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भीमसेन जोशी का जीवन परिचय (Bhimsen Joshi Biography in Hindi)
भीमसेन जोशी का जीवन परिचय- पंडित भीमसेन जोशी भारतीय शास्त्रीय संगीत के अद्वितीय व अग्रणी नाम माने जाते हैं। ये अपनी अनोखी गायकी के कारण संपूर्ण भारत में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। इन्होंने परंपरागत रागों के सम्मिश्रण से नए रागों की उत्पत्ति भी की है। इन्होंने देश-विदेश में अनेक संगीत सम्मेलन आयोजित किए हैं। संगीत के प्रति इनके अप्रतिम योगदान के लिए इन्हें देश-विदेश के अनेक सम्मान व पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं।
पंडित भीमसेन जोशी का जन्म 4 फरवरी, 1922 को गडग (कर्नाटक) में हुआ। एक रूढ़िवादी विद्यालय अध्यापक के पुत्र रूप में जन्म लेने के कुछ वर्षों पश्चात् ही इनमें संगीत के प्रति दीवानगी उत्पन्न हो गई। मासूम बालक भीमसेन ने जब ‘किराना घराना’ के संस्थापक माने जाने वाले अब्दुल करीम खान की एक रिकॉर्डिंग सुनी थी, तब ये बेहद प्रभावित हुए थे। फिर 10 वर्ष की उम्र में ही इन्होंने 1932 में योग्य गुरु की तलाश में घर त्याग दिया और दो वर्ष तक इसी तलाश में भटकते रहे। इस दौरान ये बीजापुर, पुणे और ग्वालियर भी गए और उस्ताद हाफिज अली खान के शिष्य भी रहे। ये उस्ताद अमजद अली खान (प्रसिद्ध सरोद वादक) के पिता थे। फिर ये कोलकाता और पंजाब होते हुए पुनः घर लौटे, तब ये अपने पिता द्वारा प्रेरित किए जाने पर स्वामी गंधर्व के पास अभ्यासार्थ गए।
1936 में इन्होंने स्वामी गंधर्व (पंडित रामभान कुंडगोलकर) के सान्निध्य में कड़ा अभ्यास किया। ये कुंडगोल में विख्यात खयाल गायक अब्दुल करीम खान के शिष्य भी रह चुके थे। इन्होंने इन्हें ख्याल राग की मूलभूत विशेषताएं बताईं। अभ्यास का यह दौर कुछ वर्षों तक चलता रहा और उसने इनकी जन्मजात प्रतिभा को निखारकर ‘रागों’ का उस्ताद बनने में पूरी मदद की। भीमसेन जोशी ख्याल राग में तो पूरी दक्षता से गाते ही हैं, ठुमरी और भजन गायकी पर भी इनका अभूतपूर्व नियंत्रण रहता है। इन्होंने कुछ ‘रागों’ को क्रमोन्नत किया है और कुछ को संयुक्त भी किया है। इन्होंने राग कलावती व राग रागेशरी को संयुक्त करके राग ‘कलाश्री’ बनाया और ललित तथा भटियार रागों की युति से ‘ललित भटियार’ राग की संस्तुति की। इन्होंने अन्य घरानों की विशिष्ट शैली को अपनाकर उनकी विशिष्टताओं को शाश्वत रखकर नई अनूठी शैली में प्रस्तुत किया।
इस प्रकार इन्होंने सुधार व क्रमोन्नयन का कार्य किया। नए राग में गाते हुए ये भजन, खयाल या कीर्ति को गाते हुए भी इनकी लय में, जो परिवर्तन किया जाता है, उसमें बेहद सहजता होती है। स्वरों के उतार-चढ़ाव पर इनका खासा नियंत्रण रहता है। इन्होंने अपनी प्रथम संगोष्ठी अपने गुरु गंधर्व के 60 वर्ष पूर्ण करने पर पुणे में जनवरी, 1946 में की थी। 1950 के आरंभिक दशक में इनकी आवाज का जादू संपूर्ण भारत में उस समय छा गया, जब इन्होंने भारत में व भारत के बाहर अनेक स्थानों पर संगीत गोष्ठियों का आयोजन किया।
संगीत की इस आश्चर्यजनक शख्सियत को कई प्रतिष्ठित सम्मान यथा पद्मश्री, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार व मैसूर संगीत नाटक अकादमी जैसे सम्मान प्रदान किए गए। इनके द्वारा प्रतिवर्ष पुणे में अपने गुरु की पुण्यतिथि पर उनकी स्मृति में संगीत मेले का आयोजन किया जाता रहा, जिसमें शास्त्रीय संगीतकारों की उपस्थिति रहा करती थी ।
इन्होंने दो बार शादी की। दूसरी बार इन्होंने अपनी शिष्या रही वलसलवाई से विवाह किया और इस शादी ने इनकी सफलता में महती भूमिका का निर्वहन किया। गायकी के अलावा इन्हें ऑटोमोबाइल्स का शौक भी था। इनके पास दर्जन से अधिक कारें थीं। इन्हें इंजन बैठाने का भी सुस्पष्ट ज्ञान था ।
लोकप्रियता के शिखर पर रहते हुए ही इन्होंने संगीत से अवकाश लेने का मानस बना लिया था। इन्होंने कई दशकों तक संगीत की अमिट सेवा की। संगीत का इनके जैसा पारखी शख्स शताब्दियों में ही पैदा होता है। इनका दिव्य संगीत सुनना भी ईश्वरीय कृपा का ही रूप होता था। इनका निधन 24 जनवरी, 2011 को हो गया, लेकिन शास्त्रीय संगीत के विश्व इतिहास में इनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व स्मरण किए जाते रहेंगे।
पुरस्कार
- 1972 – पद्म श्री
- 1976 – संगीत नाटक अकादमी अवार्ड
- 1985 – पद्म भुषण
- 1985 – बेस्ट मेल प्लेबैक सिंगर के लिए नेशनल फिल्म अवार्ड
- 1986 – “पहली प्लैटिनम डिस्क”
- 1999 – पद्म विभूषण
- 2000 – “आदित्य विक्रम बिरला कलाशिखर पुरस्कार”
- 2002 – महाराष्ट्र भुषण
- 2003 – केरला सरकार द्वारा “स्वाथि संगीता पुरस्कारम”
- 2005 – कर्नाटक सरकार द्वारा कर्नाटक रत्न का पुरस्कार
- 2009 – भारत रत्न
- 2008 – “स्वामी हरिदास अवार्ड”
- 2009 – दिल्ली सरकार द्वारा “लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड”
- 2010 – रमा सेवा मंडली, बंगलौर द्वारा “एस व्ही नारायणस्वामी राव नेशनल अवार्ड”