सन्तुलित आहार क्या है ? सन्तुलित आहार का विस्तृत विवरण दीजिए। सुपोषण के लिए किन नियमों को ध्यान में रखना चाहिए ?
क्षुधा की सन्तुष्टि के लिए मनुष्य आहार का उपयोग करता है, परन्तु आहार का उपयोग करने का उद्देश्य केवल क्षुधा-सन्तुष्टि ही नहीं होता। इसका मुख्य लक्ष्य शरीर को पूर्णतः स्वस्थ, निरोग एवं पुष्ट बनाये रखना होता है।
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पर्याप्त आहार
मनुष्य जो भोजन प्रयुक्त करता है, वह शारीरिक आवश्यकता की दृष्टि से पर्याप्त, अपर्याप्त अथवा सन्तुलित हो सकता है। भारतवर्ष में अधिकांश जनता को उनकी शारीरिक आवश्यकता के अनुकूल सभी भोज्य तत्त्वों से युक्त आहार नहीं मिल पाता; यहाँ तक कि कुछ लोगों को क्षुधा-सन्तुष्टि हेतु भी पर्याप्त आहार नहीं मिल पाता। अधिकांश व्यक्तियों को क्षुधा-सन्तुष्टि के लिए तो पर्याप्त आहार मिलता है, किन्तु पोषक तत्त्वों की शारीरिक आवश्यकता की दृष्टि से बहुत कम व्यक्तियों को ही उपयुक्त आहार मिल पाता है। प्रस्तुत सन्दर्भ में पर्याप्त आहार तथा सन्तुलित आहार का अन्तर स्पष्ट करना अधिक महत्त्वपूर्ण है। पर्याप्त आहार वह आहार होता है जो भूख शान्त करने के लिए पर्याप्त हो, पर्याप्त ऊर्जा प्रदान करने वाला हो, शरीर-भार में कमी न करने वाला हो तथा जो शरीर को पर्याप्त रूप से क्रियाशील करके थकावट का अनुभव न होने दे। ऐसा आहार शरीर की वृद्धि और विकास के लिए तो उपयुक्त होता है, परन्तु शारीरिक सुरक्षा की दृष्टि से तथा उसे पूर्णतः निरोग बनाये रखने के लिए अपर्याप्त हो सकता है। भोजन ऊर्जा प्रदान करने वाला तथा वृद्धि कारक हो, इतना ही पर्याप्त नहीं होता, शरीर के विभिन्न अवयवों को क्रियाशील, पूर्णतः स्वस्थ एवं निरोग बनाये रखने वाला हो। इस हेतु सन्तुलित आहार का आयोजन अत्यन्त आवश्यक होता है। सन्तुलित आहार सर्वोत्तम माना जाता है; क्योंकि इस आहार में हमारे शरीर को उपयुक्त मात्रा में ऊर्जादायक, वृद्धिकारक, क्षतिपूरक, शरीर के समस्त अवयव-समूह को सुचारू रूप से संचालित व नियमित करने वाले व शरीर को निरोग रखने वाले समस्त तत्व सम्मिलित होते हैं। यह आहार पर्याप्त तो होता ही है, इसके अतिरिक्त वृद्धि व विकास की दृष्टि से अनुकूलतम भी होता है। शारीरिक आवश्यकतानुसार इसमें कार्बोज, खाद्योज, वसा, खनिज तथा विभिन्न विटामिन की अनुकूलतम मात्रा का समावेश होता है। इसलिए आजकल प्रत्येक देश में जन स्वास्थ्य की दृष्टि से सन्तुलित आहार को विशेष महत्त्व दिया जाता है। सन्तुलित आहार का अर्थ अधिक व्ययसाध्य आहार कदापि नहीं है; कभी-कभी पर्याप्त आहार पर व्यय किये गये धन की अपेक्षा कम धन से सन्तुलित आहार की व्यवस्था की जा सकती है। भारत में अधिकांशतः अज्ञानतावश पर्याप्त व्यय करने पर भी सन्तुलित आहार प्राप्त नहीं कर पाते। शरीर के लिए आवश्यक भोज्य तत्त्वों, उनकी प्राप्ति के स्रोतों, उनके महत्त्व तथा आवश्यक मात्रा का ज्ञान हमें नहीं है, इसलिए हम पोषणयुक्त आहार का लाभ नहीं उठा पाते।
शरीर तथा ऊर्जा
यन्त्र अथवा इंजन की भाँति शरीर को भी कुछ कार्य सम्पादित करने होते हैं तथा कार्य के सम्पादन हेतु किसी न किसी प्रकार की ऊर्जा की केवल उस समय ही आवश्यकता होती है, जबकि वह गतिशील होता है। आपके शरीर को प्रत्येक समय ऊर्जा की आवश्यकता होती है, क्योंकि यह एक जीवित प्राणी है तथा उस समय तक कार्य करना बन्द नहीं करता है, जब तक कि मृत्यु नहीं हो जाती। यद्यपि कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता है कि शरीर आराम कर रहा है, किन्तु उस समय भी श्वासोच्छ्वास, रक्त प्रवाह पावन ग्रन्थि सम्बन्धी आन्तरिक प्रक्रियाएँ निरन्तर चलती रहती हैं। इसके साथ-साथ एक न एक प्रकार के बाह्य क्रियाकलाप भी शरीर द्वारा सम्पादित होते हैं। प्रायः शरीर की आन्तरिक प्रक्रियाएँ सभी दिन एकसमान ही होती हैं। यदि बाह्य ऐच्छिक क्रियाकलाप अधिक मात्रा में होंगे तो ऊर्जा की अत्यधिक आवश्यकता होगी।
भोजन द्वारा प्राप्त शक्ति (ऊर्जा) को एक इकाई द्वारा नापा जाता है, जिसे कैलोरी कहते हैं। कैलोरी गर्मी की वह इकाई है जो एक लीटर जल के ताप को एक अंश सेण्टीग्रेड तक बढ़ा देती है। निम्नलिखित भोजन के तत्त्वों की 1 ग्राम मात्रा शरीर में जलने के पश्चात् उनके सम्मुख अंकित कैलोरी गर्मी उत्पन्न करती है-
प्रोटीन |
1 ग्राम | 4.1 कैलोरी |
कार्बोहाइड्रेट | 1 ग्राम | 4.1 कैलोरी |
वसा | 1 ग्राम | 9.0 कैलोरी |
कैलोरी सम्बन्धी आवश्यकता
साधारण मनुष्य को जीवित रहने के लिए लगभग 70 कैलोरी शक्ति प्रति घण्टे के हिसाब से आवश्यक होती है। इस प्रकार दिन में लगभग 1,800 कैलोरी शक्ति चाहिए। इसी प्रकार एक स्त्री को जीवित रहने के लिए 1,500 कैलोरी शक्ति प्रतिदिन मिलना अत्यन्त आवश्यक है। प्रत्येक व्यक्ति को माँसपेशियों के कार्य के अनुसार अतिरिक्त कैलोरी की मात्रा की आवश्यकता होती है। एक युवा व्यक्ति को औसतन निम्नलिखित कैलोरी शक्ति की आवश्यकता होती है-
हल्का काम करने वाले | 1,900-2,000 कैलोरी | 2,400-2,600 कैलोरी |
साधारण 8 घण्टे काम करने वाले | 2,200-2,500 कैलोरी | 3,000-3,500 कैलोरी |
कठिन परिश्रम करने वाले खिलाड़ी के लिए | 2,500-3,000 कैलोरी | 3,600-4,000 कैलोरी |
आयु के निम्नलिखित मात्रा में कैलोरी की आवश्यकता है-
बाल्यावस्था में
लड़के | लड़की | |
9-12 माह |
1,000 |
1,000 कैलोरी |
1-2 वर्ष | 1200 | 1200 कैलोरी |
2-3 वर्ष | 1400 | 1400 कैलोरी |
3-5 वर्ष | 1500 | 1500 कैलोरी |
5-7 वर्ष | 1600 | 1500 कैलोरी |
7-9 वर्ष | 2000 | 1800 कैलोरी |
9-12 वर्ष | 2200 | 2100 कैलोरी |
13-15 वर्ष
16-18 वर्ष
किशोरावस्था में
लड़के | लड़की | |
13-15 वर्ष |
2,500-2,800 कैo |
2,000-2,200 कैo |
16-18 वर्ष | 3,000-3,500 कैo | 2,200-2,400 कैo |
स्त्री के लिए
गर्भावस्था में |
3,200-3,500 कैo |
स्तनपान के दौरान | 3,500-3,800 कैo |
व्यक्ति को पूर्ण स्वस्थ जीवन व्यतीत करने तथा अपना कार्य करने के लिए आवश्यकतानुसार ऐसा भोजन लेना चाहिए, जिससे पर्याप्त शक्ति मिल सके, शरीर का विकास हो। यदि व्यक्ति को पर्याप्त शक्ति न मिले तो वह कमजोर हो जायेगा, फलस्वरूप उसकी कार्य करने की क्षमता कम हो जायेगी।
शरीर के लिए भोजन की पर्याप्तता भोज्य पदार्थों की मात्रा पर निर्भर न होकर भोज्य पदार्थों में उपलब्ध होने वाले भोज्य तत्वों पर निर्भर करती है। भोजन के अवयवों की जितनी अधिक मात्रा प्राप्त होगी, उनसे उतनी ही अधिक शक्ति तथा गर्मी मिलेगी। विभिन्न भोज्य पदार्थों में भोजन के अवयवों का प्रतिशत निम्न मात्रा में होता है-
प्रोटीन | वसा | कार्बोज | लवण | जल | |
माँस | 15.0 | 14.7 | – | 0.8 | 69.4 |
दूध (गाय) | 3.5 | 3.7 | 4.9 | 0.9 | 87.0 |
दूध (भैंस) | 4.4 | 8.8 | 5.0 | 0.8 | 81.0 |
मक्खन | 2.0 | 85.0 | – | 2.0 | 11.0 |
गेहूँ | 11.4 | 1.0 | 75.0 | 0.6 | 12.0 |
मटर | 24.6 | 1.0 | 62.2 | 2.9 | 9.5 |
आलू | 2.0 | 0.1 | 21.0 | 1.0 | 75.9 |
गाजर | 1.8 | 0.4 | 6.9 | 1.3 | 89.6 |
अण्डा | 13.2 | 10.3 | – | 0.9 | 75.6 |
अण्डे की जर्दी | 16.2 | 30.7 | – | 1.3 | 52.6 |
मछली | 16.0 | 5.0 | – | 1.0 | 78.0 |
पनीर | 26.6 | 33.7 | 2.4 | 3.8 | 34.1 |
चावल | 7.7 | 0.4 | 76.0 | 4.0 | 15.5 |
मक्का | 8.4 | 4.7 | 72.0 | 1.3 | 13.6 |
सेम | 22.5 | 2.8 | 59.0 | 3.5 | 12.6 |
शक्कर | – | – | 100.0 | – | – |
विभिन्न व्यक्तियों को भोजन की अलग-अलग मात्रा व अलग-अलग प्रकार के भोज्य पदार्थों की आवश्यकता होती है। यह भिन्नता आयु, लिंग, शरीर का आकार, जलवायु, कार्य की प्रकृति आदि की भिन्नता के कारण होती है, जैसा कि निम्नलिखित वर्णन से स्पष्ट है-
1. आयु – बच्चों को उनके शरीर के भार को देखते हुए प्रौढ़ों की अपेक्षा अधिक भोजन चाहिए, क्योंकि भोजन से वे केवल शक्ति व गर्मी ही प्राप्त नहीं करते, वरन यह उन्हें शरीर की वृद्धि के लिए भी आवश्यक होता है। उन्हें चर्बी तथा प्रोटीन की अधिक आवश्यकता होती है। वृद्धावस्था में भोजन की मात्रा कम हो जाती है। इसका कारण यह है कि इस अवस्था में मनुष्य की पाचन शक्ति कमजोर पड़ जाती है तथा वह काम भी कम कर पाता है।
2. लिंग – लिंग के अनुसार भोजन की आवश्यकता प्रभावित होती है। स्त्री को पुरुष की अपेक्षा कम भोजन की आवश्यकता होती है, क्योंकि वह पुरुष से बहुधा लम्बाई में कम होती है, भार भी कम होता है तथा उसे कार्य भी हल्का करना पड़ता है, किन्तु गर्भावस्था में अपेक्षाकृत उसे अधिक भोज्य पदार्थों की आवश्यकता होती है।
3. जलवायु-भोजन की मात्रा पर जलवायु का भी प्रभाव पड़ता है। ठण्डे देशों के निवासियों को गरम देशों के निवासियों की अपेक्षा अधिक भोजन चाहिए, क्योंकि ठण्डे देशों में गरम देशों की तुलना में भोजन का उपयोग अधिक होता है। इसी प्रकार गर्मी के मौसम में भूख कम लगती है तथा शरीर का भार कम हो जाता है, किन्तु सर्दियों में अधिक भूख लगने के कारण अधिक भोजन किया जाता है तथा शरीर का भार भी बढ़ जाता है।
4. परिश्रम- शारीरिक परिश्रम करने वालों को अधिक भोजन की जरूरत होती है। परिश्रम करने में उनकी शक्ति तथा गर्मी पर्याप्त रूप से व्यय होती है। उस कमी को पूरा करने के लिए भोजन में कार्बोज एवं वसा की मात्रा अधिक होनी चाहिए। इसके विपरीत, आराम से बैठने वालों तथा मस्तिष्क का कार्य करने वालों को कम भोजन चाहिए। इनके भोजन में कार्बोज तथा वसा कम और प्रोटीन अधिक होनी चाहिए। मानसिक श्रम करने वाले व्यक्ति के भोजन में शरीर को सुरक्षा प्रदान करने वाले तथा शरीर-निर्माण क्रिया में सहायक पोषक तत्त्वों की अधिक आवश्यकता होती है।
सन्तुलित आहार की विशेषताएँ
सन्तुलित आहार की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:-
1. पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन और खनिज लवण प्रदान करने वाले भोज्य पदार्थों का भोजन में समावेश होता है। प्रोटीन की प्राप्ति वनस्पतीय एवं प्राणिज्य दोनों ही भोज्य पदार्थों से होती है।
2. यह प्रत्येक व्यक्ति के व्यवसाय, आयु, लिंग और जलवायु के अनुसार होता है।
3. ऊर्जा प्रदान करने वाले पदार्थ उपयुक्त मात्रा में होते हैं, अत्यधिक नहीं।
4. सन्तुलित आहार में सुरक्षात्मक पोषक तत्त्वों की उपस्थिति अनिवार्य है। इनके अन्तर्गत विटामिन ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’, ‘डी’, ‘ई’, ‘के’ सम्मिलित होते हैं। विशेषज्ञों के सुझावानुसार अनुकूलतम पोषण के लिए सम्पूर्ण ऊर्जा का 50% अंश सुरक्षात्मक भोज्य पदार्थो-दूध, फल, शाक-भाजी, अण्डे आदि-से प्राप्त होना चाहिए।
सुपोषण के लिए निम्नलिखित नियमों को ध्यान में रखना चाहिए-
1. भोजन की उपादेयता उसके पचने पर निर्भर करती है। यदि भोजन आसानी से पचाया जा सके तथा उसके सार को आतें भली-भाँति सोख लें तो वह स्वास्थ्यप्रद एवं शक्तिवर्द्धक होता है। इसलिए भोजन पाचनशील होना चाहिए। अनुचित ढंग से पकाकर उसे न पचने वाला नहीं बना देना चाहिए।
2. भोजन में परिवर्तन आवश्यक है। एक ही प्रकार का भोजन अरुचि उत्पन्न कर देता है। अरुचि से खाया भोजन पाचन के लिए आवश्यक रसों का स्राव नहीं कर सकता। रसों के अभाव में वह चलता नहीं, फलस्वरूप अपच तथा कब्ज हो जाता है।
3. भोजन करते समय अधिक पानी नहीं पीना चाहिए।
4. रात को भोजन सोने से कम से कम 2 घण्टे पूर्व खा लेना चाहिए।
5. भोजन में सभी अवयव-प्रोटीन, कार्बोज, वसा, खनिज लवण, विटामिन, जल आदि शरीर की आवश्यकतानुसार पर्याप्त अनुपात में होने चाहिएँ।
6. प्रातः जल्दी विद्यालय या काम पर जाने वाले व्यक्तियों को जाने से पूर्व नाश्ता अवश्य करना चाहिए।
7. भोजन के पौष्टिक होने अतिरिक्त परोसेने का ढंग भी भोजन करने वाले पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालता है। यदि भोजन बुरे ढंग से परोसा गया है तो भोजन करने वाले को भोजन के प्रति अरुचि उत्पन्न हो जाती है। वह उसे भर-पेट नहीं खा सकता तथा वह भली प्रकार पचता भी नहीं।
8. भोजन को हानिकारक पदार्थों से बचाना चाहिए ये पदार्थ भोजन को भली प्रकार न रखने, उसके लाने, ले जाने, पकाने आदि में सम्मिलित हो जाते हैं। धूल और मक्खियों द्वारा भोजन प्रायः गन्दा और विषैला हो जाता है। काफी देर तक रखे रहने से भोजन में विषैलापन आ जाता है। भोजन हमेशा ताजा, स्वच्छ तथा सावधानी से पकाया हुआ ही खाना चाहिए। ऐसे खाद्य पदार्थ जिनमें मिलावट हो, उपयोग में नहीं लाने चाहिए।
9. भोजन प्रतिदिन नियत समय पर करना चाहिए। भोजन तथा नाश्तों में कम से कम चार घण्टे का अन्तराल होना|
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