वैधता को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना कीजिए।
वैधता को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting Validity)
किसी शैक्षिक या मनोवैज्ञानिक परीक्षण की वैधता को अनेक कारक प्रभावित कर सकते है। वैधता को प्रभावित करने वाले कुछ प्रमुख कारक निम्नवत है-
1- अस्पष्ट निर्देश (Unclear Instructions) – यदि परीक्षार्थियों को परीक्षण के संबंध में दिये गये निर्देश अस्पष्ट होते हैं तो परीक्षण की वैधता कम हो जाती है। प्रश्नों के उत्तर किस तरह से देने हैं या उनके लिए समय सीमा क्या है, जैसी बातों को परीक्षार्थियों को परीक्षण प्रारम्भ होते समय ठीक ढंग से मालूम न होने पर प्राप्तांकों में स्थिर त्रुटि के बढ़ जाने की सम्भावना रहती है, जो परीक्षण की वैधता को घटा देती है।
2- अभिव्यक्ति का माध्यम (Medium of Expression) – परीक्षण में प्रश्नों को किस माध्यम में लिखा गया है तथा परीक्षार्थियों को उत्तर किस माध्यम में देना है, यह बात भी परीक्षण की वैधता को प्रभावित करती है। यदि परीक्षण को छात्रों की मातृभाषा या उनके द्वारा प्रयुक्त की जाने वाली भाषा मे बनाया जाता है तो छात्रगण परीक्षण के प्रश्नों को ठीक प्रकार से समझकर उनका उत्तर दे सकते है। इसके विपरीत यदि छात्र भाषाई कठिनाई के कारण प्रश्नों को ठीक ढंग से नही समझ पा रहे है तो वे विषयवस्तु को जानते हुए भी प्रश्न का सही उत्तर नहीं दे पाते हैं। जैसे हिन्दी भाषी छात्रों के लिए अंग्रेजी भाषा में बने गणित परीक्षण का प्रयोग करने पर परीक्षण की वैधता अत्यन्त कम प्राप्त हो सकेगी।
3- प्रश्नो की भाषा एवं शब्दावली (Language and Vocabulary of Items) – प्रश्नों की भाषा तथा शब्दावली का भी परीक्षण वैधता निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। अत्यधिक क्लिष्ट शब्द तथा साहित्यिक भाषा के प्रयोग से परीक्षण शाब्दिक बोध का परीक्षण बन जाता है न कि उस योग्यता का जिसके लिए उसे बनाया या प्रयोग में लाया जा रहा है।
4- प्रश्नों का कठिनाई स्तर (Difficulty Level of Items) – परीक्षण की वैधता उसमें सम्मिलित प्रश्नों के कठिनाई स्तर से भी प्रभावित होती है। अत्यधिक सरल या कठिन प्रश्नों वाले परीक्षण की वैधता प्रायः कम होती है। परीक्षण में प्रश्नों का क्रम भी वैधता को प्रभावित कर सकता है। यदि परीक्षण में कठिन प्रश्न प्रारम्भ में रखे जाते है तो परीक्षार्थियों का उत्साह (Motivation) कम हो जाता है। वे हतोत्साहित होकर परीक्षण ठीक ढंग से नहीं दे पाते है। इसके साथ-साथ प्रारम्भ में कठिन प्रश्न होने पर समय सीमा के कारण शेष प्रश्नों के छूट जाने की संभावना रहती है।
5- प्रश्नों की वस्तुनिष्ठता (Objectivity of the Test) – परीक्षण की वस्तुनिष्ठता का भी उसकी वैधता से संबंध होता है। प्रायः वस्तुनिष्ठ परीक्षण अधिक वैध होते है जबकि निबन्धात्मक परीक्षण कम वैध होते हैं। वस्तुनिष्ठ प्रश्नों में परीक्षार्थियों को क्या करना है तथा सही उत्तर क्या है, यह स्पष्ट रहता है जिसके कारण ऐसे प्रश्नों वाले परीक्षणों की वैधता अधिक प्राप्त होती है।
6-प्रकरणों का अवांछित भार (Inadequate weightage to Topics) – मापी जा रही योग्यता की सभी विमाओं (Areas of dimensions) को परीक्षण में सम्मिलित किया गया या नहीं तथा उनको वांछित भार दिया गया है या नहीं, जैसे बिन्दु भी परीक्षण की वैधता को प्रभावित करते है। यदि सम्पूर्ण विषयवस्तु के केवल कुछ प्रकरणों को ही परीक्षण में सम्मिलित किया गया हो या कुछ प्रकरणों को अवांछित भार (Undesirable weightage) दिया गया होता है तो परीक्षण परिणामों की वैधता कम हो जाती है।
7- मापन का उद्देश्य ( Objective of Measurement ) – परीक्षण निर्माता कुछ निश्चित उददेश्य को ध्यान में रखकर परीक्षण की रचना करता है। परीक्षण उस निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए तो वैध हो सकता है, परन्तु किन्ही अन्य उद्देश्यों के लिए उसकी वैधता संदिग्ध (Doubtful) हो सकती है। जैसे कोई उपलब्धि परीक्षण छात्रों को योग्यता के आधार पर कुछ समूहों में विभाजन (Classification) के लिए वैध हो सकता है, परन्तु रोजगार के लिए उपयुक्त व्यक्तियों के चयन के लिए उसका वैध होना आवश्यक नहीं है।
8- परीक्षण की लम्बाई (Length of the Test) – परीक्षण की लम्बाई अर्थात उसमें सम्मिलित प्रश्नों की संख्या का भी परीक्षण वैधता से संबंध होता है। परीक्षण के विस्तार से केवल उसको विश्वसनीयता बढ़ती है, वरन उसकी वैधता भी बढ़ती है। छोटा परीक्षण बड़े परीक्षण की तुलना में कम वैध होता है। परन्तु यहाँ यह स्मरणीय है कि परीक्षण की लम्बाई बढ़ाते समय प्रश्नों के प्रकार, स्वरूप, विषयवस्तु, कठिनाई स्तर आदि में कोई परिवर्तन नही आना चाहिए।
9-सांस्कृतिक प्रभाव (Cultural Influences) – अनुसंधान कार्यों ने सिद्ध कर दिया है कि सांस्कृतिक कारकों का परीक्षण की वैधता पर प्रभाव पड़ता है। समाज की सामाजिक संरचना (Social Structure) तथा व्यक्ति के सामाजिक-आर्थिक स्तर (SES) आदि के कारण परीक्षण की वैधता कम हो जाती है। विभिन्न सांस्कृतिक विरासत वाले छात्रों के अनुभव, परम्परायें व अवसर भिन्न-भिन्न होते हैं, जिसके फलस्वरूप कोई परीक्षण किसी एक समूह के लिए वैध हो सकता है तथा अन्य समूहों के लिए वैध नहीं हो सकता है।
10- प्रतिक्रिया प्रवृत्ति (Response Sets) – प्रतिक्रिया प्रवृत्ति से तात्पर्य परीक्षण देने की आदतों (Test-taking Habits) से है, जो परीक्षण प्राप्तांकों को प्रभावित करके उनकी वैधता को प्रभावित कर देती है। सहमति प्रवृत्ति (set of acquiescence) में व्यक्ति सहमत हुए भी अधिकांश प्रश्नों पर हां, सत्य या सहमति पर निशान लगाता है। अनिश्चय की प्रवृत्ति (set of Evasiveness) में व्यक्ति अनिश्चितता, उदासीनता, आदि पर निशान लगाता है। कुछ व्यक्तियों में अधिक गति से प्रश्न करने की प्रवृत्ति होती है, जबकि कुछ में शुद्धता से काम करने की प्रवृत्ति होती है। ये प्रवृत्तियां परीक्षण की वैधता को प्रायः कम कर देती हैं।
11- वैधता के मूल्य पर अधिक विश्वसनीयता ( Increased Reliability on the Cost of Validity) – कभी कभी भी परीक्षण की विश्वसनीयता बढ़ाने के उद्देश्य से परीक्षण की लम्बाई बढ़ाई जाती है तथा परीक्षण की लम्बाई बढ़ाने के लिए उसमें ऐसे प्रश्न जोड़ दिये जाते है, जो परीक्षण की वैधता को कम कर देते हैं। इसलिए यह ध्यान रखना चाहिए कि परीक्षण की विश्वसनीयता बढ़ाते समय ऐसे ही प्रश्न जोड़े जायें जो परीक्षण की वैधता को भी बढ़ा सकें।
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