हिन्दी साहित्य

रीतिकाल में प्रचलित प्रकृति चित्रण का स्वरूप बिहारी सतसई में मिलता है।” इस कथन की समीक्षा कीजिए।

रीतिकाल में प्रचलित प्रकृति चित्रण का स्वरूप बिहारी सतसई में मिलता है।" इस कथन की समीक्षा कीजिए।
रीतिकाल में प्रचलित प्रकृति चित्रण का स्वरूप बिहारी सतसई में मिलता है।” इस कथन की समीक्षा कीजिए।

रीतिकाल में प्रचलित प्रकृति चित्रण का स्वरूप बिहारी सतसई में मिलता है। | एक सिद्ध हस्त कवि के रूप में बिहारी ने प्रकृति का चित्रण

रीतिकाल में प्रचलित प्रकृति चित्रण का स्वरूप बिहारी सतसई में मिलता है।- मानव जाति का प्रादुर्भाव भी अन्य जीवों की भाँति प्रकृति की गोद में हुआ था। प्रकृति के उन्मुक्त और मोहक दृश्यों के बीच पोषित होने के कारण मनुष्य का प्रकृति के साथ सम्बन्ध स्थापित होना स्वाभाविक है प्रत्येक देश की भाषा का साहित्य देखने पर हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि व्यक्ति ने अपनी सौन्दर्य चेतना के लिये प्रकृति की शरण ली। यदि भूमध्य रेखा के घने जंगलों में रहने वाले व्यक्तियों ने तरल तिमिर की नीलिमा से अपनी सौन्दर्य वृत्ति को उदान्त किया तो अरब निवासी मरुक्षेत्रों में व्याप्त कुंजों की विरल छवि में प्रवाहित जल धारा तथा ताड़ एवं खजूर के वृक्षों को ही अपना आश्रय बनाया। भारतवर्ष की भौगोलिक स्थिति में जहाँ एक ओर यदि कुमार सम्भव का हिमवान अपनी शुभ्र रजत हिमशृंखला से व्यक्ति को परितुष्ट करता है तो दूसरी ओर बाणभट्ट की कादम्बरी को विकट विन्ध्यातटवी कहने वाले प्रसिद्ध वर्णन समीक्षक वेबर को आश्चर्य से विजड़ित कर देती है।

प्रकृति चित्रण की झलक हमें वैदिक साहित्य से ही मिलनी शुरू हो जाती है। प्रकृति को चेतन मानकर उसमें मानवीय भावनाओं और विचारों को मूर्त रूप देने का प्रयास किया है। महर्षि बाल्मीकि का रामायण महाकाव्य प्रकृति चित्रण से भरा पड़ा है। महर्षि वशिष्ठ के आश्रम का सौन्दर्य वर्णन निम्न है-

वशिष्ठस्थाश्रमपदं नाना पुष्पलता द्रुमम् ।

लाना मृग गजाकीर्ण सिद्ध चारण से वितम् ।।

इसी प्रकार ‘रामायण’ में ऋषि मुनियों के आश्रमों तथा राजा जनक की पुष्प वाटिकाओं का भी वर्णन मिलता है।

इसी प्रकार श्रीमद्भागवत में महर्षि व्यास ने शरद कालीन चन्द्रमा की किरणों से शोभायमान रात्रि का मनोरम चित्र प्रस्तुत किया है।

संस्कृत काव्य ग्रन्थों में प्रकृति वर्णन विस्तृत रूप से किया गया है कालिदास कृत कुमार सम्भव, अभिज्ञान शाकुन्तलम् और ऋतु संहार में इसके वर्णन की अधिकता है।

भारतवर्ष में 6 ऋतुएँ होती हैं और प्रायः सभी कवियों ने इन ऋतुओं का वर्णन किया है। हिन्दी कवियों ने प्रकृति चित्रण की उन्हीं विधाओं को स्वीकार कर लिया है जो संस्कृत, प्राकृत तथा अप्रभंश में चली आ रही थी।

रीतिकाल में प्रकृति चित्रण के क्षेत्र में कोई विशेष विकास न होकर परम्परा का ही पालन किया गया। प्रकृति चित्रण के अन्तर्गत बिहारी का पट् ऋतु वर्णन महत्व पूर्ण हैं।

बसन्त वर्णन

बसन्त को भारतीय कवियों ने ऋतुराज की संज्ञा से अभिहित किया है। इस ऋतु में न अधिक गर्मी पड़ती है न सर्दी । फिर भी सम्भोगजन्य स्वेद को देखकर सखी आश्चर्य प्रकट करती है-

यह वसन्त न खरी बरी, गरम न शीतल बात ।

कहि क्यों प्रगटे देखियत, पुलक पसीजे गात ॥

बिहारी ने सरसों के स्वर्णिम पुष्पों की पीतिमा, कोयल का मादक संगीत, गुनगुनाते हुए भँवरों की क्रीड़ा, नदी की लहरों पर थिरकती हुई सूर्य की अरुणिम रश्मियों का मन्दालोक, पवन झकोरों के साथ नाचती कर्मिकार के बहुरंगी पुष्पों से युक्त कामदेव के सहायक का सजीव वर्णन किया है। पुष्पों के मधुर मकरन्द का पान करने के लिये भौंरों का समूह सुकुमार कुसुमित लताओं का आलिंगन करता है-

छकि सौरव सने मधुर माधवी गन्ध ।

ठौर-ठौर झूमत झामत गीर झौर मधु अन्य।

देवर-भाभी द्वारा खेली जाने वाली होली में उल्लास की तरंग का बिहारी ने चित्रण किया है-

रस भिजये दोऊ दुहुन, तड टिकि रहे, टरैन ।

छवि सौ छिरकत प्रेम रंग भरि पिचकारी नैन ।

ऋतुराज बसन्त जहाँ उल्लास एवं उमंग की ऋतु है वहीं विरहिणी नायिका के लिये व्यथा एवं पीड़ा देने वाली है। प्रियतम को विरह वेदना से व्याकुल होकर पलाश की रक्तिम पुष्पावलियों को धुएँ से रहित आग का स्फुलिंग समझकर उसमें जलकर मर जाने की इच्छा व्यक्त करती है।

अन्त मरेंगे चलि जरै चढ़ि पलास की डार।

फिरि न मरै मिलि हैं अली, ये निरधूम अंगार ||

(2) ग्रीष्म वर्णन – ग्रीष्म ऋतु के प्रचण्ड सूर्य की किरणों से जलती हुई धरती है। जहाँ सर्प-मोर, मृग-सिंह आदि हिंसक जन्तु भी परस्पर विरोध की भावना को त्याग कर प्राण रक्षा हेतु प्रयत्नशील है, जिसके कारण वह वन अहिंसात्मक वातावरण से हटकर तपोवन मालूम पड़ने लगता है-

कहलाने एकत बसत अहि मयूर मृग बाघ ।

जगत तपोन सौ कियौ दीरघ निदाघ ।

जेठ माह की दुपहरिया में उष्णता को देखकर छाया भी छाया चाहती है-

  (1)  बैठ रही अति सघन वन, पैठि सदन तन माहँ ।

निरख दुपहरी जेठ की, छाहों चाहति छाहँ ।।

(2)  नाहिन ए पावक प्रबल, लुवै चलें चहुँ पास ।

मानहुँ बिरह बसन्त कै, ग्रीष्म लेन उसास ॥

(3) पावस वर्णन- बसन्त के पश्चात् यदि किसी ऋतु पर कवियों ने अबोध गति से लिखा है तो वह है पावस ऋतु । बिहारी ने अत्यन्त भावानुभूति के साथ वर्णन किया है-

(1) पावक झरते मेह झर, दाहक दुसह विशेष ।

दह देह वाके परस, याहि दमन की देख ||

घुरवा हीहि न अलि उठे धुआँ घरनि चहुँकोद ।

जारत आवत जगत को पावम प्रथम पयोद ||

वर्षा ऋतु में बाघ, सुतली या मूंज की गाँठें कड़ी हो जाती हैं किन्तु मन की गाँठ ढीली पड़ जाती है क्योंकि वर्षा ऋतु में काम-वासना चरम उत्कर्ष पर पहुँच जाती है। इसका वर्णन देखिये-

हठन हठीली करि सकै, यह पावस ऋतु पाइ ।

आन गाँठ घुटि जात ज्यों, मान गाँठ छुटि जाइ ॥

वर्षा ऋतु में पति का विदेश जाना नायिका के लिये वेदनाजन्य और पीड़ादायक होता है। बिहारी ने कितने मर्मस्पशी शब्दों वर्णन किया है-

भामा भामा कामिनी, कहि खोलो प्रानेत।

प्यारी कहत लजात नहि, पावस चलत विदेश ।।

(4) शरद वर्णन – शरद ऋतु में जल निर्मल हो जाता है। आकाश से बादल छंट जाते हैं, कमलों की शोभा निखर पड़ती है। चन्द्रमा, कमल और खंजन जोकि शरद काल की महत्वपूर्ण वस्तुयें हैं, जिनका बिहारी ने बड़ा ही सुन्दर वर्णन किया है-

अरुन सरीरुह कर चरन, डग खंजन मुख चन्द ।

सर्प आइ सुन्दरि शरद काहिज करति अनन्द ।।

शरद ऋतु में चन्द्रमा के किरणों को विरहिणी की नायिका देखती है तो उसका मन वेदना से अभिभूत हो उठता है-

हौही गौरी बिरह बस के बौरी सबनामु।

कहा जानिए कहत हैं, ससिंहिं सीत कर नामु।।

(5) हेमन्त वर्णन- इस ऋतु की दो विशेषतायें होती हैं। (1) पुष्पों की कमी होना। (2) यौवन सुख के उपभोग के लिये यह ऋतु सर्वोत्तम है। इसी विशेषता को ध्यान में रखकर बिहारी ने कहा है-

कियौ सबै जगु काम बसु जीति जिते अजेय ।

कुसुम सरहिं सर धनुध कर अगहन् गहन न देय ।।

इस ऋतु में दिन छोटा हो जाता है, रात बढ़ जाती है, इसका वर्णन बिहारी ने बहुत सुन्दर ढंग से किया है-

ज्यों ज्यों बढ़ति विभावरी त्यौं त्यों बढ़त अनन्त ।

घरहूँ जंवाई लौ घटयों खरो पूसु दिनमानु ।।

आवाज जात न जानियतु तेजहिं तजि सियरानू ।

ओक ओक सब लोक सुख कोक शोक हेमन्त ॥

(6) शिशिर वर्णन – शिशिर वर्णन सम्बन्धी केवल दो दोहे ही मिलते हैं। एक में तो शुद्ध ऋतु वर्णन है तथा दूसरा उद्दीपन के रूप में प्रस्तुत है-

1.    नगत सुभय सीतल किरन निसि सुख दिन अवगाहि ।

माह ससी रूप भ्रम सूर त्यौं रहति चकोरी चाहि ।।

2.    तपन तेज तप ताप तपि, अतुल तुलाई माँहि ।

शिशिर शीत क्यों हिन मिदै, बिन लपटै तिय नाँहि ॥

अलंकार रूप में प्रकृति-चित्रण- बिहारी रस सिद्ध कवि हैं। अलंकारों के प्रति उनके मन में सहज स्वाभाविक मोह है और अलंकारों का प्रयोग खुलकर किया है-नायिका के रूप वर्णन, नख शिख चित्रण आदि प्रसंगों में भी कवि प्रकृति को अपने साथ लेकर चला है।

सोहत ओढ़े पीत पटु सयाम सलौने गात।

गमो नीलमणि चैल पर आतप पर्यो प्रभात ।

नायिका का मुख पूर्णिमा के चन्द्रमा के समान है। उसके मुख की क्रान्ति देखकर रात को चन्द्रमा का भ्रम हो जाता है। इसका वर्णन प्रस्तुत है-

पत्राहू तिथि पाइयो, वा घर के चहुँ पास।

नित प्रति पून्यो ही रहै, आनन ओप उजास ।।

नायिका के नेत्रों का बिहारी ने अलंकारात्मक चित्र प्रकृति के माध्यम से प्रस्तुत किया है-

रस सिंगार मजनु किये, कंजन भजन दैन।

अजनु रजनु हूँ बिना, खजन गंजन नैन ।।

आलम्बन रूप में प्रकृति-चित्रण- बिहारी ने परम्परागत रूप में प्रकृति का स्वतन्त्र रूप में भी यत्र तत्र वर्णन किया है। जैसे-

रनित भृंग घटावली झरत दान मधु नीर।

मन्द मन्द आवतु चल्यौं कुंजर कुंज समीर ॥

उद्दीपन रूप में प्रकृति-चित्रण- बिहारी ने प्रकृति का चित्रण उद्दीपन रूप में भी किया है-

नभ लाली चाली निशा चट काली धुनि कीन ।

रति पाली आली अनत, आए वन मालीन ।।

बिहारी ने यमुना तट के सौन्दर्य का भी उद्दीपन वर्णन किया है।

सघन कुंज छाया सुखद सीतल मन्द समीर ।

मनु हैं जातु अजी वह उहि जमुना के तीर ।।

उपदेशात्मक प्रकृति चित्रण – बिहारी ने अन्योक्तियों के माध्यम से प्रकृति का उपदेशात्मक रूप चित्रित किया है।

कोटि जतन कोऊ करों परौं न प्रकृतिहि बीच ।

नल वल जल ऊंचों चढ़े अन्त नीच कौ नीच ।।

प्रकृति का चित्रण कवि ने या तो श्रृंगार के लिये अभिष्ट माना है अथवा वियोग के उद्दीपन हेतु किया है।

बिहारी सतसई मूलतः शृंगार प्रधान काव्य है। शृंगार रस की प्रकृति के अनुकूल ही उन्होंने प्रकृति के सुकुमार पक्ष को ही अपना विषय बनाया । संयोग में साधर्म्य तथा वियोग में वैधर्म्य मूलक प्रकृति का चित्रण करने में बिहारी प्रथम कोटि के कवि हैं।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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