हिन्दी पत्रकारिता : साहित्यिक और सांस्कृतिक योगदान
पत्र-पत्रिकायें प्रजातंत्र पद्धति की सुव्यवस्था के लिए चतुर्थ मुख्य आधार स्तम्भ हैं। किसी भी विषय में जनमत तैयार करने में पत्र-पत्रिकायें अमोघ अस्त्र का कार्य करती है। इसीलिए लेखनी को तलवार से बलवत्तर माना गया है। अन्याय, अत्याचार, शोषण, अमानवीय व्यवहार तथा अन्य किसी भी प्रकार की ज्यादती का हटकर प्रतिरोध करने के लिए समाचार पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से अवाज बुलन्द की जा सकती है। ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने पैर जमाने तथा अंग्रेजी प्रभुत्व के विस्तार हेतु बंगाल प्रान्त के कलकत्ता महानगर को अपना केन्द्र स्थल बनाया। अतः अंग्रेजी प्रभुता का असर बंगाल और उसकी राजधानी कलकत्ता में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में द्रुत गति से पड़ा। अंग्रेजों के आगमन के उपरान्त क्रमशः औद्योगीकरण, मशीनीकरण, व्यापार, शिक्षणालयों की स्थापना, प्रेस मुद्रण व टंकन आदि के कार्य उनकी इच्छा के अनुरूप स्थापित किये जाने लगे। इन सब गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र कलकता ही बना रहा। दिल्ली को भारत की राजधानी बनाने से पूर्व कलकत्ता ही सारे भारत की राजधानी थी। अतः अंग्रेजी साहित्य तथा अंग्रेजी शासन व्यवस्था का प्रभाव सर्वप्रथम कलकत्ता व बंगाल प्रान्त पर पड़ा। वह प्रभाव बंग प्रान्त के संपर्क तथा बंगला साहित्य के माध्यम से हिन्दी भाषी प्रान्तों व साहित्य पर पड़ा। ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन व उसके छद्यात्मक शोषण की जागृति आने लग गई थी। जागरण की यह प्रक्रिया भावेन्दु जी के उदय से भी पहले आरंभ हो चुकी थी, जिसकी अभिव्यक्ति 1826 से 1867 ई० के काल के बीच की अवधि में अनेक प्रकार की साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक व दैनिक पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन से हुई। इस काल में पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन का मुख्य केन्द्र कलकत्ता था। अकेले कलकत्ता से छ: पत्र-पत्रिकाएँ- उदंड मार्तंड, बंगदूत, प्रजामित्र मार्तंड तथा समाचार सुधा वर्पण आदि प्रकाशित होती थीं। समाचार सुधा वर्षण दैनिक पत्र था शेष सभी साप्ताहिक पत्र थे जो दो-दो तीन-तीन भाषाओं में छपा करते थे। ‘बनारस अखबार’ और ‘सुधाकर’ ये दो साप्ताहिक काशी से निकलते थे। ‘बुद्धि प्रकाश’ तथा ‘प्रजाहितैषी’ आगरा से प्रकाशित होते थे। ‘मालवा’ साप्ताहिक मालवा से तथा तत्वबोधिनी पत्रिका (साप्ताहिक) बरेली से छपती थी। ज्ञान प्रदायिनी पत्रिका, लाहौर तथा वृत्तान्त जम्मू से प्रकाशित होते थे। ये दोनों मासिक पत्र थे।
उक्त पत्रिकाओं का उद्देश्य जनता में सुधार व जागरण की भावनाओं को उत्पन्न कर अन्याय का विरोध करना था। इनमें प्रयुक्त हिन्दी टूटी-फूटी व अनगढ़ होती थी।
भारतेन्दु का हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में अन्यतम स्थान है। न ही केवल भारतेन्दु बल्कि उसके मंडल के समस्त कवि तत्कालीन किसी न किसी पत्र-पत्रिका से संबद्ध थे। अतः इन सबका पत्रकारिता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान है। भारतेन्दु जी ने कविवचन सुधा नामक साहित्यिक पत्रिका का 1868 ई० में प्रवर्तन किया और अपने जीवन के अवसान तक उसके प्रकाशन व संचालन से सक्रिय रूप से जुड़े रहे। भारतेन्दु काल के साहित्यकार कवि की अपेक्षा समाज सुधारक, प्रचारक और पत्रकार अधिक थे। परिणामतः इन्होंने अपने अपने पत्र-पत्रिकाओं में हिन्दू समाज में प्रचलित कुरीतियों, धर्म के मिथ्या आडंबरों, छल-कपट, अमीरों की स्वार्थपरता, पाश्चात्य सभ्यता के अन्धानुकर्ता, शिक्षित वर्ग की कटु आलोचना पुलिस व अन्य कर्मचारियों की लूट खसोट, उर्दू के प्रति सरकार के पक्षपात देश की अनेक क्षेत्रों में दुर्दशा, अकाल महामारी के प्रकोप, अंग्रेजी शासन के शोषण आदि नवीन विषयों का समावेश किया। समाज में राष्ट्रीय चेतना के जागरण, उसें समसामयिक ज्वलन्त प्रश्नों व समस्याओं के प्रति जागरूकता लाने तथा सामाजिक एवं धार्मिक सुधारों को गतिमान करने के लिए ऐसा करना उनके लिए स्वाभाविक था । इस काल के पत्र-पत्रिकाओं ने हिन्दी भाषा के रूप सुधार के क्षेत्र में बहुमूल्य योग दिया। भारतेन्दु के जन्म स्थान अकेले बनारस नगर से छः पत्रिकायें- ‘कविवचन सुधा’ ‘चरणादिचंद्रिका’ ‘हरिश्चन्द्र मैग्जीन’ बालबोधिनी तथा आर्य मित्र व काशी समाचार प्रकाशित होती थीं। इनमें अन्तिम तीन मासिक थीं। चरणादिचन्द्रिका साप्ताहिक थी। कविवचन सुधा पहले मासिक थी किन्तु बाद में पाक्षिक और इसके बाद साप्ताहिक रूप से प्रकाशित हुई। कलकत्ता से तीन समाचार पत्रों- ‘सुलभ समाचार’ ‘उक्तिवक्ता’ तथा ‘सार सुधानिधि’ का प्रकाशन हुआ। ये सभी पत्र साप्ताहिक थे। आगरा से साप्ताहिक ‘जगत समाचार’ छपा। बांकीपुर से मासिक ‘बिहार बन्धु’ एवं क्षत्रिय पत्रिकाओं का प्रकाशन हुआ। फर्रुखाबाद से ‘भारत सुदशा प्रवर्तक’ साप्ताहिक पत्रिका निकली। कानपुर से मासिक ‘ब्राह्मण’ तथा दैनिक ‘भारतोदय समाचारपत्र निकलते थे। इसी प्रकार कालाकांकर से दैनिक समाचार पत्र ‘हिन्दोस्तान’ निकला। मिर्जापुर से मासिक ‘आनन्द कादंबिनी’ वृन्दावन से ‘भारतेन्दु’, मेरठ से मासिक देव नागर प्रचारक’ लाहौर से मासिक ‘इन्दु’ तथा ‘कान्याकुब्ज प्रकाश’ (मासिक) पत्र निकलते थे। उक्त नामावली से स्पष्ट है कि उस समय जाति, वर्ग या संप्रदाय विशेष के सुधार व उद्धार के लिए पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित होती थीं।
हम पहले चर्चा कर चुके हैं कि लगभग उन्नीसवीं शती के अन्त तक की भारतीय संस्कृति सामाजिक, राजनीतिक व राष्ट्रीय चेतना के जागरण का केन्द्र कलकत्ता बना रहा, फलतः पत्रकारिता का केन्द्र भी मुख्यतः कलकत्ता था। बीसवीं शती के आरंभ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में बाल गंगाधर तिलक का प्रभाव बढ़ने लगा। उन्होंने मराठी व हिन्दी में ‘केसरी’ पत्रिका का प्रकाशन किया। गणेशशंकर विद्यार्थी तिलक जी के राजनीतिक विचारधारा के प्रबल समर्थक थे। उस समय हिन्दी प्रदेश की राजनीतिक हिन्दी पत्रों को विद्यार्थी ने बहुत प्रभावित किया। कलकत्ता से निकलने वाले पत्र- ‘भारत-मित्र’, ‘मारवाड़ी बन्धु’ तथा ‘नृसिंह’ भी तिलक की विचारधारा के समर्थक थे। 1900 से 1918 तक के द्विवेदी काल में राजनीतिक तथा साहित्यिक दो प्रकार की (पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन हुआ। आलोच्य काल में कलकत्ता से दो दैनिक पत्र- कलकत्ता समाचार तथा विश्वामित्र तथा दो साप्ताहिक पत्र ‘हित वाणी’ एवं ‘नृसिंह’ प्रयाग से दो साप्ताहिक ‘अभ्युदय’ (संपादक मदन मोहन मालवीय) तथा कर्मयोगी और कृष्णकान्त मालवीय के संपादन में मासिद ‘मर्यादा’ गणेशशंकर विद्यार्थी के संपादन में मासिक पत्र प्रताप कानपुर से तथा खंडवा से प्रभा नामक मासिक पत्रिका प्रकाशित हुई। पहले यह पत्रिका साहित्यिक थीं बाद में राजनीतिक हो गई।
हिन्दी भाषा और साहित्य के इतिहास में एक ऐतिहासिक घटना घटी 11900 में इलाहाबाद से मासिक पत्रिका सरस्वती का प्रारंभ हुआ। पहले इसका संपादन काशी से होता था। 1903 में महावीर प्रसाद द्विवेदी इसके संपादक नियुक्त हुए। देवकीनन्दन खत्री एवं माधव प्रसाद मिश्र के सहसंपादन में बनारस से मासिक पत्रिका सुदर्शन का प्रकाशन हुआ। जयपुर से चन्द्रधर शर्मा के संपादन में मासिक पत्रिका समालोचक निकली। कलकत्ता से मासिक ‘देवनागर’ काशी से मासिक इन्दु, शाहाबाद से ईश्वरी प्रसाद शर्मा के संपदन में ‘मनोरंजन’ का प्रकाशन हुआ। यद्यपि प्रधानतः ये सांस्कृतिक व साहित्यिक पत्रिकायें थीं किन्तु समय समय पर इनमें राजनीतिक टिप्पणियाँ भी प्रकाशित होती रहती थीं। देवनागर तथा सरस्वती पत्रिकाओं में सभी विषयों के लेख प्रकाशित हुआ करते थे। गांधी जी के बढ़ते हुए प्रभाव से इस काल की पत्रिकायें भी असंपृक्त न रहीं। उक्त साहित्यिक पत्रिकाओं ने हिन्दी भाषा के परिष्कार तथा गद्य की नाना शैलियों और विधाओं के विकास में अमोघ योग दिया।
इस दिशा में सरस्वती विशेष उल्लेखनीय है। महावीर प्रसाद द्विवेदी तथा सरस्वती दोनों अपने आप में संस्थायें थीं। द्विवेदीजी की मौलिक रचनाओं का भले ही ज्यादा साहित्यिक महत्व न हो किन्तु वास्तव में एक सफल अनुवादक व पत्रकार थे। वे एक महान शक्ति के प्रतीक थे जिन्होंने साहित्य की प्रत्येक विधा को अद्भुत बल प्रदान कर उसे प्रभावित किया। उन्होंने सरस्वती के द्वारा अनेक नये कवि व लेखक पैदा किये तथा साहित्य के कविता क्षेत्र में निरन्तर प्रयुज्यमान बजभाषा को अपदस्थ कर हिन्दी के गद्य व पद्य दोनों क्षेत्रों में अक्षुण्ण रूप से खड़ी बोली को प्रतिष्ठित किया। उन्होंने सरस्वती द्वारा हिन्दी गद्य शैली व भाषा का प्रशंसनीय संस्कार किया। उन्होंने उक्त पत्रिका के माध्यम से हिन्दी भाषा की अस्थिरिता को दूर कर उसे शुद्ध व्याकरण सम्मत् रूप प्रदान किया। पैराग्राफ पद्धति व विभक्ति प्रयोग के समुचित प्रचार का श्रेय निश्चित रूप से उन्हीं को है। द्विवेदीजी ने सरस्वती के द्वारा, हिन्दी भाषा के संस्कार का जो व्यापक आन्दोलन चलाया था उसमें कामता प्रसाद गुरु, चन्द्रधर शर्मा गुलेरी तथा गौरी शंकर मिश्र ने सक्रिय सहयोग दिया। निःसंदेह सरस्वती के द्वारा भाषा और साहित्य दोनों क्षेत्रों में नये युग के निर्माण के साथ हिन्दी भाषा के आदर्श रूप की प्रतिष्ठा हुई। रामेश्वरी नेहरू द्वारा संपादित ‘स्त्री दर्पण’ प्रयाग से प्रकाशित होता था। जिसमें स्त्रियों से संबद्ध समस्याओं के लेखों के अतिरिक्त महिला लेखिकाओं की रचनाओं को प्रकाशन में प्राथमिकता मिलती थी।
हिन्दी पत्रकारिता के संदर्भ में हम पुनर्जागरण (भारतेन्दु ) तथा पूर्वस्वच्छन्दता (द्विवेदी) कालों की चर्चा कर चुके हैं। स्वच्छन्दतावादी काल में इस क्षेत्र में उत्तरोत्तर परिपक्वता आई। इस काल में ‘सरस्वती’ ‘मर्यादा’ तथा ‘स्त्री दर्पण’ का प्रकाशन निज निज लक्ष्यों की पूर्ति के लिए पूर्ववत् होता रहा। आलोच्य काल में मासिक पत्रिकाओं- ‘चांद’ ‘प्रभा’ ‘माधुरी’ ‘विशाल ‘भारत’ ‘सुधा’ ‘कल्याण’ ‘हंस’ ‘आदर्श’ ‘भौजी’ ‘समन्वय’ ‘सरोज’ तथा ‘साहित्य सन्देश’ आदि का प्रकाशन हुआ। इन पत्रिकाओं में चांद, प्रभा, सुधा, विशाल भारत तथा हंस का काव्य की छायावादी प्रवृत्ति से कोई तालमेल नहीं था। केवल ‘माधुरी’ द्वारा ही छायावाद को समर्थन मिला। मर्यादा में साहित्य, समाजशास्त्र, राजनीति विषयक विद्वतापूर्ण लेखों के साथ कहानियां तथा उपन्यास भी धारावाहिक रूपों में निकलते रहते थे। इस पत्र के सर्वप्रथम संपादक कृष्ण कान्त मालवीय थे। बाद में डॉ॰ सम्पूर्णानन्द ने संपादन किया। कुछ देर के लिए इस पत्रिका को मुंशी प्रेमचन्द का भी सहयोग मिला। ‘चांद’ का प्रकाशन प्रयोग से हुआ। इसकी सामग्री के चयन व प्रकाशन में ‘स्त्री दर्पण’ जैसी नीति को अपनाया गया। बालकृष्ण शर्मा नवीन के संपादन में कानपुर से ‘प्रभा’ प्रकाशित हुई। इस पत्रिका में साहित्य की सभी विधायें छपती थीं। ‘प्रभा’ में ही एक हलचल मचा देने वाला ऐतिहासिक लेख ‘भावों की भिड़न्त’ निकला था, जिसमें निराला की कविताओं को रवीन्द्रनाथ की कविताओं की नकल कहा गया था। माधुरी का प्रकाशन लखनऊ से हुआ। इसके संपादक थे दुलारेलाल भार्गव तथा कृष्णबिहारी मिश्र । कुछ समय के लिए इस पत्रिका को शिवपूजन सहाय तथा प्रेमचन्द का भी सहयोग मिला। इस पत्रिका से छायावाद को समर्थन मिला। छायावाद पर सबसे पहले आक्रमण करने वाली पत्रिका ‘सुधा’ का प्रकाशन लखनऊ से हुआ। बाद में निराला के संपादन काल में इसका साहित्यिक स्वरूप सर्वथा बदल गया। इस पत्रिका ने तीन कार्यों- राष्ट्रीय आन्दोलन के समर्थन, हिन्दी साहित्य के सर्वतोमुखी विकास तथा अंग्रेजी के स्थान पर भारतीय भाषाओं के प्रयोग पर अत्यधिक बल दिया। कल्याण का गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशन हुआ। इसमें भक्तिज्ञान, वैराग्य, धर्म, दर्शन, संस्कृति तथा सदाचार आदि नैतिक विषयों पर अब तक पांडित्यपूर्ण लेखों का प्रकाशन हो रहा है। कल्याण का हर साल वार्षिक विशेषांक धार्मिक साहित्य में विशेष महत्वपूर्ण हुआ करता है। ‘विशाल भारत’ का बनारसीदास चतुर्वेदी के संपादन में कलकत्ता से प्रकाशन हुआ। चतुर्वेदी के वर्चस्वी एवं जागरूक व्यक्तित्व के गुण उनकी पत्रिका में भी पूर्णतः संक्रान्त हुए। उसमें उच्च कोटि की साहित्यिक रचनायें प्रकाशित हुआ करती थीं। विशाल भारत का दृष्टिकोण निराला और छायावाद के प्रति सर्वदा अनुदार रहा। चतुर्वेदी जी ने पांडेय बेचन शर्मा उम्र के साहित्य को ‘घासलेटी’ साहित्य की संज्ञा देकर साहित्य क्षेत्र में एक भारी आन्दोलन को खड़ा किया था। बाद में विशाल भारत के संपादक अज्ञेय जी भी रहे। प्रेमचन्द के संपादन में ‘हंस’ का प्रकाशन बनारस से हुआ। यह तत्कालीन कथा साहित्य की गतिविधियों का परिचायक एकमात्र पत्र था। इसके अतिरिक्त इसमें उच्च कोटि की कवितायें, आलोचनायें, निबंध और एकांकी भी प्रकाशित होते थे। प्रेमचन्द के निधन के बाद, शिवदान सिंह चौहान तथा अमृतराय आदि ने इसका संपादन किया। बाबू गुलाबराय के संपादन में आगरा से साहित्य का आलोचनात्मक पत्र ‘साहित्य संदेश’ निकला। इसने हिन्दी जगत के लिए एक अच्छी समीक्षात्मक भूमि तैयार कर दी। शिवपूजन सहाय के संपादन में प्रकाशित होने वाले मासिक पत्रों ‘आदर्श’ और ‘भौजी’ में हिन्दू-मुस्लिम एकता की समस्या, राष्ट्रीय भावना, नारी समस्या तथा निराला जी की कवितायें छपा करती थीं। ‘सरोज’ का प्रकाशन कलकत्ता से हुआ। यह एक साहित्यिक पत्र था। ‘समन्वय’ रामकृष्ण मिशन द्वारा कलकत्ता से प्रकाशित किया गया। इसमें धर्म, अध्यात्म व समाज आदि विषयों पर लेख निकलते थे। बाद में कुछ देर के लिए निराला जी ने भी उक्त पत्र का संपादन किया।
इस दौरान में तीन साप्ताहिक साहित्यिक पत्र- ‘मतवाला’, ‘जागरण’ तथा भारत विशेष उल्लेखनीय हैं। ‘मतवाला’ का प्रकाशन कलकत्ता से हुआ। इसके संपादक मंडल में शिवपूजन सहाय तथा निराला थे। यह हिन्दी का सर्वप्रथम हास्य व्यंग्य प्रधान पत्र था। इसमें साहित्यिक लेखों के साथ-साथ राजनीति एवं सामाजिक विषयों पर भी लेखों का प्रकाशन होता था। यह पत्र ब्रिटिश सरकार की नीतियों का कटु आलोचक था। ‘जागरण’ शिवपूजन सहाय के ही संपादन में बनारस से प्रकाशित हुआ। यह छायावादी काव्य का घोर पक्षधर था और इसमें पर्याप्त संख्या में छायावादी रचनायें छपा करती थीं। 1932 में इसे प्रेमचन्द्र जी का सहयोग मिला किन्तु दुर्भाग्यवश 1934 में यह अस्त हो गया। अर्धसाप्ताहिक ‘भारत’ नन्ददुलारे वाजपेयी के संपादन में इलाहाबाद से प्रकाशित हुआ। वाजपेयी छायावाद के कट्टर समर्थक थे अतः ये छायावाद, के विरोधी लोगों के आरोपों का अत्यन्त कड़ाई से उत्तर दिया करते थे। इस पत्र में प्रसाद, निराला व पन्त की छायावादी रचनायें प्रकाशित हुआ करती थीं।
साप्ताहिक राजनीतिक पत्रों में उल्लेख्य हैं- हिन्दी नवजीवन’ ‘कर्मवीर’ ‘देश’ ‘सेनापति’ हिन्दूपंच तथा ‘श्रीकृष्ण संदेश’ । हिन्दी नवजीवन गांधीजी के संपादन में अहमदाबाद से निकलता था। यह तत्कालीन समाज एवं राजनीति की वाणी था। पटना से डॉ० राजेन्द्र प्रसाद के संपादन में राजनीतिक पत्र ‘देश’ का प्रकाशन होता था। श्री माखनलाल चतुर्वेदी तथा माधव सप्रे के संरक्षण में जबलपुर से ‘कर्मवीर’ का प्रकाशन हुआ। इसमें राजनीतिक और साहित्यक रचनायें प्रकाशित होती थीं। ‘श्री कृष्ण संदेश’ एक अत्यन्त प्रसिद्ध व लोकप्रिय पत्र था । इसका प्रकाशन कलकत्ता से हुआ करता था। इसमें राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक साहित्यिक व वैज्ञानिक आदि विषयों की रचनायें प्रकाशित होती थी। ‘सेनापति’ का प्रकाशन भी कलकत्ता से हुआ। इसमें प्रकाशित रचनायें राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत होती थीं। हिन्दू पचं’ में हिन्दी प्रचार, सामज सुधार, अछूतोद्धार एवं व्यंग्य विनोदपूर्ण रचनायें प्रकाशित होती थीं।
दैनिक समाचार पत्र परंपरा में द्विवेदी के समय में प्रवर्तित ‘भारत-मित्र’ विशेष उल्लेखनीय है। यह हिन्दी का पहला संगठित व नियमित पत्र है जिसका प्रकाशन 1935 तक हुआ। इससे पूर्व हिन्दी के दैनिक पत्र नगण्य से थे और अंग्रेजी भाषा में छपने वाले दैनिक समाचार पत्रों के सम्मुख बिल्कुल साधारण से थे। 1916 में दैनिक समाचार पत्र ‘विश्वामित्र’ का प्रकाशन हुआ। इसमें मौलिक व ताजे दैनिक समाचारों के अतिरिक्त समसामयिक समस्यायें भी प्रकाशित हुआ करती थीं। हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ दैनिक समाचार पत्र ‘आज’ 1920 ई० में बनारस से प्रकाशित हुआ। इसे श्रीयुत श्री प्रकाश, बाबूराव विष्णुराव पराड़कर तथा कमलापति त्रिपाठी जैसे विद्धानों व कर्मठ व्यक्तियों का सक्रिय सहयोग मिला। इस पत्र ने स्वतन्त्रता संग्राम के लिए जनमत तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके साथ-साथ इसमें साहित्यिक गतिविधियों को भी सम्यक अभिव्यक्ति मिली। दैनिक ‘कलकत्ता समाचार पत्र’ की चर्चा हम पहले कर चुके हैं। दैनिक समाचार पत्र ‘स्वतंन्त्र’ अंबिका प्रसाद बाजपेयी के संपादन में 1920 में कलकत्ता से प्रकाशित हुआ। यह पत्र गांधीजी के असहयोग आंदोलन के समर्थन में अग्रणी रहा। यह 1930 में बन्द हो गया।
स्वच्छन्दतावाद या छायावादोत्तर काल में उपलब्ध पत्र-पत्रिकाओं को उनके विगत ऐतिहासिक नैरन्तर्य के परिप्रेक्ष्य में देखना समुचित रहेगा। कतिपय पत्र पत्रिकाएं छायावाद काल की समाप्ति से पूर्व प्रकाशित होनी आरंभ हो गयी थीं और आलोच्य काल में भी वे अबाध रुप से निकलती रहीं। बनारस से प्रकाशित दैनिक ‘आज’ बाबूराव विष्णुराव पराड़कर के संपादन में निकलनी आरंभ हुई थी। इस पत्रिका ने स्वतंत्रता के राष्ट्रीय आंदोलन व समाज सुधार के कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा पत्रकारिता के क्षेत्र में उच्च कीर्तिमान स्थापित किये। दिल्ली से आज तक उग्र राष्ट्रवादी पत्र दैनिक ‘वीर अर्जुन’ नो यशस्वी पत्रकार इन्द्र विद्या वाचस्पति के संमादन में निकला था, आज तक राष्ट्र व समाज की सेवा में संरत है। इन्द्र विद्या वाचस्पति के अतिरिक्त इसे अन्य अनेक विद्वान कर्मठ पत्रकारों का संपर्क समय-समय पर प्राप्त हो रहा। आगरा से कृष्णदत्त पालीवाल के संपादन में प्रकाशित हुआ दैनिक ‘सैनिक’ उतार-चढ़ावों की अनेक मंजिलों को पार करता हुआ आज भी अविछिन्न रूप से निकल रहा है। पंजाब से सुदर्शन के संपादन में दैनिक ‘हिन्दी मिलाप’ माधव के संपादन में ‘विश्वबन्धु’ और श्रीसेंगर के संपादन में ‘शक्ति’ नामक पत्र प्रकाशित हुए। जहाँ एक ओर इन पत्रों के संपादकों ने पत्रकारिता के क्षेत्र में नये आयाम तलाशे वहाँ दूसरी ओर पंजाब में बढ़ते हुए उर्दू के प्रभाव को संतुलित रखने में भी सफल रहे। दिल्ली से प्रकाशित दैनिक ‘हिन्दूस्तान’ पर्याप्त लोकप्रिय है। राष्ट्रीय भावनाओं के जागरण में उक्त पत्र का महत्वपूर्ण योगदान है। पटना से बहुत पहले आर्यावर्त का प्रकाशन हुआ था और आज भी यह पत्र पत्रकारिता के क्षेत्र में विशिष्ट स्थान को बनाये हुए है। नरेश मेहता के संपादन में इन्दौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र ‘चौथा संसार’ है।
विगत युगों के साप्ताहिक पत्र आज भी जन जागरण के महत्वपूर्ण कार्य को संपन्न कर रहे हैं। साप्ताहिक ‘कर्मवीर’ का प्रकाशन जबलपुर से माखनलाल चतुर्वेदी तथा माधव राव सप्रे के संरक्षण में हुआ था। इन दोनों अतीव प्रभावशाली व्यक्तियों के संपर्क से उक्त पत्र एक अद्भुत प्रेरणा व शक्ति का पुंज बन गया था और आज भी यह जन जागृति के पुनीत कार्य में तत्परता पूर्वक संलग्न है। बाद में यह पत्र नागपुर से निकलना आरंभ हो गया था।
विगत काल की मासिक पत्रिकाओं में ‘सरस्वती’ ‘वीणा’ तथा ‘विशाल भारत’ के नाम चिरस्मरणीय हैं। सरस्वती पत्रिका और उसके संपादक महावीर प्रसाद द्विवेदी अपने आप में स्वतंत्र संस्थायें थे। वास्तव में हिन्दी भाषा और साहित्य का विकास इन दोनों से अभिन्न रूप से अनुबद्ध है। इन्दौर से प्रकाशित ‘वीणा’ ने साहित्यिक वातावरण के निर्माण में स्तुत्य योग दिया है। इसे एक सुखद संयोग ही समझिये कि इस पत्रिका को आरम्भ में शान्तिप्रिय द्विवेदी जैसे उच्च प्रतिभासम्पन्न यशस्वी साहित्यकार का प्रेरक संपर्क प्राप्त हुआ। कलकत्ता से प्रकाशित विशाल ‘भारत’ का साहित्यिक व ऐतिहासिक महत्व है। इस पत्र ने काफी समय तक साहित्यिक गतिविधियों को नियंत्रित व संचालित किया। लब्ध-प्रतिष्ठ साहित्यकारों व पत्रकारों-बनारसीदास चतुर्वेदी, अज्ञेय और श्री सेंगर के प्रगतिशील संपादन का गौरव इसे प्राप्त हुआ। अन्ततः 1960 में यह अस्त हो गया। इसे छोड़कर अज्ञेय ने ‘प्रतीक’ का और श्रीसेंगर ने ‘नया समाज’ का संपादन किया। कुछ वर्षों के अनन्तर उक्त दोनों पत्र बन्द हो गये । ‘माधुरी’ और त्रिपथा’ ने कहानी साहित्य की श्रीवृद्धि में महत्वपूर्ण योग दिया किन्तु कुछ काल के बाद ये दोनों काल-कवलित हो गई।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं की बाढ़ सी आ गई। हिन्दी के राष्ट्रभाषा घोषित होने के साथ हिन्दी पत्रकारिता के उज्जवल भविष्य की आशा बंधी। परिणामतः अंग्रेजी के दैनिक समाचारों ने हिन्दी के दैनिक संस्करण निकाले। पटना ‘इंडियन नेशन’ पहले से ही दैनिक ‘आर्यावर्त’ निकाल चुका था। दिल्ली से ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ ने दैनिक हिन्दुस्तान टाइम्स आफ इंडिया ने नवयुग (बाद में) उसे नवभारत टाइम्स, इंडियन एक्सप्रेस ने जनसत्ता ट्रिब्यून ने दैनिक हिन्दी ट्रिब्यून तथा इलाहाबाद से ‘अमृत पत्रिका’ ‘अमृत प्रभात’ आदि। दुर्भाग्यवश इन दैनिक हिन्दी संस्करणात्मक पत्रिकाओं ने न तो स्वतंत्र अभिकरण स्थापित किये और न ही मौलिक समाचार देने का प्रयास किया। ये पत्र मात्र अपने पुराने संगठनों पैर निर्भर रहे और केवल संगठन के सुप्रतिष्ठित अंग्रेजी संस्करणों के अधकचरे अनुवाद प्रस्तुत करने में संलग्न हैं। आज प्रायः पत्र-पत्रिकायें पत्रकारिता के महनीय आदर्श से दूर चली गई हैं। इसका मुख्य कारण है- औद्योगीकरण, पूँजीवाद एवं स्वार्थ निष्ठा । आज कोई भी समाचार पत्र अच्छी सामाग्री देने के बावजूद भी अच्छे संपर्कों और विज्ञापनों के बिना अपने अस्तित्व को बरकरार रखने में सफल नहीं हो सकता है। आजकल दैनिक हिन्दी हिन्दुस्तान का संपादन, विश्वामित्र उपाध्याय, नवभारत टाइम्स का राजेन्द्र माथुर, स्वतंत्र भारत का श्री अशोक, जागरण का श्री पूरन चन्द्र नरेन्द्र मोहन, नवजीवन का कृष्ण कुमार तथा जनसत्ता का प्रभात जोशी कर रहे हैं। नई दुनिया (इन्दौर) अमर किरण (दुर्ग) ‘आज’ विश्वामित्र’ ‘सन्मार्ग’ तथा पंजाब केसरी (जालधर, दिल्ली) उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त हिन्दी भाषी प्रान्तों की राजधानियों से प्रान्तों के विभिन्न दैनिक हिन्दी समाचार पत्र प्रकाशित हो रहे हैं।
हिन्दी के साप्ताहिक पत्रों में ‘धर्मयुग’ ‘हिन्दुस्तान’ ‘दिनमान’ तथा ‘रविवार’ विशेष उल्लेखनीय हैं। धर्मयुग के सर्वप्रथम संपादक डॉ॰ धर्मवीर भारती थे। उन्होनें इसे जन सामान्य तथा प्रबुद्धवर्ग की अपेक्षाओं को पूरा करने वाला विशेष लोकप्रिय पत्र बनाया। आजकल बम्बई से गणेश मंत्री इसका संपादन कर रहे हैं। साप्ताहिक ‘हिन्दुस्तान’ का संपादन श्रीमती मृणाल पांडेय दिल्ली से कर रही हैं। अब यह पत्रिका भी प्रतिदिन काफी लोकप्रियता की ओर अग्रसर हो रही है। उदयन शर्मा के संपादन में ‘रविवार’ तथा घनश्याम पंकज के संपादन में दिनमान, आकर्षक ढंग से समाचारों की माँग को पूरा कर रहे हैं। इसके अतिरिकत हिन्दी का साप्ताहिक व्यंग्य पत्र हिन्दी शंकर्स वीकली था। ‘इंडिया टुडे’ ‘माया’ तथा ‘वामा’ हिन्दी के पाक्षिक पत्र हैं। ‘वामा’ विमला पाटिल के संपादन में निकलने वाला महिलोपयोगी पाक्षिक पत्र हैं। मासिक पत्रिकाओं में ‘कल्पना’ ‘अजन्ता’ ‘पराग’ ‘नन्दन’ ‘स्पुतनिक’ ‘माध्यम’ ‘यूनेस्को दूत’ ‘नवनीत’ (डाइजेस्ट) ज्ञानोदय तथ कादंबिनी विशेष उल्लेखनीय हैं। कल्पना और अजन्ता दोनों अच्छी पत्रिकायें हैं। इनमें अजन्ता तो अस्त हो चुकी है किन्तु कल्पना अब भी येन-केन रूपेण जीवित हैं। पराग और नन्दन दोनों बाल साहित्य से संबद्ध हैं। पराग डॉ० हरिकृष्ण देवसरे तथा नंन्दन जयप्रकाश भारती के संपादन में बालोपयोगी मनोरंजक सामग्री प्रस्तुत कर रही हैं। स्पुतनिक अंतर्राष्ट्रीय मासिक लोकप्रिय पत्र है। माध्यम एक अच्छी पत्रिका थी किन्तु अब वह बन्द हो चुकी है। नाना विषयों की व्यापक एवं ठोस सामग्री उपस्थित करने वाली पत्रिकाओं में नवनीत सर्वश्रेष्ठ है। ज्ञानोदय बहुत अच्छी पत्रिका थी किन्तु अब इसका प्रकाशन बन्द हो चुका है। कादंबनी का प्रकाशन दिल्ली से होता है। यह अपने ढंग की पर्याप्त स्वस्थ व उपयोगी सामग्री प्रस्तुत करती है। सरकार की ओर से प्रकाशित पत्रों में ‘आजकल’ गत कई वर्षों से अपने स्तर को कायम रखने में प्रयासशील है। राज्य सरकारों की ओर से भी अनेक अच्छी व उपयोगी पत्रिकाओं के निकलने की व्यवस्था है। उदाहरण के लिए ‘योजना’ ‘जन साहित्य’ तथा पंजाब सरकार की ओर से ‘सप्त-सिन्धु’ आदि ।
साहित्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा कहानी अधिक लोकप्रिय हैं। कहानी की इस लोकप्रियता का लाभ प्रकाशित कहानी पत्रिकायें अर्जित करती हैं। अवधनारायण मुद्गल के संपादन में ‘सारिका’ श्रीपतराय के संपादन में ‘कहानी’ तथा अन्य कहानी पत्रिकायें ‘संचेतना’ ‘निहारिका’ आदि सफलतापूर्वक चल रही हैं। ‘वीणा’ ‘प्रगतिशील समाज’ ‘रंगपर्व लहर’ ‘युगदाह’ ‘कुरुशंख तथा ‘लघु आघात’ आदि दैनिक साप्ताहिक व मासिक पत्रिकायें लघुकथा के विकास में विशिष्ट भूमिका निभा रही है। आलोचनात्मक मासिक पत्रिकाओं के रूप में आगरा से निकलने वाले ‘साहित्य सन्देश’ ‘सरस्वती संवाद’ ‘आलोचना’ तथा पटना से प्रकाशित ‘समीक्षा’ का उल्लेख किया जा सकता है। समीक्षा में हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेष्ठ रचनाओं की बिना किसी पूर्वाग्रह एवं पक्षपात के समीक्षा प्रस्तुत कर हिन्दी साहित्य के सही व स्वस्थ विकास की दिशा में अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य संपन्न किया जा रहा है। राजेन्द्र यादव के संपादन में हंस तथा कमलेश्वर के संपादन में ‘गंगा’ मिश्रित प्रकृति की समीक्षात्मक मासिक पत्रिकायें हैं।
त्रैमासिक पत्रिकाओं में हिन्दी संसदीय हिन्दी परिषद का पत्र ‘देवनागर’ बहुभाषिता के माध्यम से भारत की भाषाओं और उनके साहित्यों के समन्वयात्मकता की दिशा में अतीव प्रशसनीय कार्य कर रहा था। किन्तु आर्थिक संकट के कारण बन्द हो गया। अब इसकी कमी को केन्द्रीय निदेशालय की पत्रिकायें-‘भाषा’ और ‘अनुवाद’ कुछ अंशों तक पूरा कर रही हैं। इस दिशा में कुछ अन्य पत्रिकायें- ‘साक्षात्कार’ ‘पूर्वग्रह’ ‘दस्तावेज’ ‘इन्द्रप्रस्थ’ ‘उन्नयन’ ‘काव्य भाषा’ ‘संबोधन’ ‘जनाधार’ ‘पल प्रतिपल’ ‘गगनांचल’ परिभाषा तथा मधुरिमा अपने अपने ढंग से योगदान कर रही है। शोधात्मक पत्रिकाओं में ‘नागरी प्रचारिणी पत्रिका” (वाराणसी) ‘सम्मेलन पत्रिका’ (इलाहाबाद) हिन्दी अनुशीलन (प्रयाग) आलोचना (दिल्ली) हिन्दुस्तानी (इलाहाबाद) विशेष महत्वपूर्ण हैं। इनमें न जाने कितने अनुसंधित्सुओं की आवश्यकताओं की पूर्ति होती हैं। इसके अतिरिक्त भारत देश के विश्वविद्यालयों के हिन्दी विभागों द्वारा स्नातकोत्तर छात्रों में शोधात्मक प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करने के लिए वार्षिक शोध-पत्रिकाओं का प्रकाशन भी इस दिशा में उल्लेखनीय है।
यह एक सौभाग्य की बात हैं कि आजकल हिन्दी में विज्ञान संबंधी पत्रिकाओं का भी प्रकाशन होने लगा है। ‘वैज्ञानिक क्षेत्र में विज्ञान’ (प्रयाग) वैज्ञानिक (बम्बई) किसान भारती’ (कृषि विश्वविद्यालय, पन्त नगर) ‘खेती फल फूल’, ‘कृषिचयनिका’ (प्रधान संपादक राकेशदत्त शर्मा) ‘इंजीनियर पत्रिका’ (कलकत्ता) ‘विज्ञान प्रगति’ (दिल्ली) ‘विज्ञान डाइजेस्ट’, ‘आविष्कार’ (दिल्ली) विज्ञान परिषद् की ‘अनुसंधान पत्रिका (प्रयाग) विज्ञान भारती’, ‘पर्यावरण दर्शन’ (इलाहाबाद) आदि उल्लेखनीय रहे हैं।” शब्दावली आयोग से विज्ञान गरिमा सिन्धु’ तथा ‘आयुर्विज्ञान एवं परिवार नियोजन’ तथा ‘समाज कल्याण’ आदि एक हर्षद आयाम हैं। विधि के प्रसंग में उच्चतम न्यायालय पत्रिका का उल्लेख किया जा सकता है।
हिन्दी साहित्य और साहित्येतर पत्र-पत्रिकाओं के सर्वेक्षण से यह प्रतीत होता है कि भले ही गणनात्मक दृष्टि से इनकी संख्या सन्तोषजनक है किन्तु गुणात्मक दृष्टि से इस दिशा में कुछ कमियाँ और अभाव खलते हैं। व्यवसायिकता, स्वार्थनिष्ठा, उपभोक्तावादी संस्कृति, राजनीति एवं सिनेजगत् के अवांछनीय प्रभावों के कारण इसके सामने वे उच्च आर्दश नहीं जिनकी प्रतिष्ठा पराड़कर, बनारसीदास चतुर्वेदी तथा द्विवेदी जैसे यशस्वी साहित्यकार पत्रकारों ने की थी। दूसरे अंग्रेजी की मानसिकता जन्य बौद्धिक दासता मौलिक चिन्तन की कमी एवं योजनाबद्ध प्रकाशनाभाव के कारण स्तरीय दृष्टि से हिन्दी पत्रकारिता पाठक वर्ग की माँग की सम्यक पूर्ति नही करती। इस विषय में कदचित बाबूराव विष्णुराव पराड़कर की भविष्यवाणी चरितार्थ हुई दृष्टिगोचर होती है- “एक समय आयेगा जब हिन्दी पत्र रोटरी पर छपेंगे, संपादकों को ऊंची तनख्वाहें मिलेंगी, सब कुछ होगा किन्तु उसकी आत्मा मर जायेगी, संपादक संपादक न रहकर मालिक का नौकर होगा। “
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