विषयगत एवं अनुभाविक वैधता पर प्रकाश डालिए ।
विषयगत वैधता (Content Validity) – जब परीक्षण की वैधता स्थापित करने के लिए परीक्षण परिस्थितियों (Test taking situations) तथा परीक्षण व्यवहार (Test behavior) का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करके परीक्षण द्वारा मापी जा रही विशेषता / योग्यता के संबंध में प्रमाण (evidence) एकत्रित किये जाते हैं तो इसे विषयगत वैधता (Content Validity) कहते हैं। विषयगत वैधता को सुनिश्चित करने के लिए कई भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रमाण एकत्रित किये जा सकते हैं तथा विभिन्न परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न प्रमाण अधिक महत्वपूर्ण हो सकते हैं इसलिए विषयगत वैधता कई प्रकार की हो सकती है। रूप वैधता (Face Validity), तार्किक वैधता (Logical Validity), प्रतिदर्शज वैधता (Sampling Validity) तथा अवयवात्मक वैधता (Factorial Validity) कुछ मुख्य प्रकार की विषयगत वैधताएं हैं। रूप वैधता में यह देखा जाता है कि क्या परीक्षण ऊपरी तौर से देखने में उस व्यवहार का मापन करने वाला प्रतीत हो रहा है जिसका मापन करने के लिए उसे बनाया गया है या प्रयोग में लाया जा रहा है। रूप वैधता का निर्धारण प्रायः विशेषज्ञों के निर्णय के आधार पर किया जाता है।
तार्किक वैधता में देखा जाता है कि क्या परीक्षण को तर्कसंगत ढंग से बनाया गया है। वस्तुतः तार्किक वैधता परीक्षण के निर्माण प्रक्रिया के सही ढंग से अनुपालन करने से सम्बन्धित है। तार्किक वैधता की मान्यता है कि यदि परीक्षण का निर्माण विधि सम्मत ढंग से किया जाता है तो वह अपने उद्देश्य की पूर्ति में सफल होगा। तार्किक वैधता का निर्धारण भी विशेषज्ञों के निर्णय से किया जा सकता है। प्रतिदर्शन वैधता में देखा जाता है कि क्या परीक्षण में सम्मिलित (specially defined universe of behavior), जिसके मापन के लिए परीक्षण बनाया गया या उपयोग में लाया जा रहा है, क उचित ढंग से प्रतिनिधित्व (representation) करते हैं, यद्यपि रूप वैधता तथा तार्किक वैधता की तरह से प्रतिदर्शन वैधता को भी विशेषज्ञों के निर्णय से निर्धारित किया जाता है, परन्तु प्रतिदर्शन वैधता को विशेषज्ञों के अवलोकन मात्र से ज्ञात नहीं किया जाता है। प्रतिदर्शन वैधता का निश्चय करते समय तीन बातों पर ध्यान देना होता है। सर्वप्रथम, मापे जाने वाले गुण या विषयवस्तु को व्यावहारिक रूप में परिभाषित करना आवश्यक है। इसके उपरान्त गुण या विषयवस्तु को व्यावहारिक रूप में परिभाषित करना आवश्यक है। इसके उपरान्त गुण या विषयवस्तु को विभिन्न भागों या विमाओं (categories or dimensions) में विभक्त करना होता है। अन्त में यह देखना होता है कि क्या प्रत्येक भाग या विमा का मापन करने के लिए परीक्षण में पर्याप्त प्रश्न सम्मिलित किये गये हैं। स्पष्ट है कि प्रतिदर्शन वैधता में मापे जा रहे गुण के ब्लू प्रिन्ट या विशिष्टीकरण तालिका (Blue Print or Table of Specifications) के आधार पर परीक्षण की वैधता का आंकन किया जाता है। प्रतिदर्शन वैधता को इसकी प्रकृति के कारण पारिभाषिक वैधता (Validity by definition) भी कहा जाता है।
विषयगत वैधता का सम्भवतः सर्वाधिक परिमार्जित रूप (Sophisticated form) अवयवात्मक वैधता है। इसमें अवयव विश्लेषण (Factor Analysis) नाम की सांख्यिकीय प्रविधि का प्रयोग करके यह ज्ञात किया जाता है कि परीक्षण विभिन्न पाठयवस्तु (content areas) का किस सीमा तक मापन करता है, क्योंकि इस प्रकार की वैधता में आनुभाविक समंको (Empirical data) की सहायता से अवयव विश्लेषण किया जाता है। इसलिए कुछ विद्वान इसे आनुभाविक वैधता के रूप में स्वीकार करते हैं, परन्तु क्योंकि इस वैधता के निर्धारण में केवल परीक्षण व्यवहार (Testing behavior) के आधार पर वैधता ज्ञात करते हैं तथा इसका मुख्य उद्देश्य विषयवस्तु का विश्लेषण करना मात्र है, इसलिए हेल्मस्टेडटर ने अवयवात्मक वैधता को विषयगत वैधता शीर्षक में ही समाहित किया है। अवयव विश्लेषण प्रविधि से अवयव मैट्रिक्स (Factor Matrix) या अवयव भार तालिका (Table of Factor Loadings) प्राप्त होती है। परीक्षण के अवयव (Factors) बताते हैं कि परीक्षण इसमें समाहित विभिन्न गुणों (Traits), क्षेत्रों (areas) या विमायों (dimensions) का किस सीमा तक मापन करता है, जो परीक्षण की अवयवात्मक वैधता का सूचक होते हैं। स्पष्ट है कि अवयवात्मक वैधता के निर्धारण में रूप वैधता तथा तार्किक वैधता के समान परीक्षण या उसकी विशिष्टीकरण तालिका का अवलोकन मात्र न करके परीक्षण पर छात्रों के प्राप्तांकों का सांख्यिकीय विश्लेषण करके वैधता स्थापित की जाती है।
आनुभाविक वैधता (Empirical Validity)
जब परीक्षण व्यवहार (Test behavior) तथा निकष व्यवहार (Criterion behavior) के मध्य सम्बन्ध को ज्ञात करके परीक्षण द्वारा मापी जा रही विशेषता या योग्यता के संबंध में प्रमाण (evidence) प्रस्तुत किये जाते हैं, तो इसे आनुभाविक वैधता (Empirical Validity) या निकष वैधता (Criterion Validity) कहते हैं। यदि परीक्षण प्राप्तांकों (Test Scores) तथा निकष प्राप्तांकों (Criterion Scores) में घनिष्ठ संबंध होता है, तो परीक्षण को वैध परीक्षणस्वीकार किया जाता है। क्योंकि इस प्रकार की वैधता को प्राय: दो चरों के मध्य संबंध के द्वारा व्यक्त किया जाता है, इसलिए आनुभाविक वैधता का सर्वोत्तम व सर्वाधिक प्रयोग में आने वाला गुणांक गुणनफल आघूर्ण सहसंबंध है। उदाहरण के लिए उपलब्धि परीक्षण की वैधता इस परीक्षण के अंकों तथा बुद्धि लब्धि (IQ.) के बीच सहसंबंध की सहायता से ज्ञात की जा सकती है। परिस्थितिनुसार श्रेणीकम, द्विपंक्तिक, चतुष्कोष्ठीय आदि विभिन्न सहसंबंध विधियों का प्रयोग भी आनुभाविक वैधता ज्ञात करने के लिए किया जा सकता है।
कभी-कभी निकष व्यवहार का मापन अत्यधिक व्यय साध्य या अविश्वसनीय या लगभग असम्भव होता है। ऐसी स्थिति में परीक्षण व्यवहार व निकष व्यवहार के सम्बन्ध को ज्ञात करने के लिए सहसंबंध गुणांक के स्थान पर कुछ अन्य विधियां प्रयोग में लायी जाती है। जैसे स्पष्ट रूप से स्वीकृत समूहों (Readily recognized Groups) के लिए परीक्षण प्राप्तांकों के मध्यमानों की तुलना करके परीक्षण व निकष (जिसके आधार पर समूह बनाये गये हों) के सम्बन्ध को व्यक्त किया जा सकता है। उदाहरण के लिए शिक्षण अभिरूचि परीक्षण (Teaching Aptitude Test) की वैधता को अध्यापकों तथा गैर अध्यापकों के द्वारा परीक्षण प्राप्तांकों के मध्यमानों की तुलना से स्पष्ट किया जा सकता है। यदि शिक्षण अभिरूचि परीक्षण (TAT) आनुभाविक दृष्टिकोण से वैध होगा तो इस पर अध्यापकों का मध्यमान गैर अध्यापकों के मध्यमान से सार्थक रूप से अधिक प्राप्त होगा।
पीछे स्पष्ट किया जा चुका है कि आनुभाविक या निकष वैधता में परीक्षण पर प्राप्त अंकों का संबंध किसी निकष पर प्राप्त अंकों से देखा जाता है। निकष दो प्रकार के तात्कालिक निकष (Immediate criterion) तथा भावी निकष (Future criterion) हो सकते हैं, तात्कालिक निकष में किसी अन्य वर्तमान योग्यता की सहायता से परीक्षण की वैधता ज्ञात करते हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि तात्कालिक निकष की स्थिति में परीक्षण के प्राप्तांक तथा निकष पर प्राप्तांक दोनों ही साथ-साथ प्राप्त कर लिये जाते हैं तथा इनके बीच सहसम्बन्ध की गणना कर लेते हैं, जिसे समवर्ती वैधता (Concurrent Validity) कहते हैं। जैसे बुद्धिलब्धि को निकष मानकर यदि किसी उपलब्धि परीक्षण की वैधता ज्ञात करनी हो तो उपलब्धि परीक्षण तथा बुद्धि परीक्षण को एक ही दिन या कुछ दिनों के अन्तर से प्रशासित किया जा सकता है, क्योंकि दोनों चरों के प्राप्तांक साथ-साथ मिल रहे हैं, इसलिए इस प्रकार ज्ञात की गई वैधता को समवर्ती वैधता कहा जायेगा। उपलब्धि परीक्षणों तथा व्यक्तित्व परीक्षण की प्रायः समवर्ती वैधता ही ज्ञात की जाती है।
तात्कालिक निकष के विपरीत भावी निकष पर प्राप्तांक कुछ समय के उपरान्त प्राप्त हो सकते हैं। भावी निकष वास्तव में भावी योग्यता का द्योतक है। परीक्षण प्राप्तांकों तथा भावी निकष प्राप्तांकों के संबंध को पूर्वकथन वैधता (Predictive Validity) कहते हैं। जैसे यदि सी० पी० एम० टी० परीक्षा की वैधता ज्ञात करने के लिए भावी निकष छात्रों की चिकित्सा शिक्षा में सफलता है, जिसे एम०बी०बी०एस० की परीक्षा में छात्रों के अंकों से व्यक्त किया जा सकता है । यह निकष स्पष्टतः भावी निकष है, क्योंकि छात्रों के इस परीक्षा के अंक प्रवेश के पांच वर्षों बाद ही मिल सकेंगे। सी०पी०एम०टी० परीक्षा में प्राप्त अंकों तथा एम०बी०बी०एस० परीक्षा के अंकों के बीच का सहसंबंध गुणांक सी०पी०एम०टी० परीक्षा की पूर्वकथन वैधता को व्यक्त करेगा। स्पष्ट है कि पूर्वकथन वैधता इस बात को बताती है कि परीक्षण छात्रों की भावी सफलता का अनुमान किस सीमा तक लगाने में समर्थ है। प्रवेश परीक्षणों तथा चयन परीक्षणों की प्रायः पूर्वकथन वैधता ही ज्ञात की जाती है। पूर्वकथन वैधता को परीक्षण प्राप्तांकों की सहायता से निकष प्राप्तांकों का पूर्वकथन करने की मानक त्रुटि (Standard Error of Prediction) से तथा अलगाव गुणांक (Coefficient of Alienation) से भी व्यक्त किया जाता हैं यदि परीक्षण प्राप्तांकों तथा निकष प्राप्तांकों के मध्य सहसम्बन्ध को से लिखें तो पूर्वकथनी मानक त्रुटि तथा अलगाव गुणांक को निम्न सूत्रों से ज्ञात किया जा सकता है-
पूर्वकथन की मानक त्रुटि σ prediction = σc √1-r2
जहां निकष प्राप्तांकों का मानक विचलन है। तथा
अलगाव गुणांक, k = √1-r2
पूर्वकथन की मानक त्रुटि ( σ prediction ) तथा अलगाव गुणांक (k) दोनों ही परीक्षण प्राप्तांकों की सहायता से निकष प्राप्तांकों का अनुमान लगाने में होने वाली त्रुटि की मात्रा को बताते हैं ।
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