक शैक्षिक आवश्यकता है। एक विषय का महत्त्व तभी है, जब इसके अध्ययन से किन्हीं विशेष उद्देश्यों की पूर्ति होती है। उद्देश्यों के निर्धारण के पश्चात् ही शिक्षक विषय की पाठ्य सामग्री की व्यवस्था उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कर लेता है। उद्देश्य तथा लक्ष्य ही शिक्षण विधि को निर्धारित करते हैं। इसके साथ ही साथ उद्देश्यों के निर्धारण से शिक्षक व छात्र दोनों ही उचित मार्ग पर चलते हैं।
उद्देश्यों के सम्बन्ध में यह कहा गया है कि, “They serve as milestones and reassure teachers and students that they are on the right road and they are going in the right direction. They are in fact like the guiding star.”
“Without certain fixed aims of teaching, the teaching and learning activities pertaining to a particular subject are just in a blind alley, which lead the educator and educand nowhere. For clear and proper thinking aims are very important.“
1. डब्ल्यू० पी० वाल्टन (W. P. Walpton) के अनुसार- “भूगोल शिक्षण का लक्ष्य शैक्षिक व व्यावहारिक न होकर सांस्कृतिक है। उनके अनुसार भूगोल शिक्षण का मुख्य उद्देश्य मनुष्यों तथा नागरिकों को इस प्रकार शिक्षित करना है कि वे विश्व के विभिन्न देशों की समस्याओं को समझें, वहाँ के लोगों के प्रति सहानुभूति प्रकट कर सकें तथा इनके आधार पर अपनी उन्नति में मार्गदर्शन ले सकें।”
2. एल० डी० स्टाम्प (L. D. Stamp) के अनुसार- “भूगोल शिक्षण का उद्देश्य बालक की उसके आस-पास के वातावरण तथा दैनिक जीवन की घटनाओं में रुचि उत्पन्न करना है। इससे उनका अभिप्राय भूगोल का उद्देश्य व्यावहारिक पक्ष की ओर है। भूगोल अध्ययन का उद्देश्य यह है कि जहाँ पर भी छात्र रह रहा है, वहाँ की परिस्थितियों में वह अपने को भली प्रकार समझकर ढाल ले और दैनिक क्रिया-कलापों में सफलतापूर्वक भाग ले सके।”
3. जेम्स फेयरग्रीव (James Fairgrieve) के अनुसार- भूगोल शिक्षण का उद्देश्य, “भावी नागरिकों को वृहत् विश्व क्षेत्र की दशाओं की वास्तविक कल्पना करने में शिक्षित करना है और इस प्रकार दुनिया में होने वाली राजनीतिक और सामाजिक समस्याओं के बारे में निष्पक्ष होकर विचार करने में सहायता करना है। “
“The function of Geography is to train future citizens to imagine accurately the conditions of the great world stage and so to help them to think sanely about political and social problems in the world around.” – James Fairgrieve
भूगोल शिक्षण के मुख्य मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. भौगोलिक नियन्त्रण का अर्थ स्पष्ट करना – भूगोल पढ़ाने का उद्देश्य मानव जीवन पर पड़े हुये भौगोलिक परिस्थितियों के प्रभाव को स्पष्ट करना है। भूगोल अध्यापक का भी यह कर्त्तव्य है कि वह छात्रों को बताये कि किस प्रकार मानव जीवन, उसकी क्रियायें तथा सम्पूर्ण सभ्यता, प्रकृति (Nature) के नियन्त्रण में है और मानव ने किस प्रकार अपने धैर्य, विवेक तथा निरन्तर प्रयासों से प्रकृति को अपने अनुकूल बनाने का प्रयत्न किया है। उस पर विजय पाई है। भूगोल शिक्षक को चाहिये कि वह किसी भी प्रदेश में निवासियों का रहन-सहन, खानपान, मकान, उद्योग-धन्धे, यातायात के साधन तथा सभ्यता आदि पर भौगोलिक वातावरण के प्रभाव को स्पष्ट करें। वह यह बताये कि किस प्रकार भौगोलिक वातावरण ने मानव एवं उसकी अन्य क्रियाओं पर प्रभाव डाला है।
2. मानसिक अनुशासन का विकास – मानसिक अनुशासन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्राप्त होता है, जिसके कारण हम सत्य की खोज के लिये तथ्यों को एकत्रित करते हैं, उन तथ्यों का विश्लेषण करते हैं और परिणाम निकालते हैं। मानसिक अनुशासन से बालकों की कल्पना शक्ति, तर्क शक्ति, निर्णय-शक्ति, निरीक्षण एवं स्मरण शक्ति और सन्तुलन की क्षमता आदि का विकास होता है। भूगोल में हम देश-विदेश के रहने वालों के बारे में अध्ययन करते हैं। बालक अपनी कल्पना-शक्ति के सहारे उस भौगोलिक वर्णन का काल्पनिक चित्र बनाते हैं। बालक यह विचार करते हैं कि टुण्ड्रा प्रदेशों के एस्किमों, रेगिस्तानों के बदू एवं पेड़ों पर रहने वाले भूमध्यरेखीय प्रदेशों के लोग किस प्रकार अपना जीवन व्यतीत करते होंगे। इस प्रकार निरन्तर सोचने से उनकी विचार शक्ति का विकास होता है। बंगाली तथा केरल के निवासी चावल क्यों अधिक खाते हैं ? इसका उत्तर वे तर्क शक्ति के आधार पर देते हैं। बालक यह जानते हैं कि चावल गर्म जलवायु, उपजाऊ मिट्टी तथा अधिक पानी में उत्पन्न होता है। वे सोचकर, तर्क के आधार पर बता देंगे कि बंगाल तथा केरल की जलवायु तथा मिट्टी चावल की उपज के लिये उपयोगी है। इस कारण चावल अधिक पैदा होता है। इसीलिये बंगाल एवं केरल के लोग चावल अधिक खाते हैं। भूगोल का अध्ययन ‘क्या’, ‘क्यों’, और ‘कैसे’ के आधार पर होता है। इन प्रश्नों से बालक की है बुद्धि का विकास होता है। भूगोल में कारण (cause) और फल (effect) सम्बन्ध स्थापित किया जाता है। इस कारण बालक की बहुत-सी मानसिक शक्तियों का विकास होता है। भूगोल से निरीक्षण शक्ति का भी विकास होता है।
3. नागरिक तथा सामाजिक गुणों का विकास – भूगोल शिक्षण का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य विद्यार्थियों में नागरिकता तथा सामाजिक गुणों का विकास करना है। भूगोल सामाजिक विषयों में से एक महत्त्वपूर्ण विषय है। भूगोल के ज्ञान के आधार पर विद्यार्थी अपने सामाजिक वातावरण का अध्ययन भली-भाँति कर सकता है। भूगोल अध्ययन से विद्यार्थियों को संसार के विभिन्न वातावरणों का ज्ञान होता है, जिससे विद्यार्थियों को उन वातावरणों की सामाजिक तथा राजनीतिक समस्याओं का ज्ञान उचित रूप से प्राप्त होता है।
जेम्स फेयरग्रीव के अनुसार- “भूगोल का कार्य भावी नागरिकों को संसार के इस विशाल रंग-मंच की स्थिति की ठीक-ठीक कल्पना कर सकने का अभ्यास देना है, जिससे वे अपने पास-पड़ौस के राजनैतिक प्रश्नों पर विवेकपूर्ण विचार कर सकें।”
“The function of Geography is to train future citizens to imagine accurately the conditions of the great world stage and so help them to think sanely about political and social problems in the world around.” -WJames Fairgrieve.
पाठशालाओं में पढ़ने वाले भावी नागरिक भविष्य में न केवल अपने सीमित देश के वरन् विशाल विश्व के नागरिक होंगे। अतएव हम उन्हें अन्योन्याश्रय (Inter-dependence) सम्बन्ध की महत्ता समझा कर ही सुयोग्य नागरिक बना सकते हैं। माध्यमिक स्तर पर भूगोल शिक्षण का एक उद्देश्य भावी नागरिकों का प्रशिक्षण माना जाने लगा है।
4. प्रकृति प्रेम- भूगोल शिक्षण से विद्यार्थियों में प्रकृति प्रेम की भावना जाग्रत की जा सकती है। छात्रों को भौगोलिक भ्रमण के समान प्राकृतिक सौन्दर्य के प्रेक्षण के लिये प्रेरित किया जाना चाहिये। पहाड़ों की गगन चुम्बी बर्फ से ढकी चोटियाँ, झरने, बादलों की छटा, इन्द्रधनुष, बिजली का चमकना, सुन्दर हरे-भरे वन तथा विभिन्न बनैले पशु, सूर्योदय एवं सूर्यास्त के सुन्दर दृश्य बरबस ही हमारे मन को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं।
5. देश प्रेम की भावना का विकास – भूगोल शिक्षण का उद्देश्य है विद्यार्थियों में देश प्रेम की भावना जापत करना । देश प्रेम के लिये यह आवश्यक है कि हम अपने देश की स्थिति, जलवायु, जनसंख्या, व्यवसाय, खनिज एवं उद्योग धन्धों को समझें। इस जानकारी के आधार पर उनमें देश प्रेम की भावना का विकास होता है।
6. सांस्कृतिक उद्देश्य – भूगोल शिक्षण का एक सांस्कृतिक उद्देश्य भी है। सांस्कृतिक का अर्थ है “संस्कृति सावभौमिक सत्य जिसको कला, साहित्य, दर्शन, विज्ञान और धर्म में व्यक्त किया गया हो, की उदार सौन्दर्यानुभूति है। ” (Culture is the sympathetic appreciation of the universal truth expressed in the art, literature, philosophy, science and religion).
भूगोल अध्ययन से किसी प्रदेश की संस्कृति का पता लगाया सकता है। भाषा, आदर्श, जीवन मूल्य, साहित्य, रहन-सहन, परम्परायें आदि की मानव जीवन पर छाप का अध्ययन भौगोलिक ज्ञान के आधार पर किया जा सकता है। भूगोल अध्ययन में रुचि, समाचार पत्र पढ़ने में रुचि, भूगोल सम्बन्धी साहित्य में रुचि विभिन्न व्यवसाय जैसे मॉडल बनाना, टिकट तथा चित्र एकत्र करना इत्यादि का विकास करता है।
7. जीवन यापन में सहायता – भूगोल शिक्षण का उद्देश्य है कि विद्यार्थियों को ऐसा ज्ञान प्रदान किया जाये, जो उनके जीवन यापन में सहायता कर सके अर्थात् उनके दैनिक जीवन में काम आ सके। भौगोलिक ज्ञान का उपयोग वे कृषि, व्यापार, उद्योग-धन्धों तथा अन्य क्षेत्रों में कर सकते हैं। भूगोल शिक्षक को इस प्रकार का भौगोलिक ज्ञान प्रदान कर उनकी जीवन यापन में सहायता करता है।
8. प्राकृतिक साधनों का उचित उपयोग – भूगोल शिक्षण का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य यह भी है कि छात्रों को प्राकृतिक साधनों जैसे भूमि, कोयला, वन, पैट्रोलियम, लोहा, सोना, अभ्रक आदि महत्त्वपूर्ण खनिज पदार्थों का उचित एवं मितव्ययता से उपयोग करना सिखाता है। ये साधन सीमित मात्रा में हैं। इनका उचित रूप से उपयोग सिखाना भूगोल शिक्षण का एक उद्देश्य है। अनुचित उपयोग से संकटकालीन स्थिति आ सकती है।
9. चरित्र-निर्माण – इतिहास की भाँति भूगोल भी चरित्र-निर्माण में सहायता करता है। वास्तव में, प्रकृति ही सच्चा गुरु एवं पथ-प्रदर्शक होती है। भूगोल के अध्ययन से परोपकार, सहयोग, सहनशीलता, क्षमा, शान्ति, धैर्य, गम्भीरता, बलिदान और त्याग की सुन्दर शिक्षा दी जा सकती है। वृक्षों से परोपकार की भावना, पृथ्वी से सहन शक्ति एवं क्षमा, समुद्र से गम्भीरता आदि का पाठ पढ़ाया जा सकता है। इस प्रकार भूगोल अध्ययन से चरित्र निर्माण आसानी से किया जा सकता है।
10. विश्व बन्धुत्व की भावना का विकास-भूगोल शिक्षण से विद्यार्थियों में देश-विदेश के निवासियों के प्रति सच्ची सहानुभूति पैदा की जा सकती है। विभिन्न देशों के निवासियों के रहन-सहन, उनका भौगोलिक वातावरण, संस्कृति एवं सभ्यता का ज्ञान भूगोल शिक्षण द्वारा सम्भव है। आजकल कोई भी राष्ट्र अकेला रहकर जीवित नहीं रह सकता। एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर निर्भर है। वह अपनी आवश्यकतायें स्वयं पूरी नहीं कर सकता। उसे अपनी उन्नति के लिये दूसरे देशों के सहयोग एवं सहानुभूति की आवश्यकता पड़ती है। भूगोल अध्ययन से छात्रों के हृदय में मानवता के प्रति प्रेम और सहानुभूति जाग्रत हो जाती है। आज का मानव अतीत के युद्धों के भयंकर परिणामों से भयभीत होकर ‘विश्व-बन्धुत्व’ की बात सोच रहा है। भूगोल विश्व में एकता की भावना, मानवता के प्रति सहानुभूति एवं विश्व-बन्धुत्व की भावना का विकास करने में महत्वपूर्ण योग देता है।
1950 में यूनेस्को (UNESCO) ने एक अन्तर्राष्ट्रीय गोष्ठी भूगोल शिक्षण के विषय में आयोजित की थी। उसके सदस्यों ने भूगोल शिक्षण के निम्न प्रयोजन बतलाये थे-
1. विद्यार्थियों को ऐसे व्यवसायों के लिये तैयार करना, जिसमें भूगोल के ज्ञान की आवश्यकता पड़ती है।
2. अन्तर्राष्ट्रीय प्रेम और सद्भावना का संचार करना ।
3. छात्रों को स्वतन्त्र रूप से सोचने, तर्क करने, कार्य-कारण सम्बन्ध टूटने के लिये प्रोत्साहित करना।
4. अवकाश के समय में भूगोल की पुस्तक पढ़ाना, यात्रा एवं पर्यटन में लगाना और सुखमय जीवन बिताना। गोष्ठी ने भूगोल शिक्षण के सही चार समान उद्देश्य बताये हैं और कहा है कि इन्हीं उद्देश्यों को ध्यान में रखकर भूगोल का शिक्षण किया जाना चाहिये। भूगोल शिक्षण के सामान्य उद्देश्यों की चर्चा ऊपर भी की जा चुकी है।
प्रोफेसर एफ० एल० होल्टज ने भूगोल शिक्षण के उद्देश्यों को दो वर्गों में विभाजित किया है—
- व्यावहारिक उद्देश्य ।
- सांस्कृतिक उद्देश्य।
व्यावहारिक उद्देश्य
- भौगोलिक ज्ञान द्वारा व्यवसाय एवं उद्योग-धन्धों की उन्नति में सहायता मिलती है।
- समाचार पत्रों तथा पुस्तकों में आने वाले भौगोलिक संदर्भ का स्पष्टीकरण होता है।
- भूगोल स्थल सम्बन्धी ज्ञान कराता है।
- पर्यटन की इच्छा जाग्रत होती है।
- भूगोल अध्ययन से जीवन की परिस्थितियों के भौगोलिक तथ्यों की सूझ पैदा होती है।
सांस्कृतिक उद्देश्य :
- प्रकृति सौंदर्य का सच्चा आनन्द प्राप्त होता है। भूगोल प्राकृतिक दृश्यों, शक्तियों एवं जीवधारियों को समझने तथा सराहने में सहायक होता है।
- भूगोल विचार करने का एक अभ्यास डालता है, जिससे मनुष्य संसार की वस्तुओं का मानव पृथ्वी सम्बन्ध की दृष्टि से मूल्यांकन करता है।
- भूगोल अध्ययन से स्वदेश-प्रेम की भावना उत्पन्न होती है।
- भूगोल वातावरण के साथ अनुकूलन का पाठ पढ़ाता है।
- भूगोल द्वारा ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ मनुष्यों में सद्भावना, सहानुभूति एवं सहयोग की भावना का विकास होता है।
लक्ष्य अथवा प्राप्य उद्देश्य (Objectives) – साधारणतया अध्यापक, छात्र एवं अन्य पढ़े-लिखे व्यक्ति उद्देश्य (Aims) एवं प्राप्य उद्देश्यों (Objectives) का एक ही अर्थ लगाते हैं, परन्तु इन दोनों में काफी अन्तर है।
- उद्देश्य एक से अधिक विषयों के समान हो सकते हैं, जबकि प्राप्य उद्देश्य एक विषय के विशिष्ट (Specific) होते हैं।
- उद्देश्य सामान्य एवं लम्बी अवधि (Long term goals) में प्राप्त होते हैं, जबकि प्राप्य उद्देश्य विशिष्ट एवं शीघ्र प्राप्त होने वाले होते हैं।
- उद्देश्य सामान्य होते हैं, जबकि प्राप्य उद्देश्य सूक्ष्म एवं स्पष्ट रूप से परिभाषित होते हैं।
किसी विषय को पढ़ाने का उद्देश्य विद्यार्थी को कुछ सूचनायें तथा पुस्तकीय ज्ञान दे देना ही नहीं है, वरन् उसमें कुछ वांछित व्यावहारिक परिवर्तन लाना है। भूगोल अध्ययन से कुछ भौगोलिक तथ्यों, प्रत्ययों और सम्बन्धों की जानकारी हो सकती है। इससे बालक में विभिन्न प्रकार की योग्यताओं, विशेष रुचियों तथा विशिष्ट अभिरुचियों (Attitudes) का विकास किया जा सकता है। भूगोल शिक्षण के प्राप्य उद्देश्य (Objectives), उनके स्पष्टीकरण सहित, नीचे दिये जा रहे हैं-
1. ज्ञान को समझने का उद्देश्य (Understanding objective) – छात्र ज्ञान सम्बन्धी उपर्युक्त बातों को भली प्रकार समझता है।
2. प्रवीणता या दक्षता के विकास सम्बन्धी उद्देश्य (Skill objective)- छात्र छपी हुई सचित्र सामग्री को पढ़ने, समझने, मानचित्र, ग्लोब, रेखाचित्र, प्राफ, मॉडल आदि का प्रयोग करना, सूचना प्राप्त करना एवं उसका संकलन करना, सांख्यिकीय तालिकाओं की व्याख्या करना, मानचित्र बनाना, स्थानीय क्षेत्र का सर्वेक्षण करना, ग्राफ, चार्ट, मॉडल आदि तैयार करना तथा सामाजिक कार्यों में भाग लेने तथा गोष्ठियों में भाग लेने की प्रवीणता प्राप्त करता है।
3. अभिवृत्तियों का निर्माण (Formation of Attitudes) छात्र विभिन्न भौगोलिक वातावरण में जीवन के विभिन्न पहलुओं व विभिन्न समस्याओं के प्रति उचित दृष्टिकोण को सीखता है। वह देश-प्रेम, ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ (World mindedness) दैनिक घटनाओं के प्रति आलोचनात्मक चिन्तन, मानव समुदायों के प्रति सहनशीलता, सहयोग, प्रजातांत्रिक दृष्टिकोण आदि गुणों को प्राप्त करता है। इस प्रकार वह समाज तथा वातावरण के अनुसार व्यवहार करता है।
4. ज्ञान प्राप्ति का उद्देश्य (Knowledge objective) – छात्र सम्पूर्ण भूमण्डल की भौगोलिक अवस्थाओं के बारे में सूचनायें प्राप्त करता है। नये भौगोलिक तथ्यों, परिभाषाओं, सामान्य विचारों (Concept), चिन्ह एवं यन्त्रों का ज्ञान प्राप्त करता है। इस प्रकार का ज्ञान उसे अपनी जीविका कमाने एवं उद्योग-धन्यों के विषय में उचित जानकारी प्राप्त करके अपने जीवन को समायोजित करने के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है। मानव जीवन पर प्रकृति के नियन्त्रण का ज्ञान उसे अपने को प्रकृति के अनुकूल बनाने में सहायक हो सकता है। इस ज्ञान की प्राप्ति से उसमें अपने देश की अथवा संसार के प्राकृतिक साधनों का उचित उपयोग करने की भावना पैदा हो सकती है।
5. ज्ञान के प्रयोग सम्बन्धी उद्देश्य (Application objective)- छात्र भौगोलिक तथ्य, सूचनाओं और प्रत्ययों (Concepts) से सामान्यीकरण तथा पारस्परिक सम्बन्धों के ज्ञान का प्रयोग नवीन परिस्थितियों में करना सीखता है।
6. गुण ग्राहकता का उद्देश्य (Objective of Appreciation)- छात्र मानव के सांस्कृतिक विकास और अन्योन्याश्रय के प्रति समादर की भावना ग्रहण करता है। वह समस्त राष्ट्रों एवं धर्मों का संसार की संस्कृति में योगदान को समझता है।
7. रुचि का उद्देश्य (Interest objective)- छात्र भूगोल सम्बन्धी सूचनाओं, नमूने, तस्वीर इकट्ठा करने, मॉडल बनाने, भौगोलिक पर्यटन, देश-विदेश के रहने वाले लोगों के रहन-सहन, रीति-रिवाज एवं उद्योग-धन्यों में रुचि लेता है। व्यवहारीय परिवर्तन (Behavioural change) हर स्तर पर भूगोल शिक्षण के लक्ष्य अलग हैं। लक्ष्यों का निर्धारण इसलिये किया जाता है कि शिक्षण द्वारा इनको प्राप्त किया जाय। यदि विषय शिक्षण से विद्यार्थी के व्यवहार में वांछित परिवर्तन आ जाता है तो यह समझना चाहिये कि उस लक्ष्य विशेष की प्राप्ति हो गई। उदाहरण के लिये प्राइमरी स्तर पर भूगोल शिक्षण का एक लक्ष्य यह है कि छात्रों में प्रकृति निरीक्षण में रुचि उत्पन्न करना। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये हम छात्रों को प्रकृति की गोद में ले जायेंगे। वहाँ पर उनको विभिन्न प्राकृतिक दृश्यों जैसे नदी, पहाड़, झील, पेड़, पौधे, फूल, पशुपक्षी, आकाश, तारे, चन्द्रमा, सूर्य आदि को देखने एवं प्रशंसा करने का अवसर देंगे। इस प्रकार छात्र प्राकृतिक वातावरण की तरफ आकर्षित होंगे। जब छात्रों में इस प्रकार की भावना तथा रुचि उत्पन्न हो जाय तो समझना चाहिये कि हमारे लक्ष्य की पूर्ति हो गई है, क्योंकि छात्रों के व्यवहार में परिवर्तन आ गया है। अब वे प्रकृति निरीक्षण में काफी रुचि लेने लगे हैं।
ध्येय निर्धारित करने के बाद ध्येयों को एक-एक करके लेना चाहिये। उन व्यावहारिक परिवर्तनों को सुनिश्चित करना चाहिये, जिनसे उस ध्येय की पूर्ति होगी।
व्यावहारिक परिवर्तनों को निर्धारित करने के लिये निम्न बातों को ध्यान रखना चाहिये-
- ध्येय में निहित विचारों का उनके व्यावाहारिक परिवर्तन में स्पष्टीकरण किया जाय।
- व्यवहारीय परिवर्तन ध्येय पर निर्धारित हों।
- बालक के बौद्धिक विकास को देखते हुए व्यावहारिक परिवर्तन यथार्थ होना चाहिए।
- ध्येय की प्राप्ति पर बालक का आचरण एवं व्यवहार क्या होगा, यह व्यावहारिक परिवर्तन में प्रदर्शित किया जाना चाहिये।
किसी लक्ष्य के अन्तर्गत बालक के व्यवहार में क्या परिवर्तन होगा, इसे जानने के लिए शिक्षक के मन में कुछ प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जैसे-
- बालक क्या समझेगा ?
- वह किस प्रकार विश्लेषण करेगा ?
- सीखे हुए ज्ञान का प्रयोग वह किस नई परिस्थिति में कर सकेगा ?
- विशेष परिस्थितियों में वह किस प्रकार उस बालक से भिन्न व्यवहार करेगा, जिसकी शिक्षा उस ध्येय विशेष को ध्यान में रखकर नहीं गई है।
- किस विशेष ज्ञान को बालक प्रदर्शित करेगा ?
- वह किस प्रकार व्याख्या करेगा ?
- वह किस प्रकार निष्कर्ष निकालेगा ?
- परिस्थिति विशेष में उसका व्यवहार किस प्रकार का होगा ?
- व्यवहार परिवर्तन स्थायी होगा या अस्थायी ?
- व्यवहार परिवर्तन किन निश्चित क्षेत्रों में होगा ?
- अस्थायी व्यवहार परिवर्तन को किस प्रकार स्थायी बनाया जाये ? ध्येयों (Objectives) को ध्यान में रखते हुए व्यावहारिक परिवर्तन निम्न निश्चित किये जायेंगे
विषय- भारत की प्राकृतिक रचना
कक्षा-9
उद्देश्य-1. ज्ञान के लक्ष्य में छात्रों को भारत की प्राकृतिक रचना का ज्ञान कराना।
व्यवहारीय परिवर्तन —
(i) छात्र भारत के प्राकृतिक भागों को प्रत्यास्मरण करेगा एवं उनको सीखेगा।
(ii) हिमालय की मुख्य श्रेणियों, उनकी ऊँचाई तथा घाटियों का ज्ञान प्राप्त करेगा।
(iii) उत्तरी मैदान के उपविभागों का ज्ञान प्राप्त करेगा।
(iv) बड़े-बड़े डेल्टा प्रदेशों का ज्ञान प्राप्त करेगा।
(v) हिमालय की तीन श्रेणियों को पहचानेगा।
(vi) दक्षिण एवं मालवा पठार पर बहने वाली मुख्य नदियों को पहिचानेगा।
(vii) हिमालय पर्वत से निकलने वाली मुख्य नदियों का ज्ञान प्राप्त करेगा।
(vii) दक्षिणी प्रायद्वीप की मुख्य पर्वत श्रेणियों व पठारों को पहिचानेगा।
उद्देश्य- 2. ज्ञान को समझाने का उद्देश्य-.
छात्रों को भारत के तीन प्राकृतिक भागों की रचना एवं उनकी विशेषताओं को समझाना।
व्यवहारीय परिवर्तन —छात्र समझेगा कि-
(i) हिमालय प्राकृतिक व जलवायु सम्बन्धी रोक (barrier) बनाते हैं।
(ii) दक्षिण का पठार बहुत ही प्राचीन चट्टानों का बना हुआ है और खनिज पदार्थ बहुतायत में मिलते हैं।
(iii) पूर्वी तटीय मैदानों के डेल्टा भागों में चावल बहुतायत में होता है।
(iv) भारत चार प्राकृतिक भागों में बँटा हुआ है, जो एक-दूसरे के पूरक हैं।
(v) उत्तरी विशाल मैदान बहुत ही उपजाऊ हैं और संसार के महत्त्वपूर्ण कृषि क्षेत्रों में से हैं।
(vi) दक्षिणी भारत के तटीय मैदान पश्चिम में संकरे तथा पूर्व में चौड़े हैं।
उद्देश्य-3. ज्ञान के प्रयोग का लक्ष्य
छात्रों द्वारा पर्वत, मैदान, पठार आदि में अन्तर करना, धरातल के विभिन्न रूपों के उदाहरण प्रस्तुत करना एवं उत्तरी व दक्षिणी भारत की नदियों की तुलना करना।
व्यवहारीय परिवर्तन– छात्र ।
(i) मोड़दार पर्वतों, नदियों द्वारा लाई हुई मिट्टी के मैदान, लावा के पठार आदि के उदाहरण प्रस्तुत कर सकेगा।
(ii) उत्तरी भारत की नदियों की उपयोगिता को ध्यान में रखकर उनकी तुलना दक्षिणी भारत की नदियों से कर सकेगा।
(iii) पर्वत, पहाड़, घाटियाँ, पठार, मैदान, डेल्टा आदि में अन्तर कर सकेगा।
(iv) भारत के प्रत्येक प्राकृतिक भाग की उपयोगिता को महसूस करेगा।
(v) हिमालय पर्वत की चोटियों की तुलना संसार की अन्य चोटियों से कर सकेगा।
उद्देश्य 4. प्रवीणता का लक्ष्य
छात्रों द्वारा भारत के प्राकृतिक धरातल के मानचित्र बनाना, घरातलीय मॉडल व लम्बाई, ऊँचाई आदि के आँकड़ों की व्याख्या करना।
व्यवहारीय परिवर्तन छात्र
(i) भारत का घरातलीय मॉडल (Relief Model) बना सकेगा।
(ii) भारत के प्रमुख प्राकृतिक धरातल के मानचित्र एवं रेखाचित्र खींच सकेगा।
(iii) आंकड़ों का विश्लेषण करना जैसे ऊँचाई, लम्बाई आदि।
उद्देश्य-5. अभिवृत्तियों का निर्माण
छात्रों द्वारा भारत की प्राकृतिक रचना की प्रशंसा एवं विभिन्न प्राकृतिक भागों में रहने वाले लोगों के प्रति सहानुभूति एवं प्रेम प्रदर्शित करना ।
व्यवहारीय परिवर्तन-छात्र।
(i) इस बात का गर्व करता है कि वह एक ऐसे देश का रहने वाला है, जो आकार में बड़ा एवं विभिन्न प्रकार के घरातलीय आकार का है।
(ii) विभिन्न प्रकार की भूमि आकार एवं भारत की प्राकृतिक रचना की प्रशंसा करेगा।
(iii) विभिन्न प्राकृतिक भागों में बसने वाले लोगों के प्रति सहानुभूति, सहिष्णुता, प्रेम तथा संवेदन के भाव प्रदर्शित करेगा।
उद्देश्य 6. रुचि का उद्देश्य
छात्रों द्वारा भारत के विभिन्न प्राकृतिक भागों के अध्ययन में रुचि, भौगोलिक तथ्यों को देखने में रुचि एवं प्राकृतिक रचना के तथ्यों के बारे में लेख आदि लिखने में रुचि लेना ।
व्यवहारीय परिवर्तन —छात्र ।
(i) पहाड़, पठार, मैदान, नदी, डेल्टा आदि भौगोलिक तथ्यों के देखने में रुचि लेगा।
(ii) भारत के प्रत्येक प्राकृतिक भाग के महत्व के बारे में बहस कर सकेगा।
(iii) भारत के विभिन्न प्राकृतिक भागों का अध्ययन करने में रुचि लेगा।
(iv) भारत की प्राकृतिक रचना के बारे में लेख लिखने में रुचि लेगा।
(v) भारत का धरातलीय मॉडल बनाने में रुचि लेगा।
उद्देश्य -7. गुण ग्राहकता का लक्ष्य
छात्रों द्वारा भारत के विभिन्न प्राकृतिक भागों के निवासियों के जीवन के प्रति आदर की भावना एवं परस्पर निर्भरता की प्रशंसा करना ।
व्यवहारीय परिवर्तन
(i) छात्र, गोरखा, पंजाबी, राजपूत एवं अन्य हृष्ट-पुष्ट जातियों के महत्त्व को देश की रक्षा के लिए समझेगा।
(ii) छात्र में विभिन्न प्राकृतिक भागों के निवासियों जैसे पहाड़ी, पंजाबी, राजपूत, बंगाली, मद्रासी आदि लोगों के जीवन के प्रति समादर की भावना का विकास होगा।
(iii) भारत के प्राकृतिक भागों में रहने वाले लोगों की परावलम्बता को समझेगा और उसकी प्रशंसा करेगा। भिन्न-भिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति के फलस्वरूप छात्रों में निम्न व्यवहारीय परिवर्तनों की आशा की जाती है।
भूगोल शिक्षण के प्राप्य उद्देश्य (Objective of Teaching Geography) | अपेक्षित व्यवहारीय परिवर्तन |
1. ज्ञान प्राप्ति का उद्देश्य | इस उद्देश्य की प्राप्ति के फलस्वरूप
(i) छात्र, भूगोल सम्बन्धी तथ्यों, सिद्धान्तों, परिभाषाओं का प्रत्यास्मरण (Recall) करता है। (ii) भौगोलिक तथ्यों, शब्दों, युक्तियों एवं यन्त्रों को पहिचान लेता है। (iii) मानचित्र, रेखाचित्र, चार्ट आदि को पढ़ता, एवं उन पर सूचनाओं को प्रदर्शित करता है। |
2. ज्ञान को समझने का उद्देश्य | छात्र भौगोलिक तथ्यों का
(i) वर्गीकरण एवं तुलना करता है। (ii) किसी खास तथ्य को स्पष्ट करने के लिए उदाहरण देता है (iii) तथ्यों एवं सिद्धान्तों की व्याख्या करता है एवं विवेचन करता है। (iv) कार्य व कारण, साधन व साध्य में अन्तर व सम्बन्ध को जान लेता है। (v) त्रुटियों का ज्ञान एवं उनको सही करता है। |
3. ज्ञानोपयोग का उद्देश्य | छात्र-
(i) भौगोलिक ज्ञान को नवीन परिस्थितियों में समझता है। (ii) किसी स्थिति का विश्लेषण करने के पश्चात् समस्या को पहचान जाता है, उसके समाधान के लिये तथ्यों व सिद्धान्तों का चयन करता है (iii) उपकल्पनायें बनाता, उनकी जाँच करता एवं सम्बन्ध स्थापित करता है। (iv) सिद्धान्तों एवं तथ्यों का सामान्यीकरण करता है। (v) किसी प्रमाण का मूल्यांकन करता है एवं नवीन परिस्थिति को समझने के लिये सिद्धान्तों का निरूपण करता है। (vi) विभिन्न समस्याओं का हल निकाल लेता है। |
4. रुचि का उद्देश्य | छात्र-
(i) पुस्तकों, पत्रिकाओं एवं अखबारों को पढ़कर महत्व की सूचनाओं को एकत्रित करता है। (ii) भौगोलिक महत्त्व के स्थानों का पर्यटन करने में रुचि लेता है। (iii) भूगोल वेत्ता के जीवन परिचय एवं उनके भाषण में रुचि लेता है। (iv) भौगोलिक महत्त्व की वस्तुओं के नमूने, तस्वीर, मॉडल, फोटो आदि एकत्रित करने में रुचि लेता है। (v) भूगोल से सम्बन्धित, मॉडल, चार्ट आदि बनाने में रुचि लेता है। (vi) भौगोलिक समस्याओं पर बहस (discussion) करता है। (vii) अपने राज्य, देश एवं संसार के विभिन्न भागों में रहने वाले लोगों के रहन-सहन, रीति-रिवाज एवं उद्योग-धन्धों में रुचि लेता है। |
5. अभिवृत्ति का उद्देश्य | छात्र-
(i) उसमें स्वस्थ देश भक्ति की भावनाओं का विकास होता है। (ii) उस संस्था के प्रति अपनत्व की भावना प्रदर्शित करता है, जिससे उसका सम्बन्ध है। (iii) अपने समुदाय के लोगों की सहायता के लिए तैयार रहता है। (iv) पृथ्वी के विभिन्न भागों में रहने वाले लोगों के रहन-सहन, खान-पान, वेशभूषा, संस्कृति आदि के प्रति प्रेम व सहानुभूति प्रदर्शित करता है। (v) अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण को अपनाता है। (vi) मनुष्य को भौगोलिक वातावरण को परिवर्तित करने का एक साधन मानता है। |
6. गुण-ग्राहकता का उद्देश्य | छात्र-
(i) भौगोलिक तथ्यों, सिद्धान्तों एवं विचारों में विश्वास करता है और उसकी सराहना करता है। (ii) मनुष्य की सांस्कृतिक विरासत (Cultural heritage) की सराहना करता है। (iii) भिन्न-भिन्न प्रदेशों एवं राष्ट्रों की आर्थिक और सांस्कृतिक निर्भरता की सराहना करता है। |
भूगोल शिक्षण के उपर्युक्त उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक है-
- छात्रों के लिए उपयुक्त पुस्तकालय व वाचनालय होना चाहिये।
- भूगोल अध्यापक को अपने विषय का पूर्ण ज्ञान होना चाहिये।
- भूगोल अध्यापक को विषय के प्रति रुचि प्रदर्शित करनी चाहिये।
- छात्रों को ज्ञान प्राप्ति की उचित परिस्थितियों में रखा जाये।
- उसे परीक्षा व मूल्यांकन का पूर्ण ज्ञान होना चाहिये।
- कक्षा में अध्यापन का समुचित प्रबन्ध होना चाहिये।
- भूगोल अध्यापक अपने विषय की वर्तमान शिक्षण प्रणालियों से परिचित होना चाहिये।
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2. वर्णनात्मक विधि (Descriptive Method)
4. भ्रमणात्मक विधि (Excursion Method)
5. प्रश्नोत्तर प्रणाली (Questioning Technique or Socratic Method)
6. प्रादेशिक पद्धति (Regional Method)
7. तुलनात्मक विधि (Comparative Method)
8. आगमन विधि (Inductive Method)
9. निगमन विधि (Deductive Method)
10. डाल्टन विधि (Dalton Method)
11. प्रोजेक्ट विधि (Project Method)
12. समस्या विधि (Problem Method)
13. वैज्ञानिक विधि (Scientific or Laboratory Method)
14. क्रियात्मक विधि (Activity Method)
15. कार्य-कारण सम्बन्ध विधि (Causal Relation Method)
16. संकेन्द्रिय विधि (Concentric Method)