बाल मनोविज्ञान / CHILD PSYCHOLOGY

बाल मनोविज्ञान के विषय विस्तार अथवा अध्ययन क्षेत्र

बाल मनोविज्ञान के विषय विस्तार अथवा अध्ययन क्षेत्र
बाल मनोविज्ञान के विषय विस्तार अथवा अध्ययन क्षेत्र
बाल मनोविज्ञान के विषय विस्तार अथवा अध्ययन क्षेत्र का संक्षेप में वर्णन कीजिये।

बाल मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की शाखा के रूप में व्यावहारिक तथा विधायक विज्ञान के रूप में विकसित हुआ है। डम्बिल ने मनोविज्ञान को प्राणियों के व्यवहार का विधायक विज्ञान कहा है। ड्रेवर ने मनोविज्ञान की परिभाषा प्राणियों के मानसिक एवं शारीरिक व्यवहार की व्याख्या करने वाले विज्ञान के रूप में की है। इसी प्रकार बाल-मनोविज्ञान के अन्तर्गत बालकों के व्यवहार, उनकी परिस्थितियों तथा पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाता है।

बाल मनोविज्ञान के विस्तार के विषय में कुछ प्रश्न निम्न प्रकार उठाये जाते हैं-

1. क्या बाल मनोविज्ञान का अध्ययन व्यक्ति में इस क्षमता का विकास करता है कि वह विकास तथा परिवर्तन की दिशाओं को पहचान सके ?

2. क्या यह विज्ञान बालकों में वांछित व्यावहारिक परिवर्तन की दिशाओं को स्पष्ट करता है ?

3. क्या बाल मनोविज्ञान का अध्ययन बालक को सफल मार्गदर्शन प्रदान करता है ?

सामान्यतः यह माना जाता रहा है कि मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति से बालक की आवश्यकताएँ सन्तुष्ट की जा सकती हैं, किन्तु यह भी उतना ही सही है कि स्नेह, प्रेम, दया, ममता आदि मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति न होने से उसके विकास तथा अभिवृद्धि में दोष आ जाता है।

1. थाम्पसन– “बाल-मनोविज्ञान सभी को एक नई दिशा में संकेत करता है। यदि उसे उचित रूप में समझा जा सके तथा उसका उचित समय पर उचित ढंग से विकास हो सके तो हर बच्चा एक सफल व्यक्ति बन सकता है। “

2. क्रो एवं क्रो- “बाल-मनोविज्ञान एक वैज्ञानिक अध्ययन है, जिसमें बालक के जन्म-पूर्व काल से लेकर किशोरावस्था तक का अध्ययन किया जाता है। “

बाल-मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की एक शाखा के रूप में विकसित हुआ है। इसके अन्तर्गत बालकों के व्यवहार, स्थितियाँ, समस्याओं तथा उन सभी कारणों का अध्ययन किया जाता है, जिनका प्रभाव बालक के व्यवहार विकास पर पड़ता है। आज के में अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, आर्थिक कारक मनुष्य तथा उसके परिवेश को प्रभावित कर रहे हैं। युग फलस्वरूप बालक, जो भावी समय की आधारशिला होता है, प्रभावित होता है।

बाल-मनोविज्ञान का विकास, विकासात्मक मनोविज्ञान से हुआ। हरलॉक के अनुसार- “विकासात्मक मनोविज्ञान की वह शाखा है, जो गर्भाधान से लेकर मृत्युपर्यन्त तक होने वाले मनुष्य के विकास के विभिन्न कालों में होने वाले परिवर्तनों पर विशेष ध्यान देते हुए अध्ययन करती है। प्रारम्भ में केवल स्कूल जाने से पहले की आयु के बच्चों के विकास में रुचि ली जाने लगी, इसके बाद नवजात शिशु तथा जन्म से पहले की उसकी अवस्था पर भी ध्यान दिया जाने लगा। प्रथम महायुद्ध के कुछ बाद किशोरावस्था के विषय में किये गये खोजपूर्ण अध्ययन उत्तरोत्तर अधिक संख्या में प्रकाशित होने लगे और दूसरे महायुद्ध के बाद प्रौढ़ावस्था तथा जीवन के उत्तरकालीन वर्षों पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा।”

विकास की प्रक्रिया में बालक का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। अभिभावक, शिक्षक, समाज-सुधारक, राजनेता सभी की आवश्यकताओं का केन्द्र बालक होता है। माता-पिता बालक को ईश्वर की देन मानते हैं तथा आशा करते हैं कि वह पूर्वजों की भाँति शौर्य तथा कीर्ति का प्रदर्शन करे एवं मोक्ष प्राप्ति में सहायक बने शिक्षक चाहता है चालक समाज का उपयोगी अंग बने, समाज सुधारक उसमें ऐसे गुणों तथा कौशलों के दर्शन करना चाहता है, जिनसे समाज में सामाजिक कुशलता का निर्माण हो सके। इसी प्रकार राजनेता, राष्ट्र के कुशल नेतृत्व के दर्शन बालक में करता है।

अब यह समझा जाने लगा है कि बाल-मनोविज्ञान के स्थान पर बाल-विकास नाम को प्रचलित किया जाय। बाल मनोविज्ञान में बालक के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है, लेकिन विकास के अन्तर्गत उन सभी तथ्यों तथा घटकों का अध्ययन किया जाता है, जो बालक के व्यवहार को निश्चित स्वरूप प्रदान करते हैं। प्रारम्भ में बाल मनोविज्ञान के अन्तर्गत शिशुओं तथा बालकों की समस्याओं के अलग-अलग अध्ययन किये गये। इसमें अध्ययन को पूर्णता नहीं मिली। हरलॉक के अनुसार- “बाल-मनोविज्ञान का नाम बाल-विकास इसलिए बदला गया कि अब बालक के विकास की समस्त प्रक्रियाओं पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है, किसी एक पक्ष पर नहीं।”

इस दृष्टि से बाल मनोविज्ञान का विषय विस्तार इस प्रकार है-

1. मनोविश्लेषण– बाल मनोविज्ञान, बालकों के मन का विश्लेषण कर बालकों की भावना प्रन्थियों का पता लगाता है तथा बालकों के सन्तुलित विकास में योग देता है।

2. शिक्षा मनोविज्ञान- बाल मनोविज्ञान, शिक्षा मनोविज्ञान के साथ मिलकर बालकों का शैक्षिक विकास करता है।

3. समाजशास्त्र तथा सांस्कृतिक मानव विज्ञान- बाल मनोविज्ञान का अध्ययन समाजशास्त्र तथा सांस्कृतिक मानव विज्ञान के अध्ययनों में सहायक होता है, बाल-मनोविज्ञान ने यह बताया है कि बालक की आवश्यकताओं का स्रोत उसका परिवेश होता है।

4. प्रयोगात्मक मनोविज्ञान – प्रयोगात्मक मनोविज्ञान के माध्यम से बाल-व्यवहार का अध्ययन कर विभिन्न परिणाम ज्ञात किये जाते हैं ।

5. चिकित्सा- बाल मनोविज्ञान चिकित्सा के क्षेत्र में भी अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुआ है। चिकित्सा विज्ञान भी बालक को मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखने लगा है।

6. मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान- बाल मनोविज्ञान ने मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी योग दिया है। बाल मनोविज्ञान, बालकों के स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए विभिन्न उपाय सुझाता है।

7. बाल कल्याण- बाल मनोविज्ञान ने बाल मनोविज्ञानशाला, निर्देशन केन्द्र तथा कल्याणकारी योजनाओं की दिशा भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

IMPORTANT LINK

Disclaimer

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment