शिक्षाशास्त्र / Education

सतत् शिक्षा का अर्थ, विशेषतायें, उद्देश्य, अभिकरण एंव भूमिका

सतत् शिक्षा का अर्थ, विशेषतायें, उद्देश्य, अभिकरण एंव भूमिका
सतत् शिक्षा का अर्थ, विशेषतायें, उद्देश्य, अभिकरण एंव भूमिका

सतत् शिक्षा क्या है? इसके उद्देश्य और अभिकरणों पर प्रकाश डालिए। 

सतत् शिक्षा का अर्थ

सतत् शिक्षा का अर्थ है- निरन्तर चलाने वाली अथवा जीवन पर्यन्त चलने वाली शिक्षा सतत् शिक्षा का मूल सिद्धान्त यही है कि शिक्षा एक जीवन पर्यन्त प्रक्रिया है” यह प्रक्रिया विद्यालयी अथवा विश्वविद्यालयी शिक्षा के पश्चात् ही समाप्त नहीं हो जाती। शिक्षा की उच्चतम डिग्रियां प्राप्त करने वाले व्यक्ति को भी जीवन और समाज की निरन्तर बढ़ती जटिलताओं से अनुकूलन करने के लिए अपने ज्ञान की पुनश्चर्या अथवा नवीनीकरण करने की आवश्यक्ता होती है। आंशिक रूप से शिक्षित तथा साक्षर लोगों के लिए जीवन पर्यन्त या सतत् शिक्षा की आवश्यकता होती है।

‘सतत शिक्षा शिक्षा का वह हिस्सा है जिसका प्रारम्भ बुनियादी या प्रारम्भिक शिक्षा के पश्चातू होता है। सतत् शिक्षा का सम्बन्ध विशेष रूप से ऐसे पाठ्यक्रमों से है जो, पूर्णकालिक अग्रिम शिक्षा (full time further education), या उच्च शिक्षा (Higher education) से अलग हैं तथा आवश्यक नहीं है कि इनके लिए प्रमाणपत्र मिले। इसलिए अंशकालिक अग्रिम शिक्षा (part time further education), बहुत कुछ प्रौढ़ शिक्षा तथा निरन्तर योग्यता व व्यावसायिक प्रशिक्षण सभी कुछ सामान्यतः सतत शिक्षा के अंतर्गत ही आता है।

सतत् शिक्षा की विशेषताये

सतत शिक्षा की प्रमुख विशेषतायें निम्न हैं-

(1) यह ऐसी शिक्षा को इंगित करती है, जो कभी रुकती नहीं, जैसे कि नव साक्षर की शैक्षिक यात्रा, प्रौद् साक्षरता से होती हुई उत्तर साक्षरता और आगे सतत शिक्षा तक चलती रहती है। जो लोग उच्च शिक्षा स्तर पर हैं, वे सतत रूप से निरंतर विभिन्न पाठ्यक्रमों में शिक्षा प्राप्त करते रहते हैं।

(2) यह ऐसी शिक्षा को भी इंगित करती है, जो एक बार समाप्त होकर फिर शुरू जाती है। लोग विभिन्न स्तरों पर पढ़ना-लिखना छोड़ देते हैं और आगे चलकर वापस अपनी शिक्षा को पुनः शुरू करना चाहते हैं।

(3) सतत् शिक्षा ऐसी शिक्षा है, जिसकी पुनरावृत्ति होती रहती है। जैसे-जैसे विज्ञान और तकनीकी को विकास हो रहा है, यह आवश्यक होता जा रहा है, कि लोग विभिन्न नए नए कौशलों को निरन्तर सीखते रहें, जैसे कि डाक्टर, नर्स, शिक्षक, कृषक आदि सभी सतत् शिक्षा के अवसर ढूंढते रहते हैं।

सतत् शिक्षा के उद्देश्य

सतत् शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य निम्न हैं—

(1) विभिन्न वर्गों के जन समुदाय तथा व्यक्तियों सामर्थ्य प्रदान करना, जिससे कि वे अपने बौद्धिक विकास, व्यावसायिक तथा तकनीकी योग्यता के बीच की खाई (gap) को भर सकें। वे आवश्यक कौशलों और कार्यों के प्रति रूचि का विकास कर सकें, स्वरोजगार के अवसर प्राप्त कर सकें, विशेषज्ञता परक क्षेत्रों में प्रशिक्षण प्राप्त कर, वर्तमान ज्ञान की दुनिया के साथ कदम मिला कर चल सकें।

(2) निरंतर विस्तृत होती ज्ञान की दुनिया (Knowledge Society) के लिए आवश्यक नवीन विचारों व तकनीकी से लोगों को परिचित कराना।

(3) सामान्य रुचि के पाठ्यक्रम उपलब्ध कराना, जिससे कि लोग वर्तमान विश्व की सामयिक समस्याओं के प्रति जागरूक होकर बेहतर और पूर्ण जीवन जी सकें।

(4) निरक्षर पुरुषों व महिलाओं के लिए बुनियादी शिक्षा व कौशलों का विकास करना।

(5) सतत शिक्षा के क्षेत्र में उपयुक्त ज्ञान का भण्डार तैयार करने के लिए विविध अध्ययनों और अनुसंधानों का संचालन करना।

( 6 ) सतत शिक्षा कार्यक्रमों के लिए साहित्य व सामग्री तैयार करना व संबंधित लोगों को प्रदान करना ।

(7) जो लोग और अधिक ऊंची शैक्षिक व व्यावसायिक योग्यताएं प्राप्त करना चाहते हैं उनके लिए सर्टिफिकेट, डिप्लोमा और डिग्री वाले पाठ्यक्रमों का संचालन करना।

(8) सतत् शिक्षा कार्यक्रमों द्वारा प्राप्त अंतर्दृष्टि (insight) के सार्थक उपयोग द्वारा विभिन्न पाठ्यक्रमों का निर्माण करना।

( 9 ) जीवन पर्यन्त शिक्षा व सतत् शिक्षा प्राप्त करने के लिए विभिन्न तरीकों की खोज करना।

(10) जीवन के प्रत्येक क्षेत्रों से जुड़े लोगों को सामर्थ्य प्रदान करना, जिससे कि वे अपने बौद्धिक नेतृत्व और उपलब्ध संसाधनों का लाभ समाज को पहुंचा सकें। विश्वविद्यालय व महाविद्यालय के शिक्षक व विद्यार्थियों को सामुदायिक आवश्यकताओं के प्रति जागरूक बनाना।

सतत् शिक्षा के अभिकरण

इसके प्रमुख अभिकरण निम्नलिखित हैं-

(1) कृषि मंत्रालय के अंतर्गत कृषि विभाग, कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग, ग्रामीण विकास विभाग।

(2) वाणिज्य मंत्रालय के अन्तर्गत हस्तशिल्प व अल्पकालीन प्रशिक्षण योजनाएं।

(3) सहकारी विभाग के अन्तर्गत सहकारी शिक्षा (Cooperative Education )

(4) मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय के अंतर्गत शिक्षा विभाग, समाज कल्याण विभाग, संस्कृति विभाग, विज्ञान एवं तकनीकी विभाग |

(5) ‘स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत स्वास्थ्य विभाग तथा परिवार कल्याण विभाग |

(6) गृह मंत्रालय के अंतर्गत स्वैच्छिक संगठनों का सहयोग, गृह कल्याण केन्द्र तथा आदिवासी विकास परियोजनाएं।

(7) सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत आल इण्डिया रेडियो (AIR), दूरदर्शन, विज्ञापन एवं दृश्य प्रचार निदेशालय, प्रकाशन प्रभाग, गीत एवं नाटक प्रभाग, क्षेत्र प्रचार निदेशालय, फिल्म प्रभाग

(8) श्रम मंत्रालय के अंतर्गत श्रम विभाग तथा राष्ट्रीय श्रमिक संस्थान।

उपरोक्त अभिकरणों के अतिरिक्त इस कार्य में व्यापक स्तर पर कार्यरत अभिकरणों में विश्वविद्यालयों का स्थान सर्वोपरि है। विश्वविद्यालय सतत् शिक्षा के अवसर प्रदान करने हेतु विभिन्न लक्ष्य समूहों या वर्गों के लिए लघु कालीन पाठ्यक्रम, पुनश्चर्या पाठ्यक्रम, वर्कशाप, सेमिनार तथा अधिवेशनों का आयोजन करते हैं। विश्वविद्यालय सतत् शिक्षा के कार्यक्रमों का उद्देश्य विभिन्न वर्गों के विद्यार्थियों में उनकी विशेषज्ञता के क्षेत्र में ज्ञान तथा कौशल की अभिवृद्धि करना है।

सतत् शिक्षा में मुक्त व दूरस्थ अधिगम प्रणाली की भूमिका

अप्रशिक्षित सेवारत विद्यार्थियों/अधिगमकर्ताओं की विशाल जनसंख्या को सतत् शिक्षा प्रदान करने की चुनौती मुक्त व दूरस्थ अधिगम प्रणाली ने ग्रहण की है। विभिन्न विश्वविद्यालयों के प्रौद्ध व सतत् शिक्षा विभाग तथा पत्राचार संस्थान सभी स्तरों पर ‘सतत् शिक्षा कार्यक्रमों का संचालन कर रहे हैं।

अब धीरे-धीरे मुक्त व दूरस्थ अधिगम प्रणाली ने सतत शिक्षा कार्यक्रमों का संचालन ‘इंटरनेट’ (Internet) के माध्यम से करना शुरू किया है। निजी क्षेत्रों में प्रयास पहले से शुरू हैं जैसे कि मैक्मिलन इंडिया लिमिटेड (Macmillan India Ltd.) ने एक वॅबसाइट प्रारम्भ की है— elt, Macmillan.com अंग्रेजी शिक्षकों के लिए।

जिस ढंग से भविष्य के समाज में कम्प्यूटरों की उपलब्धता बढ़ती जाएगी, उसी तरह इंटरनेट के माध्यम से सतत् शिक्षा कार्यक्रमों की मांग उत्पन्न होगी इंटरनेट पर आधारित सतत शिक्षा कार्यक्रमों का आधार ऑन-लाइन शिक्षा होगी ।

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Anjali Yadav

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