नई कविता के प्रमुख कवि और उनकी काव्य रचनाएँ
नई कविता के कवि और काव्य- यद्यपि कतिपय समीक्षकों ने द्वितीय और तृतीय तारसप्तक के कवियों को नई कविता के कवियों के अन्तर्गत माना है तथापि इनके अतिरिक्त अन्य भी अनेक कवि हैं जो कविता के अन्तर्गत आते हैं। कुछ कवियों के नाम एवं रचनाएँ निम्न प्रकार हैं-श्रीमती विजय चौहान (स्वर तथा अन्य कविता) वीरेन्द्र कुमार (नया आदमी) वीरेन्द्र मिश्र (लेखनी बेला), गणपति चन्द्र भण्डारी (रक्त दीप), रमेश साही (प्रतीक्षा रत मैं), राजीव सक्सेना, डॉ. धर्मवीर भारती एवं भवानी प्रसाद मिश्र का परिचय प्रस्तुत है-
डॉ० धर्मवीर भारती – पद्मश्री पुरस्कृत धर्मवीर भारती के काव्य में प्रयोगवादी कविता के विकास की कई मंजिलें और उसमें उस युग की नई चेतनाएँ हैं।
प्रेम की चेतना के एक नये धरातल पर उपस्थित करने का प्रयास किया है। ‘धर्मवीर भारती’ को ‘भारती’ नव प्रतीक बन्धों, बिम्बों
उनके प्रकाशित काव्यों में ‘ठण्डा लोहा’, ‘सात गीत वर्ष’, कनुप्रिया विशेष उल्लेखनीय हैं। ‘कनुप्रिया’ में राधा-कृष्ण के तथा अभिनव उपमेवोपमान विधान में सम्मिलित हैं। ‘अन्धा युग’ भी धर्मवीर भारती की सशक्त रचना है एवं क्रान्तिकारी रचना है। ‘अन्धा युग’ में प्रयोगशील कवि भारती ने महाभारत युद्ध की अनेक समस्याओं को उठाया गया है। कनुप्रिया का वैष्णवी महाभाव, सिद्धों का रति भाव तथा अस्तित्ववादियों का क्षण भाव का अपूर्व सामंजस्य आधुनिक कला-कृतियों में इसे महत्त्वपूर्ण स्थान पर प्रतिष्ठित कर देता है।
कवि ने शब्दों की आत्मा में बैठकर सारे जीवन्त रंग भर दिये हैं। जन भाषा के पतघर धर्मवीर भारती की शैली में सहज आत्मीयता है वह सीधे भाव को हृदय में उतार देती है। ‘आम्र बौर का गीत’ व ‘तुम मेरे कौन हो’ गीतों में भावों की सहजता दृष्टिगत होती है।
यथार्थ के स्वर के साथ-साथ भारती के काव्य में मानवतावाद का हवट भी सुनाई देता है। उन्होंने अपने काव्य मध्यमवर्ग के मानव की अनेक ऐसी स्थितियों के चित्र अंकित किये हैं जो सुबह से शाम तक मनुष्य को तोड़ती रहती है। ‘अन्धा युग’ तथा पराजित पीढ़ी के गीत में मध्यम वर्ग की चेतना के माध्यम से पवित्रता को चुनौती दी गई। देखिये-
“हम सबके दामन पर दाग
हम सबकी आत्मा में झूठ
हम सबके माथे पर शर्म
हम सबके हाथों में टूटी तलवार की मूँठ ।”
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रयोगशील कविता के वैचारिक पक्ष को भावुकता और सजल स्निग्धता से विभूषित करके प्रभावी शिल्प में ढालने वाले कवियों से धर्मवीर भारती का नाम अनुप्रेक्षणीय है।
भवानी प्रसाद मिश्र – डॉ० कृष्णदत्त पालीवाल के शब्दों में-“प्रयोगवादी कविता नई कविता में जो कथ्य की दुर्बोधता, अस्पष्टता, दुरूह भंगिमाओं में जड़ी जकड़ी प्रतीकात्मकता तथा बुद्धिग्रस्त विलक्षणता के जो दोष लगाये जाते थे उन सभी से भवानीप्रसाद मिश्र की कविताएँ मुक्त हैं। वे नयी कविता के मैथिलीशरण गुप्त हैं। दर्शन में अद्वैतवादी और व्यावहारिक धरातल पर गांधीवादी लेकिन मुक्त-शुद्ध सबका भला चाहने वाले सन्त, ऐसे ही सन्त कवि हैं।”
आत्म संघर्ष और पौरुष का नाम ही ‘भवानी भाई’ है। ‘स्नेह शपथ’ उनकी ऐसी ही कविता है जो गाँधीजी की भाँति ‘प्रेम’, ‘स्नेह’ की शक्ति बाँटती है। ‘असाधारण’ नामक कविता की पूरी-पूरी प्रतिज्ञा ही है तथा कवि के समस्त जीवन को समझने के लिए महत्वपूर्ण है। कवि की प्रतिज्ञा में वही विश्वास है जो शिव को गंगा उतारने में रहा होगा। यथा-
“लहरों के आने पर काई-सा फटे नहीं,
रोटी के लालच में तोते-सा रटे नहीं।”
दुनियाँ भर के संघर्षो को झेलकर भी भवानीप्रसाद अपने पथ पर डटे रहे, वे बिके नहीं, काल के कानों में सच्ची बात कहने वाले कवि हैं। ‘राष्ट्रपति भवन’ का सम्बोधित करके उन्होंने ऐसी प्रभावशाली कविता लिखी जो कवि के व्यक्तित्व के अनुरूप थी।
उनके काव्य का वैशिष्ट्य है मानवीय सहानुभूति का व्यापक स्तर। उन्होंने कला को जीवन के लिए माना है, जैसे-
“इस दुःखी संसार में जितना बने हम सुख लुटा दें,
बन सके तो निष्कपट मृदुहास के दो कान जुटा दें।”
मिश्र जी की भाषा बोल-चाल की भाषा है बेझिझक उर्दू तथा अंग्रेजी के जन-मन में रमें शब्दों का प्रयोग करते हैं।
भाषा की अकृत्रिमता, सहज लयात्मकता से उन्होंने नयी लोक रुचि का निर्माण किया है। वे वास्तव में जन कवि हैं।
इस प्रकार नयी कविता वर्तमान साहित्य जगत में व्यापक प्रतिष्ठा प्राप्त हो चुकी है। चाहे विषय परिधि हो या उपमानों की परिकल्पना, चाहे बिम्ब योजना हो या प्रतीक विधान चाहे वस्तुगत सौष्ठव हो या शिल्पगत सृजन सभी क्षेत्रों में नयी कविता ने अपना स्तुत्य स्थान प्राप्त कर लिया है।
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