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नवगीत को उदाहरण सहित समझाइये।
नवगीत
गीत कवि के भावोद्वेलित मानस की सरस अभिव्यंजना है। गीत को सुमधुर शब्दों में बाँधते हुए गीतकार नीरज ने लिखा है- “जब कवि का मानस चषक भाव रस से इतना भर जाता है, कि वह आसव उसमें से छलक छलक पड़ता है तब गीत का जन्म होता है। “
यह भाव रस मानस की पीड़ामयी तथा आनन्दमयी अवस्था का अभिव्यंजक है जो गीत में कुछ अधिक ही मर्मस्पर्शी बन जाता है। जैसा कि महादेवी जी ने भी कहा है-
“सुख दुःख की भाववेशमयी अवस्था का विशेष गिने चुने शब्दों में चित्रण कर देना ही गीत है।”
यद्यपि साहित्य में गीत तत्व काव्य में आदि काल से ही उपलब्ध होता है और आधुनिक काल तक गीत काव्य के स्वर, समग्र साहित्य जगत की झंकृत करते रहे हैं। परन्तु नवगीत हिन्दी साहित्य के मंच पर अपना विशिष्ट स्वरूप लेकर प्रकट हुआ है जो कतिपय समीक्षकों के अनुसार नयी कविता का एक प्रभविष्णु अंग है तथा कतिपय समीक्षकों के अनुसार नवगीत नयी कविता का अगला चरण है।
1. कालावधि- मिश्रण समीक्षकों ने नवगीत की कालावधि सन् 1950 से लेकर आज तक निर्धारित की है जिसका संक्षिप्त विवेचन निम्न प्रकार है-
(i) डॉ० शम्भूनाथ सिंह “नवगीत का विकास सन् 1950 के बाद नई कविता के युग से अज्ञाय जी से हुआ।” मानते हैं ।
(ii) कुन्दन लाल उप्रेती- 5 फरवरी, 1958 में प्रकाशित ‘गीतांगिनी’ का सम्पादन करते हुए अपने सम्पादकीय लेख में ‘नवगीत’ की संज्ञा सबसे पहले सम्भवतः श्री राजेन्द्र प्रहार सिंह ने दी।”
(ii) वाराणसी से प्रकाशित मासिक पत्रिका ‘वासन्ती’ के माध्यम से 1960 में नवगीत कारों ने लेखों के प्रकाशन से ‘नवगीत’ को विशेष दिशा दी।
(iv) ‘ओम प्रभाकर’ के सम्पादकत्व में अलवर (राजस्थान) से नवगीत का संकलन ‘कविता’ प्रकाशित हुई।
(v) बीकानेर से प्रकाशित ‘वातायन’ पत्रिका के माध्यम से 1966 में ‘नवगीत’ पर विद्वानों ने विचार व्यक्त किये हैं।
(vi) लक्ष्मी सागर वाष्र्णेय “नवगीत आन्दोलन 1960 के लगभग से प्रारम्भ हुआ तथा ‘शब्द’ जैसी पत्रिकाओं और ‘पाँच जोड़ बाँसुरी’ जैसे संकलनों से उसने प्रोत्साहन प्राप्त किया।
2. नामकरण- जिस प्रकार हर नये कवि द्वारा कविता के नाम पर लिखी गयी हर कविता नई कविता है, उसी प्रकार उनके द्वारा गीत के नाम पर लिखा गया हर गीत नया गीत है।
“नवगीत’ या ‘नयागीत’ का आन्दोलन ‘नई कविता’ के ध्वजा वाहकों के समान कतिपय नाम के भूखे लोगों का आन्दोलन है। आधुनिकता और वैज्ञानिक युग-बोध और सौन्दर्य के दावेदारों तथा कथित नवगीतों के लेखकों ने अपने गीतों को ‘नवगीत’, ‘नया गीत’, ‘अगीत’, ‘प्रगीत’, ‘लोक गीत’ तथा ‘कबीर गीत’ आदि के नामों से अभिहित किया है।” -शिवकुमार शर्मा
इस प्रकार ‘नवगीत’ में नये प्रतीक, नयी भाषा, नये अप्रस्तुत विधान एवं नये शिल्प विधान का नयी विधि से प्रयोग कर नाम की सार्थकता प्रतिपादित की गई।
नये गीतकारों ने विगत के गीतों को अतीत भाव-बोध और वासी शैली की वस्तु कहकर उसे मृत कहते हुए स्वसृजित गीतों को नवीनता की संज्ञा दी है।
3. नवगीत की परिभाषाएँ- कविता के नये आन्दोलनों के सन्दर्भ में नवगीत का विशिष्ट स्थान है। ‘नवगीत’ या ‘नया गीत’ के विषय में विभिन्न विद्वानों के मत उल्लेखनीय हैं। ‘डॉ० शम्भूनाथ सिंह’ ने नवगीत की नवीनता को युग सापेक्ष बताते हुए कहा है-
“नवीन पद्धति और विचारों के नवीन आयामों तथा नवीन भाव-सरणियों को अभिव्यक्त करने वाले गीत जब भी और जिस युग में लिखे जावेंगे, नवगीत कहलावेंगे।”
“जय किशन प्रसाद खण्डेलवाल’ ने ‘नवगीत’ को परिभाषित करते हुए कहा है- “नवगीत’ ‘नई कविता’ का ही गीतात्मक रूप है।”
गोपाल दास ‘नीरज’ ने नयी कविता और गीत को एक-दूसरे के पूरक बताते हुए कहा है- “नई कविता’ से जो कुछ छूट गया है, उसे वाणी दी है ‘गीत’ ने और ‘गीत’ जिसकी ओर से अभी तक उदासीन रहा है, उसे अभिव्यक्त किया है, ‘नई कविता’ ने ।
‘बाल स्वरूप राही’, ‘नवगीत’ के लिए आधुनिकता की अभिव्यक्ति अपेक्षित स्वीकार करते हुए कहते हैं “जीवन को मृत पृथक् छाँट सकना सच्ची आधुनिकता है। ‘नवगीत’ केवल पाठ्य हैं और उनमें भावुकता का कोई स्थान नहीं है। इसमें से शास्त्रीय रस न होकर संवेगात्मकता होती है।”
रवीन्द्र भ्रमर के अनुसार- “नवीन शिल्प विधान के साथ-साथ नव गीतों में लयात्मकता और संप्रेषणीयता भी अनिवार्य है
नवगीत की विशेषताओं की चर्चा करते हुए ‘रामदश मिश्र’ कहते हैं-
“ अनुभूति की सच्चाई अतएव अनुभूति की अपनी-अपनी विशिष्टता, नवीन सौन्दर्य बोध आकार लघुता, नवीन बिम्ब-प्रतीक-उपमान योजना इनकी (नवगीत की) सामान्य विशिष्टता है। ये गीत जहाँ से उठे हैं वहीं की जमीन के रस को लिए हुए हैं।
उपर्युक्त नवगीत के लक्षणों से इतना स्पष्ट हो जाता है कि ‘नवगीत’ हिन्दी के वर्तमान युग में अपना स्वतन्त्र अस्तित्व प्राप्त कर चुका है। न तो यह नयी कविता के समानान्तर चलने वाली कविता धारा है और न यह परम्परागत भावों और विचारों का संकलित गेय रूप है। ‘नवगीत’ के पाठकों ने अनुभव किया है कि वस्तुतः नवगीत में कुछ नया-नया है।
4. नवगीतकार- नवगीत के प्रणेता सहसा ही अवतीर्ण नहीं हो गये, काव्य की अन्य धाराओं की भाँति ‘प्रथम तारकसप्तक’ के कवि ‘अज्ञेय’ एवं ‘गिरिजाकुमार माथुर’ ‘द्वितीय तारसप्तक’ के कवि ‘हरिनारायण व्यास’ ‘नरेश मेहता’ तथा ‘धर्मवीर भारती’ एवं तृतीय तारसप्तक के कवि ‘केदारनाथ सिंह’, ‘कुँवरनारायण’, ‘विजयदेव नारायण साही’ तथा ‘सर्वेश्वर दयाल सक्सेना’ सप्तको की परिधि से परे होकर नयी कविता से आगे बढ़कर ‘नवगीत’ जगत में आये ।
इनके अतिरिक्त जो प्रख्यात नवगीतकार है, उनके नाम निम्न प्रकार हैं-‘नरेन्द्र शर्मा’, ‘शम्भुनाथ सिंह’ डॉ० रामेश्वर लाल खण्डेलवाल ‘तरुण’, ‘ठाकुर प्रसाद सिंह’, ‘जगदीशगुप्त’, ‘श्रीकान्त वर्मा’ ‘ओम प्रभाकर’, ‘बालस्वरूप राही’, ‘अजीत कुमार’, ‘देवेन्द्र कुमार’ और ‘रामदरश मिश्र’, ‘रवीन्द्र भ्रमर ‘त्रिलोचन शास्त्री’ आदि।
इनके अतिरिक्त कुछ ऐसे भी नवगीतकार हैं जो लेखन के अतिरिक्त मच पर भी ‘नवगीत’ की धारा प्रवाहित करते हैं- (गोपालदास ‘नीरज’, ‘सोमठाकुर’, ‘वीरेन्द्र मिश्र’, ‘रामकुमार चतुर्वेदी’, ‘चञ्चल’ ‘घनश्याम अस्थाना’, ‘उय प्रताप सिंह’, ‘रमानाथ अवस्थी’, ‘ओम अवस्थी’ एवं ‘जगत प्रसाद चतुर्वेदी’ तथा ‘देवेन्द्र शर्मा’ (इन्द्र) एवं धीरेन्द्र शुक्ल आदि ।
यद्यपि नवगीतकारों की श्रृंखला पर्याप्त दीर्घ है। परन्तु स्थानाभाव के कारण उक्त नाम ही उल्लिखित हैं।
5. नवगीत के तत्व- कथ्य और शिल्प में नयापन और ताजगी लेकर गीत की जो नई पौध पनपी वह ‘नवगीत’ की संज्ञा से अभिहित हुई। ‘नवगीत’ के पाँच प्रमुख आधारभूत तत्व हैं जिनका उल्लेख ‘राजेन्द्र प्रसाद सिंह’ ने ‘गीतांगिनी’ में किया है-
(1) जीवन दर्शन, (2) आत्निष्ठा, (3) व्यक्तित्व बोध, (4) प्रीतितत्व, (5) परिसंचय ।
नवगीत का कलेवर इन्हीं तत्वों के द्वारा सृजित होता है। अपने काव्य के लिये नया कवि जीवन की विडम्बनाओं के बीच मानव की खोज करता है। नवगीत का कथ्य सूक्ष्म है तदनुकूल ही नव प्रतीकों, नव बिम्बों एवं नव संकेतों का उपयोग कवि को करना पड़ता है।
6. नवगीत और प्रकृति- नवगीतकार के लिये प्रकृति न तो आलम्बन है और न उद्दीपन, प्रकृति का उपयोग नव कवि या तो अपनी मनः स्थिति की अभिव्यंजना के लिए करता है या मानवीय सन्दर्भों की अभिव्यक्ति के लिए। प्रकृति को नये कवि ने स्वतन्त्र विषय के रूप में चित्रित नहीं किया है। प्रकृति से प्रतीक अवश्य ग्रहण किए हैं जो नये कवि की अभिव्यंजना में सम्बल का कार्य करते हैं।
7. नवगीत का काव्य शिल्प- नवगीत संप्रेषित नहीं होता वरन् श्रोता या पाठक के मन पर अपना प्रभाव छोड़ता है। गेयतत्व की दृष्टि से नवगीतकार का अपना ही वैशिष्ट्य है। छन्दों की दृष्टि से नवगीतकार में कहीं सामान्य छन्द, कहीं मुक्त छन्द, कहीं उसके साथ टेक, कहीं उर्दू, बहरों और लोकगीतों की लय पद्धति का प्रयोग किया गया है। नवगीतकार ने शब्द और अर्थ की लय पर विशेष ध्यान केन्द्रित किया है। लक्ष्मी सागर वार्ष्णेय ने उचित ही कहा है-
“वास्तव में नवगीत में गीत की कलात्मक विशेषताओं के रहते हुए भी चेतना, शिल्प अभिव्यंजना के स्तर पर नयापन है।”
नवगीतकारों में अग्रणीय ‘शम्भूनाथ सिंह’ की निवासित शीर्षक रचना में नवगीत शैली की मधुरिमा अवलोक्य है।
……..सुख से संन्यास ले लिया
दुख को वनवास दे दिया
बार-बार क्रास पर चढ़ा
जाने कितना जहर पिया।”
8. नवगीत का मूल्यांकन- ‘नवगीत’ साहित्य जगत में अपना नवयुग निर्मित कर चुका है। साथ ही साथ साहित्य समीक्षकों की विचारणा का महत्वपूर्ण विषय बन गया है। ‘नवगीत’ काव्य मंच पर सशक्त रूप में स्थापित है। जैसा कि डॉ० जयकिशन प्रसाद खण्डेलवाल ने कहा है-“नवगीत में बौद्धिकता का अतिरेक, काम कुण्ठाओं का अतिशय सांस्कृतिक रिक्तता से विमुखता, व्यक्ति वैचित्र्यवाद, जीवन के प्रति आस्था, कथ्य की तुच्छता, कथन-विधि की असमर्थता, असामाजिकता भावनाओं की अनर्गल प्रवृत्ति आदि प्रवृत्तियाँ भी छुट-पुट दिखाई पड़ती हैं। किन्तु मेरा मत यह है कि नवगीत तो नई पीढ़ी का गीत है। उज्ज्वल भविष्य का गीत है, मानवता का गीत है। यह वादों के बीहड़ से निकल मुक्त गगन का गीत है।”
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