सहकारिता के सिद्धान्त (Principles of Co-operation)
सहकारिता के प्रमुख सिद्धान्त निम्न प्रकार हैं-
(1) ऐच्छिक संगठन (Voluntary Association)– ‘स्वेच्छा’ सहकारिता का मूल सिद्धान्त है। कोई भी व्यक्ति सहकारी समिति की सदस्यता ग्रहण करने तथा अपनी इच्छानुसार उसे छोड़ने के लिए स्वतन्त्र होता है। दूसरे शब्दों में, सहकारी संगठन के अन्तर्गत किसी भी व्यक्ति पर किसी प्रकार का दबाव नहीं डाला जाता तथा न ही किसी बात को मानने के लिए उसे बाध्य किया जाता है। किन्तु सदस्यता ग्रहण करने तथा उसका परित्याग करने की स्वतन्त्रता का यह अर्थ नहीं है कि जब तक सहकारी समिति से लाभ प्राप्त होता रहे तब तक तो ऐसी संस्था का सदस्य रहा जाए, किन्तु लाभ न मिलने पर उसे छोड़ दिया. जाए। एक वास्तविक सहकारी संस्था ऐसे स्वार्थी व्यक्तियों का संगठन नहीं होती बल्कि समिति में शामिल होने वाले व्यक्तियों के बीच यह गर्मित आश्वासन होता है कि वे पृथक तथा निजी साधनों को संयुक्त करके पारस्परिक सहायता द्वारा अपनी आर्थिक दुर्बलता को दूर करेंगे।
(2) लोकतन्त्रीय प्रबन्ध (Democratic Management)-सहकारी समिति का प्रबन्ध तथा संचालन लोकतन्त्रीय सिद्धान्तों के आधार पर किया जाता है। समिति की सर्वोच्च प्रभुसत्ता उसके सदस्यों में निहित होती है। समिति की कार्यप्रणाली सम्बन्धी नियम तथा उपनियम लोकतन्त्रीय होते हैं। एक व्यक्ति एक मत (one man, one vate) का सिद्धान्त अपनाया जाता है, अर्थात् प्रत्येक सदस्य को केवल एक मत देने का अधिकार होता है चाहे उसने समिति के कितने ही अंश (shares) क्यों न क्रय कर रखे हमें इस प्रकार सहकारी संस्था के प्रबन्ध में प्रत्येक सदस्य को समान अधिकार प्राप्त होते हैं।
(3) पारस्परिक सहायता द्वारा आत्म-सहायता (Self-help through Mutual Help)-सहकारिता ऐसे व्यक्तियों का संयुक्त प्रयास है जो आर्थिक दृष्टि से निर्बल होते हैं तथा जी अपने पृथक् प्रयत्नों तथा अल्प साधनों से उन भौतिक सुविधाओं से प्राप्त नहीं कर सकते जो कि धनी व्यक्तियों को उपलब्ध होती है। अपनी आर्थिक दुर्बलता को दूर करने के उद्देश्य से सहकारी समिति के सदस्य अपने साधनों को एकत्रित करके संयुक्त रूप से पारस्परिक हित के लिए काम करते हैं। सहकारिता प्रत्येक अपने लिए’ (each for himsell) जैसी संकुचित भावना की विरोधी है बल्कि इसका नारा है प्रत्येक सबके लिए और सब प्रत्येक के लिए (each for all and all for each)
(4) सामूहिक कार्य द्वारा सामूहिक कल्याण (Common Welfare through Common Action)- सहकारी संस्थाओं में स्पर्धा की भावना के स्थान पर सहयोग की भावना को प्रमुखता दी जाती है। इसके सदस्य सामूहिक आर्थिक कल्याण के लिए सामूहिक प्रयत्न करते हैं। दूसरे शब्दों में, सहकारी प्रणाली के अन्तर्गत व्यक्तिवादी भावना को सामूहिक भावना में समायोजित करके सामूहिक कल्याण में वृद्धि के लिए प्रयत्न किए जाते हैं।
(5) नैतिक मूल्यों पर बल (Stress on Moral Values) सहकारिता पूंजीपतियों का संघ न होकर मनुष्यों का संगठन है जिस कारण इसके अन्तर्गत मानवीय मूल्यों पर विशेष बल दिया जाता है। सहकारी समिति का व्यवसाय लाभार्जन के उद्देश्य से नहीं बल्कि सेवा भाव से किया जाता है। सहकारी संस्थाएँ निश्चित उद्देश्य प्राप्त करने के साथ-साथ सदस्यों में आत्म-निर्भरता, आत्म-विश्वास तथा आत्म-सम्मान की भावनाएँ भी जागृत करती हैं। इस प्रकार सहकारिता चरित्र सुधार पर विशेष बल देती है।
(6) खुली सदस्यता (Open Membership)– किसी भी जाति, वर्ग, लिंग, धर्म तथा राजनीतिक विचारधारा वाले व्यक्ति सहकारी समिति की सदस्यता प्राप्त कर सकते हैं। हो, सदस्यता प्राप्त करने के लिए इच्छुक व्यक्तियों में निर्धारित योग्यताएँ होनी चाहिए। अवांछनीय तत्त्वों के प्रवेश पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया जाता है, जैसे जुआरी।
(7) राजनैतिक तथा धार्मिक निष्पक्षता (Political and Religious Neutrality)-सहकारिता एक विश्वव्यापी आन्दोलन है जिसका मुख्य उद्देश्य मानव जाति का आर्थिक तथा सामाजिक उत्थान करना है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सदस्यों में एकता का होना आवश्यक है। इसलिए वर्ग-भेद तथा जाति भेद जैसी संकुचित भावनाओं को सहकारिता में कोई स्थान प्राप्त नहीं होना चाहिए। राजनीति तथा धर्म के प्रति सदस्य निष्पक्ष होने चाहिए।
(8) समानता (Equality)-सहकारी संस्था में प्रत्येक सदस्य को समान अधिकार प्राप्त होते हैं। सदस्यों के विभिन्न सामाजिक तथा आर्थिक स्तरों के आधार पर उनके साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाता। न ही वर्ग, जाति, लिंग तथा रंग के आधार पर उनमें कोई अन्तर किया जाता है। समिति की सभाओं में प्रत्येक को अपने विचार व्यक्त करने का पूर्ण अधिकार होता है तथा प्रत्येक को केवल एक ही मत देने का अधिकार होता है, चाहे उसने समिति के कितने ही अंश क्यों न खरीद रखे हों।
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