छायावाद के प्रमुख कवि एवं उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए ।
प्रमुख छायावादी कवि एवं उनके काव्य
छायावादी युग में अनेक ऐसे कवि हुए जिनकी रचनाओं से आधुनिक हिन्दी साहित्य को गौरव प्राप्त हुआ। जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानन्दन पन्त, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, छायावाद की बृहदत्रयी हैं। महादेवी वर्मा, रामकुमार वर्मा एवं माखनलाल चतुर्वेदी, छायावाद की लघुत्रयी के अन्तर्गत आते हैं। छायावाद के महासागर में प्रशंसनीय योगदान देने वाले कवियों में मिलिन्द, भगवतीचरण वर्मा, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ एवं सुभद्राकुमारी चौहान आदि का नाम भी उल्लेखनीय है।
जयशंकर प्रसाद- छायावादी युग के सृष्टा प्रसादजी के प्रारम्भिक काल में ब्रजभाषा में काव्य सृजन किया उनकी ब्रजभाषा सम्बन्धी कविताओं का संग्रह चित्रधार के नाम से प्रकाशित हुआ इसके अनन्तर खड़ी बोली काव्य ‘कानन कुसुम’ महाराणा का महत्त्व, ‘करुणालय’ और प्रेम पथिक प्रकाशित हुए। 1912 में उनका काव्य ‘झरना’ प्रकाशित हुआ। 1930-32 में राष्ट्रीय आन्दोलन के दिनों में इनके ‘आँसू’ काव्य का प्रकाशन हुआ। ‘आँसू’ में प्रसाद ने प्रेम वेदना को एक दिव्य झाँकी प्रस्तुत की जिसमें सुख और दुःख है। इसमें प्रसादजी का व्यक्तवाद अपने समग्र रूप में प्रकट हुआ है।” प्रेम पथिक इनका एक लघुबन्ध काव्य है। इसमें नायक के मुख से एक असफल प्रेम की कहानी कहलायी गई है। ‘आँसू की करुणा लहर में आकर आशामय सन्देश से आलोकित है। इसमें कवि जीवन के नये अरुणोदय की कल्पना करता है।
‘कामायनी’, ‘प्रसादजी’ की अन्तिम विन्दु सर्वश्रेष्ठ कृति है। और ये छायावादी युग का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है। आधुनिक युग का एकमात्र प्रतिनिधि महाकाव्य कामायनी में मनु, श्रद्धा और इड़ा की प्रौराणिक कथा के माध्यम से कविवर प्रसाद ने आज के युग के मनुष्य के बौद्धिक और भावात्मक विकास और आज के जीवन के वैषम्य की जीती जागती कहानी प्रस्तुत की है।
प्रसाद जी के काव्य में विषय नवीनता, नवीन कल्पनाओं की सृष्टि, मानवीय सौन्दर्य कलानिरूपण, भावानुसारिणी भाषा, प्रलय साधना, रहस्यात्मकता एवं लाक्षणिक भंगिमा आदि छायावाद की सभी विशेषताएँ सन्निहित हैं।
‘प्रसाद’ एक मानवतावादी युगान्तकारी महाकवि हैं।
सुमित्रानन्दन पन्त – सुकोमल भावनाओं में कवि पन्त प्रकृति के सुकुमार कवि कहे जाते हैं। उनका प्रकृति के प्रति अक्षय प्रेम रहा है। विशम्भर मानव के शब्दों में- “पन्त जी ने प्रकृति की एक-एक वस्तु में रचना पहचानी है। प्रकृति का उन्होंने शरीर ही नहीं देखा है, देखी है उस मन की भावनाएँ भी।” कविवर पन्त की रचनाओं का प्रकाश इस क्रम से हुआ-वीणा (1918). प्रन्थि (1920), पल्लव (1918-1924), गुंजन (1919-1932), युगान्त (1934-1936), युगवाणी (1936-1939), ग्राम्या (1939-1940), स्वर्ण किरण, स्वर्ण भूमि, युगान्तर, उत्तरा, शिल्पी और प्रतिमा आदि उनकी काव्य-कृतियाँ हैं।
युगान्तर में आकर पन्त में छायावादी प्रवृत्तियों का अन्त हो जाता है। वीणा में इनकी प्रारम्भिक रचनाएँ हैं। वीणा काल का कवि प्रकृति की अनुपम छटा से विमुग्ध प्रतीत होता है। बाला का सौन्दर्या भी उसे महत्वहीन प्रतीत होता है-“वाले तेरे बाल- जाल में कैसे उलझा दूँ मृदुलोचन” ‘ग्रन्थि’ एक छोटा-सा प्रबन्ध है जिसमें असफल प्रेम की कहानी है।
‘पल्लव’ में पन्त की सुप्रसिद्ध कविता परिवर्तन भी संग्रहीत है। पल्लव का छायावादी काव्य के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। ‘गुंजन’ में कविवर पन्त व्यक्तिगत सुख-दुःखों के ऊपर उठकर विश्व मानव कल्याण के लिए पुकार उठे हैं-
नव छवि, नव रंग, नव मधु से,
मुकुलित पुलकित हो जीवन ।
‘युगान्त’, ‘युगवाणी’ और ‘ग्राम्या’ में पन्त जी का प्रगतिवादी रूप मुखर हो उठा है। स्वर्ण किरण में कवि ने आध्यात्मिक भावनाओं को व्यक्त किया है। शिवदान सिंह चौहान ने उचित ही कहा है-“पन्त काव्य को यदि समय रूप से देखें तो उनकी सूक्ष्म सौन्दर्य दृष्टि और सुकुमार उदात्त कल्पना हिन्दी साहित्य में अनन्य है ।”
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला- निराला आधुनिक युग के महान कवि हैं। उनकी वाणी क्रान्ति सौन्दर्य और प्रेम की त्रिवेणी है। उनके अपने ही शब्दों में- “देखते नहीं मेरे पास एक कवि की वाणी, कलाकार के हाथ, पहलवान की छाती और फिलास्फर (दार्शनिक) के पैर हैं।” सन् 1915 में इन्होंने काव्य सृजन प्रारम्भ किया। उनका प्रथम काव्य-संग्रह ‘परिमल’ (1929) में प्रकाशित • हुआ इसके अन्य काव्य- ‘अनामिका’, ‘तुलसीदास’, ‘कुकुरमुत्ता’, ‘बेला’, ‘नये पत्ते’, ‘अर्चना’ और ‘आराधना’। ‘परिमल’ और अनामिका में छायावाद की सभी विशेषताएँ दृष्टिगत होती हैं। छायावाद को अद्वैत दर्शन की दृढ़भित्ति पर स्थित करने का सर्वाधिक श्रेय निराला को है।
‘परिमल’ को छायावाद का प्रतिनिधि काव्य कहा जा सकता है। जूही की कली, पंचवटी, विधवा भिक्षुक, बादल गीत एवं बहुत-सी अनेक कविताओं में छायावादी अनेक मुखी प्रवृत्तियों को उदात्त झलक मिलती है। निराला ने बहु-वस्तु स्पर्शिनी प्रतिभा है। आचार्य शुक्ल के शब्दों में- “संगीत को काव्य और काव्य को संगीत के अधिक निकट लाने का सर्वाधिक प्रयास निराला जी ने किया है।” उन्होंने हिन्दी को नवीन भाव, नवीन भाषा और नवीन मुक्त छन्द प्रदान किये। निराला जी ने प्रलयकर शंकर के समान स्वयं कटु विष पान करके हिन्दी साहित्य जगत को पीयूष वितरित किया ।
महादेवी वर्मा- छायावादी रहस्यवादी काव्य परम्परा में यदि पन्त जी अपनी सौन्दर्य भावना और सुकुमारता के लिए प्रसिद्ध हैं तो महादेवी जी की कविता में वेदना की प्रमुखता है। “सजल गीतों की गायिका महादेवी वर्मा आधुनिक युग की मोरा कही जाती हैं। इनकी कविता में संगीत, कला, चित्रकला तथा काव्य कला का अपूर्व समन्वय है।”
महादेवी वर्मा छायावाद के क्षेत्र में पन्त, निराला और प्रसाद के बाद में प्रविष्ट हुई। किन्तु उसका सबसे अधिक साथ दे रही हैं। उनके साहित्य में पीड़ा, आँसू, माधुर्य, आनन्द तथा उल्लास सभी कुछ-कुछ आलोचकों ने पीड़ा के तत्व की प्रधानता को देखकर पीड़ावाद की कवियित्री कहा है। स्वयं ‘महादेवी जी’ के शब्दों में- “दुःख मेरे निकट जीवन का ऐसा काव्य है। जो संसार को एक सूत्र में बाँध रखने की क्षमता रखता है।- विश्व जीवन में अपने जीवन को और विश्व वेदना को अपनी वेदना में इस प्रकार मिला देना जिस प्रकार एक-एक बिन्दु समुद्र में मिल जाता है, कवि का मोक्ष है।”
महादेवी की रचनाएँ नीहार, रश्मि, नीरजा और सान्ध्य गीत, दीप शिखा और यात्रा, ‘नीहार’ में प्रारम्भिक कविताओं का संकलन है तो रश्मि में कवियित्री का जीवन-मृत्यु, सुख और दुःख विषयक मौलिक चिन्तन । नौरजा में मानवीय भावनाओं की भव्य झाकियाँ तथा विरह वेदना के चित्र हैं तो सान्ध्य गीत में कवियित्री ने सुख और दुःख, विरह और मिलन में समन्वय स्थापित किया है।
भाव पक्ष की दृष्टि से महादेवी वर्मा की कविताओं में विरह वेदना, रहस्यवाद एवं छायावाद की विषयगत एवं शैलीगत प्रवृत्तियों का भव्य रूप चित्रित हुआ है। इन्होंने प्रभु को पीड़ा और पीड़ा में प्रभु को ढूँढ़ा है। इनकी भाषा में प्रसाद का परिकार, निराला की संगीतात्मकता और पन्त की कोमलता सभी कुछ चित्रित है। डॉ० इन्द्रनाथ मदान के शब्दों में- “छायावादी काव्य में प्रसाद ने यदि प्रकृति तत्व को मिलाया, निराला ने मुक्तक छन्द दिया, पन्त ने शब्दों को खरीदी पर चढ़ाकर सुडौल और सरस बनाया तो महादेवी जी ने उसमें प्राण डाले।”
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bilkul sach hai , Iss adhunik Yug mein kitaab dhundnaa aur usko pana lgvg naamumkin H . aap logohn ki soch aur honslaa hr chhatra ko Kaamyabi k manjil tq le Jayega…