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समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि
इतिहास शिक्षण की एक अन्य महत्त्वपूर्ण शिक्षण विधि समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि है। सामाजिक ज्ञान क्रिया विधि शिक्षण की वह कला है, जिससे छात्र को सामाजिक वातावरण में अपनी योग्यता, कुशलता, उचित दृष्टिकोण एवं व्यावहारिक ज्ञान का उचित अवसर प्राप्त होता है, जिसकी व्यक्ति के सामाजिक जीवन में अत्यन्त आवश्यकता है। बाइनिंग व बाइनिंग ने सामाजिक ज्ञान क्रिया विधि के अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखा है-“कोई भी कक्षा-सत्र जो एक वर्ग के रूप में सामूहिक चेतना तथा वैयक्तिक उत्तरदायित्व का प्रदर्शन करे, समाजीकृत अभिव्यक्ति है।” बेस्ले के अनुसार-समाजीकृत अभिव्यक्ति एक आदर्श है, जो शिक्षण में ऐसे प्रयोग की कल्पना करता है, जिससे कक्षा के समस्त छात्र सहयोग व सद्भावना से ज्ञान प्राप्त कर सकें। इसके द्वारा कक्षा के वातावरण की औपचारिकता को समाप्त किया जाता है, और इसके स्थान पर स्वाभाविकता उत्पन्न की जाती है, जिसमें छात्र अपनी प्रकृति रुचि एवं सहयोग के साथ ज्ञान प्राप्त करता है।
व्यापक अर्थ में समाजीकृत अभिव्यक्ति निधि का अर्थ है कोई कक्षा कार्य-काल जो छात्रों में सामूहिक चेतना व सामूहिक उत्तरदायित्व की भावना का विकास करे।
समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि के उद्देश्य
1. बालकों को क्रिया द्वारा ज्ञान प्राप्त कराना।
–2. सामाजिक समस्याओं का अध्ययन करने की योग्यता का विकास करना।
3. बालक • विभिन्न सामाजिक गुणों का विकास करना ।
4. छात्रों को भावी जीवन हेतु तैयार करना।
5. उनमें कर्त्तव्यपरायण की भावना का विकास करना।
समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि के गुण
- बालकों में अध्ययन शक्ति का विकास होता है।
- तर्क तथा निर्णय शक्ति का विकास होता है।
- छात्रों का सर्वांगीण विकास होता है।
- आत्मविश्वास की भावना का विकास होता है।
- बालकों में विभिन्न सामाजिक गुणों, यथा-सहयोग, सद्भाव, प्रेम, त्याग आदि का विकास होता है।
- सामाजिक चेतना का विकास होता है।
- बालकों में शिष्ट प्रतियोगिता की भावना का विकास होता है।
- रचनात्मक आलोचना की प्रवृत्ति का विकास होता है।
- नेतृत्व शक्ति का विकास होता है।
- उत्तरदायित्व की भावना का विकास होता है।
समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि के दोष
- कक्षा का प्रत्येक छात्र सही ज्ञान की प्राप्ति नहीं कर सकता।
- इस पद्धति में छात्रों का व्यर्थ के वाद-विवाद में समय नष्ट होता है।
- इस पद्धति के संचालन हेतु विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
- समय अधिक लगता है।
- यह विधि छोटी कक्षाओं के लिये अनुपयुक्त है।
- यह पद्धति विषयवस्तु का पूर्ण रूप से प्रतिनिधित्व नहीं करती है।
समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि का प्रयोग- इतिहास शिक्षक कक्षा में इस विधि का प्रयोग इस प्रकार कर सकता है-
1. सर्वप्रथम- छात्र तथा शिक्षक किसी विशेष समस्या पर विचार-विमर्श करते हैं। इसमें दोनों के मध्य किसी प्रकार की कोई सीमायें नहीं रहती हैं।
2. द्वितीय विधि—इस विधि में शिक्षक का कार्य केवल निरीक्षण करना होता है, क्योंकि कंक्षा के समस्त छात्र अपना एक नेता का चुनाव करते हैं, यह नेता ही उस दिन की कार्यवाही का संचालन करता है।
3. तृतीय विधि—इस विधि में केवल विषय का ज्ञान रखने वाले विद्यार्थी ही भाग लेते हैं, जिससे प्रश्नोत्तर तथा वाद-विवाद द्वारा शेष विद्यार्थियों को पाठ समझाया जाता है।
4. चतुर्थ विधि- इस विधि में कुछ छात्रों को चुनकर, उन्हें किसी समस्या के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करने के लिये कहा जाता है। अध्ययन के उपरान्त वे समस्त कक्षा के समक्ष अपने विचार प्रस्तुत करते हैं। इस प्रकार छात्र ही समस्या का चयन करते हैं, उस समस्या के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन एवं आलोचना करते हैं, तथा अन्त में एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचते हैं।
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