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भारत की जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण
सन् 1951 में भारत की जनसंख्या 36.14 करोड़ थी जो 1991, 2001 तथा 2011 में बढ़कर क्रमश: 84.63 करोड़, 102.7 करोड़ तथा 121 करोड़ हो गई। भारत की जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि के लिए निम्न कारण उत्तरदायी है-
(1) गर्म जलवायु- भारत की जलवायु गर्म है। यहाँ लड़के-लड़कियाँ छोटी आयु में ही परिपक्व हो जाते हैं, अर्थात् वे कम आयु में ही विवाह तथा बच्चे पैदा करने के योग्य हो जाते हैं।
(2) विवाह की अनिवार्यता- भारत में विवाह एक सामाजिक कर्त्तव्य समझा जाता है। अविवाहित व्यक्ति को सन्देह की दृष्टि से देखा जाता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति विवाह करता है जिससे जन्म-दर बढ़ती है।
(3) कम आयु में विवाह- भारत में विवाह प्रायः बहुत कम आयु में कर दिए जाते हैं। आज भी गाँवों तथा कस्बों में असंख्य बाल विवाह होते हैं। इससे स्त्रियों की प्रजनन अवधि बढ़ जाती है। एक अनुमान के अनुसार 90 प्रतिशत लड़कियों का विवाह 15 से 20 वर्ष की आयु में ही कर दिया जाता है।
(4) सामाजिक एवं धार्मिक विचार- देश में कुछ वर्गों के लोग परिवार नियोजन को धर्म के विरुद्ध मानते हैं। भाग्यवादी होने के कारण अधिकांश देशवासी सन्तान को ईश्वरीय देन मानते हैं। वंश चलाने के लिए पुत्र का होना आवश्यक माना जाता है। हिन्दू पुत्र को मोक्ष का साधन मानते हैं। अतः लोग पुत्र प्राप्ति के लिए लड़कियाँ होने पर सन्तान उत्पन्न करते जाते हैं। इस प्रकार के विचार तथा अन्धविश्वास जनसंख्या वृद्धि में सहायक सिद्ध हुए हैं।
(5) निरक्षरता- देश की 35 प्रतिशत जनसंख्या अशिक्षित है। अधिकांश अशिक्षित लोगों को परिवार नियोजन के महत्त्व का ज्ञान ही नहीं होता। फिर परिवार नियोजन के उपायों के प्रति संकोच, लज्जा तथा निराधार शंकाओं के कारण अधिकांश दम्पत्ति बच्चों को जन्म देते रहते हैं।
(6) संयुक्त परिवार प्रणाली- भारत में प्रचलित संयुक्त परिवार प्रणाली भी जन्म-दर के अधिक होने का कारण है। व्यक्ति के विवाह तथा उसके बच्चों के भरण पोषण का भार संयुक्त परिवार पर पड़ता है। अतः सन्तान पैदा करने से पहले यह नहीं सोचा जाता कि उसका पालन-पोषण कैसे होगा।
(7) मृत्यु दर में कमी तथा औसत आयु में वृद्धि- देश में शिक्षा, चिकित्सा तथा स्वच्छता सम्बन्धी सुविधाओं में वृद्धि होने से मृत्यु दर में कमी हुई है। सन् 1951 में मृत्यु दर 27.4 थी जो 2001 में घटकर 8 तथा सन् 2009 में 7.3 हो गई थी। 1951 में देश में औसत आयु 33 वर्ष थी जो 2001 में बढ़कर 64 वर्ष हो गई थी। निःसन्देह मृत्यु दर में कमी तथा औसत आयु में वृद्धि होना देश की उपलब्धियाँ हैं किन्तु इनसे जनसंख्या वृद्धि की दर बढ़ी है।
(8) निर्धनता- निर्धन व्यक्तियों को बच्चों के पालन-पोषण पर बहुत कम खर्च करना पड़ता है। फिर उनके बच्चे कम आयु में ही छोटा-मोटा काम करके कुछ न कुछ कमाने लगते हैं। इसलिए वे अधिक बच्चों के जन्म को बुरा नहीं समझते।
(9) स्त्रियों की निम्न सामाजिक स्थिति- भारत में स्त्रियों की सामाजिक स्थिति काफी निम्न है। उन्हें मुख्यतया सन्तान उत्पन्न करने का साधन माना जाता है।
(10) सामाजिक सुरक्षा की भावना- भारत में बीमारी दुर्घटना, वृद्धावस्था आदि के विरुद्ध सामाजिक सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है। लोग यह सोचकर अधिक सन्तान उत्पन्न करते हैं कि वृद्धावस्था में सन्तान उनको सहारा देगी।
(11) शरणार्थियों का आगमन- पाकिस्तान तथा बांग्ला देश से आए करोड़ों शरणार्थियों के कारण भी देश की जनसंख्या में वृद्धि हुई है। इसके अतिरिक्त, गत कुछ वर्षों में श्रीलंका, मलेशिया, अफगानिस्तान तथा बर्मा से भी लोग बड़ी संख्या में भारत आए हैं।
अतिशय जनसंख्या का आर्थिक विकास पर प्रभाव
जनसंख्या तथा आर्थिक विकास में घनिष्ठ सम्बन्ध है किसी देश का आर्थिक विकास प्राकृतिक संसाधनों तथा जनसंख्या के आकार, बनावट तथा कार्यक्षमता पर निर्भर करता है। जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। भारत विश्व के 2.4 प्रतिशत क्षेत्रफल पर विश्व की 1.5 प्रतिशत आय के द्वारा 17.5 प्रतिशत जनसंख्या का भरण पोषण कर रहा है। इन तथ्यों से स्पष्ट है कि भारत में जनाधिक्य (over-population) की समस्या विद्यमान है। गत 50 वर्षों में जनसंख्या में निरन्तर तीव्र वृद्धि के कारण ‘जनसंख्या विस्फोट’ (population explosion) की स्थिति उत्पन्न हो गई है। तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या भारत के लिए अभिशाप सिद्ध हुई है क्योंकि इसने निम्नलिखित समस्याएँ उत्पन्न करके देश के आर्थिक विकास के मार्ग को अवरुद्ध किया है-
(1) बेरोजगारी में वृद्धि- भारत में जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण बेरोजगारों की संख्या निरन्तर बढ़ती गई है क्योंकि देश में पूँजीगत साधनों की कमी के कारण सभी को रोजगार नहीं दिलाया जा सका है। परिणामस्वरूप देश में शिक्षित बेरोजगारी, अदृश्य बेरोजगारी तथा अल्प बेरोजगारी बड़े स्तर पर पाई जाती है।
(2) खाद्य समस्या – स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत को अनेक बार विदेशों से करोड़ों ₹ के अनाज का आयात करना पड़ा है। इसके अतिरिक्त, जनसंख्या के निरन्तर बढ़ने के कारण प्रति व्यक्ति खाद्यान्न की उपलब्धि कम हुई है। इसका जनता के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है जिस कारण उसकी कार्यकुशलता में कमी आई है।
(3) प्रति व्यक्ति निम्न आय- पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत देश की राष्ट्रीय आय में निरन्तर वृद्धि हुई है। किन्तु बढ़ती हुई जनसंख्या आय-वृद्धि को निगलती रही है जिस कारण देश में प्रति व्यक्ति आय का स्तर अत्यन्त निम्न है। आज भी भारत में प्रति व्यक्ति आय विश्व के 101 राष्ट्रों की प्रति व्यक्ति आय से कम है।
(4) निर्धनता में वृद्धि– सन् 2010-11 में देश की 121 करोड़ जनसंख्या में निर्धनों की संख्या लगभग 38.5 करोड़ थी। इस प्रकार आर्थिक नियोजन के 60 वर्ष पूर्ण होने के बाद भी भारतीय अर्थव्यवस्था ‘निर्धनता के दुष्चक्र’ (vicious circle of poverty) में फंसी हुई है।
(5) मकानों की समस्या- जनसंख्या में तेजी से वृद्धि के कारण भारत में मकानों की समस्या गम्भीर रूप धारण करती जा रही है।
(6) कीमतों में तीव्र वृद्धि – जनसंख्या में तीव्र वृद्धि से वस्तुओं की माँग लगातार बढ़ती गई है किन्तु उत्पादन में उसी गति से वृद्धि नहीं हो पाई है। परिणामस्वरूप कीमत स्तर में बड़ी तेजी से वृद्धि हुई है जिससे सामान्य जनता को अनेक कष्ट उठाने पड़ रहे हैं।
(7) कृषि विकास में बाधा- जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण भूमि पर जनसंख्या का भार निरन्तर बढ़ता जा रहा है। परिवार के सदस्यों की संख्या में वृद्धि से भूमि का उपविभाजन तथा विखण्डन बढ़ता जा रहा है जिससे खेतों का आकार छोटा तथा अनार्थिक होता जा रहा है। फिर भूमिहीन किसानों की संख्या बढ़ रही है। साथ ही कृषि में छिपी हुई बेरोजगारी की समस्या प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
(8) वचत तथा पूँजी निर्माण में कमी- जनसंख्या वृद्धि के कारण कमाने वाले व्यक्ति पर आश्रितों (dependents) की संख्या बढ़ती जाती है। कार्यशील जनसंख्या (कमाने वाले लोग) को अपनी आय का एक बड़ा भाग बच्चों के पालन-पोषण पर खर्च करना पड़ता है। इससे बचत नहीं हो पाती है जिसका पूंजी निर्माण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। पूँजी की कमी के कारण विकास योजनाओं को पूर्ण करने में कठिनाई आती है।
(9) जनोपयोगी सेवाओं पर अधिक व्यय- जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण सरकार की बिजली, परिवहन, चिकित्सा, शिक्षा, जल आपूर्ति, भवन निर्माण आदि जन-उपयोगी सेवाओं पर लगातार अधिक धनराशि व्यय करनी पड़ती है।
(10) अपराधों में वृद्धि- बेरोजगार लोग अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए गलत तरीके अपनाने लगते हैं। इससे देश में चोरी, डकैती, अपहरण, राहजनी, हत्या आदि अपराधों में वृद्धि हो रही है। सरकार को समाज में कानून तथा व्यवस्था बनाए रखने के लिए सुरक्षा पर अधिक धनराशि व्यय करनी पड़ती है।
(11) शहरी समस्याओं में वृद्धि- जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण लोग रोजगार पाने के लिए गांवों को छोड़कर शहरों में आ रहे हैं जिससे शहरों की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। इससे शहरों में भीड़-भाड़, मकानों की कमी, गन्दगी व प्रदूषण, वेश्यावृत्ति आदि समस्याएं तथा बुराइया बढ़ती जा रही है।
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