हिन्दी साहित्य

सम्पर्क भाषा से आप क्या समझते हैं?

सम्पर्क भाषा से आप क्या समझते हैं?
सम्पर्क भाषा से आप क्या समझते हैं?
सम्पर्क भाषा से आप क्या समझते हैं? हिन्दी के सम्पर्क भाषा होने का औचित्य सिद्ध कीजिए।

सम्पर्क भाषा- ‘सम्पर्क’ शब्द अंग्रेजी के ‘लिंक’ शब्द के पर्याय के रूप में प्रयुक्त होता है। ऐसी भाषा जो अलग-अलग भाषाओं को बोलने वाले लोगों को जोड़ती है। उसे सम्पर्क भाषा कहते हैं। सम्पर्क भाषा का महत्व बहुभाषी देश में ज्यादा होता है। ऐसे देशों में दैनन्दिन जीवन की जरूरतों से लेकर राष्ट्रीय स्तर के कार्यों के लिए एक ऐसी भाषा की आवश्यकता होती है जो वहाँ की विभिन्न भाषाओं को बोलने वाले लोगों के सम्पर्क का माध्यम बन सके। जिस किसी देश में भी बहुभाषिक संस्कृति होती हैं वहाँ सम्पर्क भाषा की नितान्त आवश्यकता होती है। कभी-कभी ऐसा होता है कि किसी देश में एकाधिक भाषाओं का भी सम्पर्क भाषा के रूप में प्रयोग किया जाता है। जैसे भारत में हिन्दी के साथ अंग्रेजी भाषा का प्रयोग भी समर्थ भाषा के रूप में किया जा रहा है। सम्पर्क भाषा जनसामान्य की जरूरतों की भाषा होती है। जन साधारण की इच्छा के अनुरूप ही शासनतंत्र उसका ग्रहण या त्याग करता है। शासन व्यवस्था चाहकर भी सम्पर्क भाषा को नियंत्रित नहीं कर सकती है। जैसे भारत सरकार की भाषा नीति तमिलनाडु सरकार प्रशासन एवं शिक्षा दोनों स्तरों पर लाग नहीं करती। भले ही शिक्षा के क्षेत्र में विद्यालयों में हिन्दी पढ़ाने की अवस्था संतोषजनक नहीं है, पर शासकीय तौर पर हिन्दी के बहिष्कार के बावजूद सम्पूर्ण देश से जुड़ने के लिए लोग सम्पर्क भाषा के ज्ञान की आवश्यकता महसूस करने के कारण विभिन्न माध्यमों से हिन्दी सीखते हैं। सम्पर्क भाषा को देश की शैक्षिक व्यवस्था से जोड़ना आवश्यक होता है। शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थियों को सम्पर्क भाषा सिखायी जाती है ताकि आगे चलकर वे सरलतापूर्वक देश के कार्यकलाप से जुडु सके। शासन व्यवस्था के संचालन में भी सम्पर्क भाषा की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। किसी भाषा के सम्पर्क भाषा बनने के लिए यहा आवश्यक है कि उसको प्रचलन हो । साथ ही यह भी आवश्यक है कि वह भाषा जीवन के विभिन्न कार्यक्षेत्रों में प्रयुक्त होने वाली हो । धार्मिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, व्यापारिक, शिल्प, राजनीतिक एवं आर्थिक जीवन के क्षेत्रों में इस भाषा का अधिकाधिक उपयोग हो। जीवन के अन्त्य आवश्यक कार्यों के लिए इसका प्रयोग होता है। सैनिकों के प्रशिक्षण एवं संचालन के निमित्त तथा उनमें सूचनाओं एवं विभिन्न विचारों के संप्रेषण के लिए सम्पर्क भाषा की आवश्यकता अखिल भारतीय स्तर पर होने वाले ऐसे कार्यों के लिए सम्पर्क भाषा प्रयुक्त की जाती है। सम्पर्क भाषा के रूप में लम्बे समय से प्रयुक्त होने के कारण हिन्दी के अनेक रूप विकसित हुए हैं। यद्यपि भारत की अनेक भाषायें, साहित्यिक परम्परा से समृद्ध है, फिर भी हिन्दी ही भारत की सम्पर्क भाषा है। इसके कतिपय कारण है, जैसे- हिन्दी का प्रसार हमारे देश में व्यापक है। हिन्दी ही एकमात्र ऐसी भारतीय भाषा है जिसके बोलने वालों की संख्या भारत के बाहर भी पायी जाती है। इस भाषा का प्रयोग कर व्यक्ति अपना काम सरलतापूर्वक चला सकता है। भारत के एक बड़े भूभाग में इस भाषा का सर्वाधिक विस्तार हैं। हिन्दी राजनीतिक कारणों से भी सम्पर्क भाषा बनी। अफगानिस्तान एवं तुर्की से आये मुस्लिम विजेता हिन्दी प्रदेश में आ बसे। इसका कारण इस क्षेत्र की भाषा देश भर में प्रसारित हुई। प्रशासन भूमि व्यवस्था, सेना आदि से सम्बन्धित कार्यों में शासकों को कर्मचारियों से एवं जन साधारण से सम्पर्क के लिए हिन्दी भाषा की मदद लेनी पड़ी। इस प्रकार हिन्दी एक प्रकार की सहभाषा के रूप में प्रयुक्त होने लगी।

देश के विभिन्न क्षेत्रों में जब मुस्लिम साम्राज्य का विस्तार हुआ तब इस क्षेत्र की बोली का भी व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ और दक्खिनी हिन्दी का विकास हुआ। इस हिन्दी का विकास आन्ध्र और कर्नाटक के अतिरिक्त महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात आदि में हुआ। हिन्दी का प्रचलन महाराष्ट्र में भी काफी हुआ। हिन्दी का अखिल भारतीय स्तरों पर विकास होने लगा। ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजी राज भाषा थी, पर कचहरी में हिन्दुस्तानी का प्रयोग होता था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी प्रशासनिक सम्पर्क की भाषा बन गयी। व्यापारिक कारण से भी हिन्दी भारत की सम्पर्क भाषा बनी। मध्यकाल में आगरा व्यापार का बड़ा केन्द्र था। व्यापार की मण्डी के रूप में आगरा का अधिक विकास हुआ, परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में लोग वहाँ अन्य क्षेत्रों में जा बसे एवं उनकी बोली का प्रचार-प्रसार हुआ। हिन्दीतर क्षेत्रों में स्थापित लोगों में भी हिन्दी क्षेत्र के अनेक श्रमिकों को रोजगार मिला एवं उनसे भी अधिक आदान-प्रदान हुआ। सम्पूर्ण भारत में तब से अब तक व्यापार एवं वाणिज्य में हिन्दी की भूमिका बनी हुई है। हिन्दी के सम्पर्क भाषा बनने के सामाजिक सांस्कृतिक कारण भी थे। अखिल भारतीय धार्मिक सांस्कृतिक परिदृश्य ने भी हिन्दी भाषा को सम्पर्क भाषा बनाया। फकीरों, सन्तों, दरवेशों आदि के माध्यम से दक्षिण क्षेत्रों में हिन्दी का प्रसार हुआ। गोरखनाथ, चरपटनाथ आदि कवियों ने अपनी वाणी हिन्दी में लिखी। मराठी के नामदेव, रामदास, एकनाथ आदि ने हिन्दी में कविता लिखी। हिन्दी लम्बे समय से देश के विभिन्न रचनाकारों को अपनी ओर आकृष्ट करती रही। अनेक समाज सुधारकों एवं नेताओं हिन्दी के अखिल भारतीय प्रयोग की महत्ता को समझा था और इसके प्रयोग के लिए प्रेरित किया था। भारतीय सांस्कृतिक जीवन में हिन्दुस्तानी संगीत एवं कथक जैसे नृत्य में प्रयुक्त भाषा के रूप में हिन्दी का महत्व अक्षुण्ण है। फिल्मों में हिन्दी के प्रचार प्रसार में योगदान देकर उसे लोकप्रिय बनाया है। हिन्दी के अखिल भारतीय स्तर पर व्यापक प्रचार-प्रसार के कारण हिन्दी फिल्में ज्यादा बनी है। इसके अतिरिक्त हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं की संख्या सभी भाषाओं की पत्र-पत्रिकाओं से ज्यादा है। तटक्षेत्रों से भी हिन्दी पत्र-पत्रिकायें प्रकाशित होती हैं। हिन्दी सीखने में बहुत सरल है, इसलिए यह लम्बे समय में भारत में सम्पर्क भाषा का काम करती रही है। भारोपीय परिवार की भाषायें बोलने वाले तो इसे सरलतापूर्वक सीख सकते हैं, दक्षिण के लोग भी अल्प प्रयास से इसे सीख सकते है। त्रिभाषा सूत्र के अनुसार माध्यमिक स्तर पर तीन भाषाओं को पढ़ाने की जो व्यवस्था की गयी है उसके पीछे हिन्दी को सम्पर्क भाषा के रूप में पढ़ाने की बात निश्चित की गयी है। भारतीय भाषा होने के कारण हिन्दी शैक्षिक क्षेत्र में सम्पर्क का अधिक उपयोगी माध्यम हो सकती है। इस प्रकार हिन्दी को प्रशासनिक क्षेत्र में सम्पर्क की भाषा के रूप में अपनाने के उद्योग से इसे संघ की राजभाषा बनाया गया है। इसके लिए भारतीय संविधान के अन्तर्गत व्यवस्था की गयी है।

IMPORTANT LINK

Disclaimer

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment