विद्यार्थियों के लिए योग शिक्षा का महत्व की विवेचना कीजिए।
योग को अनुशासन कहा गया है। आज के युग में अनुशासन की आवश्यकता बढ़ गयी है। युवा पीढ़ी में अनुशासनहीनता बढ़ रही है – उसके लिए जिम्मेदार हैं हमारे जीवन की परिवर्तित जीवन शैली। पाश्चात्य सभ्यता का अनुकरण करके हम अपनी सांस्कृति विरासत को नष्ट कर रहे हैं। भौतिकता की दौड़ में हमने अपने मूल्य नष्ट कर दिये हैं। हम इस दौड़ में न अपने शरीर को बलिष्ठ रख पा रहे हैं न मानसिक रूप से संतुलित हो पा रहे हैं।
विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है कि विद्याध्ययन के दौरान उनका शारीरिक मानसिक संतुलन बना रहे। आज के युग में पढ़ाई के तौर तरीके बदल गये हैं। स्कूली पढ़ाई के अतिरिक्त अन्य प्रकार के कौशल भी विद्यार्थी को प्राप्त करने पड़ते हैं। प्रतियोगिता के दौर में विद्यार्थी को अपना अधिकतम समय पढ़ाई लिखाई में ही लगाना पड़ता है। इसलिए आवश्यक है कि मानसिक तनाव को दूर करने के लिए खेल या योग के उपायों की श्रेष्ठ जीवन शैली को अपनाया जाये।
विद्यार्थी जीवन में ब्राह्मचर्य का विशेष महत्व होता है। वर्तमान में विभिन्न टी.वी. चैनल उत्तेजक दृश्यों भरे धारावाहिक, फिल्मी गाने तथा अन्य प्रकार के प्रोग्राम तैयार करके
उपभोक्ताओं को परोसते हैं उनका उद्देश्य विज्ञापन के माध्यम से धन कमाना होता है। लेकिन कोमल भावनाओं का विद्यार्थी इसे समझ नहीं पाता वह विभिन्न प्रकार की हरकतें करने लगता है या मानसिक कुंठाओं का शिकार हो जाता है। इसके लिए अत्यंत आवश्यक है कि विद्यार्थी योग को अपनाएं। योग न केवल मन को स्वस्थ रखता है, बल्कि तनाव भी दूर करता है। मनुष्य अभ्यास के बाद अपने आपको तरोताजा महसूस करता है। आसनों तथा प्राणायाम के माध्यम से शारीरिक दृढ़ता आती है, मन संयमित रहता है। ध्यान के कारण एकाग्रता आती है। चित्त की चंचलता दूर होती है। मन एकाग्र होकर पढ़ाई लिखाई में लगता है। बुरे विचार भी समाप्त हो जाते हैं। विद्यार्थी अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है जिससे उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है। आधुनिक युग में योग शिक्षा स्वास्थ्य शिक्षा की ऐसी विधा है जो सबसे प्राचीन होते हुए भी आधुनिक प्रणाली कही जा सकती है। इसकी महत्ता को व्यक्तिगत रूप से ही नहीं बल्कि सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर लिया गया है। इसके प्रचार तथा प्रसार के भरसक प्रत्यन किये जा रहे हैं। यह प्रणाली अत्यधिक सस्ती तथा कम खर्चीली है सर्वसुलभ है। इसे मनुष्य अपने दैनिक जीवन में नित्य के कार्य कलापों से संबद्ध कर प्रयोग में ला सकते हैं।
यह कहना एक सीमा तक उचित है कि आज जीवन अर्थतंत्र पर आधारित हो गया है। लेकिन यह भी सत्य है कि अधिक सम्पूर्णता के अनन्तर भी शारीरिक एवं मानसिक शां नहीं है इसके लिए योग ही ऐसी सर्वसुलभ प्रणाली है जो सभी के लिए उपयुक्त है।
योगासनों, योग क्रियाओं से स्थिर मनो शारीरिक पृष्ठ भूमि तैयार होती है जबकि आधुनिक युग में मशीनीकरण, अधिक दबाव, दैनिक सामाजिक राजनैतिक उत्तेजनाएं, शारीरिक एवं मानसिक असंतुलन पैदा करती है। यह सत्य है कि घर से बाहर खुले मैदान में मनोरंजन, व्यायाम जैसे तेज चलना, खेलना तथा विभिन्न प्रकार की क्रिड़ाएं बहुत सीमा तक न्यूनता को पूरा करते हैं लेकिन उनसे लाभ होने के उपरान्त भी यह नहीं कहा जा सकता है कि वे क्रमशः शारीरिक पेशीयता का संतुलन बनायेंगे। योग से आध्यात्मिक उन्नति में पूर्ण सहायता मिलती है जिसके लिए ध्यान, धारणा तथा समाधि की साधना परम आवश्यक धारणा, ध्यान व समाधि से मन को एकाग्र करने, अपने लक्ष्य को प्राप्त करने (विशेष रूप से विद्यार्थियों) के लिए इन सबका पालन बहुत लाभकारी है। इस प्रकार सर्वांगीण दृष्टिपात करने पर हम कह सकते हैं कि आधुनिक युग में विद्यार्थियो के लिए योग शिक्षा का अत्यधिक महत्व है यह ऐसी प्राचीन विद्या है जिससे शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक, सामाजिक, आध्यात्मिक, उन्नति के पूर्ण अवसर मिलते हैं। विद्यार्थी अपने पूर्वानुभवों के आधार पर अपने लक्ष्य की सिद्धि प्राप्त कर सकता है।
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