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कथात्मक विधि : Story Telling Method
कथात्मक अथवा कहानी विधि का प्रयोग छोटी कक्षाओं के बालकों के लिये विशेष रूप से उपयुक्त है। छोटे बालकों को विभिन्न तथ्यों का ज्ञान कहानी के माध्यम से अधिक सरलता से कराया जा सकता है। रोचक वर्णन के आधार पर प्रस्तुत कहानियों में छोटे बालक अपनी पूर्ण रुचि प्रदर्शित करते हैं और उसके द्वारा उनका मनोवैज्ञानिक विकास सम्भव होता है। कथात्मक विधि पाठ्यवस्तु के प्रस्तुतीकरण की एक अत्यन्त प्राचीन विधि है, जिसके द्वारा विषय को सुरुचिपूर्ण एवं मनोरंजक बनाकर छात्रों को उसका ज्ञान सरलता एवं सहजतापूर्वक कराया जा सकता है। प्रसिद्ध ग्रीक दार्शनिक प्लेटो के द्वारा भी इस विधि को छात्रों हेतु अत्यन्त महत्त्वपूर्ण घोषित किया गया था। वस्तुतः बालक अपने नैसर्गिक स्वभाव के कारण ही कहानी प्रिय होते हैं। वे कहानी कहने और कहानी सुनने में बहुत छोटी आयु से ही रुचि प्रदर्शित करने लगते हैं। कल्पनालोक में विचरण करना भी उनके नैसर्गिक स्वभाव की विशेषता होती है। कहानी के माध्यम से बालकों को इन नैसर्गिक विशेषताओं का लाभ उठाकर वांछित दिशा में उनका विकास अधिक सहजतापूर्वक सम्भव होता है।
कहानी विधि की प्रभावयुक्तता पूर्णतः शिक्षक पर निर्भर करती है। कुछ शिक्षकों में कहानी कहने की कला जन्मजात होती है और कुछ इस कला को प्रयास द्वारा अर्जित कर सकते हैं। अतः विशेषकर छोटी कक्षाओं में कक्षा अध्यापकों का कहानी कहने की कला में पारंगत होना नितान्त आवश्ययक है। ग्रीन व रचेना के शब्दों में- “किसी कहानी को अच्छी प्रकार कहने की योग्यता को शिक्षक का उचित रूप से आवश्यक गुण माना जा सकता है।” वस्तुतः, पर्याप्त दक्षता के अभाव में कहानी को प्रभावपूर्ण नहीं बनाया जा सकता। जब तक कहानी कहने वाला स्वयं कहानी कहने में रुचि न ले, स्वयं को कक्षा का ही एक अंग न समझे तथा भावों के अनुकूल अपने हाव-भाव अथवा भाव-भंगिमाओं को प्रदर्शित न करे, तब तक कहानी को रोचक एवं प्रभावी नहीं बनाया जा सकता।
कथात्मक विधि की सावधानियाँ
- कहानी कहते समय अध्यापकों को कहानी के उद्देश्य को विस्मृत नहीं करना चाहिये।
- कहानी को छात्रों के समक्ष स्वाभाविक ढंग से ही कहना चाहिये।
- कहानी कहते समय पाठ्य पुस्तक का प्रयोग कहानी के प्रवाह एवं प्रभाव में अवरोध उत्पन्न करता है।
- कहानी में आने वाले मुख्य प्रसंगों, वार्तालापों अथवा वाक्यों की पुनरावृत्ति की जानी चाहिये।
- शिक्षक का कहानी से सम्बन्धित पाठ्यवस्तु पर पूर्ण स्वामित्व होना आवश्यक है।
- शिक्षक को विशेषकर ऐतिहासिक कहानियों में कालक्रम का पूर्ण ध्यान रखना चाहिये।
- कुछ अध्यापक कक्षा में कहानी कहने के स्थान पर कहानी को धारा प्रवाह रूप से पढ़ देते हैं। इससे कहानी रुचिपूर्ण नहीं बन पाती। अतः मात्र औपचारिक रूप से कहानी पढ़ने के स्थान पर अध्यापकों को कहानी कहने के कौशल में दक्षता प्राप्त करनी चाहिये ।
- छात्रों की आयु एवं स्तर के अनुसार ही कहानी को विस्तार प्रदान करना चाहिये।
- कहानी में क्रमबद्धता, प्रभाव एवं मनोरंजकतापूर्ण प्रसंगों का भी होना आवश्यक है।
- समुचित हाव-भावों की अभिव्यक्ति एवं अभिनयपूर्ण मुद्रा के द्वारा ही कहानी को प्रभावपूर्ण बनाया जा सकता है।
- छात्रों को सुनाई जाने वाली कहानी में अध्यापक को स्वयं अपनी रुचि प्रदर्शित करनी चाहिये ।
- कहानी कहते समय छात्रों को भी सहयोग हेतु प्रेरित करना चाहिये।
- बालकों को सुनाई जाने वाली कहानी अध्यापक को पूर्णतः स्मृत होनी आवश्यक है।
- कहानी सरल भाषा एवं रोचकपूर्ण शैली में प्रस्तुत की जानी चाहिये।
- कहानी कहते समय विवरण के स्थान पर आवश्यक क्रियाओं को अधिक सम्मिलित किया जाना चाहिये।
कथात्मक विधि के गुण
- इस विधि के माध्यम से छोटी आयु के विद्यार्थी अपनी रुचि प्रदर्शित करने लगते हैं।
- छात्रों की कल्पना एवं निर्णय शक्ति का विकास इस विधि के द्वारा विशेष रूप से सम्भव है।
- इसके द्वारा छात्रों में अनेक गुणों का विकास होता है, जिसका उनके चरित्र एवं व्यक्तित्व पर वांछित प्रभाव पड़ता है।
- छात्र छोटी आयु से ही अपने विचारों को संक्षिप्त वाक्यों में तथा रोचकतापूर्ण ढंग से प्रस्तुत करना सीखते हैं।
- इस विधि के द्वारा छात्रों का मनोवैज्ञानिक विकास होता है।”
- इसके माध्यम से नीरसतापूर्ण तथ्यों को भी सहजतापूर्वक प्रस्तुत किया जा सकता है।
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