राजभाषा से क्या आशय है? राजभाषा के रूप में हिन्दी की संवैधानिक स्थिति पर प्रकाश डालिए। राजभाषा और राष्ट्रभाषा में अन्तर बताइये।
किसी देश, प्रदेश या राज्य के शासन तथा राजकीय कार्य व्यवस्था के लिए जिस भाषा का प्रयोग किया जाता है, उसे राजभाषा कहते हैं। अर्थात् जो भाषा सरकार या राज्य के कार्यों के लिए प्रयुक्त होती है, वह राजभाषा है। कहने का तात्पर्य यह कि राजकाज की भाषा ‘राजभाषा’ कहलाती है। केन्द्र सरकार विभिन्न राज्यों से तथा एक राज्य दूसरे राज्यों एवं केन्द्र सरकार से जिस भाषा में पत्र-व्यवहार करता है, वही राजभाषा होती है।
भारत में विभिन्न समय में संस्कृत, पालि, महाराष्ट्री, प्राकृत अथवा अपभ्रंश राजभाषा रही है। प्रमाणों से विदित होता है कि 11वीं से 12वीं शताब्दी ईस्वी के दौरान राजस्थान में हिन्दी मिश्रित संस्कृत का प्रयोग होता था। मुसलमान बादशाहों के शासनकाल गौरी से लेकर अकबर के समय तक हिन्दी शासनकार्य का माध्यम थी। अकबर के गृहमंत्री में मुहम्मद राजा टोडरमल के आदेश से सरकारी कागजात फारसी में लिखे जाने लगे। एक फारसीदान मुंशी वर्ग ने तीन सौ वर्ष तक फारसी को शासन कार्य का माध्यम बनाए रखा। मैकाले ने आकर अंग्रेजों को प्रतिष्ठित किया। तब से उच्च स्तर पर अंग्रेजी और निम्न स्तर पर देशी भाषाएं प्रयुक्त होती रहीं। हिन्दी प्रदेश में उर्दू प्रतिष्ठित रही, यद्यपि राजस्थान और मध्य प्रदेश के देशी राज्यों में हिन्दी माध्यम से सारा कामकाज होता रहा। राष्ट्रीय चेतना के विकास के साथ स्वभाषा को राजपद दिलाने की मांग उठी। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, महर्षि दयानंद सरस्वती, केशवचंद्र सेन, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, महामना मदनमोहन मालवीय, महात्मा गांधी, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन और बहुत से अन्य नेताओं और जनसाधारण ने अनुभव किया कि हमारे देश का राजकाज हमारी ही भाषा में होना चाहिए और वह भाषा हिन्दी ही होनी चाहिए- हिन्दी सभी आर्य भाषाओं की सहोदरी है, यह सबसे बड़े क्षेत्र के लोगों की (42 प्रतिशत) भाषा थी।
स्वतंत्रता के बाद राज्यसत्ता जनता के हाथों में आई। लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह आवश्यक हो गया कि देश का राजकाज लोकभाषा में हो। अतः राजभाषा के रूप में हिन्दी को एकमत से स्वीकार किया गया। 14 सितम्बर, 1949 ई. को भारत के प्राविधान हिन्दी को मान्यता प्रदान की गई। तब से राजकार्यों में इसके प्रयोग का विकासक्रम आरम्भ होता है।
Contents
राजभाषा के रूप में हिन्दी की सांविधानिक स्थिति
संविधान की धारा 120 के अनुसार संसद का कार्य हिन्दी में या अंग्रेजी में किया जाता है। परन्तु यथास्थिति लोकसभा का अध्यक्ष या राज्यसभा का सभापति किसी सदस्य को उसके मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुमति दे सकता है। संसद विधि द्वारा अन्यथा न करे तो 15 वर्ष की अवधि के पश्चात् ‘या अंग्रेजी में’ शब्दों का लोप किया जा सकेगा।
धारा 210 के अन्तर्गत राज्यों के विधान मण्डलों का कार्य अपने राज्य या राजभाषाओं में या हिन्दी में या अंग्रेजी में किया जा सकता है। परन्तु यथास्थिति विधान सभा का अध्यक्ष या विधान परिषद का सभापति किसी सदस्य को उसकी मातृभाषा में सदन को सम्बोधित करने की अनुमति दे सकता है। राज्य का विधान मंडल विधि द्वारा अन्यथा उपलब्ध न करें, तो 15 वर्ष की अवधि के पश्चात् “या अंग्रेजी में” शब्दों का लोप किया जा सकेगा।
धारा 343- संघ की राजभाषा हिन्दी और देवनागरी होगी और अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा। शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग 15 वर्ष की अवधि तक किया जाता रहेगा। परन्तु राष्ट्रपति इस अवधि के दौरान किन्हीं शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी के साथ हिन्दी भाषा का प्रयोग अधिकृत कर सकेगा। इसी धारा के अन्तर्गत कहा गया है कि संसद उक्त 15 वर्ष की अवधि के पश्चात् विधि द्वारा अंग्रेजी भाषा का या देवनागरी अंकों का प्रयोग किन्हीं प्रयोजनों के लिए उपलब्ध कर सकेगी।
धारा 344- इस संविधान के प्रारम्भ में 3 वर्ष की समाप्ति पर राष्ट्रपति एक आयोग गठित करेगा जो निश्चित की जाने वाली एक प्रक्रिया के अनुसार राष्ट्रपति को सिफारिश करेगा कि किन शासकीय प्रयोजनों के लिए हिन्दी का प्रयोग अधिकाधिक किया जा सकता है, अंग्रेजी भाषा के प्रयोग पर क्या निर्बन्ध हो सकते हैं, न्यायालयों में प्रयुक्त होने वाली किसी भाषा का क्या स्वरूप चलता रहे, किन प्रयोजनों के लिए अंकों का रूप क्या हो और संघ की राजभाषा अथवा संघ और किसी राज्य के बीच की भाषा अथवा एक राज्य और दूसरे राज्यों के बीच पत्र आदि की भाषा के बारे में क्या सुझाव हो। इसी प्रकार का आयोग संविधान के प्रारम्भ में 10 वर्ष की समाप्ति पर गठित किया जाएगा। यह प्रावधान भी किया गया कि वे आयोग भारत की औद्योगिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक उन्नति का और लोक सेवाओं के सम्बन्ध में अहिन्दी-भाषी क्षेत्रों के न्यायसंगत दावों और हितों का पूरा-पूरा ध्यान रखेंगे। आयोग की सिफारिशों पर संसद की एक समिति अपनी राय राष्ट्रपति को देगी। इसके पश्चात् राष्ट्रपति उस सम्पूर्ण रिपोर्ट के या उसके किसी भाग के अनुसार निर्देश जारी कर सकेगा।
धारा 345- किसी राज्य का विधान मण्डल, विधि द्वारा, उस राज्य में प्रयुक्त होने वाली या किन्हीं अन्य भाषाओं को या हिन्दी को शासकीय प्रयोजनों के लिए स्वीकार कर सकेगा। यदि किसी राज्य का विधानमण्डल ऐसा नहीं कर पाएगा तो अंग्रेजी भाषा का प्रयोग यथावत किया जाता रहेगा।
धारा 346- संघ द्वारा प्राधिकृत भाषा एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच में तथा किसी राज्य और संघ की सरकार के बीच पत्र आदि की राजभाषा होगी। यदि कोई राज्य परस्पर हिन्दी भाषा को स्वीकार करेंगे तो उस भाषा का प्रयोग किया जा सकेगा।
धारा 347- यदि किसी राज्य की जनसंख्या का पर्याप्त भाग यह चाहता हो कि उसके द्वारा बोली जाने वाली भाषा को उस राज्य में (दूसरी भाषा के रूप में) मान्यता दी जाए और इस निमित्त से मांग की जाए, तो राष्ट्रपति यह निर्देश दे सकेगा कि ऐसी भाषा को भी उस राज्य में सर्वत्र या उसके किसी भाग में ऐसे प्रयोजन के लिए जो वह विनिर्दिष्ट करें. शासकीय मान्यता दी जाए।
धारा 348- जब तक संसद विधि द्वारा उपलब्ध न करें तब तक उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय से सब तरह की कार्यवाही अंग्रेजी भाषा में होगी। संसद के प्रत्येक सदन या राज्य के विधान मण्डल के किसी सदन में विधेयकों, अधिनियमों, प्रस्तावों, आदेशों, नियमों और नियोगों और उपविधियों एवं राष्ट्रपति अथवा किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रख्यापित अध्यादेशों के प्राधिकृत पाठ अंग्रेजी भाषा में होंगे। किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उस उच्च न्यायालय की कार्यवाही के लिए हिन्दी भाषा या उस राज्य में मान्य भाषा का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा, परन्तु उस उच्च न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय, डिक्री या आदेश पर इस खण्ड की कोई बात लागू नहीं होगी। यह प्रावधान भी किया गया है कि इस खण्ड की किन्हीं बातों के लिए यदि अंग्रेजी से भिन्न किसी भाषा को प्राधिकृत किया गया हो तो अंग्रेजी भाषा में उसका अनुवाद प्राधिकृत पाठ समझा जायेगा।
धारा 349- राजभाषा से सम्बन्धित संसद यदि कोई विधेयक या संशोधन पुनः स्थापित या प्रस्तावित करना चाहे तो राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी लेनी पड़ेगी और राष्ट्रपति आयोग की सिफारिशों पर इन सिफारिशों की गठित रिपोर्ट पर विचार करने के पश्चात् ही अपनी मंजूरी देगा, अन्यथा नहीं।
धारा 350- प्रत्येक व्यक्ति किसी शिकायत को दूर करने के लिए संघ या राज्य के किसी अधिकारी या प्राधिकारी को यथास्थिति संघ में या राज्य में प्रयोग होने वाली किसी भाषा में अभ्यावेदन देने का हकदार होगा। अल्पसंख्यक बच्चों की प्राथमिक शिक्षा उनकी मातृभाषा में दिये जाने की पर्याप्त सुविधा सुनिश्चित की जायेगी, भाषायी अल्पसंख्यक वर्गों के लिए राष्ट्रपति एक विशेष अधिकारी को नियुक्त करेगा जो उन वर्गों के सभी विषयों से सम्बन्धित रक्षा के उपाय करेगा और अपनी रिपोर्ट समय-समय पर राज्यपाल और राष्ट्रपति को देगा जिस पर संसद विचार करेगी।
धारा 351- के अन्तर्गत यह निर्देश दिया गया कि संघ का यह कर्त्तव्य होगा कि यहाँ हिन्दी भाषा का प्रसार बढ़ाए और उसका विकास करे ताकि वह भारत की सामाजिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किये बिना हिन्दुस्तानी के और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहाँ आवश्यक या वांछनीय हो वहाँ उसके शब्द भण्डार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणताः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करें।
राजभाषा और राष्ट्रभाषा में अन्तर
1947 ई. में जब भारत विदेशी साम्राज्य के बन्धन से मुक्त होकर स्वायत्त लोकतंत्र के रूप में प्रतिष्ठित हुआ तब संवैधानिक दृष्टि से राष्ट्रभाषा और राजभाषा पृथक् रूप परिभाषित की गयी। यद्यपि व्यावहारिक स्तर पर आज संयोगवश हिन्दी राष्ट्रभाषा होने के साथ-साथ राजभाषा के रूप में भी मान्य है, पर सैद्धान्तिक तौर पर दोनों की अवधारणाएं पृथक-पृथक हैं। दोनों के स्वरूप में कुछ मूलभूत अन्तर है, जो इस प्रकार है-
(1) राष्ट्रभाषा सदैव लोकभाषा होती है, पर राजभाषा कभी-कभी विदेशी भी हो सकती है। जब भारत में हिन्दी साम्राज्य का पतन हुआ और धर्मान्ध इस्लाम की विजय पताका के अधीन सारा भारत आ गया तो भारत का सारा राजकाज फारसी भाषा में चलने लगा। इसी प्रकार जब मुगल साम्राज्य का पतन हुआ और अंग्रेजों के पॉव भारत में जम गए, तब भारत का सारा राजकाज अंग्रेजी भाषा में चलने लगा। ब्रिटिश भारत में अंग्रेजी राजभाषा थी, निजाम के हैदराबाद में उर्दू, फ्रांसीसी उपनिवेश पाण्डिचेरी और चन्दन नगर में फ्रांसीसी तथा गोआ दमन में पोर्तुगीज भाषा के पद पर बैठायी गयी। राष्ट्रभाषा सर्वसाधारण व्यापिनी होती है, जिसमें सम्पूर्ण राष्ट्र झलकता है एवं राजभाषा शासन सूत्र में सीमित होती है। उपर्युक्त उदाहरण से स्पष्ट है कि विदेशी भाषा भी शासन के साथ राजभाषा बनती है किन्तु राष्ट्रभाषा तो निश्चयतः अपने देश की ही भाषा होगी।
(2) राष्ट्रभाषा का शब्द भण्डार देश की विविध बोलियों, उपभाषाओं आदि से समृद्ध होता है। इसमें लोकप्रयोग के अनुसार नयी शब्दावली जुड़ती चली जाती है, परन्तु राजभाषा का शब्द भण्डार एक सुनिश्चित साँचे में ढला हुआ प्रयोजनमूलन प्रयुक्तियों तक सीमित होता है।
(3) राष्ट्रभाषा में राष्ट्र की आत्मा ध्वनित होती है। सम्पूर्ण देश की जनता का चिन्तन, उसकी संस्कृति, विश्वास, धर्म, सामाजिक अवधारणाएँ, जीवन के वैविध्यपूर्ण व्यावहारिक पहलू, लौकिक-आध्यात्मिक प्रवृत्तियाँ लोक नीति सम्बन्धी विविध विचार एवं दृष्टिकोण राष्ट्रभाषा के माध्यम से ही मुखर होते हैं, पर राजभाषा वैधानिक अवधारणा से आवृत होता है। उसमें अधिकांश कानूनी और संवैधानिक आवरण से आवृत होता है। उसमें अधिकांश कानूनी और संवैधानिक नियम-विधान एवं उनसे सम्बन्धित विवेचन-विश्लेषण किया जाता है।
(4) राष्ट्रभाषा राष्ट्र के सभी सार्वजनिक स्थलों, सांस्कृतिक केन्द्रों, तीर्थों, सभास्थलों, गली-मुहल्लों, हाट-बाजारों, मेलों, उत्सवों आदि में प्रयुक्त होती है, पर राजभाषा का प्रयोग क्षेत्र कार्यालयों की चारदीवारी तक ही सीमित होती है।
(5) देश के अधिकतर भागों में आम जनता जिस भाषा में आपसी वार्तालाप विचाराभिव्यक्ति एवं लोक-व्यवहार करते हैं, वह राष्ट्रभाषा होती है। अखिल भारतीय स्तर पर राजकीय कामकाज के लिए माध्यम के रूप में प्रयुक्त होने वाली भाषा राजभाषा कहलाती है। चूंकि विविध प्रकार के राजकीय कार्यालय की माध्यम भाषा राजभाषा कहलाती है, इसलिए राजभाषा का प्रयोग प्रायः राजकीय प्रशासकीय, सरकारी, अर्द्ध-सरकारी कर्मचारियों द्वारा होता है।
IMPORTANT LINK
- शैक्षिक तकनीकी का अर्थ और परिभाषा लिखते हुए उसकी विशेषतायें बताइये।
- शैक्षिक तकनीकी के प्रकार | Types of Educational Technology in Hindi
- शैक्षिक तकनीकी के उपागम | approaches to educational technology in Hindi
- अभिक्रमित अध्ययन (Programmed learning) का अर्थ एंव परिभाषा
- अभिक्रमित अनुदेशन के प्रकार | Types of Programmed Instruction in Hindi
- महिला समाख्या क्या है? महिला समाख्या योजना के उद्देश्य और कार्यक्रम
- शैक्षिक नवाचार की शिक्षा में भूमिका | Role of Educational Innovation in Education in Hindi
- उत्तर प्रदेश के विशेष सन्दर्भ में शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009
- शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009′ के प्रमुख प्रावधान एंव समस्या
- नवोदय विद्यालय की प्रवेश प्रक्रिया एवं अध्ययन प्रक्रिया
- पंडित मदन मोहन मालवीय के शैक्षिक विचार | Educational Thoughts of Malaviya in Hindi
- टैगोर के शिक्षा सम्बन्धी सिद्धान्त | Tagore’s theory of education in Hindi
- जन शिक्षा, ग्रामीण शिक्षा, स्त्री शिक्षा व धार्मिक शिक्षा पर टैगोर के विचार
- शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त या तत्त्व उनके अनुसार शिक्षा के अर्थ एवं उद्देश्य
- गाँधीजी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन | Evaluation of Gandhiji’s Philosophy of Education in Hindi
- गाँधीजी की बुनियादी शिक्षा व्यवस्था के गुण-दोष
- स्वामी विवेकानंद का शिक्षा में योगदान | स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन
- गाँधीजी के शैक्षिक विचार | Gandhiji’s Educational Thoughts in Hindi
- विवेकानन्द का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान | Contribution of Vivekananda in the field of education in Hindi
- संस्कृति का अर्थ | संस्कृति की विशेषताएँ | शिक्षा और संस्कृति में सम्बन्ध | सभ्यता और संस्कृति में अन्तर
- पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धान्त | Principles of Curriculum Construction in Hindi
- पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धान्त | Principles of Curriculum Construction in Hindi
- मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा शिक्षा का किस प्रकार प्रभावित किया?
- मानव अधिकार की अवधारणा के विकास | Development of the concept of human rights in Hindi
- पाठ्यक्रम का अर्थ एंव परिभाषा | Meaning and definitions of curriculum in Hindi
- वर्तमान पाठ्यक्रम के दोष | current course defects in Hindi
- मानव अधिकार क्या है? इसके प्रकार | what are human rights? its types
- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के लिए शिक्षा के उद्देश्य | Objectives of Education for International Goodwill in Hindi
- योग और शिक्षा के सम्बन्ध | Relationship between yoga and education in Hindi
Disclaimer