हिन्दी साहित्य

उपन्यास का अर्थ एवं परिभाषा |हिन्दी उपन्यास के उद्भव और विकास

उपन्यास का अर्थ एवं परिभाषा  |हिन्दी उपन्यास के उद्भव और विकास
उपन्यास का अर्थ एवं परिभाषा |हिन्दी उपन्यास के उद्भव और विकास

उपन्यास का अर्थ एवं परिभाषा

व्युत्पत्ति की दृष्टि से उपन्यास शब्द ‘अस्’ और धातु में उप और नि उपसर्ग तथा अच प्रत्यय (परसर्ग) के योग से बना है (अर्थात् उप + नि + अस + अस्= उपन्यास)। अमरकोष में उपन्यास की व्याख्या उपन्यास: प्रसादनम् कहकर की गई है, जिसका अभिप्राय है कि मन को आनन्दित करने वाली रचना उपन्यास कही जाती है। वेबस्टर के अनुसार- “उपन्यास लम्बे आकार की ऐसी गद्य रचना होती है, जिसमें एक ही कथा के अन्तर्गत यथार्थ जीवन को निरूपण करने वाले पात्रों और उनके क्रिया-कलापों का चित्रण हो।”

इस विषय में मुंशी प्रेमचन्द ने यह मत व्यक्त किया था कि उपन्यास को मानव चित्र का चित्र मानता हूँ। मानव चित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोलना ही उपन्यास का मूल तत्व है।

उपन्यास का उद्भव एवं विकास

उपन्यास के उद्भव और विकास की दृष्टि से यह तथ्य उल्लेखनीय है कि यद्यपि भारत के नाट्यसूत्र में उपन्यास शब्द का प्रयोग मिलता है तथा संस्कृत के हर्षचरित और कादम्बरी जैसे ग्रन्थों को कुछ विद्वान उपन्यास ही मानते हैं। किन्तु आजकल उपन्यास का जो स्वरूप प्रचलित है, उस पर मुख्यतया पाश्चात्य उपन्यासों का ही प्रभाव है और उसके उद्भव का समय भारतेन्दु काल है। ब्रज और अवधी भाषा में अर्थात् हिन्दी वीरगाथा काल और रीतिकाल में उपन्यासों की रचना नहीं हुई है, इस दृष्टि में उपन्यास साहित्य खड़ी बोली की निधि है।

हिन्दी का प्रथम मौलिक उपन्यास कौन-सा है ? इस विषय में विद्वानों में आंशिक मतभेद हैं। कुछ विद्वान् इंशाअल्ला खाँ की (रानी केतकी की कहानी) कहानी के स्थान पर उपन्यास मानते हुए उसे ही हिन्दी का प्रथम उपन्यास स्वीकार करते हैं, किन्तु उसमें उपन्यास के तत्वों का पूर्ण समावेश नहीं मिलता। अशिकांश विद्वानों के मतानुसार हिन्दी का प्रथम मौलिक उपन्यास श्री निवासदास का परीक्षा गुरु है। हिन्दी उपन्यास के विकास को उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द के मध्य बिन्दु मानकर निम्नांकित तीन वर्गों में विभक्त किया जाता है-

1. प्रेमचन्द पूर्वकालीन उपन्यास, 2. प्रेमचन्द कालीन उपन्यास, 3. प्रेमचन्दोत्तर कालीन उपन्यास।

1. प्रेमचन्द पूर्वकालीन उपन्यास

प्रेमचन्द पूर्ववर्ती काल में मुख्यतया दो प्रकार के उपन्यास लिखे गए-

(क) सामाजिक सुधार की भावना से लिखे गए उपदेश प्रधान उपन्यास ।

(ख) मनोरन्जन की दृष्टि से लिखे गए तिलस्मी, ऐयारी और जासूसी उपन्यास ।

इनमें से प्रथम प्रकार के उपन्यासकार और उनके उपन्यासों के नाम निम्नलिखित हैं-

श्री निवास दास- परीक्षा गुरु, रत्नचन्द्र प्लीडर- नूतन चरित्र, पं. बाल कृष्ण भट्ट-सौ अजान एक सुजान, नूतन ब्रह्मचारी, ठा. जगमोहन सिंह- श्याम स्वप्न, पं. किशोरीलाल गोस्वामी (इस काल में सबसे अधिक उपन्यास गोस्वामी जी ने ही लिखे हैं)- स्वर्गीय कुसुम, त्रिवेणी या सौभाग्य श्रेणी, हृदयहारिणी या आदर्श की रमणी, लवंगलता या आदर्श बाला, मदन मोहिनी, माधवी माधव, प्रेममयी आदि अयोध्या सिंह उपाध्याय-ठेठ हिन्दी का ठाठ, अधखिला फूल, प्रेमकान्ता, राधा रानी: राधाचरण गोस्वामी- विधवा, कल्पलता, विपत्तिः लज्जा राम शर्मा-स्वतन्त्र रमा और परतंत्र लक्ष्मी, कपटी मित्र, धूर्त रसिक लाल, बिगड़े का सुधार तथा सत सुखदेवी; बजन्दन सहाय-राधाकानत सौन्दर्योपासक, अरण्य बाला: राधा कृष्ण दास-निस्सहाय हिन्दू: कार्तिक प्रसाद- दीनानाथ ।

इन उपन्यासकारों के विषय में डॉ० राजनाथ शर्मा ने लिखा है– “बीसवीं सदी के आरम्भ तक उपन्यास के क्षेत्र में छुटपुट प्रयास ही होते रहे थे। उपन्यासकारों का मूल उद्देश्य अपने उपन्यासों के माध्यम से उपदेश देते हुए व्यक्ति और समाज के सुधार की प्ररेणा देना रहा था। इसलिए केवल सामाजिक उपन्यास ही लिखे गए। प्रथम हिन्दी उपन्यास का जन्म हो चुका था, परन्तु अभी उसे एक निश्चित रूप धारण करना शेष था।” इस काल में अंग्रेजी, बंगला और मराठी उपन्यासों के हिन्दी में अनुवाद भी किए गए।

तिलस्मी और ऐय्यारी उपन्यासकारों में देवकी नन्दन खत्री सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं तो, जासूसी उपन्यास लेखकों में गोपालराम गहमरी का प्रमुख स्थान है। इस प्रकार के उपन्यासकार और उपन्यासों के नाम इस प्रकार हैं-

देवकीनन्दन खत्री चन्द्र (4 भाग), कान्ता संतति (20 भाग), भूतनाथ (21 भाग), कुसुम कुमारी, नरेन्द्र मोहिनी, अनूठी बेगम और नौलखा हार आदि; गोपालराम गहमरी-बेकसूर की फाँसी, गुप्तचर, अद्भुत तलाश, मायाविनी, बेगुनाह का खून, खूनी कौन है आदि; गुलाब राय – तिलस्मी बुर्ज, हरिकृष्ण जौहर, कुसुमलता; गंगा प्रसाद गुप्त- कृष्णकान्ता; मदनमोहन पाठक, जयनारायण गुप्त, चन्द्रशेखर पाठक आदि ने भी तिलस्मी, ऐय्यारी और जासूसी उपन्यास लिखे हैं।

2. प्रेमचन्द कालीन उपन्यास

उपन्यास के क्षेत्र में मुंशी प्रेमचन्द के पदार्पण करने से पूर्व हिन्दी उपन्यास क्षेत्र में तिलस्मी, जासूसी, ऐयारी से सम्बन्धित उपन्यासों का बोलबाला था, अथवा उनके माध्यम से धार्मिक तथा समाज-सुधार विषयक उपदेश प्रदान किए जाते थे। प्रेमचन्द ने इनके स्थान पर ज्वलंत सामाजिक समस्याओं को अपने उपन्यासों का विषय बनाया। उस समय देश में जो नव जागरण की लहर उठ रही थी। सबसे पहले उन्हीं के उपन्यासों में सशक्त राष्ट्रीयता के रूप में व्यक्त हुई है। मुंशी प्रेमचन्द ने एक दर्जन के लगभग उपन्यास लिखे। जिनमें से प्रमुख नाम हैं-सेवासदन, प्रेमाश्रय, निर्मला, रंगभूमि, कायाकल्प, गबन, कर्मभूमि और गोदान । प्रेमचन्द काल में जयशंकर प्रसाद, जैनेन्द्र, उपेन्द्रनाथ अश्क, चतुरसेन शास्त्री, राहुल सांकृत्यायन, भगवतीचरण वर्मा, वृन्दावनलाल वर्मा आदि प्रसिद्ध उपन्यासकारों ने उपन्यास लेखन आरम्भ कर दिया था; किन्तु इनमें से अधिकांश उपन्यासकारों को प्रेमचन्द काल के पश्चात् ही ख्याति मिल सकी। इस काल के प्रसिद्ध उपन्यासकार और उनके उपन्यासों के नाम निम्नांकित हैं- (ये लेखक बाद तक उपन्यास लिखते रहे हैं।)

जयशंकर प्रसाद- कंकाल, तितली और इरावती (अपूर्ण); चतुरसेन शास्त्री- परख, हृदय की प्यास, वैशाली की नगरवधुः जैनेन्द्र- सुनीता, कल्याणी और तपोभूमि; पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’- दिल्ली का दलाल, सरकार तुम्हारी आँखों में, चन्द हसीनों के खतूतः वृन्दावनलाल वर्मा- गूढकुण्ठार, विराटा का पद्मिनी, कचनार, मृगनयनी, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई आदि, प्रताप नारायण श्रीवास्तव का विदा विकास।

3. प्रेमचन्दोत्तर कालीन उपन्यास

 सन् 1936 में मुंशी प्रेमचन्द का निधन होने के पश्चात् हिन्दी के उपन्यास का कई धाराओं में विकास हुआ। जैसा कि कहा जा चुका है कि इस काल के अनेक उपन्यासकार ऐसे हैं, जिन्होंने प्रेमचन्द काल में ही उपन्यास लिखना आरम्भ कर दिया था। प्रेमचन्दोत्तर काल के उपन्यासों को निम्नांकित वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-

(क) ऐतिहासिक उपन्यास – ऐतिहासिक उपन्यासकारों में सबसे प्रथम उल्लेखनीय नाम किशोरीलाल गोस्वामी का है जो प्रेमचन्द पूर्व काल के उपन्यासकार थे। उन्होंने हृदयहारिणी या आदर्श रमणी, लवंगलता या आदर्श बाला, सुल्ताना रजिया बेगम का रंगमहल में हलाहल, मुख शर्वरी आदि ऐतिहासिक उपन्यास लिखे थे। ऐतिहासिक उपन्यासों के क्षेत्र में सर्वाधिक प्रसिद्ध उपन्यासकार वृन्दावनलाल वर्मा हैं, जिनके मृगनयनी, गूढ़ कुंठार आदि उपन्यासों का पहले उल्लेख किया जा चुका है। ऐतिहासिक उपन्यासकारों में अन्य उल्लेखनीय उपन्यासकार हैं- श्री राहुल सांकृत्यायन, जययौधेय सिंह सेनापति, विस्मत यात्री, मधुर स्वप्न, पं० चतुरसेन शास्त्री-शाली की नगरवधु, वयं रक्षामः सोमनाथ, यशुपाल-दिव्या, अमित, डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी- बाणभट्ट की आत्मकथा, डॉ० रांगेय राघव मुर्दों का टीला ।

(ख) समाजवादी उपन्यास- इस श्रेणी के उपन्यासों में आर्थिक वैपम्य तथा सामाजिक रूढ़ियों का चित्रण करते हुए मार्क्सवादी सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है। अपने उपन्यासों में मार्क्सवादी सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाले उपन्यासकारों है में यशपाल प्रमुख हैं, जिन्होंने-दारा कामरेड, मनुष्य के रूप, बारह घंटे, देशद्रोही आदि उपन्यास लिखे हैं। इसी प्रकार के अन्य उपन्यासकारों और उनके उपन्यासों के नाम हैं-डॉ. रांगेय राघव- विषदामत, हुजूर, घरौंदे सीधा सादा रास्ता, काका, भैरव प्रसाद, गुप्त गंगा मैया और मिशाल आदि: नागार्जुन- नई पौध, बाबा बटेसरनाथ, बलचलनमा, दुख मोचन, वरुण के बेटे, भूतनाथ की चाची, आदि प्रेत बोलते हैं, उखड़े हुए लोग, रात अंधेरी है आदि, अमृत राय के हाथी के दाँत, नागफनी के बीज आदि। अमृत लाल नागर भी इसी परम्परा के उपन्यासकार हैं, किन्तु उनके उपन्यासों में मार्क्सवादी सिद्धान्तों में प्रतिपादित के स्थान पर जनता की अदम्य जिजीविया और अपराजेय संघर्ष भावना का जीवन पुट रहता है। आपके उपन्यासों के नाम हैं-सेठ वकिलाल बूँद समुद्र, महाकाल, सुहान के नुपूर, अमृत और विष, शतरंज के मोहरे आदि ।

उपेन्द्रनाथ अश्क के उपन्यासों में भी मध्यम वर्गीय सामाजिक समस्याओं का चित्रण किया गया है। उनके प्रसिद्ध उपन्यासों के नाम हैं- सितारों के खेल, गर्म राख, गिरती दीवारें, पत्थर, अल पत्थर, बड़ी आँखें आदि। बहुत कुछ इसी प्रकार के अन्य उपन्यासकार हैं यज्ञदत्त शर्मा-“अन्तिम चरण दो पहलू, इन्सान, बदलती राहें आदि, गुरुदत्त-स्वाधीनता के पथ पर, पथिक स्वराज्य दल, भावुकता का मूल देश की हत्या आदि), मन्मथनाथ गुप्त जयमाला, अवसान, सुधार, अंधेर नगरी, रक्षक भक्षक आदि।

(ग) घोर यथार्थवादी उपन्यास- कुछ ऐसे यथार्थवादी उपन्यास भी लिखे गए हैं, जिनमें समाज के घिनौने और अश्लील पक्ष का अधिक उद्घाटन किया गया है। इस प्रकार के उपन्यासकारों में पांडेय बेचन शर्मा उम्र का नाम प्रमुख है। उनके ऐसे उपन्यासों का नाम है- चंद हसीनों के खतूत, दिल्ली का दलाल, सरकारी तुम्हारी आँखों में, फंटा, शराबी, बुधुआ की बेटी आदि । आचार्य चतुरसेन के ख्वास का विवाह, हृदय की परख मन्दिर की नर्तकी, हृदय की प्यास आदि; ऋषभचरण जैन के दिल्ली का व्यभिचार, मास्टर साहब, वेश्या पुत्र आदि।

(घ) मनोविश्लेषणात्मक उपन्यास- मनोविश्लेषणात्मक उपन्यासों के पात्रों के अवचेतन और अर्धचेतन मस्तिष्क में रहने वाला दमित कुंठाओं पर बल दिया जाता है। इस प्रकार के उपन्यासों में जैनेन्द्र, अज्ञेय और इलाचन्द्र जोशी विशेष प्रसिद्ध हैं। अज्ञेय ने शेखर एक जीवनी, नदी के द्वीप तथा अपने-अपने अजनबी नामक तीन उपन्यास लिखे हैं। जैनेन्द्र के सुनीता, त्यागपत्र, कल्याण, सुखदा, विवर्त व्यतित जयवर्धन आदि भी मनोविश्लेषणात्मक उपन्यास ही है। इलाचन्द्र जोशी के उपन्यासों के नाम हैं- जिप्सी, सुबह के भूले, जहाज का पंछी, ऋतुचक्र आदि उपेन्द्रनाथ अश्क (गिरती दीवारें, गर्म राख, सितारों के खेल आदि), भगतवी प्रसाद वाजपेयी (दो बहिनें, पतिता की साधना, मित्रण आदि), रामेश्वर शुक्ल अंचल (चढ़ती धूप, नई इमारत, उल्का आदि); उषादेवी मित्रा (पिया, वचन का मोल, नष्ट नीड़, जीवन की मुस्कार आदि); उदयशंकर भट्ट (नये मोड़); लक्ष्मीनारायण लाल, धर्मवीर, भारती, अनन्त गोपाल शेवडे, प्रभाकर माचवे, देवराज, उषा प्रियम्वदा, मोहन राकेश, कमलेश्वर, रजनी पानिक्कर आदि उपन्यासकारों ने भी मनोविश्लेषणात्मक उपन्यास लिखे हैं ।

(ङ) आँचलिक उपन्यास- ऐसे उपन्यास, जिनमें किसी प्रदेश का अंचल विशेष की सभ्यता और संस्कृति तथा बोलचाल का अधिक पुट रहता है- आंचलिक उपन्यास कहलाते हैं। इस प्रकार के उपन्यास हैं- फणीश्वर नाथ रेणु (मैला आँचल, परितो परिकथा); निराला (बिल्लेश्वर बकरिहा); अमृतलाल नागर (सेठ बांकेलाल); नागार्जुन (बलचनमा, नयी पौध, बाजा बटेशरनाथ, वरुण के बेटे); रांगेय राघव (कब तक पुकारूँ); उदयशंकर भट्ट (सागर लहरें और मनुष्य, लोक परलोक आदि); देवेन्द्र सत्यार्थी शैलेश भटियानी, वीरेन्द्रनारायण, कैलाश कात्यायन आदि ने भी आँचलिक उपन्यास लिखे हैं।

उपर्युक्त विवेचन के प्रकाश के संक्षेप में कहा जा सकता है कि हिन्दी का उपन्यास साहित्य पर्याप्त समृद्ध है। उसमें अनेक प्रकार की रचना हुई है तथा अब भी होती ही जा रही है।

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Anjali Yadav

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